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13 startups talk to investors for funding at I 5 Summit of IIM Indore

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UP & Bihar Water Crisis: IIT Kanpur Study Warns Groundwater Crisis In UP & Bihar - अभी नहीं चेते तो यूपी-बिहार भी पंजाब-हरियाणा की तरह पानी को तरसेंगे!

iit kanpur study warns groundwater crisis in up bihar IIT Kanpur Study: अभी नहीं चेते तो यूपी-बिहार भी पंजाब-हरियाणा की तरह पानी को तरसेंगे! Reported by Subscribe आईआईटी कानपुर की ओर से ग्राउंड वॉटर रिसर्च के लिए पश्चिमोत्तर भारत के 4000 कुओं के अध्ययन के बाद बताया गया है कि 1974 में भूजल का स्तर 2 मीटर गिरा था, जो 2010 आते-आते 30 मीटर तक पहुंच गया। रिसर्च में यूपी-बिहार के लिए भूजल संकट की चेतावनी दी गई है।   कोरोना संक्रमण की दर पर नजर रखने के लिए IIT कानपुर ने तैयार की वेबसाइट Subscribe हाइलाइट्स आईआईटी कानपुर की ताजा रिसर्च में यूपी-बिहार के लिए भूजल संकट की चेतावनी IIT कानपुर ने पश्चिमोत्तर भारत के 4000 कुओं के अध्ययन के बाद जारी की रिपोर्ट सर्वे में पाया गया कि बुंदेलखंड में भूजल की गिरावट खतरनाक स्तर पर पहुंच गई है कानपुर आईआईटी कानपुर की ताजा रिसर्च ने ग्राउंड वॉटर (भूजल) के मामले में पंजाब-हरियाणा के बाद उत्तर प्रदेश और बिहार के लिए भी खतरे की घंटी बजा दी है। पश्चिमोत्तर भारत के 4000 कुओं के अध्ययन के बाद बताया गया है कि 1974 में भूजल का स्तर 2 मीटर गिरा था, जो 2010 आते-आते 30 मीटर तक पहुंच गया। अर्थ सांइसेस विभाग के प्रफेसर राजीव सिन्हा के अनुसार, बीते 4-5 दशकों में हरियाणा-पंजाब में धान के रकबे में रेकॉर्ड इजाफा हुआ है। जल्द ध्यान नहीं दिया गया तो यूपी और बिहार में भी ऐसे ही हालात होंगे। सर्वे में पाया गया कि बुंदेलखंड में भूजल की गिरावट खतरनाक स्तर पर पहुंच गई है। अर्थ सांइसेस विभाग के प्रफेसर राजीव सिन्हा और उनके पीएचडी छात्र डॉ सुनील कुमार जोशी के साझा अध्ययन में बताया गया है कि हरियाणा में 1966-67 में 1 लाख 92 हजार हेक्टेयर में धान की बुआई होती थी। 2017-18 में यह बढ़कर 14 लाख 22 हजार हेक्टेयर तक पहुंच गई। ज्यादा पानी की मांग वाली धान का रकबा पंजाब में 1960-61 में सिर्फ 2 लाख 27 हजार हेक्टेयर था, जो 2017-18 में 30 लाख 64 हजार हेक्टेयर तक पहुंच गया। अनियंत्रित मांग का असर यह हुआ कि बाकी क्षेत्रों के उलट घग्गर-हाकरा पेलिओचैनल (कुरुक्षेत्र-पटियाला और फतेहाबाद जिले) में सबसे ज्यादा भूजल में रेकॉर्ड गिरावट आई। पानीपत और करनाल के कुछ हिस्सों में ऐसी गिरावट दर्ज हुई। इस मांग की वजह हरित क्रांति थी। प्रफेसर सिन्हा के मुताबिक, रिसर्च पेपर में भूजल के स्तर का हाई-रेजॉल्यूशन डेटा दिया गया है। साथ ही सूख चुकी नदियों और जलधाराओं के बारे में भी बताया गया है। भारत हर साल 245 घन किमी भूजल का दोहन करता है। इसमें 90 प्रतिशत पानी का इस्तेमाल सिंचाई के लिए होता है और इसके अलावा औद्योगिक क्षेत्र में अनियंत्रित इस्तेमाल भी प्रमुख कारण है। बुंदेलखंड के अलावा गंगा के मैदानी क्षेत्रों में भूजल का जमकर दोहन हो रहा है। समाधान का तरीका गलत बकौल प्रफेसर सिन्हा, कृषि और औद्योगिक काम में पानी का इस्तेमाल तो बढ़ा, लेकिन बारिश घट गई। पानी के दोहन से असंतुलन बढ़ा तो रेन वॉटर हार्वेस्टिंग का तरीका अपनाया गया। लेकिन इसके लिए पूरी तरह वैज्ञानिक तरीके अपनाने होंगे। मसलन, हर जमीन बारिश के पानी को जमीन में पहुंचाने के लिए उपयुक्त नहीं है। किसी जमीन (सब-सरफेस) में 10 मीटर की गहराई पर चिकनी मिट्टी है तो वहां रीचार्ज की जगह पानी इकट्ठा होकर आसपास की जमीन में उगने वाली फसल और बाकी चीजें गड़बड़ा देगा। सूखी नदियों का इस्तेमाल करें सेंट्रल ग्राउंड वॉटर बोर्ड के पास पूरे देश की मिट्टी के बारे में भरपूर डेटा उपलब्ध है। इसका वैज्ञानिक विश्लेषण कर रीचार्ज के लिए उपयुक्त जगहों का चयन किया जाए। दीर्घकालीन समाधान के लिए यह तरीका वरदान साबित हो सकता है। इसी तरह सूखी नदियों और जलधाराओं पर फोकस करने की भी आवश्यकता है। किसी नदी में पानी ज्यादा हो रहा है तो इंट्रा-बेसिन चैनल के जरिए पानी सूखी नदी में पहुंचाया जाए। नदियों में बाढ़ आने की स्थिति में इन सूखी जलधाराओं का इस्तेमाल कर सकते हैं। इससे बाढ़ से होने वाला नुकसान घटेगा और भूजल स्तर को बनाए रखने में मदद मिलेगी। जमीन के ऊपर और अंदर मौजूद जलस्रोत आपस में जुड़े हैं। बिहार में हर साल कोसी में बाढ़ आती है, लेकिन इसकी 100 धाराएं सूखी हैं। इन्हें पुनर्जीवित करना होगा। उत्तर प्रदेश में भी इस पहलू पर कोई काम नहीं हुआ है। इस पर गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है। सांकेतिक तस्वीरNavbharat Times News App: देश-दुनिया की खबरें, आपके शहर का हाल, एजुकेशन और बिज़नेस अपडेट्स, फिल्म और खेल की दुनिया की हलचल, वायरल न्यूज़ और धर्म-कर्म... पाएँ हिंदी की ताज़ा खबरें डाउनलोड करें NBT ऐप लेटेस्ट न्यूज़ से अपडेट रहने के लिए NBT फेसबुक पेज लाइक करें कॉमेंट लिखें इन टॉपिक्स पर और पढ़ें

