सोनीपत, 23 जुलाई संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा पूर्व घोषित कार्यक्रम के मुताबिक शुक्रवार को कुंडली बॉर्डर से जंतर-मंतर पहुंचे 200 किसानों ने किसान संसद का आयोजन किया। किसान संसद में शामिल होने वाले किसानों के पहचान पत्रों के रंग रोजाना बदले जा रहे हैं। शुक्रवार को किसान संसद में विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की। कार्यवाही चलाने के लिए बकायदा हरदेव सिंह हरसी, जगतार सिंह बाजवा व वी. वेंकटरमैया, जंगवीर सिंह चौहान, मुकेश चंद्रा और हरपाल सिंह बिलेरी ने स्पीकर व डिप्टी स्पीकर की जिम्मेदार संभाली। मोर्चा के कानूनी सलाहकार प्रेम सिंह भंगु ने बताया कि 26 जनवरी की घटना में किसानों का कोई रोल नहीं था। उन्हें आशंका है कि पिछली बार की तरह कुछ उपद्रवी लोग आंदोलन में घुस सकते हैं। ऐसे में किसानों को दिए जाने वाले पहचान पत्रों के रंग रोजाना बदलेंगे, ताकि पहचान पत्र का गलत इस्तेमाल न हो। ‘कृषि मंत्री का इस्तीफा’ किसान संसद में दो दिन में करीब 97 किसानों को बोलने का मौका दिया गया। हर किसान के पास तय समय था, जिसमें उसे कृषि कानूनों की खामियों व अन्य मुद्दे पर बोलना था। किसानों ने अपने भाषणों के दौरान सरकार के सामने कृषि कानूनों की कमियां बताते हुए इन्हें रद्द करने की मांग की। शुक्रवार की किसान संसद में दिखाया गया कि जबाव देने में कृषि मंत्री बेबस नजर आए और अंतत उन्होंने अपने ‘इस्तीफे की घोषणा’ कर दी। पंजाब कांग्रेस के सांसद कर रहे आनाकानी किसान नेताओं ने कहा कि हर पार्टी व सांसद के व्यवहार पर उनकी नजर लगी हुई है। केरल के 20 सांसद किसान संसद को समर्थन देने के लिए पहुंच चुके हैं, लेकिन पंजाब कांग्रेस के सांसदों का अभी भी ढुलमुल रवैया है। वे कभी वाकआउट कर रहे हैं और कभी आनाकानी कर रहे हैं। खबर शेयर करें 4 घंटे पहले दूरदृष्टा, जनचेतना के अग्रदूत, वैचारिक स्वतंत्रता के पुरोधा एवं समाजसेवी सरदार दयालसिंह मजीठिया ने 2 फरवरी, 1881 को लाहौर (अब पाकिस्तान) से ‘द ट्रिब्यून’ का प्रकाशन शुरू किया। विभाजन के बाद लाहौर से शिमला व अंबाला होते हुए यह समाचार पत्र अब चंडीगढ़ से प्रकाशित हो रहा है। ‘द ट्रिब्यून’ के सहयोगी प्रकाशनों के रूप में 15 अगस्त, 1978 को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर दैनिक ट्रिब्यून व पंजाबी ट्रिब्यून की शुरुआत हुई। द ट्रिब्यून प्रकाशन समूह का संचालन एक ट्रस्ट द्वारा किया जाता है। हमें दूरदर्शी ट्रस्टियों डॉ. तुलसीदास (प्रेसीडेंट), न्यायमूर्ति डी. के. महाजन, लेफ्टिनेंट जनरल पी. एस. ज्ञानी, एच. आर. भाटिया, डॉ. एम. एस. रंधावा तथा तत्कालीन प्रधान संपादक प्रेम भाटिया का भावपूर्ण स्मरण करना जरूरी लगता है, जिनके प्रयासों से दैनिक ट्रिब्यून अस्तित्व में आया। खबरों के लिए सब्सक्राइब करें