Vimarsana.com

Latest Breaking News On - நீதி பிரதிப சிங் - Page 1 : vimarsana.com

DNA Special: Why Uniform Civil Code is need of the hour in India?

DNA Special: Why Uniform Civil Code is need of the hour in India? Constitutionally, we call ourselves a secular nation but there is discrimination on the basis of religion in the law of our own country. Share Updated: Jul 10, 2021, 06:38 AM IST Today we have come before you with this question that when everyone's DNA is the same in our country, then why are the laws different? Why are the laws of marriage, divorce and real estate not the same for every citizen in our country even after 73 years of independence? The Delhi High Court has given a very revolutionary decision today, in which it has said that there should be a Uniform Civil Code in the country.

Germany
Australia
Kenya
Nigeria
United-states
India
United-kingdom
Uzbekistan
Italy
South-africa
Delhi
France

dna analysis delhi high court decision uniform civil code in india | DNA ANALYSIS: एक देश, एक कानून का सपना होगा साकार? समझिए क्यों जरूरी है यूनिफॉर्म सिविल कोड

खास बातें दिल्ली हाई कोर्ट ने देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू करने पर जोर दिया है. अभी एक देश, एक कानून की व्यवस्था भारत में नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा था कि यूनिफॉर्म सिविल कोड देश को एक रखने में मदद करेगा. नई दिल्ली: आज हम इस सवाल के साथ आपके सामने आए हैं कि जब हमारे देश में सबका DNA एक है, तो फिर कानून अलग-अलग क्यों हैं? आज़ादी के 73 साल बाद भी हमारे देश में विवाह, तलाक और ज़मीन जायदाद के कानून, हर नागरिक के लिए एक समान क्यों नहीं हैं? दिल्ली हाई कोर्ट ने बहुत ही क्रांतिकारी फैसला सुनाया है, जिसमें उसने कहा है कि देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड यानी समान नागरिक संहिता होनी चाहिए. धर्म और जाति के आधार पर अलग-अलग क़ानून क्यों? सोचिए, समाज के हर वर्ग के छात्र जब स्कूल में जाते हैं, तो उनकी एक जैसी यूनिफॉर्म होती है, एक जैसी परीक्षाएं होती हैं और स्कूल के नियम भी एक जैसे ही सब पर लागू होते हैं, तो क्या देश के कानूनों में भी यही समानता लागू नहीं होनी चाहिए? धर्म और जाति के आधार पर ये क़ानून अलग-अलग क्यों हैं? संवैधानिक रूप से हम अपने आपको धर्मनिरपेक्ष देश कहते हैं, लेकिन हमारे ही देश के कानून में धर्म के हिसाब से भेदभाव होता है. इसलिए आज हम यूनिफॉर्म सिविल कोड की दशकों पुरानी मांग को एक बार फिर पूरे देश के साथ मिलकर उठाएंगे. दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला सबसे पहले हम आपको सरल भाषा में ये पूरी खबर बताते हैं, ताकि इस पर आपको कोई भ्रमित न कर सके क्योंकि, जब-जब देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड पर बहस शुरू हुई है या अदालतों ने इस पर कोई फैसला दिया है तो इस विषय को एक विशेष धर्म के खिलाफ बता कर दुष्प्रचार फैलाया जाता है और फिर यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर फेक न्यूज़ की कई दुकानें खुल जाती हैं. इसलिए इस विषय को लेकर आज आपको सही जानकारी होनी चाहिए और हम इसमें आपकी पूरी मदद करेंगे. सबसे पहले आपको ये पूरी खबर बताते हैं. दिल्ली हाई कोर्ट ने तलाक के एक मामले में दिए गए जजमेंट में कहा है कि देश में समान नागरिकता संहिता को लागू करने पर विचार होना चाहिए और जजमेंट की ये कॉपी केन्द्र सरकार को