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Demand For One Nation One Penal Code, A Petition Filed In Supreme Court, Seeking To Abolish The 161-year-old Ipc - याचिका: सुप्रीम कोर्ट से 'एक राष्ट्र एक दंड संहिता' की गुहार, 161 साल पुराने भादंवि को खत्म करने की मांग

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Notice Issued: Senior Student Refuses To Marry After Rape Case Is Canceled, Karnataka Mbbs Student Reaches Supreme Court - नोटिस जारी: दुष्कर्म का मुकदमा रद्द होने के बाद सीनियर ने किया शादी से इनकार, एमबीबीएस छात्रा पहुंची सुप्रीम कोर्ट

Notice Issued: Senior Student Refuses To Marry After Rape Case Is Canceled, Karnataka Mbbs Student Reaches Supreme Court - नोटिस जारी: दुष्कर्म का मुकदमा रद्द होने के बाद सीनियर ने किया शादी से इनकार, एमबीबीएस छात्रा पहुंची सुप्रीम कोर्ट
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Supreme Court Set Aside Decision Of Allahabad High Court To Increase The Retirement Age Of Noida Employees - सुप्रीम कोर्ट: कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाना नीतिगत मामला, हाईकोर्ट को दखल देने की जरूरत नहीं

ख़बर सुनें  सुप्रीम कोर्ट ने बृहस्पतिवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले को दरकिनार कर दिया है जिसमें नई ओखला औद्योगिक विकास प्राधिकरण (नोएडा) द्वारा सितंबर 2012 में कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति की आयु 58 वर्ष से 60 वर्ष करने के निर्णय को सितंबर 2002 से लागू करने का निर्देश दिया गया था। जस्टिस धनंजय वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने नोएडा द्वारा दायर अपील को स्वीकार करते हुए कहा कि हाईकोर्ट ने कार्यपालिका के क्षेत्राधिकार पर अतिक्रमण किया है। पीठ ने अपने फैसले में कहा है कि सेवानिवृत्ति की आयु  बढाई जानी चाहिए या नहीं, यह नीतिगत मामला है। अगर सेवानिवृत्ति की आयु बढाने का निर्णय लिया गया है तो यह बढ़ोतरी किस तारीख से होनी चाहिए, यह नीतिगत होता है। ऐसे में हाईकोर्ट को इस मसले में दखल नहीं देना चाहिए था। सेवानिवृत्ति की आयु 58 वर्ष से बढ़ाकर 60 वर्ष हुई थी हाईकोर्ट ने नोएडा के कुछ कमर्चारियों द्वारा दायर रिट याचिका पर अपना फैसला दिया था। रिट याचिका दायर करने वाले कर्मचारी इस बात से खफा थे कि सेवानिवृत्ति की आयु बढाने के निर्णय को अधिसूचना वाली तारीख से लागू किया गया था। हाईकोर्ट का मानना था कि इस निर्णय का लाभ उन कर्मचारियों को भी मिलना चाहिए जो सितंबर 2012 से पहले सेवानिवृत्त हुए थे। दरअसल, उत्तर प्रदेश सरकार ने वर्ष 2001 में अपने कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति की आयु 58 वर्ष से बढ़ाकर 60 वर्ष कर दी थी और पब्लिक सेक्टर कॉर्पोरेशन को  अपनी वित्तीय स्थिति को देखते हुए इस तरह के निर्णय लेने की आजादी दी गई थी। विस्तार  सुप्रीम कोर्ट ने बृहस्पतिवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले को दरकिनार कर दिया है जिसमें नई ओखला औद्योगिक विकास प्राधिकरण (नोएडा) द्वारा सितंबर 2012 में कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति की आयु 58 वर्ष से 60 वर्ष करने के निर्णय को सितंबर 2002 से लागू करने का निर्देश दिया गया था। विज्ञापन जस्टिस धनंजय वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने नोएडा द्वारा दायर अपील को स्वीकार करते हुए कहा कि हाईकोर्ट ने कार्यपालिका के क्षेत्राधिकार पर अतिक्रमण किया है। पीठ ने अपने फैसले में कहा है कि सेवानिवृत्ति की आयु  बढाई जानी चाहिए या नहीं, यह नीतिगत मामला है। अगर सेवानिवृत्ति की आयु बढाने का निर्णय लिया गया है तो यह बढ़ोतरी किस तारीख से होनी चाहिए, यह नीतिगत होता है। ऐसे में हाईकोर्ट को इस मसले में दखल नहीं देना चाहिए था। सेवानिवृत्ति की आयु 58 वर्ष से बढ़ाकर 60 वर्ष हुई थी हाईकोर्ट ने नोएडा के कुछ कमर्चारियों द्वारा दायर रिट याचिका पर अपना फैसला दिया था। रिट याचिका दायर करने वाले कर्मचारी इस बात से खफा थे कि सेवानिवृत्ति की आयु बढाने के निर्णय को अधिसूचना वाली तारीख से लागू किया गया था। हाईकोर्ट का मानना था कि इस निर्णय का लाभ उन कर्मचारियों को भी मिलना चाहिए जो सितंबर 2012 से पहले सेवानिवृत्त हुए थे। दरअसल, उत्तर प्रदेश सरकार ने वर्ष 2001 में अपने कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति की आयु 58 वर्ष से बढ़ाकर 60 वर्ष कर दी थी और पब्लिक सेक्टर कॉर्पोरेशन को  अपनी वित्तीय स्थिति को देखते हुए इस तरह के निर्णय लेने की आजादी दी गई थी। आपकी राय हमारे लिए महत्वपूर्ण है। खबरों को बेहतर बनाने में हमारी मदद करें। खबर में दी गई जानकारी और सूचना से आप संतुष्ट हैं? हां

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ਪਾਣੀ ਦੇ ਵਧ ਰਹੇ ਸੰਕਟ ਲਈ ਜਿ਼ੰਮੇਵਾਰ ਕੌਣ?

