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truth of espionage case government spied through Pegasus software opposition has no evidence

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detective in a whirlpool of questions | प्रमोद जोशी का लेख : सवालों के भंवर में जासूसी

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Pegasus case is not considered as espionage in India, but France has started investigation considering it as a criminal case. | भारत में पेगासस मामले को जासूसी ही नहीं माना जा रहा है, लेकिन फ्रांस ने इसे आपराधिक मामला मानते हुए जांच शुरू कर दी है

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Pegasus | Phone Hacking | Spying On Journalists | Governments Around The World Spied On 180 Journalists Including 38 From India Latest News And Updates On Phone Hacking, Subramanian Swamy, digvijaya singh, Narendra Modi | सुब्रमण्यम स्वामी बोले- सरकार बताए फोन हैकिंग के लिए किसने पैसे दिए, दिग्विजय ने कहा- मोदी-शाह से सिर्फ आप ही सच्चाई पूछ सकते हैं

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what is pegasus hacking case and who are the targets of this spyware what is the response of Indian government know everything about spy case - India Hindi News - क्या है पेगासस जासूसी मामला, जिसपर घिरी हुई है केंद्र सरकार, कौन हुआ हैकिंग का शिकार...जानें सबकुछ


हिंदी न्यूज़   ›   देश  â€º  क्या है पेगासस जासूसी मामला, जिसपर घिरी हुई है केंद्र सरकार, कौन हुआ हैकिंग का शिकार...जानें सबकुछ
क्या है पेगासस जासूसी मामला, जिसपर घिरी हुई है केंद्र सरकार, कौन हुआ हैकिंग का शिकार...जानें सबकुछ
एजेंसियां,नई दिल्लीPublished By: Priyanka
Tue, 20 Jul 2021 06:42 AM
इजरायली कंपनी एनएसओ के पेगासस सॉफ्टवेयर से भारत में कथित तौर पर 300 से ज्यादा हस्तियों के फोन हैक किए जाने का मामला अब तूल पकड़ गया है। संसद के मॉनसून सत्र की शुरुआत के एक दिन पहले ही इस जासूसी कांड का खुलासा हुआ है। दावा किया जा रहा है कि जिन लोगों के फोन टैप किए गए उनमें कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी, केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव और प्रह्लाद सिंह पटेल, पूर्व निर्वाचन आयुक्त अशोक लवासा और चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर सहित कई पत्रकार भी शामिल हैं। हालांकि, सरकार ने इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है और रिपोर्ट जारी होने की टाइमिंग को लेकर सवाल खड़े किए हैं। आइए आपको बताते हैं अब तक इस मामले में क्या-क्या हुआ और यह सॉफ्टवेयर दुनिया का सबसे खतरनाक स्पाईवेयर क्यों माना जाता है:
कहां से आई रिपोर्ट?
लीक हुए आंकड़ों के आधार पर की गई एक वैश्विक मीडिया संघ की जांच के बाद इस बात के और सबूत मिले हैं कि इजराइल स्थित कंपनी 'एनएसओ ग्रुप के सैन्य दर्जे के मालवेयर का इस्तेमाल पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और राजनीतिक असंतुष्टों की जासूसी करने के लिए किया जा रहा है। पत्रकारिता संबंधी पेरिस स्थित गैर-लाभकारी संस्था 'फॉरबिडन स्टोरीज एवं मानवाधिकार समूह 'एमनेस्टी इंटरनेशनल द्वारा हासिल की गई और 16 समाचार संगठनों के साथ साझा की गई 50,000 से अधिक सेलफोन नंबरों की सूची से पत्रकारों ने 50 देशों में 1,000 से अधिक ऐसे व्यक्तियों की पहचान की है, जिन्हें एनएसओ के ग्राहकों ने संभावित निगरानी के लिए कथित तौर पर चुना। वैश्विक मीडिया संघ के सदस्य 'द वाशिंगटन पोस्ट के अनुसार, जिन लोगों को संभावित निगरानी के लिए चुना गया, उनमें 189 पत्रकार, 600 से अधिक नेता एवं सरकारी अधिकारी, कम से कम 65 व्यावसायिक अधिकारी, 85 मानवाधिकार कार्यकर्ता और कई राष्ट्राध्यक्ष शामिल हैं। ये पत्रकार 'द एसोसिएटेड प्रेस (एपी), 'रॉयटर, 'सीएनएन, 'द वॉल स्ट्रीट जर्नल, 'ले मोंदे और 'द फाइनेंशियल टाइम्स जैसे संगठनों के लिए काम करते हैं। एनएसओ ग्रुप के स्पाइवेयर को मुख्य रूप से पश्चिम एशिया और मैक्सिको में लक्षित निगरानी के लिए इस्तेमाल किए जाने के आरोप हैं। सऊदी अरब को एनएसओ के ग्राहकों में से एक बताया जाता है। इसके अलावा सूची में फ्रांस, हंगरी, भारत, अजरबैजान, कजाकिस्तान और पाकिस्तान सहित कई देशों के फोन हैं। इस सूची में मैक्सिको के सर्वाधिक फोन नंबर हैं। इसमें मैक्सिको के 15,000 नंबर हैं।
भारत में किसके फोन हुए हैक?