भेजी जानी चाहिए. ये फ़ैसला जस्टिस प्रतिभा सिंह ने दिया है. संक्षेप में कहें तो ख़बर ये है कि एक बार फिर से अदालत ने देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू करने पर जोर दिया है. लेकिन यूनिफॉर्म सिविल कोड है क्या और तलाक के इस मामले में कोर्ट को इसकी जरूरत क्यों महसूस हुई? पहले आपको ये बताते हैं. यूनिफॉर्म सिविल कोड क्या है? यूनिफॉर्म सिविल कोड एक सेकुलर यानी पंथनिरपेक्ष कानून है, जो किसी भी धर्म या जाति के सभी निजी कानूनों से ऊपर होता है, लेकिन भारत में अभी इस तरह के कानून की व्यवस्था नहीं है. फिलहाल देश में हर धर्म के लोग शादी, तलाक और जमीन जायदाद के मामलों का निपटारा अपने पर्सनल लॉ के मुताबिक करते हैं. मुस्लिम, ईसाई और पारसी समुदाय के अपने पर्सनल लॉ हैं, जबकि हिंदू पर्सनल लॉ के तहत हिन्दू, सिख, जैन और बौद्ध धर्म के सिविल मामलों का निपटारा होता है. कहने का मतलब ये है कि अभी एक देश, एक कानून की व्यवस्था भारत में नहीं है. और ये विडम्बना ही है कि वैसे तो भारत का संवैधानिक स्टेटस सेकुलर यानी धर्मनिरपेक्ष है, जो सभी धर्मों में विश्वास और समान अधिकारों की बात करता है, लेकिन एक धर्मनिरपेक्ष देश में क़ानून को लेकर यूनिफॉर्मिटी यानी समानता नहीं है, जबकि इस्लामिक देशों में इसे लेकर क़ानून है. यानी जो देश धर्मनिरपेक्ष हैं, वही समान क़ानून के रास्ते पर आज तक आगे नहीं बढ़ पाया है और इसी वजह से दिल्ली हाई कोर्ट का फ़ैसला महत्वपूर्ण हो जाता है. ये फ़ैसला तलाक के एक मामले में दिया गया है. इस मामले में कोर्ट को ये तय करना था कि तलाक हिंदू मैरिज एक्ट के आधार पर होगा या मीणा जनजाति के नियमों के आधार पर होगा? क्योंकि पति-पत्नी राजस्थान की मीणा जनजाति से हैं, जो ST समुदाय में आते हैं.  हिंदू मैरिज एक्ट में तलाक के लिए क़ानूनी कार्यवाही का प्रावधान है, जबकि मीणा जनजाति में तलाक का फैसला पंचायतें लेती हैं. लेकिन इस मामले में पति की दलील थी कि शादी हिंदू रीति रिवाज़ों से हुई है, इसलिए तलाक भी हिंदू मैरिज एक्ट के तहत होना चाहिए, जबकि पत्नी की दलील थी कि मीणा जनजाति पर हिंदू मैरिज एक्ट लागू नहीं होता, इसलिए उसके पति ने तलाक की जो अर्जी दी है, वो खारिज हो जानी चाहिए. इस पर 28 नवम्बर 2020 को राजस्थान की एक अदालत ने अपना फैसला देते हुए तलाक की अर्जी को खारिज कर दिया था और ये फैसला इस महिला के पक्ष में गया था. लेकिन बाद में इस व्यक्ति ने दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका लगाई और अब हाई कोर्ट ने फैसले को पलट दिया है. कोर्ट ने कहा है कि वो राजस्थान की अदालत के फैसले को खारिज करता है और इस मामले में ट्रायल कोर्ट को फिर से सुनवाई शुरू करने के निर्देश देता है. सबसे अहम बात ये है कि अब इस मामले में तलाक का फैसला हिंदू मैरिज एक्ट के तहत ही होगा. इस पूरे मामले से आज आप ये भी समझ सकते हैं कि देश को सभी धर्मों और जाति के लिए समान क़ानून की जरूरत क्यों है? अगर आज भारत में समान नागरिक संहिता क़ानून होता तो ये मामला इतना उलझता ही नहीं और न्यायपालिका पर भी ऐसे मामलों का बोझ नहीं पड़ता. इसमें कोर्ट द्वारा लिखा गया है कि आधुनिक भारत में धर्म, जाति और समुदाय की बाधाएं तेज़ी से टूट रही हैं और तेज़ी से हो रहे इस बदलाव की वजह से अंतरधार्मिक विवाह और तलाक में परेशानियां बढ़ रही हैं.  