ਅਪਡੇਟ ਦਾ ਸਮਾਂ : 290 ਡਾ. ਗਿਆਨ ਸਿੰਘ ਪੱਤਰਕਾਰ ਐੱਸਪੀ ਸਿੰਘ ਨੇ ਵ੍ਹੱਟਸਐਪ ਸੁਨੇਹੇ ਵਿਚ ਪੰਜਾਬ ’ਚ ਧਰਤੀ ਹੇਠਲੇ ਪਾਣੀ ਦੇ ਪੱਧਰ ਦੇ ਖ਼ਤਰਨਾਕ ਹੱਦ ਤੱਕ ਹੇਠਾਂ ਜਾਣ ਬਾਰੇ ਇਕ ਸਰਕਾਰੀ ਅਫਸਰ ਦੀ ਚਿੰਤਾ ਸਾਂਝੀ ਕੀਤੀ। ਅਫਸਰ ਨੇ ਲਿਖਿਆ ਹੈ: “ਮੈਂ ਅੱਜ ਸੰਗਰੂਰ, ਬਰਨਾਲਾ, ਮੋਗਾ, ਫਿਰੋਜ਼ਪੁਰ ਇਲਾਕੇ ਦੇ ਦੌਰੇ ’ਤੇ ਸਾਂ। ਤਾਪਮਾਨ 45 ਡਿਗਰੀ ’ਤੇ ਪਹੁੰਚਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ, ਕੋਈ ਚਿੜੀ ਜਨੌਰ ਵੀ ਬਾਹਰ ਨਹੀਂ ਦਿਸ ਰਿਹਾ ਪਰ ਹਲਾਂ ਨਾਲ ਵਾਹ ਕੇ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਪੋਲੇ ਕੀਤੇ ਖੇਤਾਂ ਵਿਚ ਹਜ਼ਾਰਾਂ ਟਿਊਬਵੈੱਲ ਪਾਣੀ ਭਰਨ ਲਈ ਸੂਰਜ ਨਾਲ ਹਠਧਰਮੀ ਜੰਗ ਲੜ ਰਹੇ ਸਨ। ਲੱਗ ਰਿਹਾ ਸੀ ਕਿ ਮਾਤਾ ਧਰਤ ਮਹਤ ਦਾ ਪਾਣੀ ਪਿਤਾ ਦੀ ਹਾਜ਼ਰੀ ਵਿਚ ਉਸ ਦੇ ਪੁੱਤਰਾਂ ਵੱਲੋਂ ਬੇਸ਼ਰਮੀ ਨਾਲ ਚੀਰਹਰਨ ਕੀਤਾ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੋਵੇ। ਕਈ ਦਿਨਾਂ ਤੋਂ ਜੀਰੀ ਲਗਾ ਰਹੇ ਕੁਝ ਕਿਸਾਨਾਂ ਨਾਲ ਗੱਲਬਾਤ ਦੌਰਾਨ ਮਹਿਸੂਸ ਹੋਇਆ ਕਿ ਬਸ ਹੁਣ ਕਹਾਣੀ ਖ਼ਤਮ ਸਮਝੋ ਕਿਉਂਕਿ ਮਸਲਾ ਤਰਕ, ਕਾਨੂੰਨ, ਧਰਮ, ਦੁਨਿਆਵੀ ਸਿਆਣਪ ਅਤੇ ਸਮਾਜੀ ਇਖਲਾਕ ਦੇ ਮਾਨਵੀ ਚੌਖਟੇ ਤੋਂ ਬਹੁਤ ਅੱਗੇ ਲੰਘ ਚੁੱਕਿਆ ਹੈ। ਆਪਾ-ਧਾਪੀ ਦੇ ਇਸ ਦੌਰ ਵਿਚ ਪਾਣੀ ਬਾਰੇ ਜਾਗਰੂਕ ਹੋ ਕੇ ਪੰਜਾਬੀ ਸਭਿਅਤਾ ਨੂੰ ਬਚਾਉਣ ਲਈ ਕੋਈ ਸਿਆਣੀ ਗੱਲ ਸੁਣਨ ਨੂੰ ਤਿਆਰ ਨਹੀਂ। ਆਉਣ ਵਾਲੇ ਕੱਲ੍ਹ ਦਾ ਫਿਕਰ ਬਹੁਗਿਣਤੀ ਲਈ ਮਖੌਲ ਬਣ ਗਿਆ ਹੈ। ਅੱਜ ਜਦੋਂ ਕੁਦਰਤ ਨਾਲ ਹੁੰਦਾ ਖਿਲਵਾੜ ਅੱਖੀਂ ਦੇਖ ਨਾ ਹੋਇਆ ਤਾਂ ਤਿੱਖੜ ਦੁਪਹਿਰੀਂ ਕਾਰ ਦੀ ਪਿਛਲੀ ਸੀਟ ’ਤੇ ਨਮ ਹੋਈਆਂ ਅੱਖਾਂ ਬੰਦ ਕਰਕੇ ਬਾਬੇ ਨਾਨਕ ਅੱਗੇ ਸਰਬੱਤ ਦੇ ਭਲੇ ਅਤੇ ਲੋਕਾਈ ਨੂੰ ਸੁਮੱਤ ਬਖਸ਼ਣ ਦੀ ਅਰਦਾਸ ਕਰਨ ਲੱਗ ਪਿਆ।” ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਇਸ ਸਰਕਾਰੀ ਅਫਸਰ ਦੀ ਇਸ ਗੱਲ ਨਾਲ਼ ਕੋਈ ਅਸਹਿਮਤ ਨਹੀਂ ਹੋ ਸਕਦਾ ਕਿ ਪੰਜਾਬ ਵਿਚ ਧਰਤੀ ਹੇਠਲੇ ਪਾਣੀ ਦਾ ਪੱਧਰ ਖ਼ਤਰਨਾਕ ਹੱਦ ਤੱਕ ਹੇਠਾਂ ਗਿਆ ਹੈ ਅਤੇ ਮੁੱਖ ਕਾਰਨ ਪੰਜਾਬ ਵਿਚ ਜੀਰੀ/ਝੋਨੇ ਦੀ ਕਾਸ਼ਤ ਹੈ। ਇਸ ਅਫਸਰ ਦੀਆਂ ਕੁਝ ਵਿਚਾਰਾਂ ਨਾਲ ਬਿਲਕੁਲ ਸਹਿਮਤ ਨਹੀਂ ਹੋਇਆ ਜਾ ਸਕਦਾ; ਜਿਵੇਂ 1) ਮਾਤਾ ਧਰਤ ਮਹਤ ਦਾ ਪਾਣੀ ਪਿਤਾ ਦੀ ਹਾਜ਼ਰੀ ਵਿਚ ਉਸ ਦੇ ਪੁੱਤਰਾਂ ਵੱਲੋਂ ਬੇਸ਼ਰਮੀ ਨਾਲ਼ ਚੀਰਹਰਨ ਕੀਤਾ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੋਵੇ; 2) ਆਪਾ-ਧਾਪੀ ਦੇ ਇਸ ਦੌਰ ਵਿਚ ਪਾਣੀ ਬਾਰੇ ਜਾਗਰੂਕ ਹੋ ਕੇ ਪੰਜਾਬੀ ਸਭਿਅਤਾ ਨੂੰ ਬਚਾਉਣ ਲਈ ਕੋਈ ਸਿਆਣੀ ਗੱਲ ਸੁਣਨ ਨੂੰ ਤਿਆਰ ਨਹੀਂ; 3) ਜਦੋਂ ਕੁਦਰਤ ਨਾਲ਼ ਹੁੰਦਾ ਖਿਲਵਾੜ ਅੱਖੀਂ ਦੇਖ ਨਾ ਹੋਇਆ ਤਾਂ ਇਸ ਅਫਸਰ ਦਾ ਆਪਣੀਆਂ ਨਮ ਹੋਈਆਂ ਅੱਖਾਂ ਬੰਦ ਕਰਕੇ ... ਲੋਕਾਈ ਨੂੰ ਸੁਮੱਤ ਬਖਸ਼ਣ ਦੀ ਅਰਦਾਸ ਕਰਨਾ। ਆਈਆਈਟੀ ਕਾਨਪੁਰ ਦੇ ਪ੍ਰੋ. ਰਾਜੀਵ ਸਿਨਹਾ ਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਨਿਗਰਾਨੀ ਹੇਠ ਕੰਮ ਕਰ ਰਹੇ ਪੀਐੱਚਡੀ ਖੋਜਾਰਥੀ ਸੁਨੀਲ ਕੁਮਾਰ ਜੋਸ਼ੀ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ’ਚ ਕੀਤੇ ਤਾਜ਼ਾ ਖੋਜ ਅਧਿਐਨ ਤੋਂ ਸਾਹਮਣੇ ਆਇਆ ਹੈ ਕਿ ਪਾਣੀ ਦੇ ਡਿਗ ਰਹੇ ਪੱਧਰ ਦੇ ਮਾਮਲੇ ’ਚ ਪੰਜਾਬ ਤੇ ਹਰਿਆਣਾ ਖੇਤਰ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਧ ਮਾਰ ਝੱਲ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਹਰਿਆਣੇ ’ਚ 1966-67 ਦੌਰਾਨ ਝੋਨੇ ਦੀ ਲਵਾਈ ਅਧੀਨ ਜਿਹੜਾ ਰਕਬਾ 192000 ਹੈਕਟੇਅਰ ਸੀ, 2017-18 ’ਚ 1422000 ਹੈਕਟੇਅਰ ਹੋ ਗਿਆ ਹੈ ਅਤੇ 1960-61 ’ਚ ਪੰਜਾਬ ’ਚ ਝੋਨੇ ਦੀ ਲਵਾਈ ਅਧੀਨ ਜਿਹੜਾ ਰਕਬਾ 227000 ਹੈਕਟੇਅਰ ਸੀ, ਉਹ 2017-18 ਵਿਚ ਵਧਕੇ 3064000 ਹੈਕਟੇਅਰ ਹੋ ਗਿਆ ਹੈ। ਇਸ ਅਧਿਐਨ ਅਨੁਸਾਰ ‘ਹਰੇ ਇਨਕਲਾਬ’ ਦੇ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਉਤਪਾਦਕਤਾ ਨੂੰ ਵਧਾਉਣ ਦੇ ਉਦੇਸ਼ ਦੀ ਪੂਰਤੀ ਧਰਤੀ ਹੇਠਲੇ ਪਾਣੀ ਦੀ ਲਗਾਤਾਰ ਵਰਤੋਂ ਅਤੇ ਉਸ ਦੇ ਲਗਾਤਾਰ ਤੇਜ਼ੀ ਨਾਲ ਡਿਗ ਰਹੇ ਪੱਧਰ ਲਈ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰ ਹੈ। ਪੰਜਾਬ ਵਿਚ ਧਰਤੀ ਹੇਠਲੇ ਪਾਣੀ ਦੇ ਲਗਾਤਾਰ ਡਿਗ ਰਹੇ ਪੱਧਰ ਦੇ ਕਈ ਕਾਰਨ ਹਨ। ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚੋਂ ਸਭ ਤੋਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਧਰਤੀ ਹੇਠਲੇ ਪਾਣੀ ਦੀ ਸਿੰਜਾਈ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿਚ ਵਰਤੋਂ ਹੈ। ਡਾ. ਸੁਰਿੰਦਰ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਹਰਵਿੰਦਰ ਸਿੰਘ ਦੁਆਰਾ ਇਸੇ ਵਿਸ਼ੇ ਬਾਰੇ ਖੋਜ ਅਧਿਐਨ (2003) ‘ਗਰਾਊਂਡ ਵਾਟਰ ਡਿਵੈਲਮੈਂਟ ਇਨ ਪੰਜਾਬ’ ਤੋਂ ਇਹ ਸਾਹਮਣੇ ਆਇਆ ਕਿ ਪੰਜਾਬ ਵਿਚ ਧਰਤੀ ਹੇਠਲੇ ਪਾਣੀ ਦੇ ਲਗਾਤਾਰ ਡਿਗ ਰਹੇ ਪੱਧਰ ਵਾਲੇ ਉਹ ਵਿਕਾਸ ਖੰਡ ਹਨ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚ ਫ਼ਸਲਾਂ ਪੈਦਾ ਕਰਨ ਲਈ ਪਾਣੀ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਉਸ ਦੀ ਉਪਲਬਧ ਮਾਤਰਾ ਨਾਲੋਂ ਜ਼ਿਆਦਾ ਹੋ ਰਹੀ ਹੈ। ਫ਼ਸਲਾਂ ਦੇ ਜੋੜ (crop combination) ਅਤੇ ਧਰਤੀ ਹੇਠਲੇ ਪਾਣੀ ਦੇ ਸੰਤੁਲਨ ਵਿਚ ਗੂੜ੍ਹਾ ਸਬੰਧ ਹੈ। ਪੰਜਾਬ ਵਿਚ ਧਰਤੀ ਹੇਠਲੇ ਪਾਣੀ ਦੇ ਲਗਾਤਾਰ ਡਿਗ ਰਹੇ ਪੱਧਰ ਵਾਲ਼ੇ ਵਿਕਾਸ ਖੰਡਾਂ ਵਿਚ ਕਣਕ ਅਤੇ ਝੋਨੇ ਦੀ ਕਾਸ਼ਤ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ। ਇਹ ਫ਼ਸਲਾਂ ਕੁੱਲ ਬੀਜੇ ਰਕਬੇ ਦਾ ਤਿੰਨ-ਚੌਥਾਈ ਤੋਂ ਵੱਧ ਹਿੱਸਾ ਹਨ। ਪਾਣੀ ਦੇ ਪੱਧਰ ਲਈ ਝੋਨੇ ਹੇਠ ਆਇਆ ਰਕਬਾ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਮਹੱਤਤਾ ਰੱਖਦਾ ਹੈ। ਝੋਨੇ ਦੀਆਂ ਜ਼ਿਆਦਾ ਝਾੜ ਵਾਲ਼ੀਆਂ ਕਿਸਮਾਂ ਲਈ ਸਿੰਜਾਈ ਦੀ ਲੋੜ ਨਰਮਾ/ਕਪਾਹ, ਮੱਕੀ ਅਤੇ ਹੋਰ ਬਹੁਤ ਸਾਰੀਆਂ ਫ਼ਸਲਾਂ ਦੇ ਮੁਕਾਬਲੇ ਕਿਤੇ ਜ਼ਿਆਦਾ ਹੁੰਦੀ ਹੈ। ਇਸ ਦਾ ਮੁੱਖ ਕਾਰਨ ਆਮ ਤੌਰ ’ਤੇ ਝੋਨੇ ਦੀ ਫ਼ਸਲ ਲਈ ਛੱਪੜ-ਸਿੰਜਾਈ ਦੀ ਵਿਧੀ ਦਾ ਪ੍ਰਚੱਲਤ ਹੋਣਾ ਹੈ। ਚੀਰਹਰਨ ਵਾਲੇ ਵਿਚਾਰ ਦਾ ਸਪੱਸ਼ਟ ਅਰਥ ਹੈ ਕਿ ਪਾਣੀ ਦੇ ਡਿਗਦੇ ਪੱਧਰ ਲਈ ਸਿਰਫ਼ ਕਿਸਾਨ ਹੀ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰ ਹਨ। ਇਸ ਮਸਲੇ ਬਾਬਤ ਇਤਿਹਾਸਕ ਤੌਰ ’ਤੇ ਪੰਜਾਬ ਵਿਚ ਫ਼ਸਲਾਂ ਦੇ ਜੋੜ ਅਤੇ ਮੁਲਕ ਦੀਆਂ ਲੋੜਾਂ ਲਈ ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚ ਕੀਤੇ/ਕਰਵਾਏ ਗਏ ਬਦਲਾਓ ਸਮਝਣੇ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹਨ। ਦੂਜੀ ਪੰਜ ਸਾਲਾ ਯੋਜਨਾ ਵਿਚ ਮੁੱਖ ਤਰਜੀਹ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਖੇਤਰ ਤੋਂ ਬਦਲ ਕੇ ਉਦਯੋਗਿਕ ਖੇਤਰ ਨੂੰ ਦੇਣ ਦੇ ਨਤੀਜੇ ਕਾਰਨ ਮੁਲਕ ਵਿਚ ਅਨਾਜ ਪਦਾਰਥਾਂ ਦੀ ਭਾਰੀ ਥੁੜ੍ਹ ਕਾਰਨ ਅਮਰੀਕਾ ਤੋਂ ਪੀਐੱਲ 480 ਅਧੀਨ ਅਨਾਜ ਮੰਗਵਾਉਣ ਤੋਂ ਖਹਿੜਾ ਛੁਡਵਾਉਣ ਲਈ ਕੇਂਦਰ ਸਰਕਾਰ ਨੇ ‘ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਦੀ ਨਵੀਂ ਜੁਗਤ’ ਨੂੰ ਅਪਨਾਉਣ ਦਾ ਫ਼ੈਸਲਾ ਕੀਤਾ। ਇਹ ਜੁਗਤ ਵੱਧ ਝਾੜ ਦੇਣ ਵਾਲ਼ੇ ਬੀਜਾਂ, ਯਕੀਨੀ ਸਿੰਜਾਈ, ਰਸਾਇਣਕ ਖਾਦਾਂ, ਕੀਟਨਾਸ਼ਕਾਂ, ਨਦੀਨਨਾਸ਼ਕਾਂ ਤੇ ਹੋਰ ਰਸਾਇਣਾਂ, ਮਸ਼ੀਨਰੀ ਅਤੇ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਕਰਨ ਦੇ ਅਧੁਨਿਕ ਢੰਗਾਂ ਦਾ ਪੁਲੰਦਾ ਸੀ। ਇਸ ਜੁਗਤ ਦੀ ਰੂਹ ਵਪਾਰਕ/ਨਫ਼ੇ ਵਾਲ਼ੀ ਹੈ। ਇਹ ਜੁਗਤ ਅਪਨਾਉਣ ਬਾਰੇ ਫ਼ੈਸਲੇ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਕੇਂਦਰ ਸਰਕਾਰ ਨੇ ਇਸ ਨੂੰ ਤਰਜੀਹੀ ਤੌਰ ’ਤੇ ਪੰਜਾਬ ਵਿਚ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰਨ ਦਾ ਫ਼ੈਸਲਾ ਕੀਤਾ। ਕੇਂਦਰ ਦੇ ਇਸ ਫ਼ੈਸਲੇ ਪਿੱਛੇ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਹਿੰਮਤੀ ਕਿਸਾਨ, ਖੇਤ ਮਜ਼ਦੂਰ, ਛੋਟੇ ਕਾਰੀਗਰ ਅਤੇ ਅਮੀਰ ਕੁਦਰਤੀ ਸਾਧਨ ਸਨ। ਪੰਜਾਬ ਵਿਚ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਦੀ ਇਸ ਜੁਗਤ ਨੂੰ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰਨ ਸਦਕਾ ਕਣਕ ਦੀ ਉਤਪਾਦਕਤਾ ਅਤੇ ਉਤਪਾਦਨ ਵਿਚ ਇੰਨਾ ਵਾਧਾ ਹੋਇਆ ਕਿ ਕੇਂਦਰ ਸਰਕਾਰ ਦਾ ਬਾਹਰਲੇ ਮੁਲਕਾਂ ਤੋਂ ਅਨਾਜ ਮੰਗਵਾਉਣ ਬਾਰੇ ਵੱਡੀਆਂ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ ਤੋਂ ਖਹਿੜਾ ਛੁੱਟ ਗਿਆ। ਕੇਂਦਰ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਸ਼ਾਨਦਾਰ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਅਤੇ ਕੇਂਦਰੀ ਅਨਾਜ ਭੰਡਾਰ ਦੀਆਂ ਲੋੜਾਂ ਨੂੰ ਦੇਖਦੇ ਹੋਏ 1973 ਤੋਂ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਜਿਣਸਾਂ ਦੀਆਂ ਘੱਟੋ-ਘੱਟ ਸਮਰਥਨ ਕੀਮਤਾਂ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਕੀਮਤਾਂ ਉੱਪਰ ਕੇਂਦਰ ਸਰਕਾਰ ਵੱਲੋਂ ਯਕੀਨੀ ਖ਼ਰੀਦਦਾਰੀ ਦੀ ਨੀਤੀ ਦੁਆਰਾ ਝੋਨੇ ਦੀ ਫ਼ਸਲ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਕਿਸਾਨਾਂ ਦੇ ਸਿਰ ਮੜ੍ਹ ਦਿੱਤੀ। ਇਸ ਨਵੀਂ ਜੁਗਤ ਦੀ ਰੂਹ ਵਪਾਰਕ/ਨਫ਼ੇ ਵਾਲ਼ੀ ਹੋਣ, ਝੋਨੇ ਦੀ ਘੱਟੋ-ਘੱਟ ਕੀਮਤ ਸਾਉਣੀ ਦੀਆਂ ਹੋਰ ਫ਼ਸਲਾਂ ਦੇ ਮੁਕਾਬਲੇ ਉੱਚੀ ਰੱਖਣ ਅਤੇ ਉਸ ਉੱਪਰ ਯਕੀਨੀ ਖ਼ਰੀਦਦਾਰੀ ਕਾਰਨ ਪੰਜਾਬ ਵਿਚ ਝੋਨੇ ਅਧੀਨ ਰਕਬਾ ਤੇਜ਼ੀ ਨਾਲ਼ ਵਧਿਆ। ਪੰਜਾਬ ਵਿਚ ਇਸ ਜੁਗਤ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਸਿੰਜਾਈ ਆਮ ਤੌਰ ’ਤੇ ਨਹਿਰਾਂ ਤੇ ਖੂਹਾਂ ਨਾਲ ਹੁੰਦੀ ਸੀ। 