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Kargil Vijay Diwas 2021: Celebrations across the country on the completion of 22 years of Kargil Vijay Diwas, tribute to the martyrs, 559 special lamps lit in the memory of martyrs in Ladakh| national News in Hindi | Kargil Vijay Diwas 2021 : करगिल विजय दिवस के 22 साल पूरे होने पर देशभर में जश्न, शहीदों को श्रद्धांजलि, लद्दाख में शहीदों की याद में जलाए गए 559 विशेष दीपक


इंटरनेट डेस्क। आज 26 जुलाई सोमवार को करगिल विजय दिवस मनाया जा रहा है। 1999 में इसी दिन पाकिस्तान के खिलाफ भारतीय सेना को जीत मिली थी। भारत की पाक पर जीत के 22 साल पूरे होने की खुशी में देशभर में जश्न का माहौल है। रविवार को तोलोलिंग, टाइगर हिल और दूसरी बड़ी लड़ाईयों को याद किया गया और इसी के साथ लद्दाख में द्रास क्षेत्र में करगिल युद्ध स्मारक पर 559 दीपक जलाए गए। वहीं आज सोमवार को केंद्रीय रक्षा मंत्री, तीनों सेनाओं के प्रमुख, सीडीएस रावत सहित कई बडी़ हस्तियों ने नेशनल वॉर मेमोरियल पहुंचकर शहीदों को श्रद्धांजलि दी। 
 
Delhi: Defence Minister Rajnath Singh and Minister of State for Defence, Ajay Bhatt pay tribute at National War Memorial on the occasion of #KargilVijayDiwas2021pic.twitter.com/rTjTOl6JMS
— ANI (@ANI) July 26, 2021
एएनआई न्यूज एजेंसी के अनुसार, राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने इस मौके पर तिलहटी में स्थित स्मारक पर शहीदों को श्रद्धांजलि दी। पीएम मोदी इस दिन हर साल इंडिया गेट पर मौजूद अमर जवान ज्योति पर जाकर शहीदों को श्रद्धांजलि देते हैं। 
करगिल विजय दिवस के विशेष मौके पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद तोलोलिंग की तिलहटी में स्थित स्मारक पर श्रद्धांजलि पहुंचे। वहीं चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल बिपिन रावत ने भी करगिल शहीदों को श्रद्धांजलि दी। 
 

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vikram Batra ye dil maange more: Kargil Vijay Diwas 2021 Captain Vikram Batra Story In Hindi: Twin brother of Kargil Hero Revives His Memories: 'ये दिल मांगे मोर...' आज भी कानों में गूंजते है कैप्‍टन विक्रम बत्रा के वो आखिरी शब्द


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Kargil Vijay Diwas: 'ये दिल मांगे मोर...' आज भी कानों में गूंजते है विक्रम बत्रा के वो आखिरी शब्द
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भारत हर साल 26 जुलाई को करगिल विजय दिवस (Kargil Vijay Diwas) मनाता है। 22 साल पहले 1999 में आज ही के दिन भारत ने पाकिस्तान पर जीत हासिल की थी। इस जीत के हीरो में से एक थे शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा। कैप्टन विक्रम बत्रा (Captain Vikram Batra) ने युद्ध के दौरान जब 5140 चोटी से रेडियो के जरिए अपना विजय उद्घोष ‘यह दिल मांगे मोर’ कहा तो पूरे भारत में उनका नाम छा गया था। उनके जुड़वा भाई विशाल बत्रा उन्हें याद करते हुए लिखते हैं-
 
विक्रम बत्रा ने मेसेज दिया- ये दिल मांगे मोर, यहां जानें 'पॉइंट 5140' का किस्सा