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी, भाजपा के मंत्रियों अश्विनी वैष्णव और प्रह्लाद सिंह पटेल, पूर्व निर्वाचन आयुक्त अशोक लवासा और चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर उन लोगों में शामिल हैं, जिनके फोन नंबरों को इजराइली स्पाइवेयर के जरिए हैकिंग के लिए सूचीबद्ध किया गया था। एक अंतरराष्ट्रीय मीडिया संघ ने सोमवार को यह जानकारी दी।  पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे तथा तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के सांसद अभिषेक बनर्जी और भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई पर अप्रैल 2019 में यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली उच्चतम न्यायालय की कर्मचारी और उसके रिश्तेदारों से जुड़े 11 फोन नंबर हैकरों के निशाने पर थे। गांधी और केंद्रीय मंत्रियों वैष्णव और प्रहलाद सिंह पटेल के अलावा जिन लोगों के फोन नंबरों को निशाना बनाने के लिये सूचीबद्ध किया गया उनमें चुनाव पर नजर रखने वाली संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के संस्थापक जगदीप छोकर और शीर्ष वायरोलॉजिस्ट गगनदीप कांग शामिल हैं। रिपोर्ट के अनुसार सूची में राजस्थान की मुख्यमंत्री रहते वसुंधरा राजे सिंधिया के निजी सचिव और संजय काचरू का नाम शामिल था, जो 2014 से 2019 के दौरान केन्द्रीय मंत्री के रूप में स्मृति ईरानी के पहले कार्यकाल के दौरान उनके विशेष कार्याधिकारी (ओएसडी) थे। इस सूची में भारतीय जनता पार्टी से जुड़े अन्य जूनियर नेताओं और विश्व हिंदू परिषद के नेता प्रवीण तोगड़िया का फोन नंबर भी शामिल था। 
‘द गार्डियन’ की ओर रविवार रात जारी इस बहुस्तरीय जांच की पहली किस्त में दावा किया गया है कि 40 भारतीय पत्रकारों सहित दुनियाभर के 180 संवाददाताओं के फोन हैक किए गए। इनमें ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ और ‘मिंट’ के तीन पत्रकारों के अलावा ‘फाइनैंशियल टाइम्स’ की संपादक रौला खलाफ तथा इंडिया टुडे, नेटवर्क-18, द हिंदू, द इंडियन एक्सप्रेस, द वॉल स्ट्रीट जर्नल, सीएनएन, द न्यूयॉर्क टाइम्स व ले मॉन्टे के वरिष्ठ संवाददाताओं के फोन शामिल हैं। जांच में दिल्ली यूनिवर्सिटी के एक पूर्व प्रोफेसर और जून 2018 से अक्तूबर 2020 के बीच एल्गार परिषद मामले में गिरफ्तार आठ कार्यकर्ताओं के फोन हैक किए जाने का भी दावा किया गया है।
भारत सरकार का क्या है पक्ष?