1960-61 ਵਿਚ ਪੰਜਾਬ ਵਿਚ ਟਿਊਬਵੈੱਲਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਸਿਰਫ਼ 7445 ਸੀ। ਮੁਲਕ ਦੀਆਂ ਅਨਾਜ ਲੋੜਾਂ ਪੂਰੀਆਂ ਕਰਨ ਲਈ ਝੋਨੇ ਦੀ ਫ਼ਸਲ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਕਿਸਾਨਾਂ ਸਿਰ ਮੜ੍ਹਨ ਕਾਰਨ ਅੱਜਕੱਲ੍ਹ ਪੰਜਾਬ ਵਿਚ ਟਿਊਬਵੈੱਲਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ 15 ਲੱਖ ਦੇ ਕਰੀਬ ਹੋ ਗਈ ਹੈ। ਇਸ ਲਈ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਧਰਤੀ ਹੇਠਲੇ ਪਾਣੀ ਦੇ ਪੱਧਰ ਲਈ ਕਿਸਾਨਾਂ ਨੂੰ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰ ਠਹਿਰਾਉਣਾ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਲਈ ਮਾੜੀ ਭਾਸ਼ਾ ਵਰਤਣੀ ਕਿਸੇ ਵੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਜਾਇਜ਼ ਨਹੀਂ। ਇਸ ਤੋਂ ਇਹ ਜਾਪਦਾ ਹੈ, ਜਿਵੇਂ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਤੋਂ ਕੋਰਾ ਸ਼ਖ਼ਸ ਕਿਸੇ ਪੁਲ ਤੋਂ ਢਲਾਨ ਵੱਲ ਆ ਰਹੇ ਗੱਡੇ ਉੱਪਰਲੇ ਕਿਸਾਨ ਨੂੰ ਗੱਡੇ ਨੂੰ ਬਰੇਕਾਂ ਨਾ ਹੋਣ ਬਾਰੇ ਉਲਾਂਭਾ ਦੇ ਰਿਹਾ ਹੋਵੇ। ਸਾਨੂੰ ਪਤਾ ਹੋਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਕਿ ਢਲਾਨ ਵਿਚ ਜੇ ਕਿਸਾਨ ਕਿਸੇ ਵੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਗੱਡੇ ਨੂੰ ਬਰੇਕਾਂ ਲਾ ਦੇਵੇ ਤਾਂ ਉਸ ਦੇ ਬਲਦਾਂ ਦੇ ਕੰਨ੍ਹੇ ਮਤਾੜੇ ਜਾਣਗੇ, ਤੇ ਬਲਦਾਂ ਦੇ ਕੰਨ੍ਹਿਆਂ ਦੇ ਮਤਾੜੇ ਜਾਣ ਦਾ ਦੁੱਖ ਕਿਸਾਨ ਹੀ ਸਮਝ ਸਕਦਾ ਹੈ। ਅਨਾਜ ਲੋੜਾਂ ਪੂਰੀਆਂ ਕਰਨ ਲਈ ਪੰਜਾਬ ’ਚ ਟਿਊਬਵੈੱਲਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ’ਚ ਕੀਤੇ ਵਾਧੇ ਨੇ ਧਰਤੀ ਹੇਠਲੇ ਪਾਣੀ ਦੇ ਪੱਧਰ ਨੂੰ ਡੇਗਣ ਨਾਲ਼ ਨਾਲ਼ ਹੋਰ ਅਨੇਕਾਂ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ ਖੜ੍ਹੀਆਂ ਕੀਤੀਆਂ ਹਨ। ਸ਼ੁਰੂ ’ਚ ਤਾਂ ਮੋਨੋਬਲਾਕ ਮੋਟਰਾਂ ਨਾਲ਼ ਕੰਮ ਚੱਲ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ਪਰ ਪਾਣੀ ਦਾ ਪੱਧਰ ਡਿਗਣ ਕਾਰਨ ਸਬਮਰਸੀਬਲ ਮੋਟਰਾਂ ਕਿਸਾਨਾਂ ਦੀ ਮਜਬੂਰੀ ਹਨ ਜਿਹੜੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ਸਿਰ ਚੜ੍ਹੇ ਕਰਜ਼ੇ ਦਾ ਇਕ ਕਾਰਨ ਬਣੀ ਹੈ। ਇਸ ਵਿਚ ਕੋਈ ਸ਼ੱਕ ਨਹੀਂ ਕਿ ਭਾਰਤੀ ਸਮਾਜ ਦੁਨੀਆ ਦੇ ਹੋਰ ਸਮਾਜਾਂ ਵਾਂਗ ਆਪਾ-ਧਾਪੀ ’ਚ ਫਸਿਆ ਹੋਇਆ ਹੈ। ਖੇਤੀ ਦੀ ਨਵੀਂ ਜੁਗਤ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਕਿਸਾਨਾਂ, ਖੇਤ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ, ਪੇਂਡੂ ਛੋਟੇ ਕਾਰੀਗਰਾਂ ਤੇ ਹੋਰ ਪੇਂਡੂ ਲੋਕਾਂ ਵਿਚ ਨਿੱਘੇ ਸਮਾਜਿਕ ਰਿਸ਼ਤੇ ਸਨ। ਵੱਡੇ ਅਮੀਰ ਕਿਸਾਨ ਹੋਰ ਸਾਰੇ ਵਰਗਾਂ ਦੀ ਮਦਦ ਕਰਦੇ ਸਨ। ਕਿਸਾਨਾਂ, ਖੇਤ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਅਤੇ ਛੋਟੇ ਪੇਂਡੂ ਕਾਰੀਗਰਾਂ ਵਿਚਕਾਰ ਸੀਰ ਸੀ, ਭਾਵੇਂ ਇਸ ਸੀਰ ਵਿਚ ਵੀ ਟੇਢ ਸੀ। ਪੇਂਡੂ ਭਾਈਚਾਰੇ ਵਿਚ ਆਪਾ-ਧਾਪੀ ਦੀ ਭਾਵਨਾ ਲਿਆਉਣ ਅਤੇ ਭਾਰੂ ਕਰਨ ਵਿਚ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਉਤਪਾਦਨ ਵਿਚ ਨਫ਼ੇ ਨੂੰ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਥਾਂ ਦੇਣਾ ਹੈ। ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਕਿਸਾਨ ਸਿਆਣੀ ਗੱਲ ਸੁਣਨ ਤੋਂ ਬਿਨਾ ਇਸ ਤੱਥ ਨੂੰ ਚੰਗੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸਮਝਦੇ ਹਨ ਕਿ ਆਉਣ ਵਾਲ਼ੇ ਸਮੇਂ ਦੌਰਾਨ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਸਮੱਸਿਆਵਾ ਵਧਣਗੀਆਂ। ਜਦੋਂ ਕੁਦਰਤ ਨਾਲ਼ ਖਿਲਵਾੜ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਤਾਂ ਸਾਰੀ ਮਨੁੱਖਤਾ ਲਈ ਅਸਹਿ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ ਆਉਂਦੀਆਂ ਹਨ। ਕੌਮਾਂਤਰੀ ਪੱਧਰ ਦੀਆਂ ਵੱਖ ਵੱਖ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਦੁਨੀਆ ਦੇ ਸਾਰੇ ਮੁਲਕਾਂ ਦੀਆਂ ਸਰਕਾਰਾਂ ਨੂੰ ਗਰੀਨਹਾਊਸ ਗੈਸਾਂ ਘਟਾਉਣ ਲਈ ਉਪਾਅ ਕਰਨ ਦੀਆਂ ਸਲਾਹਾਂ ਅਤੇ ਚਿਤਾਵਨੀਆਂ ਦਿੰਦੀਆਂ ਹਨ। ਇਸ ਖਿਲਵਾੜ ਲਈ ਅਣਵਿਉਂਤਾ ਉਦਯੋਗੀਕਰਨ, ਰਹਿਣ-ਸਹਿਣ ਤੇ ਖਾਣ-ਪੀਣ ਦੇ ਗ਼ਲਤ ਤਰੀਕੇ ਅਤੇ ਹੋਰ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਕਾਰਨ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰ ਹਨ। ਇਸ ਖਿਲਵਾੜ ਨੂੰ ਰੋਕਣ ਲਈ ਬਾਬੇ ਨਾਨਕ ਨੂੰ ਅਰਜੋਈਆਂ ਕਰਨ ਦੀ ਬਜਾਇ ਸਰਕਾਰੀ ਨੀਤੀਆਂ ਨੂੰ ਕੁਦਰਤ-ਪੱਖੀ ਬਣਾਉਣਾ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੈ। ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਕਿਸਾਨਾਂ ਦੇ ਗੱਡੇ ਨੂੰ ਬਰੇਕਾਂ ਲਾਉਣ, ਭਾਵ ਜ਼ਮੀਨ ਹੇਠਲੇ ਪਾਣੀ ਦੇ ਪੱਧਰ ਨੂੰ ਲਗਾਤਾਰ ਹੇਠਾਂ ਡਿਗਣ ਤੋਂ ਬਚਾਉਣ ਲਈ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੈ ਕਿ ਕੇਂਦਰ ਸਰਕਾਰ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਜਿਣਸਾਂ ਦੀਆਂ ਘੱਟੋ-ਘੱਟ ਸਮਰਥਨ ਕੀਮਤਾਂ ਦੀ ਜਗ੍ਹਾ ਲਾਹੇਵੰਦ ਕੀਮਤਾਂ ਤੈਅ ਕਰੇ, ਜਿਣਸਾਂ ਦੀ ਖ਼ਰੀਦਦਾਰੀ ਨੂੰ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਯਕੀਨੀ ਬਣਾਵੇ ਤਾਂ ਕਿ ਸੂਬੇ ਦੇ ਖੇਤੀਬਾੜੀ-ਜਲਵਾਯੂ ਹਾਲਾਤ ਅਨੁਸਾਰ ਫ਼ਸਲਾਂ ਬੀਜੀਆਂ/ਲਾਈਆਂ ਜਾ ਸਕਣ। ਸਿੰਜਾਈ ਲਈ ਨਹਿਰੀ ਪ੍ਰਬੰਧ ਚੁਸਤ-ਦਰੁਸਤ ਕਰਨ ਦੇ ਨਾਲ਼ ਨਾਲ਼ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਦਰਿਆਵਾਂ ਦੇ ਪਾਣੀ ਦੀ ਵੰਡ ਨੂੰ ਰਿਪੇਅਰੀਅਨ ਸਿਧਾਂਤ ਅਨੁਸਾਰ ਕੀਤਾ ਜਾਵੇ। ਇਸ ਦੇ ਨਾਲ਼ ਨਾਲ਼ ਕਿਸਾਨਾਂ ਅਤੇ ਹੋਰ ਸਾਰੇ ਵਰਗਾਂ ਨੂੰ ਇਹ ਅਹਿਸਾਸ ਕਰਨ ਦੀ ਲੋੜ ਹੈ ਕਿ ਪਾਣੀ ਦੀ ਅਜਾਈਂ ਗੁਆਈ ਇਕ ਵੀ ਬੂੰਦ ਬਹੁਤ ਵੱਡਾ ਅਤੇ ਨਾ-ਮੁਆਫ਼ੀ ਯੋਗ ਅਪਰਾਧ ਹੈ। *ਸਾਬਕਾ ਪ੍ਰੋਫ਼ੈਸਰ, ਅਰਥ-ਵਿਗਿਆਨ ਵਿਭਾਗ, ਪੰਜਾਬੀ ਯੂਨੀਵਰਸਿਟੀ, ਪਟਿਆਲਾ। ਖ਼ਬਰ ਸ਼ੇਅਰ ਕਰੋ

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Social Media Platforms Cannot Be Used To Defame Others: Supreme Court - फैसला: 'बदनाम करने के लिए नहीं कर सकते सोशल मीडिया का इस्तेमाल' स्मृति ईरानी से जुड़े मामले में बोला सुप्रीम कोर्ट

ख़बर सुनें सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि सोशल मीडिया प्लेटफार्म का इस्तेमाल दूसरों को बदनाम करने के लिए नहीं किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि भाषा पर संयम बरतना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी उत्तर प्रदेश के एक कॉलेज के एक शिक्षक को गिरफ्तारी से संरक्षण देने से इनकार करते हुए की है। शिक्षक ने केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी के खिलाफ फेसबुक पर कथित तौर पर आपत्तिजनक टिप्पणी करने का आरोप है। जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस हेमंत गुप्ता की पीठ ने कहा कि लोगों को सोशल मीडिया पर किसी व्यक्ति के खिलाफ आलोचना या मजाक करते वक्त अपनी भाषा का ध्यान रखना चाहिए।  पीठ ने यूपी के फिरोजाबाद के एसआरके कॉलेज में इतिहास के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर शहरयार अली की अग्रिम जमानत की याचिका को खारिज करते हुए कहा,  'आप इस तरह महिलाओं को बदनाम नहीं कर सकते। आप सोशल मीडिया का इस्तेमाल सिर्फ बदनाम करने के लिए नहीं कर सकते। आखिर किस तरह की भाषा का इस्तेमाल किया जा रहा है? आलोचना या मजाक करने की भी एक भाषा होती है।' सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आप कुछ भी नहीं कह सकते। क्या है मामला? मामले के मुताबिक, केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी के खिलाफ कथित रूप से अश्लील फेसबुक पोस्ट करने के आरोप में पुलिस ने शहरयार अली के खिलाने मुकदमा दर्ज किया था। भाजपा के एक नेता की शिकायत पर प्रोफेसर को भारतीय दंड संहिता और सूचना एवं प्रौद्योगिकी अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत आरोपित किया गया है। इससे पहले मई में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अली को यह कहते हुए अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया था कि आरोपी राहत का हकदार नहीं है क्योंकि वह एक कॉलेज में वरिष्ठ शिक्षक है। हाईकोर्ट ने यह भी कहा था कि उसके सोशल मीडिया पोस्ट से विभिन्न समुदायों के बीच दुर्भावना को बढ़ावा देने की आशंका थी। हाईकोर्ट से राहत न मिलने के बाद अली ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान प्रोफेसर की ओर से पेश वरिष्ठ वकील विकास सिंह ने दावा किया कि उनके मुवक्किल का फेसबुक अकाउंट हैक कर लिया गया था। और जैसे ही उन्हें इस विवादस्पद पोस्ट की जानकारी मिली तो उन्होंने माफी को भी पोस्ट किया। इस पर पीठ ने सवाल किया कि ऐसा लगता है कि बाद में यह कहानी गढ़ी गई है।  