ख़बर सुनें उत्तराखंड त्रासदी के दौरान केंद्रीय गृह मंत्रालय, एक ग्राउंड कमांडर की भांति मैदान में उतरा है। नतीजा, राहत एवं बचाव ऑपरेशन में अचूक कार्रवाई हो सकी। प्रधानमंत्री और केंद्रीय गृह मंत्री रविवार दिन में दिल्ली से बाहर थे, लेकिन इस ऑपरेशन को जिस तरह से अंजाम दिया गया, उससे किसी भी तरह की चूक होने की गुंजाइश ही खत्म हो गई। सुबह दस बजे के बाद जब उत्तराखंड त्रासदी की पहली सूचना आई, तो केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सबसे पहले पीएमओ को जानकारी दी। केंद्र सरकार में बड़े ओहदे पर तैनात एक अधिकारी के मुताबिक, पीएमओ और एनएसए तक सूचना पहुंचाने के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय हरकत में आ गया। इसके बाद मंत्रालय ने 'ग्राउंड कमांडर' बनकर राहत एवं बचाव ऑपरेशन की शुरुआत की। गृह मंत्रालय में 11 बजे तक पहली बैठक संपन्न हो चुकी थी। एयरफोर्स, आईटीबीपी, सेना, एनडीआरएफ और उत्तराखंड एसडीआरएफ के पास एक साथ अलर्ट मैसेज भेजा गया। आईटीबीपी महानिदेशक एसएस देसवाल के कंधों पर इस ऑपरेशन की बड़ी जिम्मेदारी थी, इसलिए वे केंद्रीय गृह मंत्रालय के लगातार संपर्क में रहे। दोपहर एक बजे तक यह मालूम हो चुका था कि तपोवन की टनल में लोग फंसे हैं तो केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पीएमओ और एनएसए से बातचीत कर ऑपरेशन आगे बढ़ा दिया। अधिकारी के मुताबिक, ऐसी आपदा में पहले साठ मिनट बहुत अहम होते हैं। उसमें आपको यह तय करना होता है कि मौके पर सबसे पहले कौन पहुंच सकता है। उसके बाद स्थानीय टीम से घटना स्थल की सूचनाएं और जानकारी लेकर ये अंदाजा लगाया जाता है कि कुल कितने आदमी त्रासदी की चपेट में आए हैं, कितने लापता हैं और सुरंग में फंसे लोगों की संख्या कहां तक पहुंच सकती है। इसके अनुसार ही सुरक्षा बलों को जिम्मेदारी सौंपी जाती है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह दिल्ली से बाहर थे, तो उन्होंने फोन पर ही अधिकारियों से संपर्क किया। गृह मंत्रालय में राज्य मंत्री नित्यानंद राय को एनडीआरएफ के कंट्रोल रूम में बैठा दिया गया। केंद्रीय गृह मंत्री ने आईटीबीपी डीजी से जानकारी लेने के बाद एनडीआरएफ अधिकारियों से बातचीत की। उन्हें बताया गया कि करीब 125 जवान 11 बजे तक धौली नदी पर पहुंच चुके थे। वहां से उन्होंने केंद्रीय गृह मंत्रालय को कई अहम जानकारियां दीं। एनडीआरएफ की टीम को यह पता चल गया कि उन्हें अपने साथ किस तरह के उपकरण ले जाने हैं। गृह मंत्रालय के अफसरों ने एनडीआरएफ को ऑक्सीजन के सिलेंडर एवं प्राथमिकता चिकित्सा उपकरण साथ ले जाने की सलाह दी। केंद्रीय गृह मंत्रालय में दो बजे तक यह तय हो गया था कि राहत एवं बचाव ऑपरेशन लंबा चलेगा। पीएमओ को यह सूचना दे दी गई। इसके बाद तय हुआ कि नेशनल क्राइसिस मैनेजमेंट कमेटी की बैठक बुलाई जाए। उत्तराखंड सरकार के मुख्य सचिव ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए कैबिनेट सचिव राजीव गौबा को घटना की जानकारी दी। खास बात है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधिकारियों को मौके से तमाम इनपुट मिल रहे थे। जब मुख्य सचिव बोल रहे थे तो उसी वक्त गृह मंत्रालय के पास एक खास रिपोर्ट आई थी। इस रिपोर्ट के बाद यह तय किया गया कि डीआरडीओ की टीम को मौके पर भेजा जाए। इस टीम के पास बर्फीले तूफान से जुड़े ऑपरेशन के विशेष उपकरण हैं। साथ ही एनटीपीसी के एमडी को भी मौके पर भेज दिया गया। दोपहर बाद जब आईटीबीपी ने 12 लोगों को सुरंग से बाहर निकालने की सूचना दी, तो मंत्रालय में राहत महसूस की गई। