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दिल्ली में जम्मू-कश्मीर के नेताओं की प्रधानमंत्री के साथ बैठक के चलते हाई अलर्ट के बीच जम्मू एयरफोर्स स्टेशन पर हमला सुरक्षा में बड़ी चूक मानी जा रही है। हाई सिक्योरिटी जोन में विस्फोटक गिराकर गायब हुए ड्रोन का कोई पता नहीं चल सका। न इनकी सुरक्षा एजेंसियों को भनक लगी और न ही कोई राडार इसे पकड़ सका। जानकारों का मानना हे कि नापाक साजिश के तहत कम ऊंचाई पर उड़ने वाले ड्रोन के जरिये यह हमला किया गया है।
भारत-पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय सीमा से करीब 10 किलोमीटर दूर जम्मू के एयरफोर्स स्टेशन के साथ ही एयरपोर्ट, सेना की टाइगर डिविजन, प्रदेश का सबसे बड़ा अस्पताल और सेना की छावनी समेत कई सैन्य ठिकाने हैं। कड़ी सुरक्षा होने के बावजूद आतंकी एयरफोर्स स्टेशन पर दो धमाके कर गए। इसके तार पाकिस्तान से जुड़ रहे हैं। ऐसे में यह ड्रोन हमला कई सवाल खड़े कर रहा है। सुरक्षा एजेंसियों में हड़कंप मच गया है।
जम्मू एयरफोर्स स्टेशन पर साजिश के तहत हमला किया गया है। हमले में कम ऊंचाई पर उड़ने वाले ड्रोन का इस्तेमाल किया गया है, ताकि इन्हें राडार डिटेक्ट न कर पाएं। माना जा रहा है कि विस्फोटक के साथ आए ड्रोन को एयरफोर्स के आसपास से ही ऑपरेट किया जा रहा हो। आसपास आधा दर्जन सैन्य ठिकाने होने के बावजूद ड्रोन दो जगह विस्फोटक गिराकर गायब हो गये। इनका पता भी नहीं लगाया जा सका। यही नहीं, पाकिस्तान के ड्रोन से हमला करवाने के लगातार इनपुट मिलने के बाद भी गंभीरता नहीं दिखाई गई। लगातार एलओसी और बॉर्डर से ड्रोन के जरिए हथियार और विस्फोटक फेंके जा रहे हैं।
पुंछ में मिला था हमले का इनपुट, दो साल में 20 बार ड्रोन का इस्तेमाल
कुछ महीने पहले ही पुंछ क्षेत्र में खुफिया एजेंसियों को इनपुट मिला था कि पाकिस्तान भारतीय क्षेत्र में ड्रोन के जरिए हमला कर सकता है। लेकिन इसको हल्के में लिया गया। वहीं वर्ष 2019 से लेकर अब तक आतंकी गतिविधियों में 20 से अधिक बार ड्रोन का इस्तेमाल किया गया है। कठुआ, राजोरी, पुंछ, अरनिया, अखनूर आदि क्षेत्रों में ड्रोन से हथियार और गोला बारूद फेंके गए। सबसे पहले हीरानगर में ड्रोन से हथियार फेंके गए। इसके बाद फिर से हीरानगर, सांबा, आरएस पुरा, अरनिया, अखनूर बॉर्डर पर ड्रोन से हथियार फेंके गए। राजोरी के सेरी में भी एलओसी के पास ड्रोन से हथियार और आईईडी फेंकी गई।
बड़े हमले की फिराक में हैं आतंकी
कहीं यह हमला ट्रेलर तो नहीं? क्या आतंकी किसी बड़े हमले को अंजाम देने की फिराक में हैं? क्या आतंकियों के निशाने पर जम्मू का एयरपोर्ट, जम्मू शहर, बड़े ठिकाने या फिर कुछ और तो नहीं? ऐसे तमाम सवाल हैं, जिसका जवाब जांच और खुफिया एजेंसियां ढूंढ रही हैं। आतंकी किसी बड़े हमले की साजिश तो नहीं रच रहे हैं।
तीन साल से कोई बड़ा हमला नहीं