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हाइलाइट्स
करगिल विजय को आज 22 साल पूरे हो गए, देश कर रहा है शहीदों को नमन
करगिल के हीरो में से एक थे कैप्टन विक्रम बत्रा, परमवीर चक्र से हुए थे सम्मानित
युद्ध के दौरान विक्रम बत्रा के शब्द 'यह दिल मांगे मोर' आज भी दिलों में गूंजते हैं
विक्रम बत्रा के जुड़वा भाई विशाल उन्हें आज के दिन विशेष रूप से कर रहे याद
वह साल 1992 था जब मेरे बड़े भाई विक्रम (जो मुझसे सिर्फ 14 मिनट बड़े थे) और मुझे चंडीगढ़ के सेक्टर 10 स्थित डीएवी कॉलेज में एडमिशन मिला था। हम हॉस्टल लाइफ के लिए बेहद उत्साहित थे। चंडीगढ़ आने से पहले भी मिलिट्री यूनिफॉर्म में जवानों को देखकर हम जोश से भर जाते थे। हमारा स्कूल हिमाचल प्रदेश में पालमपुर के हिल स्टेशन स्थित मिलिट्री एरिया में था।
कॉलेज के फर्स्ट ईयर में हमने डिफेंस बैकग्राउंड से कई दोस्त बनाए। हम दोनों की तरह ही उनका भी यूनिफॉर्म पहनने का सपना था। उनके लिए यह अपने पिता या दादा की विरासत को आगे ले जाने जैसा था लेकिन हमारे लिए तो वह एक नई दुनिया थी, जीवन का नया रूप और महान योद्धा बनने की इच्छा जिन्हें हम टीवी सीरियल 'परमवीर चक्र' में देखते थे जो हर रविवार दूरदर्शन में प्रसारित होता था।
शहादत दिवस: जानें करगिल के हीरो कैप्टन विक्रम बत्रा की पूरी कहानी
वास्तव में, हम में से किसी ने तब नहीं सोचा था कि विक्रम भी परमवीर चक्र से सम्मानित होंगे, जो भारत का सर्वोच्च वीरता पुरस्कार है। डीएवी कॉलेज में नैशनल कैडेट कॉर्प्स (एनसीसी), एयर विंग जॉइन करते ही विक्रम ने सेना में जाने के अपने सपने को पूरा करने की ओर पहला कदम उठाया था। यहां अनुशासन, प्रफेशनलिज्म, साहस, निडरता, सौहार्द, धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण और नेतृत्व के गुणों जैसी बुनियादी ट्रेनिंग उन्हें दी गई।
उन्होंने डीसीएटी-1, और डीसीएटी-2 कैंप में भाग लिया और उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। इस तरह विक्रम ने 26 जनवरी, 1994 को राज-पथ पर सबसे प्रतिष्ठित गणतंत्र दिवस परेड के लिए अपनी जगह बनाई। एनसीसी ने उन्हें प्रतिष्ठित 'सी' सर्टिफिकेट से सम्मानित किया। इसके बाद अगले पड़ाव में हमने कंबाइंड डिफेंस सर्विस (सीडीएस) की परीक्षा पास करने के लिए काफी सीरियस पढ़ाई की।
करगिल विजय दिवस: बाइक पर वॉर मेमोरियल पहुंचा Indian Army का ये खास दल
जनवरी 1996 में खबर आई कि हम दोनों ने लिखित परीक्षा पास कर ली है। यह जश्न का समय था लेकिन सर्विस सेलेक्शन बोर्ड (एसएसबी) की परीक्षा सर पर थी और हम समय बर्बाद नहीं करना चाहते थे। हमने तैयारी के लिए चंडीगढ़ के पास एक कोचिंग अकैडमी जॉइन की और हिसार में एक सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी से सेशन भी लिए।
करगिल के शूरवीर कैप्टन विक्रम बत्रा को फाइटर जेट्स से ऐसे दी गई श्रद्धांजलि
12 मार्च 1996 में विक्रम ने 19-एसएसबी इलाहाबाद में रिपोर्ट किया और मैंने दो दिन बाद 14 मार्च को 18-एसएसबी इलाहाबाद में। चार दिन बाद असली जश्न का समय आया जब विक्रम 32 उम्मीदवारों के बैच से चुने गए चार कैडेट में से एक थे। जब फाइनल मेरिट लिस्ट आई तो वह टॉप 50 में शामिल थे। हमें नहीं पता था कि विक्रम का नाम भारतीय सेना के इतिहास में सुनहरे अक्षरों से लिखा जाएगा और पूरा देश उन्हें शेरशाह के नाम से पुकारेगा।