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने यह बात अच्छे तरीके से महसूस कर ली थी कि तपोवन और दूसरे इलाकों में आईटीबीपी बेहतर काम कर रही है। यह निर्णय लिया गया कि वहां पर आईटीबीपी जवानों की संख्या दोगुनी कर दी जाए। हालांकि शाम तक वहां लगभग तीन सौ जवानों को तैनात कर दिया गया। रात तक एनडीआरएफ की पांच टीमें भी वहां पहुंच चुकी थीं। इन टीमों ने बचाव ऑपरेशन को गति दे दी। इससे पहले वहां पर सेना की इंजीनियरिंग टॉस्क फोर्स को भेज दिया गया था। अधिकारियों का कहना है कि केंद्रीय मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय के बीच गजब का तालमेल देखने को मिला। गृह मंत्रालय के आग्रह पर दोपहर 12 बजे से पहले ही एयरफोर्स और आर्मी को अलर्ट कर दिया गया था। इतना ही नहीं, नेवी के गोताखोर भी उत्तराखंड जाने के लिए तैयार हो चुके थे। शाम को केंद्रीय गृह सचिव ने अलग से आईटीबीपी डीजी, एनडीएमए के सदस्य, एनडीआरएफ, सीडब्ल्यूसी डीजी, आईएमडी व डीआरडीओ के अधिकारियों के साथ बैठक की। रात को ऑपरेशन जारी रखने के लिए बिजली विभाग से बातचीत की गई, तो जवाब उत्साहजनक नहीं था। चूंकि ग्लेशियर की बाढ़ में सब कुछ तबाह हो गया था, इसलिए रात के ऑपरेशन को लेकर दोबारा से रणनीति तय की गई। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने आईटीबीपी और एनडीआरएफ से कहा कि वे अपने संसाधनों से ऑपरेशन को जारी रखें। यह इसलिए किया गया कि कोई व्यक्ति कहीं दबा हुआ होगा और उसकी सांसें चल रही होंगी तो उसे बचाया जा सकता है। आईटीबीपी और एसएसबी के जवानों ने रात में कई लोगों के शव बरामद किए। तपोवन की सुरंग में करीब 20 लोगों के फंसे होने की बात सामने आई। करीब दो सौ लोगों का कुछ अता-पता नहीं था। खास बात ये रही कि ऑपरेशन को बंद नहीं किया गया। रात में भी जवानों ने तलाशी अभियान जारी रखा। रविवार रात को ही सुरंग तक जेसीबी मशीनें पहुंचा दी गई थीं। भारतीय सेना के चार कॉलम, दो मेडिकल टीम और एक इंजीनियरिंग टास्क फोर्स रैणी गांव में उतर चुकी थी। मौके से आईटीबीपी और एनडीआरएफ से हर तीस मिनट बाद अपडेट लिया गया। नतीजा, गृह मंत्रालय को इसी अपडेट के आधार पर दूसरे मंत्रालयों या तकनीकी टीमों को घटना स्थल पर भेजने में सुविधा हो गई। विस्तार उत्तराखंड त्रासदी के दौरान केंद्रीय गृह मंत्रालय, एक ग्राउंड कमांडर की भांति मैदान में उतरा है। नतीजा, राहत एवं बचाव ऑपरेशन में अचूक कार्रवाई हो सकी। प्रधानमंत्री और केंद्रीय गृह मंत्री रविवार दिन में दिल्ली से बाहर थे, लेकिन इस ऑपरेशन को जिस तरह से अंजाम दिया गया, उससे किसी भी तरह की चूक होने की गुंजाइश ही खत्म हो गई। विज्ञापन सुबह दस बजे के बाद जब उत्तराखंड त्रासदी की पहली सूचना आई, तो केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सबसे पहले पीएमओ को जानकारी दी। केंद्र सरकार में बड़े ओहदे