At the time of treatment of every patient, doctors-staff are wearing PPE kit, even after policy, there is fraud in giving mediclaim, this is the complete model | हर मरीज के इलाज के वक्त डॉक्टर-स्टाफ पहन रहे हैं PPE किट, पॉलिसी के बाद भी मेडिक्लेम देने में घपलेबाजी, ये है पूरा मॉडल : vimarsana.com

At the time of treatment of every patient, doctors-staff are wearing PPE kit, even after policy, there is fraud in giving mediclaim, this is the complete model | हर मरीज के इलाज के वक्त डॉक्टर-स्टाफ पहन रहे हैं PPE किट, पॉलिसी के बाद भी मेडिक्लेम देने में घपलेबाजी, ये है पूरा मॉडल


मेडिकल इंश्योरेंस कंपनियां कोरोना के बाद अपने ग्राहकों को मेडिक्लेम देने में हेरफेर कर रही हैं। आम आदमी कोरोना से जुड़ी पॉलिसी लेते वक्त ये सोच रहा है कि अब उनके इलाज के खर्च का इंश्योरेंस हो गया है, लेकिन कंपनियां लोगों को कोरोना कवच पॉलिसी, कोविड पॉलिसी और कंज्यूमेबल्स जैसे शब्दों में उलझा दे रही हैं।
कंज्यूमेबल्स यानी PPE किट यानी बॉडी कवर, चश्मा, एन -95 मास्क, जूते का कवर, फेस शील्ड, सर्जिकल मास्क, टिशू पेपर, क्रेप बैंडेज, गाउन और चप्पल जैसी चीजें।
सभी अच्छे अस्पतालों के डॉक्टर और हर स्टाफ पीपीई किट पहने नजर आ रहे हैं। संक्रमण के खतरे के चलते वे नॉन-कोविड मरीज के इलाज के वक्त भी पूरा किट पहन रहे हैं। कोरोनाकाल से पहले तक इस तरह के कंज्यूमेबल्स का खर्च खुद मरीज भरते थे, लेकिन कोरोना के बाद इसमें बड़ा बदलाव आया है।
पहले इलाज में कंज्यूमेबल्स का खर्च 2% था तो मरीज सह लेते थे, अब 20% तक पहुंच रहा
पॉलिसी बाजार.कॉम के हेड अमित छाबड़ा के अनुसार, ‘कोविड के पहले तक कंज्यूमेबल्स का खर्च इलाज के कुल खर्च का 2-3% ही होता था, तो मेडिक्लेम के ऊपर आने वाले इस छोटे खर्च को मरीज सह लेते थे। कोविड के बाद अचानक कंज्यूमेबल्स का खर्च इलाज के कुल खर्च का 15 से 20% तक पहुंचने लगा है। एक आंकड़ा कहता है कि 2020 तक मेडिकल कंज्यूमेबल्स वाले प्रोडक्ट का बाजार 50 हजार करोड़ का था, लेकिन 2025 तक ये 166% बढ़कर 133 करोड़ हो जाएगा।’
कंज्यूमेबल्स बाजार के बढ़ने का सीधा मतलब है मरीज पर बोझ बढ़ना, क्योंकि इसके पैसे मरीज चुकाता है। यहीं पर मेडिकल इंश्योरेंस कंपनियों को बिजनेस का मौका दिखा। सभी 23 हेल्‍थ इंश्योरेंस कंपनियों ने अलग-अलग नाम से कोरोना से जुड़ी पॉलिसी लॉन्च कर दीं।
कोरोना कवच जैसे शब्दों के जाल में इंश्योरेंस कंपनियों ने फंसाया, नहीं दे रहीं कंज्यूमेबल्स का पैसा
मेडिकल इंश्योरेंस जगत की प्रमुख 23 कंपनियां कोविड-19 कवच किस्म की पॉलिसी लेकर आईं। इंश्योरेंस रेगुलेटरी एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी यानी IRDA के अनुसार पहली लहर में ही अगस्त 2020 तक 7.5 लाख नए लोगों ने 215 करोड़ रुपए की कोरोना कवच पॉलिसी खरीद ली थी।
दूसरी लहर के बारे में ऐसा कोई आधिकारिक डेटा तो अभी नहीं आया है, लेकिन फोन पे ने कहा कि कोविड के बाद उनके यहां से खरीदे गए हेल्‍थ इंश्योरेंस पॉलिसी में 75% से ज्यादा छोटे शहर या गांव के लोग थे। इनमें लगभग सभी वो पॉलिसी चुन रहे थे जिनमें कंज्यूमेबल्स को कवर करने की बात होती थी।
लेकिन कंपनियों ने बड़ी चालाकी से सीधे तौर पर कंज्यूमेबल्स कवर करने की बात करने के बजाय कोविड कवच और इस तरह के अन्य शब्दों का इस्तेमाल किया, जिसमें मेडिक्लेम देने के वक्त गोल-गोल बातें कर के घुमाया जा सके। अब ऐसे कई केस सामने आ रहे हैं, जिनके पास कोरोना से जुड़ी पॉलिसी होने के बाद भी कंज्यूमेबल्स के पैसे मरीज से ही ऐंठे जा रहे हैं।