पीठ ने कहा, 'आपने माफी मांगने के लिए उसी अकाउंट का इस्तेमाल किया, लेकिन आपका कहना है कि आपका अकाउंट हैक कर लिया गया था। इससे पता चलता है कि आप अभी भी उस अकाउंट का इस्तेमाल कर रहे हैं।' पीठ ने कहा कि क्या आपके पास इस बात का कोई प्रमाण है कि आपका अकाउंट हैक कर लिया गया था? पीठ ने कहा कि हमें आपके हैक वाली थ्योरी नहीं पच रही है। पीठ ने प्रोफेसर को ट्रायल कोर्ट के समक्ष अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए कहा है। विस्तार सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि सोशल मीडिया प्लेटफार्म का इस्तेमाल दूसरों को बदनाम करने के लिए नहीं किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि भाषा पर संयम बरतना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी उत्तर प्रदेश के एक कॉलेज के एक शिक्षक को गिरफ्तारी से संरक्षण देने से इनकार करते हुए की है। विज्ञापन शिक्षक ने केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी के खिलाफ फेसबुक पर कथित तौर पर आपत्तिजनक टिप्पणी करने का आरोप है। जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस हेमंत गुप्ता की पीठ ने कहा कि लोगों को सोशल मीडिया पर किसी व्यक्ति के खिलाफ आलोचना या मजाक करते वक्त अपनी भाषा का ध्यान रखना चाहिए।  पीठ ने यूपी के फिरोजाबाद के एसआरके कॉलेज में इतिहास के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर शहरयार अली की अग्रिम जमानत की याचिका को खारिज करते हुए कहा,  'आप इस तरह महिलाओं को बदनाम नहीं कर सकते। आप सोशल मीडिया का इस्तेमाल सिर्फ बदनाम करने के लिए नहीं कर सकते। आखिर किस तरह की भाषा का इस्तेमाल किया जा रहा है? आलोचना या मजाक करने की भी एक भाषा होती है।' सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आप कुछ भी नहीं कह सकते। क्या है मामला? मामले के मुताबिक, केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी के खिलाफ कथित रूप से अश्लील फेसबुक पोस्ट करने के आरोप में पुलिस ने शहरयार अली के खिलाने मुकदमा दर्ज किया था। भाजपा के एक नेता की शिकायत पर प्रोफेसर को भारतीय दंड संहिता और सूचना एवं प्रौद्योगिकी अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत आरोपित किया गया है। हाईकोर्ट ने भी खारिज कर दी थी अग्रिम जमानत याचिका इससे पहले मई में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अली को यह कहते हुए अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया था कि आरोपी राहत का हकदार नहीं है क्योंकि वह एक कॉलेज में वरिष्ठ शिक्षक है। हाईकोर्ट ने यह भी कहा था कि उसके सोशल मीडिया पोस्ट से विभिन्न समुदायों के बीच दुर्भावना को बढ़ावा देने की आशंका थी। हाईकोर्ट से राहत न मिलने के बाद अली ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान प्रोफेसर की ओर से पेश वरिष्ठ वकील विकास सिंह ने दावा किया कि उनके मुवक्किल का फेसबुक अकाउंट हैक कर लिया गया था। और जैसे ही उन्हें इस विवादस्पद पोस्ट की जानकारी मिली तो उन्होंने माफी को भी पोस्ट किया। इस पर पीठ ने सवाल किया कि ऐसा लगता है कि बाद में यह कहानी गढ़ी गई है।  पीठ ने कहा, 'आपने माफी मांगने के लिए उसी अकाउंट का इस्तेमाल किया, लेकिन आपका कहना है कि आपका अकाउंट हैक कर लिया गया था। इससे पता चलता है कि आप अभी भी उस अकाउंट का इस्तेमाल कर रहे हैं।' पीठ ने कहा कि क्या आपके पास इस बात का कोई प्रमाण है कि आपका अकाउंट हैक कर लिया गया था? पीठ ने कहा कि हमें आपके हैक वाली थ्योरी नहीं पच रही है। पीठ ने प्रोफेसर को ट्रायल कोर्ट के समक्ष अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए कहा है। विज्ञापन