भारत सरकार ने जांच को खारिज करते हुए इसे पूरी तरह से बेबुनियाद करार दिया है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा, ''इस तथाकथित रिपोर्ट के लीक होने का समय और फिर संसद में ये व्यवधान, इसे जोड़कर देखने की आवश्यक्ता है। यह एक विघटनकारी वैश्विक संगठन हैं जो भारत की प्रगति को पसंद नहीं करता है। ये अवरोधक भारत में राजनीतिक खिलाड़ी हैं जो नहीं चाहते कि भारत प्रगति करे। भारत के लोग इस घटना और संबंध को समझने में बहुत परिपक्व हैं।' उन्होंने कहा, "कल देर शाम हमने एक रिपोर्ट देखी, जिसे केवल एक ही उद्देश्य के साथ कुछ वर्गों द्वारा शेयर किया गया है।' सरकार ने कहा है कि भारत में अवैध ढंग से इस प्रकार की जासूसी कराना संभव नहीं है।
जांच का आधार
यह जांच एमनेस्टी इंटरनेशनल और फॉरबिडेन स्टोरीज को प्राप्त लगभग 50 हजार नामों और नंबरों पर आधारित है। एमनेस्टी इंटरनेशनल ने इनमें से 67 फोन की फॉरेन्सिक जांच की। इस दौरान 23 फोन हैक मिले, जबकि 14 अन्य में सेंधमारी की कोशिश की पुष्टि हुई। ‘द वायर’ ने खुलासा किया कि भारत में भी दस फोन की फॉरेन्सिक जांच करवाई गई। ये सभी या तो हैक हुए थे, या फिर इनकी हैकिंग का प्रयास किया गया था।
कंपनी का क्या कहना है?
इजरायली कंपनी एनएसओ ने जांच रिपोर्ट पर सवाल उठाते हुए कहा कि एमनेस्टी इंटरनेशनल और फॉरबिडेन स्टोरीज का डाटा गुमराह करता है। यह डाटा उन नंबरों का नहीं हो सकता है, जिनकी सरकारों ने निगरानी की है। इसके अलावा एनएसओ अपने ग्राहकों की खुफिया निगरानी गतिविधियों से वाकिफ नहीं है।
एक नजर सॉफ्टवेयर पर
पेगासस संबंधित फोन पर आने-जाने वाले हर कॉल का ब्योरा जुटाने में सक्षम है। यह फोन में मौजूद मीडिया फाइल और दस्तावेजों के अलावा उस पर आने-जाने वाले एसएमएस, ईमेल और सोशल मीडिया मैसेज की भी जानकारी दे सकता है। पेगासस सॉफ्टवेयर को जासूसी के क्षेत्र में अचूक माना जाता है। तकनीक जानकारों का दावा है कि इससे व्हाट्सएप और टेलीग्राम जैसे एप भी सुरक्षित नहीं। क्योंकि यह फोन में मौजूद एंड टू एंड एंक्रिप्टेड चैट को भी पढ़ सकता है। पेगासस एक स्पाइवेयर (जासूसी साफ्टवेयर) है, जिसे इसराइली साइबर सुरक्षा कंपनी एनएसओ ग्रुप टेक्नॉलॉजीज़ ने बनाया है। इसका दूसरा नाम क्यू-सुईट भी है।
क्यों खतरनाक
किसी फोन में सिर्फ मिस कॉल के जरिए इसे इंस्टॉल किया जा सकता है। इसे यूजर की इजाजत और जानकारी के बिना भी फोन में डाला जा सकता है। एक बार फोन में पहुंच जाने के बाद इसे हटाना आसान नहीं होता।
कैसे काम करता है
ये एक ऐसा प्रोग्राम है, जिसे अगर किसी स्मार्टफ़ोन फ़ोन में डाल दिया जाए, तो कोई हैकर उस स्मार्टफोन के माइक्रोफ़ोन, कैमरा, ऑडियो और टेक्सट मैसेज, ईमेल और लोकेशन तक की जानकारी हासिल कर सकता है।
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भारत सरकार ने की पत्रकारों, मंत्रियों और उद्योगपतियों की जासूसीः रिपोर्ट | भारत | DW


भारत
भारत सरकार ने की पत्रकारों, मंत्रियों और उद्योगपतियों की जासूसीः रिपोर्ट
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हुई एक जांच में दावा किया गया है कि इस्राएली जासूसी तकनीक के जरिए सरकारों ने अपने लोगों की जासूसी की. इनमें भारत के कई बड़े नाम शामिल हैं.
भारतीय समाचार वेबसाइट द वायर ने खबर दी है कि इस्राएल की निगरानी रखने वाली तकनीक के जरिए भारत के तीन सौ से भी ज्यादा लोगों के मोबाइल नंबरों की जासूसी की गई, जिनमें देश के मंत्रियों और विपक्ष के नेताओं से लेकर पत्रकार, जाने-माने वकील, उद्योगपति, सरकारी अधिकारी, वैज्ञानिक, मानवाधिकार कार्यकर्ता आदि शामिल हैं.
द वायर और 16 अन्य मीडिया संस्थानों की एक साझी जांच के बाद यह दावा किया गया है कि इस्राएल के सर्वेलांस सॉफ्टवेयर पेगासस के जरिए इन फोन नंबरों की जासूसी की गई. द वायर लिखता है कि इस जांच के तहत कुछ फोन्स की फॉरेंसिक जांच की गई जिससे "ऐसे स्पष्ट संकेत मिले की 37 मोबाइलों को पेगासस ने निशाना बनाया, जिनमें 10 भारतीय थे.”