मेडिक्लेम और कंज्यूमेबल्स के पेंच में फंसे मरीजों के परिजन
एक निजी कंपनी में काम करने वाले निशांत की 67 वर्षीय मां ब्रजेश सिंह को अचानक बेहोश होने पर बहादुरगढ़ के एक निजी अस्पताल में 10 जून को भर्ती कराया गया। निशांत ने ग्रुप इंश्योरेंस के तहत ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी से हेल्थ इंश्योरेंस खरीदा था।
मां के भर्ती होने पर कंपनी को इंटीमेशन वगैरह सब दिया गया था। कैशलैस इलाज का अप्रूवल मिलने के बाद इलाज भी शुरू हो गया। तीसरे दिन 12 जून की दोपहर मल्टीपल ऑर्गन फेल्योर के चलते निधन हो गया। अस्पताल की ओर से इंश्योरेंस कंपनी को करीब 91 हजार का बिल भेजा गया।
इसके बावजूद अस्पताल से कई बार फोन करके करीब 15 हजार रुपए जमा करने को कहा जा रहा है। अस्पताल का कहना है कि इंश्योरेंस कंपनी ने अलग-अलग सर्विसेस को महंगा बताते हुए कटौती की है, वह बकाया रकम आपको भरनी होगी। मामले में अभी बातचीत चल रही है।
अगर आप भी किसी ऐसे मामले में फंसे हुए हैं तो इंश्योरेंस ओम्बुड्समैन यानी बीमा लोकपाल ऑफिस जाइए-
4 स्टेप में शिकायत कर सकते हैं, अगर एक जगह बात नहीं सुनी जाती तो हिम्मत न हारें
सबसे पहले इंश्योरेंस कंपनी में शिकायत दर्ज कराएं। आजकल ज्यादातर कंपनियों के ऑनलाइन पोर्टल उपलब्‍ध हैं, वहीं पर जाकर कंप्लेन दर्ज कर सकते हैं।
अगर 5 से 10 दिन में शिकायत पर कोई सुनवाई नहीं होती, या आपको लगे कि शिकायत को सुना तो लेकिन टाल-मटोल कर रहे हैं तो पता लगाइए कि उस बीमा कंपनी में शिकायत निवारण अधिकारी कौन है? उसकी मेल ID पर लिखित शिकायत कीजिए।
यहां से अगर 10 दिनों तक जवाब नहीं आता तो इंश्योरेंस रेगुलेटरी एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी ऑफ इंडिया यानी IRDA में शिकायत कीजिए। इसके दो तरीके हो सकते हैं। पहला, complaints@irdai.gov.in पर ई-मेल करें। दूसरा टोल फ्री नंबर 155255 या 1800 4254 732 पर शिकायत करें।
अगर यहां से भी 15 दिनों में जवाब नहीं आता या ऐसी बातें की जाती हैं जो आपको संतुष्ट नहीं करतीं तो बकायदा अपने सभी तर्क और सबूत के साथ बीमा लोकपाल में शिकायत कराएं।
लोकपाल के प्रोसेस को ठीक समझिए, क्योंकि यहां वकील नहीं आपको खुद ही अपना पक्ष रखना होता है
बीमा लोकपाल नियम 2017 के अनुसार एजेंट, वकील, थर्ड पार्टी सुनवाई में नहीं आ सकते। जिसका मामला है उसे खुद ही अपना पक्ष रखना होता है। यह नियम बीमा कंपनी पर भी लागू होता है। यानी बिना वकील अधिकारी को लोकपाल सुनवाई में आना होता है।
यहां पर केस दर्ज होते ही आपको ऑटो जेनरेट मैसेज आ जाएगा। साथ ही सुनवाई का नोटिस भी मोबाइल पर आ जाता है। पहली बार सुनवाई के लिए आरोप लगाने वाले शख्स को खुद जाकर अपना पक्ष रखना होता है। फिर लोकपाल बीमा कंपनी को सेल्फ कंटेंट नोट भेजता है। इसमें वो पूछता है कि क्यों इस शख्स की बात को नहीं सुना गया।
इसके बाद कंपनी को बीमा लोकपाल नियम 2017 के अनुसार 90 दिन में केस का निस्तारण करना होता है।
बिना कंज्यूमेबल्स वाली पॉलिसी को सीधा मना करें
अमित छाबड़ा का कहना है कि अब हर शख्स को पूरी पड़ताल के बाद ही मेडिकल इंश्योरेंस या कोरोना कवच जैसी पॉलिसी में पैसे डालने चाहिए। इनमें सबसे पहले यह जानना चाहिए कि आपको कंज्यूमेबल्स कवर मिल रहा है या नहीं? अगर नहीं, तो एजेंट कितनी भी बातें करे आपको ऐसी पॉलिसी नहीं लेनी चाहिए।
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