10 फरवरी 2018 को आतंकियों ने जम्मू के सुंजवां सैन्य कैंप पर हमला किया था। इसमें 6 सैनिक शहीद हो गए और एक नागरिक मारा गया। इसके बाद से अब तक आतंकी जम्मू में कोई बड़ा हमला नहीं कर पाए हैं। हालांकि इस दौरान 2018 में झज्जर कोटली, 2020 में नगरोटा के बन टोल प्लाजा पर कश्मीर जाते आतंकी पकड़े गए और इनको बिना किसी नुकसान के मार गिराया गया। इस दौरान जम्मू के बस स्टैंड पर दो बार ग्रेनेड हमले हुए, हालांकि, इसमें भी कोई नुकसान नहीं हुआ।
ड्रोम कहां से आए, नहीं चला पता, रजार भी विफल
ड्रोम कहां से आए अभी तक इसका पता नहीं लगा है। वायुसेना अधिकारियों ने बताया कि स्टेशन पर सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं मगर सभी सड़क की ओर हैं। सीमा क्षेत्र में दुश्मन की निगरानी के लिए लगाए रडार भी ड्रोन को पकड़ नहीं सकते। अलग तरह की रडार प्रणाली ही पक्षी जितने बड़े ड्रोन का पता लगा सकती है। इस बीच जम्मू-कश्मीर के डीजीपी दिलबाग सिंह ने कहा है कि हमले में पेलोड के साथ ड्रोन का इस्तेमाल किया गया है।
जम्मू के बेलीचराना से ड्रोन उड़ाने का शक
आतंकी संगठनों ने कश्मीर के अलावा अब जम्मू में भी अशांति फैलाने की साजिश रची है। इसके तहत वह जम्मू को बेस बनाकर हमले करने की फिराक में हैं। सूत्रो की मानें तो जम्मू के आधा दर्जन संदिग्ध क्षेत्रों में 20 से ज्यादा आतंकियों के लिए काम करने वाले ओजी वर्करों के होने का शक है। यह ओजी वर्कर खुफिया एजेंसियों के राडार पर हैं।
विस्तार
दिल्ली में जम्मू-कश्मीर के नेताओं की प्रधानमंत्री के साथ बैठक के चलते हाई अलर्ट के बीच जम्मू एयरफोर्स स्टेशन पर हमला सुरक्षा में बड़ी चूक मानी जा रही है। हाई सिक्योरिटी जोन में विस्फोटक गिराकर गायब हुए ड्रोन का कोई पता नहीं चल सका। न इनकी सुरक्षा एजेंसियों को भनक लगी और न ही कोई राडार इसे पकड़ सका। जानकारों का मानना हे कि नापाक साजिश के तहत कम ऊंचाई पर उड़ने वाले ड्रोन के जरिये यह हमला किया गया है।
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भारत-पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय सीमा से करीब 10 किलोमीटर दूर जम्मू के एयरफोर्स स्टेशन के साथ ही एयरपोर्ट, सेना की टाइगर डिविजन, प्रदेश का सबसे बड़ा अस्पताल और सेना की छावनी समेत कई सैन्य ठिकाने हैं। कड़ी सुरक्षा होने के बावजूद आतंकी एयरफोर्स स्टेशन पर दो धमाके कर गए। इसके तार पाकिस्तान से जुड़ रहे हैं। ऐसे में यह ड्रोन हमला कई सवाल खड़े कर रहा है। सुरक्षा एजेंसियों में हड़कंप मच गया है।
जम्मू एयरफोर्स स्टेशन पर साजिश के तहत हमला किया गया है। हमले में कम ऊंचाई पर उड़ने वाले ड्रोन का इस्तेमाल किया गया है, ताकि इन्हें राडार डिटेक्ट न कर पाएं। माना जा रहा है कि विस्फोटक के साथ आए ड्रोन को एयरफोर्स के आसपास से ही ऑपरेट किया जा रहा हो। आसपास आधा दर्जन सैन्य ठिकाने होने के बावजूद ड्रोन दो जगह विस्फोटक गिराकर गायब हो गये। इनका पता भी नहीं लगाया जा सका। यही नहीं, पाकिस्तान के ड्रोन से हमला करवाने के लगातार इनपुट मिलने के बाद भी गंभीरता नहीं दिखाई गई। लगातार एलओसी और बॉर्डर से ड्रोन के जरिए हथियार और विस्फोटक फेंके जा रहे हैं।