आज भी जब मैं विक्रम के बारे में सोचता हूं तो उनकी फेमस लाइन 'ये दिल मांगे मोर' मेरे कानों में गूंजती है, जो उन्होंने 17,000 फीट की ऊंचाई से जोश से ओतप्रोत होकर कहा था।
करगिल युद्ध के हीरो कैप्टन विक्रम बत्रा, पीवीसी, 13, जेएके राइफल के जुड़वा भाई विशाल बत्रा के लिखे गए लेख का यह हिंदी अनुवाद है।
अपने जुड़वा भाई के साथ विक्रम बत्रा (दाहिने तरफ)Navbharat Times News App: देश-दुनिया की खबरें, आपके शहर का हाल, एजुकेशन और बिज़नेस अपडेट्स, फिल्म और खेल की दुनिया की हलचल, वायरल न्यूज़ और धर्म-कर्म... पाएँ हिंदी की ताज़ा खबरें डाउनलोड करें NBT ऐप
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Kargil Vijay Diwas 2021: Families Of Martyred Soldiers Keep Memories Safe In Inland Letters - करगिल विजय दिवस 2021: मैंनू भूल गई होवेगी... करगिल में जान लुटाने वाले जांबाजों की चिट्ठियों में प्‍यार बेशुमार, अब यादें ही साथ


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मैंनू भुल गई होवेगी... आखिरी चिट्ठियों में ताजा हैं करगिल में सब कुछ लुटाने वाले जांबाजों की यादें
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Kargil Vijay Diwas 2021: दो दशक पहले तक, चिट्ठियां ही सैनिकों के लिए घर से जुड़े रहने का जरिया होती थीं। करगिल विजय दिवस की 22वीं वर्षगांठ पर चार खास चिट्ठियों की कहानी जो अब दस्‍तावेज बन चुकी हैं।
 
मैंनू भुल गई होवेगी... आखिरी चिट्ठियों में ताजा हैं करगिल में सब कुछ लुटाने वाले जांबाजों की यादें
कागज किनारों से थोड़ा मुड़ गया है... जल्‍दबाजी में लिखी गई चिट्ठी की लिखावट अब धुंधली मालूम होती है मगर कुछ परिवारों के लिए ये बेशकीमती हैं। उनके लिए ये चिट्ठियां नहीं, यादों का पुलिंदा हैं। महंगी से महंगी चीज कागज के इस टुकड़े के आगे छोटी लगती है। ये चिट्ठियां हैं करगिल में सर्वस्‍व न्‍योछावर करने वाले सैनिकों की। विजय दिवस की 22वीं वर्षगांठ पर, टाइम्‍स ऑफ इंडिया ने कुछ शहीदों के परिवारों से उनकी आखिरी चिट्ठियों के बारे में बात की।
'मेरी बेटी तो मुझे भूल ही गई होगी'
सिपाही बूटा सिंह
28 मई, 1999 रेजिमेंट 14 सिख
अमृतपाल कौर बमुश्किल 21 साल की रही होंगी जब विधवा हुईं। सिपाही बूटा सिंह की आखिरी दो चिट्ठियों के सहारे उन्‍होंने जिंदगी के कुछ मुश्किल दिन काटे हैं। एक चिट्ठी में सिंह 'आई लव यू' से शुरुआत करते हैं। उनकी चिट्ठियों में मासूम बेटी, कोमलप्रीत का बचपन ना देख पानी की टीस साफ दिखती है। 4 मई की चिट्ठी में उन्‍होंने लिखा था, "कोमल तो पूरा बोलने लगी होगी, मुझे भूल गई होगी, कोमल का पूरा खयाल रखना। कोमल को लाड़ से पालना।"
26 साल के रहे बूटा सिंह उस ऐडवांस पार्टी के सदस्‍य थे जिसे करगिल भेजा गया था। उनकी चिट्ठियां शहादत से 10 दिन पहले पंजाब के मंसा स्थित दानेवाला गांव पहुंची थीं।
बेटे ने पूरी की हवलदार की आखिरी इच्‍छा
हवलदार महावीर सिंह
5 जुलाई, रेजिमेंट 17 जाट