इस फैसले में आगे लिखा है कि आज की युवा पीढ़ी को इन परेशानियों से संघर्ष न करना पड़े, इसे देखते हुए देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होना चाहिए और अदालत अपने फैसले में ये भी कहती है कि इस फैसले की कॉपी केन्द्र सरकार को भी भेजी जानी चाहिए, ताकि सरकार इस पर विचार कर सके. भारत का संविधान क्या कहता है? आज आपके मन में ये भी सवाल होगा कि भारत का संविधान समान नागरिक संहिता को लेकर क्या कहता है? इसे समझने के लिए आपको हमारे साथ 72 वर्ष पीछे चलना होगा, जब भारत में संविधान का निर्माण हो रहा था. 23 नवम्बर 1948 को संविधान में इस पर जोरदार बहस हुई थी और संविधान सभा में ये प्रस्ताव रखा गया था कि सिविल मामलों में निपटारे के लिए देश में समान कानून होना चाहिए, लेकिन मोहम्मद इस्माइल साहिब, नज़ीरुद्दीन अहमद, महबूब अली बेग साहिब बहादुर, पोकर साहिब बहादुर और हुसैन इमाम ने एक मत से इसका विरोध किया. उस समय संविधान सभा के सभापति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद और तमाम बड़े कांग्रेसी नेता भी इसके खिलाफ थे. इन सभी सदस्यों की तब दलील थी कि समान कानून होने से मुस्लिम पर्सनल लॉ ख़त्म हो जाएगा और इसमें मुस्लिमों के लिए जो चार शादियां, तीन तलाक और निकाह हलाला की व्यवस्था की गई है, वो भी समाप्त हो जाएगी और भारी विरोध की वजह से उस समय संविधान की मूल भावना में समान अधिकारों का तो जिक्र आया, लेकिन समान क़ानून की बात ठंडे बस्ते में चली गई. उस समय संविधान निर्माता डॉक्टर भीम राव अम्बेडकर ने कई महत्वपूर्ण बातें कहीं थी, जिसका जिक्र दिल्ली हाई कोर्ट की जजमेंट कॉपी में भी है. उनका कहना था कि 'सभी धर्मों के पर्सनल लॉ में सुधार लाए बग़ैर देश को सामाजिक बदलाव के युग में नहीं ले जाया जा सकता. उन्होंने ये भी कहा था कि 'रूढ़िवादी समाज में धर्म भले ही जीवन के हर पहलू को संचालित करता हो, लेकिन आधुनिक लोकतंत्र में धार्मिक क्षेत्र अधिकार को घटाये बगैर असमानता और भेदभाव को दूर नहीं किया जा सकता है. इसीलिए देश का ये दायित्व होना चाहिए कि वो ‘समान नागरिक संहिता’ यानी Uniform Civil Code को अपनाए.' सोचिए, डॉक्टर भीम राव अम्बेडकर कितने दूरदर्शी थे. उन्होंने 72 वर्ष पहले ही कह दिया था कि अगर देश को एक समान क़ानून नहीं मिला, तो भेदभाव कभी दूर नहीं होगा. उस समय विरोध की वजह से ये क़ानून अस्तित्व में नहीं आया, लेकिन संविधान के आर्टिकल 35 में इस बात का उल्लेख ज़रूर किया गया कि सरकार भविष्य में देश में समान नागरिक संहिता को लागू करने के प्रयास कर सकती है. बाद में यही आर्टिकल 35, आर्टिकल 44 में बदल गया, लेकिन कभी वोट बैंक की राजनीति की वजह से, कभी साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की वजह से और कभी सरकार को बचाए रखने के लिए इस विषय को छेड़ा तक नहीं गया और यही वजह है कि भारतीय संविधान दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान है, लेकिन ये आज भी प्रासंगिक नहीं है और ये स्थिति भी तब है, जब देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट इसे जरूरी बता चुकी है. वर्ष 1985 में शाह बानो केस के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यूनिफॉर्म सिविल कोड देश को एक रखने में मदद करेगा. तब कोर्ट ने ये भी कहा था कि देश में अलग-अलग क़ानूनों से होने वाले विचारधाराओं के टकराव ख़त्म होंगे. इसके अलावा वर्ष 1995 में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिए थे कि संविधान के आर्टिकल 44 को देश में लागू किया जाए और आज फिर से अदालत ने इसे ज़रूरी बताया है. क्यों लागू नहीं किया जा सका यूनिफॉर्म सिविल कोड? हमारे देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड को कभी इसलिए लागू नहीं किया जा सका, क्योंकि इसे लेकर समय समय पर सभी धर्मों के बीच गलतफहमी पैदा की गईं लेकिन आज तीन पॉइंट्स में हम ये गलतफहमियां