द वायर कहता है, "बिना किसी फोन के तकनीकी विश्लेषण के यह बता पाना संभव नहीं है कि उस पर सिर्फ हमला हुआ था या उसे हैक किया गया था.”
कैसे हुई जांच?
इस्राएल की कंपनी एनएसओ ग्रुप पेगासस सॉफ्टवेयर बेचता है. द वायर के मुताबिक कंपनी का कहना है कि उसके ग्राहकों में सिर्फ सरकारें शामिल हैं, जिनकी संख्या 36 मानी जाती है. हालांकि कंपनी ने यह नहीं बताया है कि कौन कौन से देशों की सरकारें उसके ग्राहक हैं लेकिन द वायर लिखता है कि कम से कम यह संभावना तो खत्म हो जाती है कि भारत में या बाहर की कोई निजी संस्था इस जासूसी के लिए जिम्मेदार है.
तस्वीरों मेंः खराब होते मानवाधिकार
खराब होते मानवाधिकारों पर कार्रवाई की मांग
अधिकारों का हनन
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार प्रमुख मिशेल बैचलेट ने कहा, "हमारे जीवनकाल में मानवाधिकारों के सबसे व्यापक और गंभीर झटकों से उबरने के लिए हमें एक जीवन बदलने वाली दृष्टि और ठोस कार्रवाई की जरूरत है." मानवाधिकार परिषद के 47वें सत्र को संबोधित करते हुए उन्होंने टिग्रे में साढ़े तीन लाख लोगों के सामने भुखमरी के संकट पर चिंता जताई.
खराब होते मानवाधिकारों पर कार्रवाई की मांग
'एनकाउंटर और यौन हिंसा'
मिशेल बैचलेट ने अपने संबोधन में, "न्यायेतर फांसी की सजा, मनमाने तरीके से गिरफ्तारी और हिरासत, बच्चों के साथ-साथ वयस्कों के खिलाफ यौन हिंसा" की ओर इशारा किया और कहा कि उनके पास "विश्वसनीय रिपोर्ट" है कि इरिट्रिया के सैनिक अभी भी इस क्षेत्र में काम कर रहे हैं.
खराब होते मानवाधिकारों पर कार्रवाई की मांग
इथियोपिया में जातीय और सांप्रदायिक हिंसा
इथियोपिया जहां हाल में ही चुनाव हुए हैं, वहां "घातक जातीय और अंतर-सांप्रदायिक हिंसा और विस्थापन की खतरनाक घटनाएं" देखने को मिल रही हैं. संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकारों की उच्चायुक्त का कहना है कि "सैन्य बलों की मौजूदा तैनाती एक स्थायी समाधान नहीं है."
खराब होते मानवाधिकारों पर कार्रवाई की मांग
मोजाम्बिक में जिहादी हिंसा
उत्तरी मोजाम्बिक में जिहादी हिंसा में तेजी से उछाल आया है. यहां हिंसा के कारण खाद्य असुरक्षा बढ़ी है. और करीब आठ लाख लोग, जिनमें 3,64,000 बच्चे शामिल हैं, उन्हें अपने घरों से भागना पड़ा है.
खराब होते मानवाधिकारों पर कार्रवाई की मांग
हांग कांग की चिंता
संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार प्रमुख ने हांग कांग में पेश किए गए व्यापक राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के "डरावने प्रभाव" की ओर भी इशारा किया. यह कानून 1 जुलाई 2020 से प्रभावी है. इस कानून के तहत बीजिंग के आलोचकों पर कार्रवाई की जा रही है. इस कानून के तहत 107 लोगों को गिरफ्तार किया गया है और 57 को औपचारिक रूप से आरोपित किया गया है.
खराब होते मानवाधिकारों पर कार्रवाई की मांग
शिनजियांग में मानवाधिकार उल्लंघन
बैचलेट ने चीन के शिनजियांग प्रांत में "गंभीर मानवाधिकार उल्लंघन की रिपोर्ट" का उल्लेख किया. उन्होंने उम्मीद जताई कि चीन उन्हें इस प्रांत का दौरा करने की अनुमति देगा और गंभीर उत्पीड़न की रिपोर्टों की जांच करने में मदद करेगा.
