Dainik Bhaskar Exclusive Investigative Story On Delhi Riots And Bengal Violence | Call For Justice That Submitted Reports On Delhi Riots And Bengal Violence Has No Proper Address Or Website | News And Updates भास्कर एक्सक्लूसिव:फेक है कॉल फॉर जस्टिस; दिल्ली दंगे और अब बंगाल हिंसा पर गृह मंत्रालय को फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट सौंपी गई, लेकिन न पता सही और न वेबसाइट नई दिल्ली6 घंटे पहलेलेखक: संध्या द्विवेदी कॉपी लिंक दो महीने पहले बंगाल चुनाव के बाद हुई हिंसा और पिछले साल दिल्ली दंगे के बाद एक संस्था ने खूब नाम कमाया। उसका नाम है ‘कॉल फॉर जस्टिस’। इस संस्था ने दोनों ही हिंसा के बाद अपनी टीम मौके पर भेजी। जिसने जांच-पड़ताल के बाद अपनी रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंपी। यह पड़ताल 30 जून से शुरू हुई और इस बीच फैक्ट फाइंडिंग टीम से बात हुई। 16 जुलाई को एक बार फिर फैक्ट फाइंडिंग टीम के चेयरपर्सन प्रमोद कोहली से संपर्क किया गया। उन्हें इन्वेस्टिगेशन में सामने आई जानकारी बताई गई। उनसे पूछा गया कि क्या वे पहले से इस संस्था को जानते थे? संस्था अपने फर्जी एड्रेस के साथ चल रही है, क्या इस बारे में जानते थे? उन्होंने इसका जवाब देने के लिए 2 दिन का वक्त मांगा, लेकिन जवाब नहीं मिला। दिल्ली दंगे की रिपोर्ट 29 मई 2020 को गृहमंत्री अमित शाह को और बंगाल हिंसा की रिपोर्ट पिछले ही महीने, यानी 29 जून को गृह राज्य मंत्री जी. कृष्णा रेड्डी को सौंपी गई। हालिया रिपोर्ट तैयार करने वालों में सरकार में ऊंचे-ऊंचे ओहदों से रिटायर हुए लोग शामिल थे। उन्होंने 15 से 20 जून के बीच गहरी पड़ताल के बाद यह रिपोर्ट तैयार की थी। ‘कॉल फॉर जस्टिस’ की इस 63 पन्ने की रिपोर्ट के 37वें पेज पर संस्था के बारे में बताया गया है। संस्था के नाम पर एक वेबसाइट भी है, जिसे देखकर नहीं लगता कि इस संस्था ने दिल्ली दंगे और बंगाल हिंसा जैसे मुद्दों पर काम किया है। वेबसाइट के पहले पन्ने में हेल्दी सेपरेशन के लिए टिप्स (Tips for Healthy Separation) और अगर आप किसी सड़क दुर्घटना का शिकार हो जाएं तो कौन से कानून लगेंगे, ऐसी रिपोर्ट सामने आती हैं। सामान्य वेबसाइट में भी संस्था की डिटेल होती है, लेकिन इस वेबसाइट में संस्था यानी ‘कॉल फॉर जस्टिस’ के बारे में न कुछ दिया गया है और न ही पिछली पड़ताल यानी दिल्ली दंगे की जांच रिपोर्ट वेबसाइट में कहीं अपलोड की गई है। कॉन्टैक्ट के नाम पर सिर्फ एक ईमेल एड्रेस है। इससे थोड़ा संदेह हुआ, जिसे दूर करने के लिए हमने वेबसाइट पर दिए ईमेल पर जानकारी के बाबत एक मेल भेजा, लेकिन 6 दिन तक इंतजार के बावजूद कोई जवाब नहीं मिला। जिस संस्था की रिपोर्ट सीधे देश के गृह मंत्री और गृह राज्य मंत्री को सौंपी जा रही हो, उसके बारे में लोगों को पता होना जरूरी है। इसलिए हमने 'कॉल फॉर जस्टिस- न्याय की पुकार' संस्था की पड़ताल शुरू की। उसी पड़ताल की कहानी है ये, आप भी पढ़िए... वेबसाइट न सही, दफ्तर तो होगा हमने इंटरनेट खंगालने से ही अपनी पड़ताल शुरू की। पर क्या कोई संस्था बिना वेबसाइट के नहीं हो सकती? बिल्कुल हो सकती है। तो अगली खोज दफ्तर के पते के लिए शुरू हुई। ‘कॉल फॉर जस्टिस’ ट्रस्ट का फोन नंबर पाने के लिए बंगाल हिंसा की फैक्ट फाइंडिंग टीम को तलाशना शुरू किया। रिपोर्ट में टीम के एक मेंबर एम. मदन गोपाल का मोबाइल नंबर था। दरअसल, इस रिपोर्ट के सबसे आखिर में annexure में बंगाल के एक अधिकारी से चैट करते हुए एम. मदन गोपाल ने अपना नंबर उनसे साझा किया था। लिहाजा वह फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट में भी दर्ज हो गया। यहां से यह नंबर मिला। इस बीच कमेटी के एक और मेंबर का फोन नंबर भी मिला, जो रिटायर्ड IPS अधिकारी और झारखंड की पूर्व DGP निर्मल कौर का था। निर्मल कौर से लंबी बातचीत हुई। यह पूछने पर कि आपको बंगाल में फैक्ट फाइंडिंग के लिए किस संस्था ने बुलाया? उन्होंने कहा कि 'कॉल फॉर जस्टिस नाम की एक संस्था का मेल आया था। मुझे लगा यह नेक काम है। आखिर मैं पूर्व DGP रही हूं, सो मैंने पड़ताल के लिए हामी भर दी।’ मैंने पूछा कि क्या इस संस्था के किसी ट्रस्टी का नंबर दे सकती हैं? तो वो बोलीं- ‘आपको जो पूछना है, मुझसे पूछ सकती हैं। फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट हमने ही तैयार की है।’ मैंने फिर पूछा कि क्या संस्था के किसी अधिकारी का नंबर दे सकती हैं? उन्होंने कहा- ‘हम ऐसे किसी का नंबर आपसे कैसे शेयर कर सकते हैं?’ हालांकि बाद में उन्होंने फैक्ट फाइंडिंग टीम के चेयरमैन पूर्व चीफ जस्टिस सिक्किम, जस्टिस प्रमोद कोहली का मोबाइल नंबर दिया। हमने जस्टिस कोहली को फोन किया। उनसे हमने रिपोर्ट में दर्ज संस्था के मुखिया जस्टिस वीके गुप्ता और दूसरे ट्रस्टी पूर्व IFS विद्यासागर वर्मा और पूर्व डायरेक्टर एम्स एवं फोरेंसिक एक्सपर्ट टीडी डोगरा में से किसी का नंबर देने की गुजारिश की। जस्टिस कोहली ने रिपोर्ट में दर्ज किसी ट्रस्टी का नंबर न देकर, एक अन्य व्यक्ति का नंबर दिया और बताया कि वे चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं और सब बता देंगे। इनका नाम है चंद्र वाधवा। हालांकि जस्टिस कोहली ने ये नहीं बताया कि वाधवा ‘कॉल फॉर जस्टिस’ के ट्रस्टी भी हैं। हमने चंद्र वाधवा को फोन लगाया, साथ ही रिटायर्ड IAS ऑफिसर एम.मदन गोपाल से भी फोन पर बात की। गोपाल ने आगे किसी का नंबर देने से मना कर दिया। बाकी जवाब भी पिछले दो टीम मेंबर से मिलता-जुलता ही दिया। कहा- ‘आपको ट्रस्टी का नंबर क्यों चाहिए? रिपोर्ट हमने तैयार की है। पूछिए जो पूछना है।’ हमने संस्था के दफ्तर के बारे में पूछा तो फिर वही जवाब कि ‘यह रिपोर्ट गंभीर छानबीन के बाद बनाई है। आपकी रुचि रिपोर्ट में होनी चाहिए। मुद्दा यह है कि बंगाल चुनाव नतीजों के बाद हिंसा में किसका हाथ था? हिंसा पीड़ितों के साथ क्या-क्या हुआ?’ गोपाल ने भी ‘कॉल फॉर जस्टिस’ के ट्रस्टी और दफ्तर का पता देने से मना कर दिया। दिल्ली के बाराखंबा रोड पर चंद्र वाधवा का दफ्तर। फोटो: संध्या अब जस्टिस प्रमोद कोहली का दिया नंबर हमारी आखिरी उम्मीद थी संस्था के असल ठिकाने तक पहुंचने की। हमने चंद्र वाधवा को फोन किया। वाधवा का सवाल था कि वीके गुप्ता या अन्य लोगों के नंबर क्यों चाहिए? मैं भी कॉल फॉर जस्टिस का ट्रस्टी हूं, पूछिए क्या पूछना है। उनका संस्था के ट्रस्टी होने वाली बात मेरे लिए नई थी। खैर हमने वाधवा से 'कॉल फॉर