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मैंनू भुल गई होवेगी... आखिरी चिट्ठियों में ताजा हैं करगिल में सब कुछ लुटाने वाले जांबाजों की यादें
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Kargil Vijay Diwas 2021: दो दशक पहले तक, चिट्ठियां ही सैनिकों के लिए घर से जुड़े रहने का जरिया होती थीं। करगिल विजय दिवस की 22वीं वर्षगांठ पर चार खास चिट्ठियों की कहानी जो अब दस्तावेज बन चुकी हैं।
मैंनू भुल गई होवेगी... आखिरी चिट्ठियों में ताजा हैं करगिल में सब कुछ लुटाने वाले जांबाजों की यादें
कागज किनारों से थोड़ा मुड़ गया है... जल्दबाजी में लिखी गई चिट्ठी की लिखावट अब धुंधली मालूम होती है मगर कुछ परिवारों के लिए ये बेशकीमती हैं। उनके लिए ये चिट्ठियां नहीं, यादों का पुलिंदा हैं। महंगी से महंगी चीज कागज के इस टुकड़े के आगे छोटी लगती है। ये चिट्ठियां हैं करगिल में सर्वस्व न्योछावर करने वाले सैनिकों की। विजय दिवस की 22वीं वर्षगांठ पर, टाइम्स ऑफ इंडिया ने कुछ शहीदों के परिवारों से उनकी आखिरी चिट्ठियों के बारे में बात की।
'मेरी बेटी तो मुझे भूल ही गई होगी'
सिपाही बूटा सिंह
28 मई, 1999 रेजिमेंट 14 सिख
अमृतपाल कौर बमुश्किल 21 साल की रही होंगी जब विधवा हुईं। सिपाही बूटा सिंह की आखिरी दो चिट्ठियों के सहारे उन्होंने जिंदगी के कुछ मुश्किल दिन काटे हैं। एक चिट्ठी में सिंह 'आई लव यू' से शुरुआत करते हैं। उनकी चिट्ठियों में मासूम बेटी, कोमलप्रीत का बचपन ना देख पानी की टीस साफ दिखती है। 4 मई की चिट्ठी में उन्होंने लिखा था, "कोमल तो पूरा बोलने लगी होगी, मुझे भूल गई होगी, कोमल का पूरा खयाल रखना। कोमल को लाड़ से पालना।"
26 साल के रहे बूटा सिंह उस ऐडवांस पार्टी के सदस्य थे जिसे करगिल भेजा गया था। उनकी चिट्ठियां शहादत से 10 दिन पहले पंजाब के मंसा स्थित दानेवाला गांव पहुंची थीं।
बेटे ने पूरी की हवलदार की आखिरी इच्छा
हवलदार महावीर सिंह
5 जुलाई, रेजिमेंट 17 जाट
हवलदार महावीर सिंह ने बेटे करन सिंह बूरा को आखिरी चिट्ठी में उसकी शादी को लेकर बात की थी। करन उस समय बरेली की मिलिट्री एकेडमी में ट्रेनिंग ले रहे थे। 16 अप्रैल को महावीर सिंह ने लिखा, "अगर तुम्हें बुरा ना लगे तो एक बात कहना चाहता हूं। मैंने तुम्हारी शादी के लिए एक लड़की तय की है लेकिन चिंता ना करो, जब तक 12वीं पूरी नहीं कर लेते, हम तुम्हारी शादी नहीं करेंगे।"
बेटे की ट्रेनिंग पूरी हो पाती, उससे पहले ही हवलदार ने शहादत दे दी। महावीर सिंह की यूनिट को पिम्पल कॉम्प्लेक्स (पॉइंट 4875) से दुश्मन को खदेड़ने का ऑर्डर मिला था। महावीर ने 5 जुलाई को सर्वोच्च बलिदान दिया। उन्हें सेना मेडल से सम्मानित किया गया। चिट्ठी की बात को पिता की आखिरी इच्छा मानकर, दो साल बाद करन ने उसी लड़की से शादी कि जिसे महावीर सिंह ने चुना था।
आखिरी खत और पार्थिव शरीर साथ-साथ घर आया
लांस नायक रणबीर सिंह
16 जून, 1999 रेजिमेंट 13 जम्मू और कश्मीर राइफल्स
लांस नायक रणबीर सिंह की आखिरी चिट्ठी में पिता बनने की खुशी छलकती है। पंजाब के गुरुदासपुर जिले के अलामा गांव में रहने वाले परिवार को चिट्ठी लिखते समय सिंह 33 साल के थे। उन्होंने वादा किया था कि जब पत्नी सविता मां बनेगी तो जश्न होगा। मां को भरोसा दिलाते हुए सिंह ने लिखा था, "माताजी मेरी फिक्र नहीं करना, बस अपनी सेहत का खयाल रखना। हम सब ठीक हैं। हमारी परीक्षा का टाइम है।"
19 जून, 1999 वह तारीख थी जब रणबीर सिंह की यह चिट्ठी और उनका पार्थिव शरीर साथ-साथ घर पहुंचे। सविता कहती हैं, "उनके साथियों ने बताया कि उन्होंने 16 जून की सुबह करीब 9 बजे आखिरी चिट्ठी लिखी थी और तीन घंटे बाद वह शहीद हो गए। उन्होंने हमारे बेटे के जन्मदिन पर जश्न की तैयारी की थी, लेकिन हमें हमेशा के लिए छोड़कर चले गए।"
बीवी का खत खोलकर कभी पढ़ ही नहीं पाए
मेजर राजेश सिंह अधिकारी
30 मई, रेजिमेंट 18 ग्रेनेडियर्स से अटैच्ड
मेजर ने जो वर्दी पहन रखी थी, उसकी ऊपर जेब में पत्नी की चिट्ठी रखी थी। करगिल में तोलोलिंग वापस हासिल करने में लगे मेजर को चिट्ठी पढ़ने का वक्त ही नहीं मिला। 28 साल के मेजर राजेश सिंह ऑपरेशन में शहीद हो गए। वह चिट्ठी जो वे कभी पढ़ नहीं सके, 14 जून 1999 को परिवार को सौंपी गई।
उस वक्त 18 ग्रेनेडियर्स के कमांडिंग ऑफिसर रहे ब्रिगेडियर कुशल ठाकुर (रिटायर्ड) कहते हैं, "तोलोलिंग की लड़ाई जीतने के बाद जब भारतीय सेना ने 13 दिन बाद उसका शव बरामद किया तो वह चिट्ठी मिली। अधिकारी ने तय किया था कि शांति से चिट्ठी पढ़ेगा लेकिन ऐसा हो ना सका।"
उस दिन अधिकारी तोलोलिंग टॉप से सिर्फ 50 मीटर दूर थे जब मनीन गन फायर का शिकार हो गए। उन्होंने रेंगते हुए दुश्मन के बंकर के भीतर एक हैंड ग्रेनेड फेंका और चार पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया।
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