दूर करना चाहते हैं. पहला पॉइंट है, इस क़ानून की मूल भावना को लेकर बहुत से लोगों को लगता है कि ये क़ानून उनके धर्म की मान्यताओं और रीति रिवाज़ों को बदल देगा, जबकि ऐसा नहीं है. इस क़ानून की मूल भावना में किसी धर्म के खिलाफ द्वेष नहीं, बल्कि यूनिफॉर्मिटी यानी समानता है. इसे आप इस उदाहरण से समझिए. आप स्कूलों में बच्चों को एक यूनिफॉर्म में देखते होंगे. सभी बच्चे एक जैसे रंग की शर्ट पैंट, टाई और एक रंग के जूते पहन कर स्कूल जाते हैं. इसे समानता कहते हैं. इससे होता ये है कि जब बच्चे एक यूनिफॉर्म में होते हैं, तो इससे अमीर-गरीब, जाति और धर्म का भेदभाव मिट जाता है और समानता का भाव मन में रहता है, लेकिन सोचिए अगर स्कूलों में ये यूनिफॉर्मिटी न हो तो क्या होगा. फिर जो बच्चे अमीर होंगे, वो महंगे कपड़े पहन कर स्कूल आएंगे और जो गरीब हैं, उनके कपड़े अच्छे नहीं होंगे. इससे समानता नहीं रहेगी और इस कानून का लक्ष्य इसी भेदभाव को ख़त्म करना है. दूसरा पॉइंट है, महिलाओं को समान अधिकार देना. अभी सभी धर्मों के पर्सनल लॉ में महिलाओं के लिए अलग अलग अधिकार हैं. जैसे हिन्दू पर्सनल लॉ में अगर कोई व्यक्ति अपनी पत्नी को तलाक दिए बिना दूसरी शादी करता है, तो उसकी पत्नी उसे गिरफ़्तार करवा सकती है और इस शादी की वैधता खत्म हो सकती है, जबकि मुस्लिम पर्सनल लॉ में पुरुषों को चार शादियों का अधिकार मिला है और महिलाएं चाह कर भी उनके खिलाफ नहीं जा सकतीं. यानी मुस्लिम पर्सनल लॉ में महिलाओं को हिन्दू पर्सनल लॉ की तुलना में कम अधिकार हैं और यूनिफॉर्म सिविल कोड इसी असमानता को खत्म करने की बात करता है. इसमें तीन तलाक का भी मुद्दा है, लेकिन इसके खिलाफ केन्द्र सरकार 2019 में कानून बना चुकी है. और तीसरा पॉइंट है, सेकुलरिज्म यानी धर्मनिरपेक्षता- आज भारत धर्मनिरपेक्ष देश तो है, लेकिन यहां अलग अलग धर्मों के अपने पर्सनल लॉ हैं. अब सोचिए जिस देश का संविधान समानता की बात करता है, वहां धर्मों के हिसाब से कानून होना कितना उचित है. हमें लगता है कि यूनिफॉर्म सिविल कोड का नहीं होना, भारत के सेकुलर स्टेटस को कमजोर बनाता है. कई देशों ने अपनाया ये क़ानून -भारत में भले एक देश, एक क़ानून की व्यवस्था न हो, लेकिन कई देशों ने इसे अपनाया है. -फ्रांस में कॉमन सिविल कोड लागू है, जो वहां के सभी धर्मों के लोगों पर समान क़ानून की व्यवस्था को सुनिश्चित करता है. -यूनाइटेड किंगडम के इंग्लिश कॉमन लॉ की तरह अमेरिका में फेडरल लेवल पर कॉमन लॉ सिस्टम लागू है. -ऑस्ट्रेलिया में भी इंग्लिश कॉमन लॉ के जैसा ही कॉमन लॉ सिस्टम लागू है. -जर्मनी और उज़बेकिस्तान जैसे देशों में भी सिविल लॉ सिस्टम लागू हैं. -यानी इन देशों में एक देश, एक कानून का सिद्धांत है. इन देशों में नहीं समान नागरिक संहिता  -केन्या, पाकिस्तान, इटली, साउथ अफ्रीका, नाइजीरिया और ग्रीस में समान नागरिक संहिता नहीं है. -केन्या, इटली, ग्रीस और साउथ अफ्रीका में ईसाई बहुसंख्यक हैं, लेकिन यहां मुसलमानों के लिए अलग शरीयत का कानून है. -पाकिस्तान एक इस्लामिक देश है लेकिन यहां कुछ मामलों में हिंदुओँ के लिए अलग प्रावधान हैं. हालांकि पाकिस्तान में हिन्दुओं को इतनी आज़ादी नहीं है. -इसके अलावा नाइजीरिया में चार तरह के कानून लागू हैं. इंग्लिश लॉ, कॉमन लॉ, कस्टमरी लॉ और शरीयत. यानी यहां भी भारत की तरह सभी धर्मों के लिए समान क़ानून नहीं है. Zee News App: पाएँ हिंदी में ताज़ा समाचार, देश-दुनिया की खबरें, फिल्म, बिज़नेस अपडेट्स, खेल की दुनिया की हलचल, देखें लाइव न्यूज़ और धर्म-कर्म से जुड़ी खबरें, आदि.अभी डाउनलोड करें ज़ी न्यूज़ ऐप. Tags:

