Indian Army Guarding Borders Jammu Kashmir Gurez Kargil Ladakh Amid Tough Weather Conditions
करगिल विजय के 22 साल:हिमस्खलन का खतरा, माइनस 30° सेल्सियस तक तापमान, मोबाइल कनेक्टिविटी नहीं...LoC पर ऐसे हालात में देश की हिफाजत कर रहे जवान
श्रीनगर2 घंटे पहलेलेखक: मुदस्सिर कुल्लु
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कश्मीर में गुरेज से लेकर लद्दाख में करगिल तक LoC पर भारतीय सेना कठिन हालात में चौबीसों घंटे पहरा दे रही है। सेना यहां किसी भी हरकत का जवाब देने के लिए तैयार है। खराब मौसम में भी ये सैनिक इन चौकियों को नहीं छोड़ते हैं ताकि करगिल जैसा युद्ध दोबारा न हो। करगिल विजय को आज 22 साल पूरे हो चुके हैं। इस मौके पर आज हम गुरेज की कहानी आपके सामने रख रहे हैं। सेना की शौर्य से जुड़ी ऐसी ही कहानियां हम आपके सामने 27, 28 और 29 तारीख को भी रखेंगे। लेकिन आज चलते हैं गुरेज।
श्रीनगर से करीब 135 किलोमीटर दूर उत्तरी कश्मीर के गुरेज में राजपूत रेजिमेंट घुसपैठ को रोकने के लिए तैनात है। करगिल की तरह गुरेज में हिमस्खलन का खतरा बना रहता है, यह हर साल ऐसी घटनाएं होती हैं। इस इलाके के दूसरी ओर पहाड़ों पर पाकिस्तानी सेना तैनात है। 2017 में सेना की चौकी हिमस्खलन की चपेट में आने से गुरेज में 15 सैनिक शहीद हो गए। इन खतरों के बावजूद सैनिक कठोर मौसम में वहां तैनात हैं।
गुरेज में करीब 12 फीट बर्फबारी होती है। यहां सर्दियों के दौरान शून्य से लेकर माइनस 30 डिग्री सेल्सियस से कम तापमान हो जाता है।
गुरेज में मोबाइल कनेक्टिविटी नहीं है
गुरेज में तैनात एक सैनिक ने कहा, 'यहां करीब 12 फीट बर्फबारी होती है। हमें अभी भी अपने देश की रक्षा के लिए यहां रहना है, क्योंकि डर है कि पाकिस्तानी सेना वही शरारत कर सकती है जो उसने करगिल में की थी। यहां कोई मोबाइल कनेक्टिविटी नहीं है। हम कई बार अपने परिवार वालों से हफ्तों बाद बात करते हैं। हमें सर्दियों के दौरान माइनस 30 डिग्री सेल्सियस से भी कम तापमान का सामना करना पड़ता है। गुरेज में भी सैनिक करगिल विजय दिवस मनाते हैं। करगिल गुरेज से लगभग 250 किलोमीटर दूर है और LoC के साथ की सीमा समुद्र तल से 10 हजार से 16 हजार फीट ऊपर पहाड़ों से घिरी हुई है।'
हर साल 26 जुलाई को करगिल विजय दिवस मनाते हैं
करगिल युद्ध के नायकों के सम्मान में हर साल 26 जुलाई को करगिल विजय दिवस मनाया जाता है। इसी तारीख को 1999 में भारत ने ऊंची चौकियों की कमान संभाली थी। युद्ध 60 दिनों से अधिक समय तक लड़ा गया और 26 जुलाई 1999 को समाप्त हुआ। सशस्त्र बलों के योगदान को याद करने के लिए पूरे देश में समारोह भी आयोजित होते हैं।
गुरेज के पास आज भी बिजली की रेगुलर सप्लाई नहीं है। जेनरेटर बिजली हर दिन केवल कुछ घंटों के लिए ही मिलती है।
गुरेज में बिजली की रेगुलर सप्लाई नहीं
गुरेज के पास आज भी बिजली की रेगुलर सप्लाई नहीं है। जेनरेटर बिजली हर दिन केवल कुछ घंटों के लिए ही मिलती है, जिससे सेना के लिए निगरानी रखना मुश्किल हो जाता है। एक दूसरे जवान ने कहा, 'यहां पोस्टिंग के दौरान सेना जवान बाकी दुनिया से हफ्तों तक कट जाता है। वह अपने परिवार से कई दिनों तक बात भी नहीं कर पाता। मुझे यहां तैनात होने और कठिन हालात में सेवा करने पर गर्व होता है। हालांकि कठोर मौसम की स्थिति में जीवित रहना मुश्किल है।'
दुनिया से 6-8 महीने तक के लिए कट जाता है संपर्क
कई बार यह इलाका बाकी दुनिया से 6-8 महीने तक के लिए कट जाता है। ऐसे में जवान यहां पर गाय और याक भी पालते हैं, जिससे इन्हें दूध मिलता है। वे कठोर सर्दियों के 6-8 महीने के लिए भोजन इकट्ठा कर लेते हैं। किसी भी मेडिकल इमरजेंसी के दौरान इन्हें हेलिकॉप्टर सेवाएं मुहैया कराई जाती हैं।
स्थानीय लोगों को सर्दियों के लिए जलाऊ लकड़ी का भंडार रखना पड़ता है। ये लोग विकास, रोजगार और खाने-पीने की चीजों के लिए सेना पर निर्भर हैं।
गुरेज के 15 गांवों में करीब 40 हजार लोग रहते हैं
LoC के पार भारत और पाकिस्तान की ओर से इस साल की शुरुआत में संघर्ष विराम घोषित हुआ। इससे स्थानीय लोगों ने राहत की सांस ली। स्थानीय लोग अब बिना डरे जंगल से लकड़ियां लेकर आते हैं। स्थानीय निवासी बशीर अहमद ने कहा कि हमें गोलाबारी का डर रहता है। यहां पिछले कुछ साल में गोलाबारी के कारण कई लोगों की जान गई है। युद्धविराम से हम राहत महसूस कर रहे हैं।
स्थानीय लोगों को सर्दियों के लिए जलाऊ लकड़ी का भंडार रखना पड़ता है। ये लोग विकास, रोजगार और खाने-पीने की चीजों के लिए सेना पर निर्भर हैं। गुरेज के 15 गांवों में करीब 40 हजार लोग रहते हैं। ज्यादातर ग्रामीण खेती करते हैं या सेना में सेवा दे रहे हैं।
गुरेज कभी कश्मीर को चीन के शिनजियांग प्रांत से जोड़ने वाले रेशम मार्ग पर एक अहम पड़ाव था।
कभी विदेशी टूरिस्ट के लिए पसंदीदा जगह थी गुरेज
गुरेज कभी कश्मीर को चीन के शिनजियांग प्रांत से जोड़ने वाले रेशम मार्ग पर एक अहम पड़ाव था। कश्मीर के बंटवारे से पहले गुरेज विदेशी टूरिस्ट के लिए लोकप्रिय जगह थी। 1925 में अमेरिका के 26वें राष्ट्रपति के बेटे टेड और केर्मिट रूजवेल्ट ने गुरेज का दौरा किया। दोनों भाई पामीर, तुर्केस्तान और तियान शान पहाड़ों के भ्रमण के लिए निकले थे।
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