खराब होते मानवाधिकारों पर कार्रवाई की मांग
रूस पर प्रतिक्रिया
बैचलेट ने क्रेमलिन द्वारा राजनीतिक विचारों का विरोध करने और सितंबर के चुनावों में भागीदारी तक पहुंच को कम करने के हालिया उपायों की भी आलोचना की. क्रेमलिन आलोचक अलेक्सी नावाल्नी के आंदोलन को खत्म करने की कोशिश पर भी यूएन ने चिंता जाहिर की.
यह जांच फ्रांस की एक गैर सरकारी संस्था ‘फॉरबिडन स्टोरीज' और एमनेस्टी इंटरनेशनल को मिले एक डेटा के आधार पर हुई है. यह डेटा दुनियाभर के 16 मीडिया संस्थानों का उपलब्ध कराया गया था, जिनमें द वायर, ला मोंड, द गार्डियन, वॉशिंगटन पोस्ट, डी त्साइट और ज्यूडडॉयचे त्साइटुंग के अलावा मेक्सिको, अरब और यूरोप के दस अन्य संस्थान शामिल हैं.
इन संस्थानों के पत्रकारों ने मिलकर यह खुफिया जांच की, जिसे प्रोजेक्ट पेगासस नाम दिया गया. ‘फॉरबिडन स्टोरीज' का कहना है कि उसे जो डेटा मिला था, उसमें एनएसओ ग्रुप के ग्राहकों द्वारा चुने गए फोन नंबर शामिल थे. हालांकि एनएसओ ग्रुप ने इस दावे का खंडन किया है.
भारत में किस-किस का नाम?
द वायर की रिपोर्ट के मुताबिक में इस सूची में भारत के 40 पत्रकार, तीन बड़े विपक्षी नेता, एक संवैधानिक विशेषज्ञ, नरेंद्र मोदी सरकार के दो मंत्री, सुरक्षा संस्थानों के मौजूदा और पूर्व प्रमुख और कई उद्योगपति शामिल हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक अधिकतर फोन नंबरों को 2018 से 2019 के बीच निशाना बनाया गया था. 2019 में भारत में आम चुनाव हुए थे और नरेंद्र मोदी दोबारा चुनाव जीतकर प्रधानमंत्री बने थे.
पेगासस प्रोजेक्ट के तहत मिले डेटा में इन भारतीय लोगों के नाम शामिल हैः
हिंदुस्तान टाइम्स
शिशिर गुप्ता, प्रशांत झा, औरंगजेब नक्शबंदी और राहुल सिंह
सैकत दत्ता (पूर्व)
द हिंदू
इंडियन एक्सप्रेस
मुजामिल जलील, रितिका चोपड़ा, सुशांत सिंह(पूर्व)
इंडिया टुडे
संदीप उन्नीथन
द वायर
सिद्धार्थ वरदराजन, स्वाति चतुर्वेदी, देवीरूपा मित्रा, रोहिणी सिंह, एमके वेणु
द पायनियर
न्यूजक्लिक
प्रंजॉय गुहा ठाकुरता
फ्रंटियर टीवी
मनोरंजन गुप्ता
स्वतंत्र पत्रकार
शबीर हुसैन बुच
इफ्तिकार गिलानी
प्रेमशंकर झा
संतोष भरतीय
दीपक गिडवानी
भूपिंद सिंह सज्जन
जसपाल सिंह हेरान
इंडियन अहेड
स्मिता शर्मा
कार्यकर्ता
उमर खालिद
रूपाली जाधव
डिग्री प्रसाद चौहान
लक्ष्मण पंत
कई ऐसे लोग भी सूची में हैं, जिन्होंने मीडिया संस्थानों से अपने नाम सार्वजनिक ना करने का आग्रह किया है.
भारत सरकार की प्रतिक्रिया
भारत की नरेंद्र मोदी सरकार ने पेगासस सॉफ्टवेयर के जरिए लोगों के फोन हैक करने के दावों को गलत बताया है. एक बयान में सरकार ने कहा है कि वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्र आजादी के लिए प्रतिबद्ध है.
द वायर द्वारा भारत सरकार को भेजे गए सवालों के जवाब कहा गया, "भारत एक स्थापित लोकतंत्र है जो अपने नागरिकों के निजता के अधिकार का एक मूलभूत अधिकार के तौर पर सम्मान करता है. इसी प्रतिबद्धता के तहत पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल 2019 और इंन्फॉर्मेशन टेक्नॉलजी (इंटरमीडिएरी गाइडलिन्स ऐंड डिजिटल मीडिया एथिक्स कोड) रूल्स 2021 लाया गया ताकि लोगों के निजी डेटा की सुरक्षा की जा सके और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म इस्तेमाल करने वाले लोगों को और अधिकार दिए जा सकें.”