Nigeria
India
United-kingdom
New-delhi
Delhi
Italy
South-africa
Greece
Pakistan
Hussein-imam
Bhima-rao-ambedkar
Shah-banu

Article 44 News: Delhi High Court On Uniform Civil Code: Says Indian Society Becoming Homogeneous, Traditional Barriers Disappearing - अनुच्छेद 44 का जिक्र कर दिल्ली हाई कोर्ट ने कॉमन सिविल कोड पर कही बड़ी बात

Article 44 News: Delhi High Court On Uniform Civil Code: Says Indian Society Becoming Homogeneous, Traditional Barriers Disappearing - अनुच्छेद 44 का जिक्र कर दिल्ली हाई कोर्ट ने कॉमन सिविल कोड पर कही बड़ी बात
indiatimes.com - get the latest breaking news, showbiz & celebrity photos, sport news & rumours, viral videos and top stories from indiatimes.com Daily Mail and Mail on Sunday newspapers.

Delhi
India
Justice-pratibha-singh
Delhi-high-court
Courta-article
Delhi-high
New-delhi-high-court
Article-constitution
India-article-state
All-territory
Personal-law
Muslim-personal-law

Delhi High Court commented on Uniform Civil Code, said- society is changing

Delhi High Court commented on Uniform Civil Code, said- society is changing
patrika.com - get the latest breaking news, showbiz & celebrity photos, sport news & rumours, viral videos and top stories from patrika.com Daily Mail and Mail on Sunday newspapers.

Delhi
India
New-delhi
Justice-pratibha-singh
Courta-article
Delhi-high-court
Personal-law
India-article-state
All-territory
Constitution-government
Muslim-personal-law
டெல்ஹி

यूनिफ़ोर्म सिविल कोड को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट ने दिया बड़ा बयान, आधुनिक भारत की जरूरत बताया

यूनिफ़ोर्म सिविल कोड को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट ने दिया बड़ा बयान, आधुनिक भारत की जरूरत बताया
loktej.com - get the latest breaking news, showbiz & celebrity photos, sport news & rumours, viral videos and top stories from loktej.com Daily Mail and Mail on Sunday newspapers.

Delhi
India
New-delhi
Justice-singh
Justice-pratibha-singh
A-delhi-high-court
Delhi-high-court
High-court
Modern-india
Code-country
டெல்ஹி
இந்தியா

Patrika Explainer: Is there a need to have a Uniform Civil Code in India?

Patrika Explainer: Is there a need to have a Uniform Civil Code in India?
patrika.com - get the latest breaking news, showbiz & celebrity photos, sport news & rumours, viral videos and top stories from patrika.com Daily Mail and Mail on Sunday newspapers.