पुंछ में मिला था हमले का इनपुट, दो साल में 20 बार ड्रोन का इस्तेमाल
कुछ महीने पहले ही पुंछ क्षेत्र में खुफिया एजेंसियों को इनपुट मिला था कि पाकिस्तान भारतीय क्षेत्र में ड्रोन के जरिए हमला कर सकता है। लेकिन इसको हल्के में लिया गया। वहीं वर्ष 2019 से लेकर अब तक आतंकी गतिविधियों में 20 से अधिक बार ड्रोन का इस्तेमाल किया गया है। कठुआ, राजोरी, पुंछ, अरनिया, अखनूर आदि क्षेत्रों में ड्रोन से हथियार और गोला बारूद फेंके गए। सबसे पहले हीरानगर में ड्रोन से हथियार फेंके गए। इसके बाद फिर से हीरानगर, सांबा, आरएस पुरा, अरनिया, अखनूर बॉर्डर पर ड्रोन से हथियार फेंके गए। राजोरी के सेरी में भी एलओसी के पास ड्रोन से हथियार और आईईडी फेंकी गई।
बड़े हमले की फिराक में हैं आतंकी
कहीं यह हमला ट्रेलर तो नहीं? क्या आतंकी किसी बड़े हमले को अंजाम देने की फिराक में हैं? क्या आतंकियों के निशाने पर जम्मू का एयरपोर्ट, जम्मू शहर, बड़े ठिकाने या फिर कुछ और तो नहीं? ऐसे तमाम सवाल हैं, जिसका जवाब जांच और खुफिया एजेंसियां ढूंढ रही हैं। आतंकी किसी बड़े हमले की साजिश तो नहीं रच रहे हैं।
तीन साल से कोई बड़ा हमला नहीं
10 फरवरी 2018 को आतंकियों ने जम्मू के सुंजवां सैन्य कैंप पर हमला किया था। इसमें 6 सैनिक शहीद हो गए और एक नागरिक मारा गया। इसके बाद से अब तक आतंकी जम्मू में कोई बड़ा हमला नहीं कर पाए हैं। हालांकि इस दौरान 2018 में झज्जर कोटली, 2020 में नगरोटा के बन टोल प्लाजा पर कश्मीर जाते आतंकी पकड़े गए और इनको बिना किसी नुकसान के मार गिराया गया। इस दौरान जम्मू के बस स्टैंड पर दो बार ग्रेनेड हमले हुए, हालांकि, इसमें भी कोई नुकसान नहीं हुआ।
ड्रोम कहां से आए, नहीं चला पता, रजार भी विफल
ड्रोम कहां से आए अभी तक इसका पता नहीं लगा है। वायुसेना अधिकारियों ने बताया कि स्टेशन पर सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं मगर सभी सड़क की ओर हैं। सीमा क्षेत्र में दुश्मन की निगरानी के लिए लगाए रडार भी ड्रोन को पकड़ नहीं सकते। अलग तरह की रडार प्रणाली ही पक्षी जितने बड़े ड्रोन का पता लगा सकती है। इस बीच जम्मू-कश्मीर के डीजीपी दिलबाग सिंह ने कहा है कि हमले में पेलोड के साथ ड्रोन का इस्तेमाल किया गया है।
जम्मू के बेलीचराना से ड्रोन उड़ाने का शक
आतंकी संगठनों ने कश्मीर के अलावा अब जम्मू में भी अशांति फैलाने की साजिश रची है। इसके तहत वह जम्मू को बेस बनाकर हमले करने की फिराक में हैं। सूत्रो की मानें तो जम्मू के आधा दर्जन संदिग्ध क्षेत्रों में 20 से ज्यादा आतंकियों के लिए काम करने वाले ओजी वर्करों के होने का शक है। यह ओजी वर्कर खुफिया एजेंसियों के राडार पर हैं।
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