Vimarsana.com

Latest Breaking News On - Singh kargil - Page 1 : vimarsana.com

Kargil Vijay Diwas Special Story: The Martyr Om Prakash Singh Chase Away Pakistani Troups Twice - द्रास की दुर्गम पहाड़ी और 'शिखर' पर शौर्य...जांबाज ने करगिल जंग में पाकिस्तानी सेना को 2 बार खदेड़ा था

kargil vijay diwas 2021 the martyr om prakash singh chase away pakistani troups twice Kargil Vijay Diwas: द्रास की दुर्गम पहाड़ी और 'शिखर' पर शौर्य...जांबाज ने करगिल जंग में पाकिस्तानी सेना को 2 बार खदेड़ा था Edited by सुधाकर सिंह | नवभारत टाइम्स | Updated: Jul 26, 2021, 10:27 AM Subscribe Kargil War 26 जुलाई 1999 को भारत ने करगिल में विजयी तिरंगा (Kargil Vijay Diwas) फहराया था। इस जीत में देश के जवानों ने अदम्य साहस और जांबाजी दिखाते हुए पाकिस्तान को धूल चटा दी थी। शहीद लांस नायक ओमप्रकाश सिंह (Om Prakash Singh) भी ऐसे ही बहादुरों में से एक थे।   करगिल की सबसे ऊंची चोटी, इस शौर्यवीर ने लहराया था तिरंगा Subscribe हाइलाइट्स करगिल में लांस नायक ओमप्रकाश सिंह ने दिखाई थी जांबाजी द्रास की दुर्गम पहाड़ी पर दो बार पाक सेना को पीछे खदेड़ा था 15 और 29 जून को चोटी से दुश्मन को हराकर तिरंगा फहराया मुरादनगर के सुरेंद्र ने भी द्रास में 1 जुलाई को दी थी शहादत कुलदीप काम्बोज, गाजियाबाद 26 जुलाई को भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना के छक्के छुड़ाकर करगिल विजय हासिल की थी। साल 1999 में हुआ करगिल युद्ध 60 दिनों तक चला और 26 जुलाई को भारत की विजय के साथ इसका अंत हुआ था। इस युद्ध में जिन भारतीय जवानों ने अपने शौर्य से दुश्मन को घुटनों के बल ला दिया था, उनमें गाजियाबाद के लोनी इलाके के शहीद लांस नायक ओमप्रकाश सिंह भी शामिल थे। शहीद ओमप्रकाश सिंह ने द्रास सेक्टर की दुर्गम पहाड़ी पर 2 बार दुश्मनों को खदेड़कर तिरंगा फहराया था। पीछे से हुए वार होने के चलते वह शहीद हो गए थे। शहीद लांस नायक ओमप्रकाश सिंह का जन्म बुलंदशहर के खेरपुर गांव में हुआ था। बचपन से ही वे देश सेवा का सपना देखते थे, उन्हें बंदूकों से खेलने का शौक था। पढ़ाई पूरी करने के बाद जब उन्होंने पिता से देश सेवा के लिए सेना में भर्ती होने की इच्छा जताई तो पहले उन्होंने इनकार कर दिया, लेकिन उन्हें मायूस देखा तो परिवार ने इजाजत दे दी। 1986 में उनका चयन राजपूताना राइफल्स में हुआ। वर्ष 1990 में उनका विवाह राजकुमारी के साथ हुआ। 9 साल बाद 1999 में बेटे कुलदीप का जन्म हुआ था। करगिल की कहानी, 'परमवीर' योगेंद्र यादव की जुबानी एक बार ही देखा था बेटे का चेहरा बेटे कुलदीप के जन्म के बाद ओमप्रकाश 2 महीने की छुट्टी पर घर आए और बेटे के साथ समय बिताया। इसी बीच करगिल युद्ध शुरू होने पर उन्हें जाना पड़ा। उस समय कुलदीप की उम्र 6 माह थी। उनकी पत्नी बताती हैं कि उसके बाद उन्हें बेटे से मिलने का मौका नहीं मिल पाया। वे अपने पर्स में बेटे की फोटो हर समय साथ रखते थे और शहीद होने के बाद उनके पर्स से बेटे की फोटो मिली थी। करगिल के शूरवीर कैप्टन विक्रम बत्रा को फाइटर जेट्स से ऐसे दी गई श्रद्धांजलि पाकिस्तानी सैनिकों को 2 बार खदेड़ा था उन्हें द्रास सेक्टर की दुर्गम पहाड़ी की जिम्मेदारी मिली थी। उन्होंने 15 जून 1999 को अपने साथियों के साथ दुश्मनों को खदेड़कर तिरंगा फहराया था। 