हवलदार महावीर सिंह ने बेटे करन सिंह बूरा को आखिरी चिट्ठी में उसकी शादी को लेकर बात की थी। करन उस समय बरेली की मिलिट्री एकेडमी में ट्रेनिंग ले रहे थे। 16 अप्रैल को महावीर सिंह ने लिखा, "अगर तुम्‍हें बुरा ना लगे तो एक बात कहना चाहता हूं। मैंने तुम्‍हारी शादी के लिए एक लड़की तय की है लेकिन चिंता ना करो, जब तक 12वीं पूरी नहीं कर लेते, हम तुम्‍हारी शादी नहीं करेंगे।"
बेटे की ट्रेनिंग पूरी हो पाती, उससे पहले ही हवलदार ने शहादत दे दी। महावीर सिंह की यूनिट को पिम्‍पल कॉम्‍प्‍लेक्‍स (पॉइंट 4875) से दुश्‍मन को खदेड़ने का ऑर्डर मिला था। महावीर ने 5 जुलाई को सर्वोच्‍च बलिदान दिया। उन्‍हें सेना मेडल से सम्‍मानित किया गया। चिट्ठी की बात को पिता की आखिरी इच्‍छा मानकर, दो साल बाद करन ने उसी लड़की से शादी कि जिसे महावीर सिंह ने चुना था।
आखिरी खत और पार्थिव शरीर साथ-साथ घर आया
लांस नायक रणबीर सिंह
16 जून, 1999 रेजिमेंट 13 जम्‍मू और कश्‍मीर राइफल्‍स
लांस नायक रणबीर सिंह की आखिरी चिट्ठी में पिता बनने की खुशी छलकती है। पंजाब के गुरुदासपुर जिले के अलामा गांव में रहने वाले परिवार को चिट्ठी लिखते समय सिंह 33 साल के थे। उन्‍होंने वादा क‍िया था कि जब पत्‍नी सविता मां बनेगी तो जश्‍न होगा। मां को भरोसा दिलाते हुए सिंह ने लिखा था, "माताजी मेरी फिक्र नहीं करना, बस अपनी सेहत का खयाल रखना। हम सब ठीक हैं। हमारी परीक्षा का टाइम है।"
19 जून, 1999 वह तारीख थी जब रणबीर सिंह की यह चिट्ठी और उनका पार्थिव शरीर साथ-साथ घर पहुंचे। सविता कहती हैं, "उनके साथियों ने बताया कि उन्‍होंने 16 जून की सुबह करीब 9 बजे आखिरी चिट्ठी लिखी थी और तीन घंटे बाद वह शहीद हो गए। उन्‍होंने हमारे बेटे के जन्‍मदिन पर जश्‍न की तैयारी की थी, लेकिन हमें हमेशा के लिए छोड़कर चले गए।"
बीवी का खत खोलकर कभी पढ़ ही नहीं पाए
मेजर राजेश सिंह अधिकारी
30 मई, रेजिमेंट 18 ग्रेनेडियर्स से अटैच्‍ड
मेजर ने जो वर्दी पहन रखी थी, उसकी ऊपर जेब में पत्‍नी की चिट्ठी रखी थी। करगिल में तोलोलिंग वापस हासिल करने में लगे मेजर को चिट्ठी पढ़ने का वक्‍त ही नहीं मिला। 28 साल के मेजर राजेश सिंह ऑपरेशन में शहीद हो गए। वह चिट्ठी जो वे कभी पढ़ नहीं सके, 14 जून 1999 को परिवार को सौंपी गई।
उस वक्‍त 18 ग्रेनेडियर्स के कमांडिंग ऑफिसर रहे ब्रिगेडियर कुशल ठाकुर (रिटायर्ड) कहते हैं, "तोलोलिंग की लड़ाई जीतने के बाद जब भारतीय सेना ने 13 दिन बाद उसका शव बरामद किया तो वह चिट्ठी मिली। अधिकारी ने तय किया था कि शांति से चिट्ठी पढ़ेगा लेकिन ऐसा हो ना सका।"
उस दिन अधिकारी तोलोलिंग टॉप से सिर्फ 50 मीटर दूर थे जब मनीन गन फायर का शिकार हो गए। उन्‍होंने रेंगते हुए दुश्‍मन के बंकर के भीतर एक हैंड ग्रेनेड फेंका और चार पाकिस्‍तानी सैनिकों को मार गिराया।
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Tue, 27 Jul 2021 02:43 AM
करगिल विजय दिवसMon, 26 Jul 2021 12:15 PM