देखेंः एमनेस्टी के 60 साल
एमनेस्टी इंटरनॅशनल के 60 साल
राजनीतिक बंदियों के लिए क्षमा
1961 में पुर्तगाल के तानाशाह ने दो छात्रों को आजादी के नाम जाम उठाने पर जेल में डाल दिया था. इस खबर से व्यथित होकर वकील पीटर बेनेनसन ने एक लेख लिखा जिसका पूरी दुनिया में असर हुआ. उन्होंने ऐसे लोगों के लिए समर्थन की मांग की जिन पर सिर्फ उनके विश्वासों के लिए अत्याचार किया जाता है. इसी पहल से बना एमनेस्टी इंटरनेशनल नाम का एक वैश्विक नेटवर्क जो मानवाधिकारों के उल्लंघन के खिलाफ कैंपेन करता है.
एमनेस्टी इंटरनॅशनल के 60 साल
मासूमों का जीवन बचाने के लिए
शुरुआत में एमनेस्टी का सारा ध्यान अहिंसक राजनीतिक बंदियों को बचाने की तरफ था. एमनेस्टी का समर्थन पाने वाले एक्टिविस्टों की एक लंबी सूची है, जिसमें दक्षिण अफ्रीका के नेल्सन मंडेला से लेकर रूस के ऐलेक्सी नवाल्नी शामिल हैं. संस्था यातनाएं और मौत की सजा का भी विरोध करती है.
एमनेस्टी इंटरनॅशनल के 60 साल
यातना के खिलाफ अभियान
जब पहली बार संस्था ने 1970 के दशक में यातना के खिलाफ अपना अभियान शुरू किया था, उस समय कई देशों की सेनाएं राजनीतिक बंदियों के खिलाफ इनका इस्तेमाल करती थीं. एमनेस्टी के अभियान की वजह से इसके बारे में जागरूकता फैली और इससे यातनाओं के इस्तेमाल के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों का जन्म हुआ. इन प्रस्तावों पर अब 150 से ज्यादा देश हस्ताक्षर कर चुके हैं.
एमनेस्टी इंटरनॅशनल के 60 साल
युद्ध के इलाकों में जांच
एमनेस्टी के अभियान उसके एक्टिविस्टों द्वारा इकठ्ठा किए गए सबूतों के आधार पर बनते हैं. युद्ध के इलाकों में युद्धकालीन अपराधियों की जवाबदेही तय करने के लिए मानवाधिकारों के उल्लंघन के लिखित प्रमाण की जरूरत पड़ती है. संस्था ने सीरिया के युद्ध के दौरान रूसी, सीरियाई और अमेरिकी नेतृत्व वाले गठबंधन के युद्धकालीन अपराधों के दस्तावेज सार्वजनिक स्तर पर रखे.
एमनेस्टी इंटरनॅशनल के 60 साल
हथियारों के प्रसार के खिलाफ
एमनेस्टी का लक्ष्य युद्ध के इलाकों तक हथियारों के पहुंचने को रोकने का है, क्योंकि वहां उनका इस्तेमाल नागरिकों के खिलाफ किया जा सकता है. हालांकि एक अंतरराष्ट्रीय संधि के तहत हथियारों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार का नियंत्रण करने के लिए नियम लागू तो हैं, लेकिन इसके बावजूद हथियारों की खरीद और बिक्री अभी भी बढ़ रही है. रूस और अमेरिका जैसे सबसे बड़े हथियार निर्यातकों ने संधि को मंजूरी नहीं दी है.
एमनेस्टी इंटरनॅशनल के 60 साल
कानूनी और सुरक्षित गर्भपात का अधिकार
एमनेस्टी के अभियानों में लैंगिक बराबरी, बाल अधिकार और एलजीबीटी+ समुदाय के समर्थन जैसे मुद्दे भी शामिल हैं. सरकारों और धार्मिक नेताओं ने गर्भपात का अधिकार जैसे मुद्दों को संस्था के समर्थन की कड़ी आलोचना की है. इस तस्वीर में अर्जेंटीना में एक्टिविस्ट राजधानी ब्यूनोस एरेस में राष्ट्रीय संसद के दरवाजों पर पार्सले और गर्भपात के लिए इस्तेमाल की जाने वाली दूसरी जड़ी-बूटियां रख रहे हैं.