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पंजाब और हरियाणा में भूजल चिंताजनक स्तर तक गिरा

नयी दिल्ली, 6 जुलाई (एजेंसी) उत्तर-पश्चिम भारत विशेषकर पंजाब और हरियाणा में भूजल चिंताजनक स्तर तक गिर गया है। एक नये अध्ययन में यह बात कही गई है। आईआईटी कानपुर द्वारा प्रकाशित शोध पत्र में उत्तर पश्चिम भारत के 4,000 से अधिक भूजल वाले कुओं के आंकड़ों का उपयोग किया गया है ताकि यह प्रदर्शित किया जा सके कि पंजाब और हरियाणा राज्यों में भूजल स्तर पिछले चार-पांच दशकों में खतरनाक स्तर तक गिर गया है। भारत सिंचाई, घरेलू और औद्योगिक जरूरतों के लिए दुनियाभर में भूजल का सबसे बड़ा उपयोगकर्ता है। अध्ययन में कहा गया है कि गंगा के मैदानी इलाकों के कई हिस्से फिलहाल भूजल के इसी तरह के अत्यधिक दोहन से पीड़ित हैं और यदि भूजल प्रबंधन के लिए उचित रणनीति तैयार की जाये तो स्थिति को नियंत्रित किया जा सकता है। आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर राजीव सिन्हा और उनके पीएचडी के छात्र सुनील कुमार जोशी के नेतृत्व में किये गये अध्ययन में बताया गया कि पंजाब और हरियाणा राज्य सबसे बुरी तरह प्रभावित क्षेत्र हैं। इसके अनुसार ऊपरी भूजल 1974 के दौरान जमीनी स्तर से 2 मीटर नीचे था जो 2010 में गिरकर लगभग 30 मीटर नीचे हो गया। अध्ययन से पता चलता है कि हरियाणा में चावल की खेती का क्षेत्र 1966-67 के 1,92,000 हेक्टेयर से बढ़कर 2017-18 में 14,22,000 हेक्टेयर हो गया जबकि पंजाब में यह 1960-61 के 2,27,000 के मुकाबले 2017-18 में बढ़कर 30,64,000 हेक्टेयर तक पहुंच गया है। नतीजतन, मांग को पूरा करने के लिए भूजल अवशोषण बढ़ गया। इसके अलावा, भूजल स्तर में सबसे महत्वपूर्ण गिरावट घग्गर-हकरा पैलियो चैनल (कुरुक्षेत्र, पटियाला और फतेहाबाद जिले) और यमुना नदी घाटी (पानीपत और करनाल जिलों के कुछ हिस्सों) में दर्ज की गई है। अध्ययन में कहा गया है, ‘उत्तर-मध्य पंजाब और हरियाणा के कई इलाकों में भूजल स्तर में तेजी से गिरावट दर्ज की गई है, जिसके लिए भूजल स्तर में बदलाव की निगरानी बढ़ाने और अमूर्त दबाव के खिलाफ तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है।’ खबर शेयर करें 22 घंटे पहले 22 घंटे पहले दूरदृष्टा, जनचेतना के अग्रदूत, वैचारिक स्वतंत्रता के पुरोधा एवं समाजसेवी सरदार दयालसिंह मजीठिया ने 2 फरवरी, 1881 को लाहौर (अब पाकिस्तान) से ‘द ट्रिब्यून’ का प्रकाशन शुरू किया। विभाजन के बाद लाहौर से शिमला व अंबाला होते हुए यह समाचार पत्र अब चंडीगढ़ से प्रकाशित हो रहा है। ‘द ट्रिब्यून’ के सहयोगी प्रकाशनों के रूप में 15 अगस्त, 1978 को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर दैनिक ट्रिब्यून व पंजाबी ट्रिब्यून की शुरुआत हुई। द ट्रिब्यून प्रकाशन समूह का संचालन एक ट्रस्ट द्वारा किया जाता है। हमें दूरदर्शी ट्रस्टियों डॉ. तुलसीदास (प्रेसीडेंट), न्यायमूर्ति डी. के. महाजन, लेफ्टिनेंट जनरल पी. एस. ज्ञानी, एच. आर. भाटिया, डॉ. एम. एस. रंधावा तथा तत्कालीन प्रधान संपादक प्रेम भाटिया का भावपूर्ण स्मरण करना जरूरी लगता है, जिनके प्रयासों से दैनिक ट्रिब्यून अस्तित्व में आया। खबरों के लिए सब्सक्राइब करें

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