जम्मू-कश्मीर के करगिल में 1999 में हुई जंग को 22 साल पूरे हो गए हैं। इस जंग को भारतीय सेना ने ऑपरेशन विजय चलाकर जीता था। पीठ पीछे पाकिस्तान की ओर से वार किए जाने के बाद भी भारतीय जांबाजों के शौर्य ने बड़ी विजय दिलाई थी। तब से ही 26 जुलाई के दिन को करगिल विजय दिवस के तौर पर मनाया जाता रहा है। आज करगिल विजय दिवस के 22 साल पूरे होने के मौके पर भी तत्कालीन सेना प्रमुख वीपी मलिक को एक मलाल जरूर है। à¤œà¤¨à¤°à¤² वीपी मलिक मानते हैं कि इसने भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्ते को एकदम बदलकर रख दिया। हालांकि, इस युद्ध में भारतीय सेना ने पाकिस्तान को खदेड़ कर रख दिया था लेकिन एक मलाल जनरल वीपी मलिक के मन में आज भी बरकरार है। 
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Kargil Vijay Diwas Special Story: The Martyr Om Prakash Singh Chase Away Pakistani Troups Twice - द्रास की दुर्गम पहाड़ी और 'शिखर' पर शौर्य...जांबाज ने करगिल जंग में पाकिस्तानी सेना को 2 बार खदेड़ा था


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Kargil Vijay Diwas: द्रास की दुर्गम पहाड़ी और 'शिखर' पर शौर्य...जांबाज ने करगिल जंग में पाकिस्तानी सेना को 2 बार खदेड़ा था
Edited by
सुधाकर सिंह | नवभारत टाइम्स | Updated: Jul 26, 2021, 10:27 AM
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Kargil War 26 जुलाई 1999 को भारत ने करगिल में विजयी तिरंगा (Kargil Vijay Diwas) फहराया था। इस जीत में देश के जवानों ने अदम्य साहस और जांबाजी दिखाते हुए पाकिस्तान को धूल चटा दी थी। शहीद लांस नायक ओमप्रकाश सिंह (Om Prakash Singh) भी ऐसे ही बहादुरों में से एक थे।
 
करगिल की सबसे ऊंची चोटी, इस शौर्यवीर ने लहराया था तिरंगा
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हाइलाइट्स
करगिल में लांस नायक ओमप्रकाश सिंह ने दिखाई थी जांबाजी
द्रास की दुर्गम पहाड़ी पर दो बार पाक सेना को पीछे खदेड़ा था
15 और 29 जून को चोटी से दुश्मन को हराकर तिरंगा फहराया
मुरादनगर के सुरेंद्र ने भी द्रास में 1 जुलाई को दी थी शहादत
कुलदीप काम्बोज, गाजियाबाद
26 जुलाई को भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना के छक्के छुड़ाकर करगिल विजय हासिल की थी। साल 1999 में हुआ करगिल युद्ध 60 दिनों तक चला और 26 जुलाई को भारत की विजय के साथ इसका अंत हुआ था। इस युद्ध में जिन भारतीय जवानों ने अपने शौर्य से दुश्मन को घुटनों के बल ला दिया था, उनमें गाजियाबाद के लोनी इलाके के शहीद लांस नायक ओमप्रकाश सिंह भी शामिल थे।
शहीद ओमप्रकाश सिंह ने द्रास सेक्टर की दुर्गम पहाड़ी पर 2 बार दुश्मनों को खदेड़कर तिरंगा फहराया था। पीछे से हुए वार होने के चलते वह शहीद हो गए थे। शहीद लांस नायक ओमप्रकाश सिंह का जन्म बुलंदशहर के खेरपुर गांव में हुआ था। बचपन से ही वे देश सेवा का सपना देखते थे, उन्हें बंदूकों से खेलने का शौक था। पढ़ाई पूरी करने के बाद जब उन्होंने पिता से देश सेवा के लिए सेना में भर्ती होने की इच्छा जताई तो पहले उन्होंने इनकार कर दिया, लेकिन उन्हें मायूस देखा तो परिवार ने इजाजत दे दी। 1986 में उनका चयन राजपूताना राइफल्स में हुआ। वर्ष 1990 में उनका विवाह राजकुमारी के साथ हुआ। 9 साल बाद 1999 में बेटे कुलदीप का जन्म हुआ था।
करगिल की कहानी, 'परमवीर' योगेंद्र यादव की जुबानी
एक बार ही देखा था बेटे का चेहरा
