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हाईकोर्ट ने नगर निगम कर्मचारियों को वेतन एवं पेंशन का भुगतान न करने पर एक बार फिर सरकार और निगम को फटकार लगाई है। अदालत ने कहा कर्मचारियों की व्यथा की ओर से निगम अपनी आंख और कान बंद किए हुए है। अदालत ने दिल्ली सरकार को निर्देश दिया कि वह 10 दिनों के अंदर उत्तरी दिल्ली नगर निगम को 293 करोड़ रुपये दे, जिससे वह बकाया वेतन एवं पेंशन दे सके।
न्यायमूर्ति विपिन सांघी एवं न्यायमूर्ति जसमीत सिंह की पीठ ने कहा कि निगमों को अपने पैरों पर खड़ा होना चाहिए और अपने खर्च के हिसाब से अपने आय का उपार्जन करना चाहिए। वेतन के इंतजाम तक कर्मचारियों को वैसे नहीं छोड़ा जा सकता है क्योंकि उनकी रोटी का सवाल है। निगमों को इतनी आय का उपार्जन करना चाहिए जिससे वह अपने कर्मचारियों को वेतन देने के अलावा अपने दायित्वों को भी पूरा कर सके। वेतन की व्यवस्था चुने गए पार्षदों को करनी चाहिए।
पीठ ने इस बाबत दिल्ली सरकार एवं निगम को कई दिशा-निर्देश जारी किए। वहीं, अदालत ने उत्तरी दिल्ली नगर निगम एवं पूर्वी दिल्ली नगर निगम से कहा कि वह अपने आय के उपार्जन को लेकर बनाई गए नीति की जानकारी चार हफ्ते में दें। इतना ही नहीं पीठ ने निगम आयुक्त से कहा कि वे पार्षदों के वेतन एवं उनके भत्ते व अन्य होने वाले खर्च की जानकारी दो हफ्ते में दें।
अदालत ने उत्तरी दिल्ली नगर निगम से कहा कि वह अपने छह अस्पतालों को केंद्र सरकार या दिल्ली सरकार को देने पर पुनर्विचार करें। वह अस्पतालों के रखरखाव पर होने वाले खर्च की भरपाई कर्मचारियों के वेतन से नहीं कर सकता है।
उत्तरी दिल्ली नगर निगम के अधिवक्ता दिव्य प्रकाश पांडे ने कहा कि बी ग्रेड के स्वस्थ कर्मचारियों का मई तक का वेतन दे दिया गया है। अन्य कर्मचारियों को वेतन एवं पेंशन देने को लेकर पैसे का इंतजाम किया जा रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि निगम ने 744.18 करोड रुपये का इंतजाम किया है। वह अपनी संपत्ति को बेचने या लीज पर देने की कवायद कर रहा है।
इस पर कोर्ट ने कहा कि सभी निगमों को खर्च के हिसाब से आय का उपार्जन करना चाहिए, जिससे वह कर्मचारियों को वेतन एवं पेंशन दे सके। अन्य जिम्मेदारियों को निभाने के लिए भी पैसे होने चाहिए।
उत्तरी दिल्ली नगर निगम के छह अस्पतालों को सरकार को नहीं देने पर भी कोर्ट ने आपत्ति जताई। उसने निगम से इस बाबत ठोस कदम उठाने को कहा है। पीठ ने कहा कि अगर निगम अस्पताल खुद चलाना चाहता है तो वह उसमें अत्याधुनिक व्यवस्था करें जो अन्य अस्पतालों में है। ऐसा न हो कि निगमों के अस्पताल में इलाज की उचित व्यवस्था ना हो। इससे पहले कोर्ट ने निगम से अपनी संपत्ति एवं बैंक के पैसों की जानकारी देने को कहा था।
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हाईकोर्ट ने नगर निगम कर्मचारियों को वेतन एवं पेंशन का भुगतान न करने पर एक बार फिर सरकार और निगम को फटकार लगाई है। अदालत ने कहा कर्मचारियों की व्यथा की ओर से निगम अपनी आंख और कान बंद किए हुए है। अदालत ने दिल्ली सरकार को निर्देश दिया कि वह 10 दिनों के अंदर उत्तरी दिल्ली नगर निगम को 293 करोड़ रुपये दे, जिससे वह बकाया वेतन एवं पेंशन दे सके।
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न्यायमूर्ति विपिन सांघी एवं न्यायमूर्ति जसमीत सिंह की पीठ ने कहा कि निगमों को अपने पैरों पर खड़ा होना चाहिए और अपने खर्च के हिसाब से अपने आय का उपार्जन करना चाहिए। वेतन के इंतजाम तक कर्मचारियों को वैसे नहीं छोड़ा जा सकता है क्योंकि उनकी रोटी का सवाल है। निगमों को इतनी आय का उपार्जन करना चाहिए जिससे वह अपने कर्मचारियों को वेतन देने के अलावा अपने दायित्वों को भी पूरा कर सके। वेतन की व्यवस्था चुने गए पार्षदों को करनी चाहिए।
पीठ ने इस बाबत दिल्ली सरकार एवं निगम को कई दिशा-निर्देश जारी किए। वहीं, अदालत ने उत्तरी दिल्ली नगर निगम एवं पूर्वी दिल्ली नगर निगम से कहा कि वह अपने आय के उपार्जन को लेकर बनाई गए नीति की जानकारी चार हफ्ते में दें। इतना ही नहीं पीठ ने निगम आयुक्त से कहा कि वे पार्षदों के वेतन एवं उनके भत्ते व अन्य होने वाले खर्च की जानकारी दो हफ्ते में दें।
अदालत ने उत्तरी दिल्ली नगर निगम से कहा कि वह अपने छह अस्पतालों को केंद्र सरकार या दिल्ली सरकार को देने पर पुनर्विचार करें। वह अस्पतालों के रखरखाव पर होने वाले खर्च की भरपाई कर्मचारियों के वेतन से नहीं कर सकता है।
उत्तरी दिल्ली नगर निगम के अधिवक्ता दिव्य प्रकाश पांडे ने कहा कि बी ग्रेड के स्वस्थ कर्मचारियों का मई तक का वेतन दे दिया गया है। अन्य कर्मचारियों को वेतन एवं पेंशन देने को लेकर पैसे का इंतजाम किया जा रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि निगम ने 744.18 करोड रुपये का इंतजाम किया है। वह अपनी संपत्ति को बेचने या लीज पर देने की कवायद कर रहा है।
इस पर कोर्ट ने कहा कि सभी निगमों को खर्च के हिसाब से आय का उपार्जन करना चाहिए, जिससे वह कर्मचारियों को वेतन एवं पेंशन दे सके। अन्य जिम्मेदारियों को निभाने के लिए भी पैसे होने चाहिए।
उत्तरी दिल्ली नगर निगम के छह अस्पतालों को सरकार को नहीं देने पर भी कोर्ट ने आपत्ति जताई। उसने निगम से इस बाबत ठोस कदम उठाने को कहा है। पीठ ने कहा कि अगर निगम अस्पताल खुद चलाना चाहता है तो वह उसमें अत्याधुनिक व्यवस्था करें जो अन्य अस्पतालों में है। ऐसा न हो कि निगमों के अस्पताल में इलाज की उचित व्यवस्था ना हो। इससे पहले कोर्ट ने निगम से अपनी संपत्ति एवं बैंक के पैसों की जानकारी देने को कहा था।
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