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क्षमा ही देती है बड़प्पन व्यक्ति को


योगेंद्र नाथ शर्मा ‘अरुण’
अक्सर देखा जाता है कि समाज में यूं तो हर प्रकार के व्यक्ति हमें मिल जाते हैं, लेकिन उनमें ऐसे व्यक्ति विरले ही होते हैं, जिन्हें हम बड़प्पन से युक्त कह सकें। हिन्दी साहित्य में नीति के दोहे रचने वाले कविवर रहीम को सदा आदमी के दिल में बसने वाला रचनाकार माना जाता है। कविवर रहीम के दोहों में जीवन के ऐसे गूढ़ तत्व हमें सहज ही मिल जाते हैं, जिन्हें हम बड़ी-बड़ी पोथियां पढ़ कर भी शायद न पा सकें।
कविवर अब्दुर्रहमान खानखाना को ही रहीम कहा गया है और आज भी गांव-गांव में आपको रहीम के रचे हुए दोहे सुनने को मिल जाएंगे। उनका एक प्रसिद्ध दोहा ऐसा है, जिसमें पुराण प्रसिद्ध लोककथा को गूंथते हुए रहीम जी ने क्षमा का महत्व बताया है :-
छमा बड़ेन को चाहिये, छोटन को उतपात।
का रहीम हरि का घट्यौ, जो भृगु मारी लात।
लोकजीवन में यह कथा प्रसिद्ध है कि क्रोधी ऋषि भृगु ने विष्णु जी की छाती पर पांव से प्रहार किया था, किन्तु विष्णु जी ने इस लात मारने की मर्यादाहीनता को भी क्षमा कर दिया था।
हाल ही में, विश्व प्रसिद्ध नेता नेल्सन मण्डेला के जीवन का अत्यंत मार्मिक प्रसंग पढ़ने को मिला। वह प्रसंग यूं है :-
दक्षिण अफ्रीका का राष्ट्रपति बनने के बाद एक बार नेल्सन मंडेला अपने सुरक्षा कर्मियों के साथ एक होटल में खाना खाने गए। सबने अपनी पसंद का खाना आर्डर किया और खाना आने का इंतजार करने लगे। उसी समय मंडेला की सीट के सामने वाली सीट पर एक व्यक्ति बैठा हुआ अपने खाने का इंतजार कर रहा था। तभी मंडेला ने अपने सुरक्षाकर्मी से कहा कि उस व्यक्ति को भी अपनी टेबल पर बुला लो। ऐसा ही हुआ। जब सभी खाना खाने लगे तो वह आदमी भी अपना खाना खाने लगा। लेकिन उसके हाथ खाना खाते हुए कांप रहे थे। अपना खाना खत्म करके वह आदमी सिर झुका कर होटल से बाहर निकल गया। उस आदमी के जाने के बाद मंडेला के सुरक्षा अधिकारी ने मंडेला से कहा कि वो व्यक्ति शायद बहुत बीमार था, खाते वक्त उसके हाथ लगातार कांप रहे थे, बल्कि वह तो ख़ुद भी बहुत ज्यादा कांप रहा था।
तब मंडेला ने कहा, नहीं, वह बीमार नहीं था, बल्कि वह उस जेल का जेलर था, जिसमें मुझे कैद रखा गया था। जब कभी मुझे यातनाएं दी जाती थीं और मैं पीड़ा से कराहते हुए जेलर से पानी मांगता था, तो यह मेरे ऊपर पेशाब कर दिया करता था।
बड़े ही शान्त भाव से मंडेला ने कहा कि मैं अब राष्ट्रपति बन गया हूं। उसने समझा होगा कि मैं भी उसके साथ शायद वैसा ही घृणित व्यवहार करूंगा, इसीलिए वह डर से कांप रहा था। परंतु मेरा चरित्र ऐसा नहीं है। मुझे लगता है कि बदले की भावना से कोई काम करना मनुष्य को विनाश की ओर ले जाता है। वहीं क्षमा, धैर्य और सहिष्णुता की मानसिकता हमें विकास की ओर ले जाती है और क्षमा व्यक्ति को बड़प्पन देती है।
स्वर्गीय नेल्सन मंडेला के जीवन के इस प्रसंग ने एक बार फिर यह अहसास कराया है कि हमारा हृदय जब व्यापक चिंतन वाला हो जाता है तो फिर हम अपने साथ नीचता करने वाले को भी क्षमा कर देते हैं। भगवान बुद्ध के जीवन का प्रसंग भी तो ऐसा ही है, जब उन्हें सबके सामने गालियां देने वाले पर भी उन्होंने क्रोध नहीं किया, बल्कि शिष्यों से कहा कि यह मुझे गालियां दे रहा है, किन्तु मैंने तो इसकी दी हुई गालियां ली ही नहीं, तो वे मेरी कहां हुई?
जीवन का सच तो यही है कि मल को हम कभी भी मल से नहीं धो सकते, उसे तो जल से हो धोया जा सकता है। संत कबीर कहते हैं :-
जो तोकूं कांटा बोए, ताहि बोउ तू फूल।
तोकूं फूल के फूल हैं, वाको है तिरसूल।
अर्थात‍् अगर कोई कांटे बोता है तो कांटे ही उसको मिलेंगे, इसलिए तुम कांटा बोने वाले के लिए भी फूल ही बोओ, जो सदा फूल ही रहेंगे।
जीवन का बड़ा ही सीधा-सा सिद्धांत है कि जो बोओगे, वही काटोगे भी। तब भला क्यों, असहिष्णुता, अधैर्य और क्रोध के कांटों को अपने जीवन की बगिया में बोया जाए? आइए, इतना तो संकल्प कर ही लें हम सब कि अपने जीवन को कांटों की फसल नहीं बनने देंगे।
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14 घंटे पहले
14 घंटे पहले
14 घंटे पहले
दूरदृष्टा, जनचेतना के अग्रदूत, वैचारिक स्वतंत्रता के पुरोधा एवं समाजसेवी सरदार दयालसिंह मजीठिया ने 2 फरवरी, 1881 को लाहौर (अब पाकिस्तान) से ‘द ट्रिब्यून’ का प्रकाशन शुरू किया। विभाजन के बाद लाहौर से शिमला व अंबाला होते हुए यह समाचार पत्र अब चंडीगढ़ से प्रकाशित हो रहा है।
‘द ट्रिब्यून’ के सहयोगी प्रकाशनों के रूप में 15 अगस्त, 1978 को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर दैनिक ट्रिब्यून व पंजाबी ट्रिब्यून की शुरुआत हुई। द ट्रिब्यून प्रकाशन समूह का संचालन एक ट्रस्ट द्वारा किया जाता है।
हमें दूरदर्शी ट्रस्टियों डॉ. तुलसीदास (प्रेसीडेंट), न्यायमूर्ति डी. के. महाजन, लेफ्टिनेंट जनरल पी. एस. ज्ञानी, एच. आर. भाटिया, डॉ. एम. एस. रंधावा तथा तत्कालीन प्रधान संपादक प्रेम भाटिया का भावपूर्ण स्मरण करना जरूरी लगता है, जिनके प्रयासों से दैनिक ट्रिब्यून अस्तित्व में आया।
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