29 जून को पास की एक और पहाड़ी से दुश्मन को मार भगाकर उन्होंने तिरंगा फहराया था। उसके बाद जब वे पहाड़ी से उतर रहे थे तो छिपकर बैठे दुश्मन ने पीछे से उन पर हमला कर दिया। कई दुश्मनों को मौत के घाट उतारने के बाद वह शहीद हो गए, लेकिन अपनी बहादुरी का ऐसा इतिहास लिख दिया, जो सदैव याद किया जाता है। आज भी वर्दी को निहारती हैं शहीद सुरेंद्र की मां मुरादनगर के सुराना गांव के रहने वाले सुरेंद्र पाल सिंह द्रास सेक्टर में 1 जुलाई को दुश्मनों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए थे। उनकी मां चंपा देवी आज भी उनके फोटो को हाथ में लेकर फफक फफककर रो पड़ती हैं। सुरेंद्र पाल सिंह करगिल के द्रास सेक्टर में कुमाऊं रेजिमेंट में तैनात थे। 1 जुलाई 1999 को वह दुश्मनों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए थे। उन्होंने भी कई दुश्मनों को मार गिराया था। करगिल: 'मिशन 5140' जीत के बाद विक्रम बत्रा बोले- ये दिल मांगे मोर शहीद सुरेंद्र की मां चंपा देवी आज भी सेना की वर्दी को निहारती रहती हैं। उन्होंने बताया कि उन्हें ऐसा नहीं लगता कि उनके बेटे सुरेंद्र पाल सिंह को शहीद हुए 22 वर्ष बीत गए, बल्कि ऐसा लगता है कि वह देश की सीमाओं की सुरक्षा के लिए दुश्मनों से लोहा ले रहे हैं। चंपा देवी का कहना है कि सरकार ने जो सुविधाएं देने का वादा किया था, वह सभी सुविधाएं उनके परिवार को मिली हैं। शहादत दिवस: जानें करगिल के हीरो कैप्टन विक्रम बत्रा की पूरी कहानी मेन रोड पर लगाई गई प्रतिमा शहीद सुरेंद्र पाल सिंह की रावली-सुराना मार्ग पर पर प्रतिमा लगाई गई है, जिन्हें प्रत्येक वर्ष करगिल विजय दिवस पर श्रद्धांजलि दी जाती है। इसमें क्षेत्र और आसपास के गणमान्य लोग शामिल होते हैं। करगिल युद्ध में शहीद होने पर तत्कालीन डीएम आलोक कुमार ने आश्वासन दिया था कि रावली सुराना मार्ग का नाम शहीद सुरेंद्र पाल सिंह के नाम पर रखा जाएगा, लेकिन उनके नाम का आज तक जिला प्रशासन पत्थर तक नहीं लगा सका है। करगिल में शहीद ओम प्रकाश सिंह ने दिखाई थी जांबाजीNavbharat Times News App: देश-दुनिया की खबरें, आपके शहर का हाल, एजुकेशन और बिज़नेस अपडेट्स, फिल्म और खेल की दुनिया की हलचल, वायरल न्यूज़ और धर्म-कर्म... पाएँ हिंदी की ताज़ा खबरें डाउनलोड करें NBT ऐप लेटेस्ट न्यूज़ से अपडेट रहने के लिए NBT फेसबुक पेज लाइक करें कॉमेंट लिखें इन टॉपिक्स पर और पढ़ें

Bulandshahr
Uttar-pradesh
India
Ghaziabad
Kumaon
Uttaranchal
Pakistan
Rajputana
Punjab
Yogendra-smith
Kargila-knight
Muradnagara-surana

vimarsana © 2020. All Rights Reserved.