एमनेस्टी इंटरनॅशनल के 60 साल
एक व्यापक अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क
1960 के दशक ने एमनेस्टी इंटरनैशनल बढ़ कर ऐसे एक्टिविस्टों का एक व्यापक वैश्विक नेटवर्क बन गया है जो सारी दुनिया में एकजुटता के अभियानों में हिस्सा लेने के अलावा स्थानीय स्तर पर हो रहे मानवाधिकारों के उल्लंघन का मुकाबला भी करते हैं. संस्था के पूरी दुनिया में लाखों सदस्य और समर्थक हैं जिनकी मदद से उसने हजारों बंदियों को मृत्यु और कैद से बचाया है. (मोनिर घैदी)
‘पेगासस प्रोजेक्ट' के तहत हुए शोध को कमजोर बताते हुए भारत सरकार ने कहा कि चूंकि इन सवालों के जवाब पहले से ही सार्वजनिक मंचों पर मौजूद हैं, इससे पता चलता है कि जाने-माने मीडिया संस्थानों ने कमजोर शोध किया है और जरूरी परिश्रम नहीं किया है.
भारत सरकार कहती है, "चुनिंदा लोगों पर सरकार की जासूसी के आरोपों का कोई ठोस आधार नहीं है और इनमें कोई सच्चाई नही है. पहले भी भारत सरकार द्वारा वॉट्सऐप पर पेगासस के जरिए जासूसी करने के दावे किए गए थे. उन खबरों का भी कोई तथ्यात्मक आधार नहीं था और सभी पक्षों ने उन्हें खारिज कर दिया था, जिसमें सुप्रीम कोर्ट में वॉट्सऐप का खंडन भी था.”
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कौन प्रभावित?
‘पेगासस प्रोजेक्ट' का हिस्सा रहे अमेरिकी अखबार वॉशिंगटन पोस्ट के मुताबिक 50 हजार नंबरों की एक सूची है जिसके लिए 37 स्मार्टफोन्स को निशाना बना गया. अखबार लिखता है कि ये नंबर उन देशों में से हैं, जो अपने नागरिकों की जासूसी करने के लिए जाने जाते हैं और एनएसओ ग्रुप के ग्राहक भी हैं.
पूरी सूची में जो नंबर शामिल हैं उनमें से 50 देशों के एक हजार से ज्यादा लोगों की पहचान संभव हो पाई है. इन लोगों में अरब के शाही परिवार के कई सदस्य, कम से कम 65 उद्योगपति, 85 मानवाधिकार कार्यकर्ता, 189 पत्रकार और 600 से ज्यादा नेता और सरकारी अधिकारी शामिल हैं. अखबार स्पष्ट करता है कि इस सूची का मकसद स्पष्ट नहीं हो पाया है.
तस्वीरों मेंः मीडिया पर हमला करने वालों में मोदी शामिल
मीडिया पर हमला करने वाले 37 नेताओं में मोदी शामिल
सेंसर व्यवस्था
'रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स' (आरएसएफ) ने इन सभी नेताओं को 'प्रेडेटर्स ऑफ प्रेस फ्रीडम' यानी मीडिया की स्वतंत्रता को कुचलने वालों का नाम दिया है. आरएसएफ के मुताबिक ये सभी नेता एक सेंसर व्यवस्था बनाने के जिम्मेदार हैं, जिसके तहत या तो पत्रकारों को मनमाने ढंग से जेल में डाल दिया जाता है या उनके खिलाफ हिंसा के लिए भड़काया जाता है.
मीडिया पर हमला करने वाले 37 नेताओं में मोदी शामिल
पत्रकारिता के लिए 'बहुत खराब'
इनमें से 16 प्रेडेटर ऐसे देशों पर शासन करते हैं जहां पत्रकारिता के लिए हालात "बहुत खराब" हैं. 19 नेता ऐसे देशों के हैं जहां पत्रकारिता के लिए हालात "खराब" हैं. इन नेताओं की औसत उम्र है 66 साल. इनमें से एक-तिहाई से ज्यादा एशिया-प्रशांत इलाके से आते हैं.
मीडिया पर हमला करने वाले 37 नेताओं में मोदी शामिल
कई पुराने प्रेडेटर
इनमें से कुछ नेता दो दशक से भी ज्यादा से इस सूची में शामिल हैं. इनमें सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद, ईरान के सर्वोच्च नेता अली खामेनी, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और बेलारूस के राष्ट्रपति एलेग्जेंडर लुकाशेंको शामिल हैं.