बेटे कुलदीप के जन्म के बाद ओमप्रकाश 2 महीने की छुट्टी पर घर आए और बेटे के साथ समय बिताया। इसी बीच करगिल युद्ध शुरू होने पर उन्हें जाना पड़ा। उस समय कुलदीप की उम्र 6 माह थी। उनकी पत्नी बताती हैं कि उसके बाद उन्हें बेटे से मिलने का मौका नहीं मिल पाया। वे अपने पर्स में बेटे की फोटो हर समय साथ रखते थे और शहीद होने के बाद उनके पर्स से बेटे की फोटो मिली थी।
करगिल के शूरवीर कैप्टन विक्रम बत्रा को फाइटर जेट्स से ऐसे दी गई श्रद्धांजलि
पाकिस्तानी सैनिकों को 2 बार खदेड़ा था
उन्हें द्रास सेक्टर की दुर्गम पहाड़ी की जिम्मेदारी मिली थी। उन्होंने 15 जून 1999 को अपने साथियों के साथ दुश्मनों को खदेड़कर तिरंगा फहराया था। 29 जून को पास की एक और पहाड़ी से दुश्मन को मार भगाकर उन्होंने तिरंगा फहराया था। उसके बाद जब वे पहाड़ी से उतर रहे थे तो छिपकर बैठे दुश्मन ने पीछे से उन पर हमला कर दिया। कई दुश्मनों को मौत के घाट उतारने के बाद वह शहीद हो गए, लेकिन अपनी बहादुरी का ऐसा इतिहास लिख दिया, जो सदैव याद किया जाता है।
आज भी वर्दी को निहारती हैं शहीद सुरेंद्र की मां
मुरादनगर के सुराना गांव के रहने वाले सुरेंद्र पाल सिंह द्रास सेक्टर में 1 जुलाई को दुश्मनों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए थे। उनकी मां चंपा देवी आज भी उनके फोटो को हाथ में लेकर फफक फफककर रो पड़ती हैं। सुरेंद्र पाल सिंह करगिल के द्रास सेक्टर में कुमाऊं रेजिमेंट में तैनात थे। 1 जुलाई 1999 को वह दुश्मनों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए थे। उन्होंने भी कई दुश्मनों को मार गिराया था।
करगिल: 'मिशन 5140' जीत के बाद विक्रम बत्रा बोले- ये दिल मांगे मोर
शहीद सुरेंद्र की मां चंपा देवी आज भी सेना की वर्दी को निहारती रहती हैं। उन्होंने बताया कि उन्हें ऐसा नहीं लगता कि उनके बेटे सुरेंद्र पाल सिंह को शहीद हुए 22 वर्ष बीत गए, बल्कि ऐसा लगता है कि वह देश की सीमाओं की सुरक्षा के लिए दुश्मनों से लोहा ले रहे हैं। चंपा देवी का कहना है कि सरकार ने जो सुविधाएं देने का वादा किया था, वह सभी सुविधाएं उनके परिवार को मिली हैं।
शहादत दिवस: जानें करगिल के हीरो कैप्टन विक्रम बत्रा की पूरी कहानी
मेन रोड पर लगाई गई प्रतिमा
शहीद सुरेंद्र पाल सिंह की रावली-सुराना मार्ग पर पर प्रतिमा लगाई गई है, जिन्हें प्रत्येक वर्ष करगिल विजय दिवस पर श्रद्धांजलि दी जाती है। इसमें क्षेत्र और आसपास के गणमान्य लोग शामिल होते हैं। करगिल युद्ध में शहीद होने पर तत्कालीन डीएम आलोक कुमार ने आश्वासन दिया था कि रावली सुराना मार्ग का नाम शहीद सुरेंद्र पाल सिंह के नाम पर रखा जाएगा, लेकिन उनके नाम का आज तक जिला प्रशासन पत्थर तक नहीं लगा सका है।
करगिल में शहीद ओम प्रकाश सिंह ने दिखाई थी जांबाजीNavbharat Times News App: देश-दुनिया की खबरें, आपके शहर का हाल, एजुकेशन और बिज़नेस अपडेट्स, फिल्म और खेल की दुनिया की हलचल, वायरल न्यूज़ और धर्म-कर्म... पाएँ हिंदी की ताज़ा खबरें डाउनलोड करें NBT ऐप
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करगिल विजय दिवस: खराब मौसम के कारण राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का द्रास का दौरा रद्द

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