पर तैनात एक अधिकारी के मुताबिक, पीएमओ और एनएसए तक सूचना पहुंचाने के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय हरकत में आ गया। इसके बाद मंत्रालय ने 'ग्राउंड कमांडर' बनकर राहत एवं बचाव ऑपरेशन की शुरुआत की। गृह मंत्रालय में 11 बजे तक पहली बैठक संपन्न हो चुकी थी। एयरफोर्स, आईटीबीपी, सेना, एनडीआरएफ और उत्तराखंड एसडीआरएफ के पास एक साथ अलर्ट मैसेज भेजा गया। आईटीबीपी महानिदेशक एसएस देसवाल के कंधों पर इस ऑपरेशन की बड़ी जिम्मेदारी थी, इसलिए वे केंद्रीय गृह मंत्रालय के लगातार संपर्क में रहे। दोपहर एक बजे तक यह मालूम हो चुका था कि तपोवन की टनल में लोग फंसे हैं तो केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पीएमओ और एनएसए से बातचीत कर ऑपरेशन आगे बढ़ा दिया। अधिकारी के मुताबिक, ऐसी आपदा में पहले साठ मिनट बहुत अहम होते हैं। उसमें आपको यह तय करना होता है कि मौके पर सबसे पहले कौन पहुंच सकता है। उसके बाद स्थानीय टीम से घटना स्थल की सूचनाएं और जानकारी लेकर ये अंदाजा लगाया जाता है कि कुल कितने आदमी त्रासदी की चपेट में आए हैं, कितने लापता हैं और सुरंग में फंसे लोगों की संख्या कहां तक पहुंच सकती है। इसके अनुसार ही सुरक्षा बलों को जिम्मेदारी सौंपी जाती है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह दिल्ली से बाहर थे, तो उन्होंने फोन पर ही अधिकारियों से संपर्क किया। गृह मंत्रालय में राज्य मंत्री नित्यानंद राय को एनडीआरएफ के कंट्रोल रूम में बैठा दिया गया। केंद्रीय गृह मंत्री ने आईटीबीपी डीजी से जानकारी लेने के बाद एनडीआरएफ अधिकारियों से बातचीत की। उन्हें बताया गया कि करीब 125 जवान 11 बजे तक धौली नदी पर पहुंच चुके थे। वहां से उन्होंने केंद्रीय गृह मंत्रालय को कई अहम जानकारियां दीं। एनडीआरएफ की टीम को यह पता चल गया कि उन्हें अपने साथ किस तरह के उपकरण ले जाने हैं। गृह मंत्रालय के अफसरों ने एनडीआरएफ को ऑक्सीजन के सिलेंडर एवं प्राथमिकता चिकित्सा उपकरण साथ ले जाने की सलाह दी। केंद्रीय गृह मंत्रालय में दो बजे तक यह तय हो गया था कि राहत एवं बचाव ऑपरेशन लंबा चलेगा। पीएमओ को यह सूचना दे दी गई। इसके बाद तय हुआ कि नेशनल क्राइसिस मैनेजमेंट कमेटी की बैठक बुलाई जाए। उत्तराखंड सरकार के मुख्य सचिव ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए कैबिनेट सचिव राजीव गौबा को घटना की जानकारी दी। खास बात है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधिकारियों को मौके से तमाम इनपुट मिल रहे थे। जब मुख्य सचिव बोल रहे थे तो उसी वक्त गृह मंत्रालय के पास एक खास रिपोर्ट आई थी। इस रिपोर्ट के बाद यह तय किया गया कि डीआरडीओ की टीम को मौके पर भेजा जाए। इस टीम के पास बर्फीले तूफान से जुड़े ऑपरेशन के विशेष उपकरण हैं। साथ ही एनटीपीसी के एमडी को भी मौके पर भेज दिया गया। दोपहर बाद जब आईटीबीपी ने 12 लोगों को सुरंग से बाहर निकालने की सूचना दी, तो मंत्रालय में राहत महसूस की गई। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने यह बात अच्छे तरीके से महसूस कर ली थी कि तपोवन और दूसरे इलाकों में आईटीबीपी बेहतर काम कर रही है। यह निर्णय लिया गया कि वहां पर आईटीबीपी जवानों की संख्या द