मीडिया पर हमला करने वाले 37 नेताओं में मोदी शामिल
नरेंद्र मोदी
मोदी का नाम इस सूची में पहली बार आया है. संस्था ने कहा है कि मोदी मीडिया पर हमले के लिए मीडिया साम्राज्यों के मालिकों को दोस्त बना कर मुख्यधारा की मीडिया को अपने प्रचार से भर देते हैं. उसके बाद जो पत्रकार उनसे सवाल करते हैं उन्हें राजद्रोह जैसे कानूनों में फंसा दिया जाता है.
मीडिया पर हमला करने वाले 37 नेताओं में मोदी शामिल
पत्रकारों के खिलाफ हिंसा
आरएसएफ के मुताबिक सवाल उठाने वाले इन पत्रकारों के खिलाफ सोशल मीडिया पर ट्रोलों की एक सेना के जरिए नफरत भी फैलाई जाती है. यहां तक कि अक्सर ऐसे पत्रकारों को मार डालने की बात की जाती है. संस्था ने पत्रकार गौरी लंकेश का उदाहरण दिया है, जिन्हें 2017 में गोली मार दी गई थी.
मीडिया पर हमला करने वाले 37 नेताओं में मोदी शामिल
अफ्रीकी नेता
ऐतिहासिक प्रेडेटरों में तीन अफ्रीका से भी हैं. इनमें हैं 1979 से एक्विटोरिअल गिनी के राष्ट्रपति तेओडोरो ओबियंग गुएमा बासोगो, 1993 से इरीट्रिया के राष्ट्रपति इसाईअास अफवेरकी और 2000 से रवांडा के राष्ट्रपति पॉल कगामे.
मीडिया पर हमला करने वाले 37 नेताओं में मोदी शामिल
नए प्रेडेटर
नए प्रेडेटरों में ब्राजील के राष्ट्रपति जैर बोल्सोनारो को शामिल किया गया है और बताया गया है कि मीडिया के खिलाफ उनकी आक्रामक और असभ्य भाषा ने महामारी के दौरान नई ऊंचाई हासिल की है. सूची में हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओरबान का भी नाम आया है और कहा गया है कि उन्होंने 2010 से लगातार मीडिया की बहुलता और आजादी दोनों को खोखला कर दिया है.
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नए प्रेडेटरों में सबसे खतरनाक
सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस सलमान को नए प्रेडेटरों में सबसे खतरनाक बताया गया है. आरएसएफ के मुताबिक, सलमान मीडिया की आजादी को बिलकुल बर्दाश्त नहीं करते हैं और पत्रकारों के खिलाफ जासूसी और धमकी जैसे हथकंडों का इस्तेमाल भी करते हैं जिनके कभी कभी अपहरण, यातनाएं और दूसरे अकल्पनीय परिणाम होते हैं. पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या का उदाहरण दिया गया है.
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महिला प्रेडेटर भी हैं
इस सूची में पहली बार दो महिला प्रेडेटर शामिल हुई हैं और दोनों एशिया से हैं. हांग कांग की चीफ एग्जेक्टिवे कैरी लैम को चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की कठपुतली बताया गया है. बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना को भी प्रेडेटर बताया गया है और कहा गया है कि वो 2018 में एक नया कानून लाई थीं जिसके तहत 70 से भी ज्यादा पत्रकारों और ब्लॉगरों को सजा हो चुकी है.
रिपोर्ट: चारु कार्तिकेय
अखबार के मुताबिक एनएसओ ग्रुप का कहना है कि लोगों के फोन की जासूसी उसके पेगासस स्पाइवेयर लाइसेंस की शर्तों के प्रतिकूल है क्योंकि उसका सॉफ्टवेयर सिर्फ बड़े अपराधियों और आतंकवादियों की जासूसी के लिए है.
वॉशिंगटन पोस्ट ने एनएसओ प्रमुख शालेव हूलियो के हवाले से लिखा है कि वह इन खबरों से बहुत चिंतित हैं. हूलियो ने अखबार को बताया, "हम हर आरोप की जांच कर रहे हैं और यदि कुछ आरोप भी सत्य पाए जाते हैं तो हम सख्त कार्रवाई करेंगे. जैसा हमने पहले भी किया है, हम उनके कॉन्ट्रैक्ट को रद्द कर देंगे. यदि किसी ने पत्रकारों की जासूसी की है, चाहे वह पेगासस से हो या नहीं, चिंता की बात है.”
रिपोर्टः विवेक कुमार
DW.COM

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