Jammu
Jammu-and-kashmir
India
Delhi
United-kingdom
Nagaland
New-delhi
Kashmir
Shah-banu
Justice-pratibha-singh
A-initiative-united-kingdom
Bn-rao-committee-united-kingdom

मादक पदार्थ केस : दिल्ली HC ने गूगल को एक शख्स को बरी करने वाला फैसला हटाने के दिए निर्देश

मादक पदार्थ केस : दिल्ली HC ने गूगल को एक शख्स को बरी करने वाला फैसला हटाने के दिए निर्देश
punjabkesari.com - get the latest breaking news, showbiz & celebrity photos, sport news & rumours, viral videos and top stories from punjabkesari.com Daily Mail and Mail on Sunday newspapers.

Delhi
India
Justice-pratibha-singh
M-singha-google
Google
Portal-indian-law
Indian-law
டெல்ஹி
இந்தியா
நீதி-பிரதிப-சிங்
கூகிள்
இந்தியன்-சட்டம்

FCRA rules: Govt extends validity of registration certificates for NGOs till September 30

FCRA rules: Govt extends validity of registration certificates for NGOs till September 30 FCRA rules: Govt extends validity of registration certificates for NGOs till September 30 The Ministry of Home Affairs has made two important announcements regarding FCRA rules for NGOs. The fresh decisions are likely to help NGOs receive foreign funding that is urgently required during the second wave of Covid-19 in the country. advertisement UPDATED: May 19, 2021 18:00 IST The decisio has been taken in the wake of petitions filed by NGOs in courts over the delay in implemented amended FCRA. (Photo: Reuters/Representational image) The government has made an important announcement regarding the Foreign Contribution Regulation Act for non-profit organisations (NGOs). It has decided to extend the validity of registration certificates for NGOs till September 30, 2021.

Delhi
India
Telangana
Andhra-pradesh
New-delhi
Justice-prathiba-singh
Ministry-of-home-affairs
Delhi-high-court
Delhi-main-branch
Foreign-contribution-regulation-act
Home-affairs
New-delhi-main-branch

Pandemic catalyses mental disorders but insurers try to fight off claims | India News

Image used for representative purpose only MUMBAI: When 66-year-old Pritam P tested positive for Covid late last year, it triggered a far more debilitating illness in his wife — her underlying depression and suicidal tendencies surfaced. Mrs P, a retired bank employee, had to be hospitalised for almost a month under the supervision of a Mumbai psychiatrist. The couple’s next nightmare began after she was discharged. While her bank’s group mediclaim covered a portion of her medical expenses, her own policy continues to reject the Rs 3.5 lakh claim, exposing the confounding absence of clarity and uniformity on mental illness insurance.

Delhi
India
Mumbai
Maharashtra
Pune
Soumitra-pathare
Vickram-thakkar
Justice-pratibha-singh
Nirmala-srinivasan
Centre-for-mental-health-law
Familie-alliance-on-mental-illness
Mental-health-law

HC asks Delhi govt to allow IHBAS to establish COVID facility

HC asks Delhi govt to allow IHBAS to establish COVID facility ANI | Updated: May 08, 2021 16:02 IST HC asks Delhi govt to allow IHBAS to establish COVID facility New Delhi [India], May 8 (ANI): The Delhi High Court on Saturday directed the Delhi government to consider and process the proposal of the Institute of Human Behaviour and Allied Sciences (IHBAS) to grant permission for establishing a 60 to 80-bed Covid care Section facility. A single-judge bench of Justice Prathiba Singh said, "Considering the acute shortage and severe demand for beds pertaining to COVID-19 patients and COVID-19 related facilities in the city of Delhi, the Principal Secretary, Ministry of Health, GNCTD, shall process the proposal from IHBAS, which has been sent. Copy of the proposal is also handed over to the counsel for the GNCTD."

Delhi
India
New-delhi
Justice-prathiba-singh
Tushar-sannu
Institute-of-human-behaviour
Ministry-of-health
Delhi-high-court
Delhi-high-court-on
Human-behaviour
Allied-sciences
Principal-secretary

vimarsana © 2020. All Rights Reserved.