जस्टिस' के दफ्तर का पता और वेबसाइट का लिंक मांगा। यह भी पूछा कि संस्था कब बनी? जो वेबसाइट हमने तलाश की थी, उसका भी जिक्र किया। यह भी कहा कि 'जस्टिस फॉर कॉल' नाम से जो वेबसाइट मिली है, उसमें संस्था के बारे में कोई जानकारी नहीं। आपकी रिपोर्ट में दर्ज है कि आपने दिल्ली दंगों और केरल दंगों की पड़ताल की है, लेकिन इन रिपोर्ट्स का वेबसाइट में कोई जिक्र नहीं। उल्टे इसमें कुछ ऐसे आर्टिकल हैं जो किसी फीचर वेबसाइट के लिए लगते हैं। इन सब बातों के जवाब में वाधवा ने इस वेबसाइट के लिंक को न नकारा और न स्वीकारा। उन्होंने बस इतना कहा कि उनके समेत 10 से 11 लोग संस्था के ट्रस्टी हैं और यह संस्था 2014-15 में बनी थी। तारीख याद नहीं। हमने कहा- आप कल तक जानकारी जुटा लें, मैं फिर फोन करूंगी। उन्होंने कहा- आप सारे सवाल मैसेज कर दें। उनके कहे के मुताबिक हमने 30 जून को सारे सवाल मैसेज कर दिए। पर जवाब देने की जगह उन्होंने अब फोन उठाना ही बंद कर दिया। हमने अगले तीन दिन तक कई बार फोन और मैसेज किए। वाधवा से बात करने के साथ ही हम उनकी गूगल में मौजूदगी भी खोज रहे थे। हमने अब उनकी फाइनेंस कंपनी Chandr awadhava.co का पता तलाशा और बिना अप्वॉइंटमेंट दफ्तर पहुंच गए। वाधवा ने आखिर क्यों बोला झूठ? दिल्ली के बाराखंबा स्थित विजया बिल्डिंग के 13वें फ्लोर में मौजूद दफ्तर पर पहुंचकर मैंने रिसेप्शन में अपना परिचय देते हुए वाधवा को बताने को कहा। वाधवा ने दफ्तर के लैंडलाइन फोन पर मुझे बुलाया और कहा, ‘मैं दो दिन से बीमार था, इसलिए आपके सवालों का जवाब नहीं भेज पाया।’ उनसे मिलने का वक्त मांगा तो उन्होंने मीटिंग का हवाला देकर मिलने से मना कर दिया। बिल्डिंग के ग्राउंड फ्लोर पर रजिस्टर मेंटेन करने वाले गार्ड से पूछा तो उसने बताया कि वाधवा साहब तो रोज दफ्तर आ रहे हैं। कल भी आए थे, लेकिन शाम चार से साढ़े चार के बीच निकल गए थे। तो फिर यह झूठ क्यों? मैंने उन्हें फिर फोन किया। फोन उठा, मैंने कहा- सर मुझे पांच मिनट का वक्त चाहिए। मैं कनॉट प्लेस में शाम 6.30 बजे तक हूं। तब शाम के चार बज रहे थे। इस पर उन्होंने कहा, ‘मैं आपके सवालों का जवाब देने के काम में किसी को लगाता हूं, आपको सारी जानकारी मैसेज की जाएगी।’ मैंने फिर कहा कि सर एक संस्था जो 2014 से चल रही है, आखिर उसका पता बताने और वेबसाइट लिंक की पुष्टि करने में कितना वक्त लगेगा? पर उन्होंने इस पर कोई जवाब नहीं दिया, लेकिन वे बस यही कहते रहे कि आप रिपोर्ट देखिए, संस्था के बारे में क्यों पता करना है आपको? ट्रस्टी से क्यों बात करनी है? हमने पूरी रिपोर्ट भी पढ़ी। वह कितनी पक्की है, और फैक्ट फाइंडिंग टीम ने किस तरह फैक्ट जांचे और इकट्ठे किए, हम इसके बारे में भी इसी रिपोर्ट में बताएंगे, लेकिन पहले 'कॉल फॉर जस्टिस' संस्था के दफ्तर और सही वेबसाइट को तो खोज लें? पते के साथ फिर शुरू हुई दफ्तर की खोज आखिरकार शनिवार, 3 जुलाई को वाधवा का मैसेज आया, उसमें दफ्तर का पता- 11/68, Shanti Chambers, Pusa Road, ND था और वेबसाइट का लिंक www.calljustice.in था। संस्था बनने का साल 2014 लिखा था। मैंने वेबसाइट क्लिक की। पर वह नहीं खुली। फोन किया तो वाधवा ने कहा- साइट अंडर मेंटेनेंस है। फिर सोचा दफ्तर का पत