सोनिया और &#

सोनिया और राहुल गांधी की कांग्रेस में क्या प्रशांत किशोर की कोई जगह है?


सोनिया और राहुल गांधी की कांग्रेस में क्या प्रशांत किशोर की कोई जगह है?
BBC Hindi|
पुनः संशोधित गुरुवार, 15 जुलाई 2021 (07:55 IST)
सरोज सिंह, बीबीसी संवाददाता
 
प्रशांत किशोर के साथ राहुल, सोनिया और प्रियंका गांधी की एक साथ हुई मुलाक़ात काफ़ी सुर्ख़ियाँ बटोर रही है। समाचार पत्रों से लेकर तमाम न्यूज़ चैनल में सूत्र बस ये बता रहे हैं कि 'कुछ बड़ा' होने वाला है। ये 'बड़ा' क्या है? इसके बारे खुल कर कोई कुछ नहीं बता रहा है।
 
चारों की मुलाक़ात की आधिकारिक पुष्टि ना तो प्रशांत किशोर की तरफ़ से हुई है और ना ही गांधी परिवार की तरफ़ से हुई है। हालाँकि एक सच ये भी है कि चारों की मुलाक़ात ऐसे वक़्त में हो रही है, जब कांग्रेस आलाकमान चौतरफ़ा संकट से घिरी है।
 
इसलिए कहीं लोग इस मुलाक़ात को पंजाब कांग्रेस में चल रही कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू के खींचतान से जोड़ कर देख रहे हैं, तो कहीं राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच चल रही रस्साकशी से इसे जोड़ा जा रहा है। वैसे कांग्रेस शासित राज्य छत्तीसगढ़ में भी टीएस सिंह देव और भूपेश बघेल के बीच भी सब कुछ ठीक नहीं है।
 
कांग्रेस के 'G-23' ने आलाकमान के ख़िलाफ़ पिछले साल जो मोर्चा खोला था, उसकी भी सुनवाई अभी तक पूरी नहीं हुई है। इसलिए कुछ राजनीतिक विश्लेषक इस मुलाक़ात के बाद प्रशांत किशोर को कांग्रेस के 'संकटमोचक' की भूमिका के तौर पर भी देख रहे हैं।
 
प्रशांत किशोर से मुलाक़ात के मायने
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक विनोद शर्मा कहते हैं, "प्रशांत किशोर, कैप्टन अमरिंदर सिंह के फ़िलहाल राजनीतिक सलाहकार हैं। हाल के दिनों में पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी को अच्छी जीत दिलाई है। कुछ दिन पहले शरद पवार से भी उनकी मुलाक़ात हुई थी। जिसके बाद विपक्ष के नेताओं से शरद पवार ने भी मुलाक़ात भी की थी।"
 
"ऐसे में प्रतीत होता है कि प्रशांत किशोर वो कड़ी हैं, जो बिखरे हुए विपक्ष को एक साथ जोड़ने की कोशिश में लगे हैं। जब बिहार में विधानसभा चुनाव में लालू और नीतीश साथ में लड़े थे, उस दौरान भी उनकी भूमिका लालू और नीतीश के बीच एक कड़ी की ही थी। बड़े ही सुलझे हुए तरीक़े से दोनों का इस्तेमाल उन्होंने प्रचार के दौरान किया था।"
 
इन सब वजहों से विनोद शर्मा कहते हैं कि कांग्रेस को आज की तारीख़ में एक अच्छे को-ऑर्डिनेटर ( संयोजक) की ज़रूरत है, जो काम प्रशांत किशोर निभा सकते हैं। वो कहते हैं, प्रशांत किशोर केवल कांग्रेस को ही नहीं, पूरे विपक्ष को एकजुट कर सकते हैं।
 
पश्चिम बंगाल चुनाव में ममता बनर्जी की जीत के बाद प्रशांत किशोर ने राजनीतिक रणनीतिकार की भूमिका से ख़ुद को अलग करने की घोषणा भी की थी। विनोद शर्मा के विश्लेषण को उस परिप्रेक्ष्य में भी देखा जा सकता है।
 
प्रशांत किशोर से जुड़ा एक और तथ्य ये भी है कि उन्होंने वर्तमान में बैठे विपक्ष और सत्ता पक्ष के कई नेता जैसे नरेंद्र मोदी अमित शाह की जोड़ी के साथ साथ जगनमोहन रेड्डी, राहुल गांधी, लालू यादव, शरद पवार, अखिलेश यादव, ममता बनर्जी से लेकर नीतीश कुमार तक के साथ किसी ना किसी मौक़े पर काम किया है।
 
लेकिन इन विपक्ष के तमाम नेताओं को जोड़ कर संयोजक की भूमिका में वो कितना फ़िट बैठेंगे या वो निभाना चाहेंगे भी, इसके बारे में टिप्पणी करना जल्दबाज़ी है। वैसे कुछ जानकार इस रोल के लिए शरद पवार को ज़्यादा बेहतर विकल्प मानते हैं।
 
पुराने कांग्रेसियों की धाक अब भी क़ायम
प्रशांत किशोर प्रकरण से ही जुड़ा एक दूसरा पक्ष भी हैं। कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू के बीच की तकरार आज की नहीं है और ना ही सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच की तकरार नई है। जब ये पुराने नेता सोनिया गांधी और राहुल गांधी के वश में नहीं आ रहे, तो क्या किसी तीसरे पक्ष की बात सुनेंगे?
 
वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई कहते हैं, "राजनीति में कोई भी आदमी अपनी धाक तभी जमा पाता है, जब चुनाव उसने जीता हो या जिताता हो। फ़िलहाल राहुल हों या सोनिया गांधी, इनके नेतृत्व में कांग्रेसी दो लोकसभा चुनाव हार चुके हैं, बिहार, पश्चिम बंगाल, असम जैसे महत्वपूर्ण राज्यों में भी कांग्रेस का प्रदर्शन बहुत बुरा रहा।"
 
"राहुल तो अपनी अमेठी की सीट भी बचा नहीं पाए। राहुल गांधी अब तक सोच रहे थे कि केरल या असम जैसा कोई राज्य जिता पाएँ, तो थोड़ी ताक़त पार्टी के भीतर उन्हें मिलेगी लेकिन वो भी हो ना सका। इस वजह से जहाँ इनकी सरकार बनी, वहाँ के मुख्यमंत्री अपने आप को पार्टी नेतृत्व से बड़ा मान रहे हैं।"
 
रशीद इसके पीछे एक वजह सोनिया और राहुल गांधी की कार्यशैली को भी मानते हैं।
 
राहुल और सोनिया के काम करने की शैली में फ़र्क
माना जाता है कि राहुल गांधी को युवाओं पर भरोसा ज़्यादा रहता है और सोनिया पुराने कांग्रेसियों को साथ लेकर चलने में विश्वास रखतीं है।
 
लेकिन रशीद कहते हैं, "राहुल और सोनिया के काम करने की शैली में एक बुनियादी फ़र्क ये भी है कि कोई पार्टी छोड़ कर जाना चाहता है, तो राहुल उसे मनाते नहीं हैं। जो जाना चाहता है, उसे ख़ुशी से जाने देते हैं। लेकिन सोनिया गांधी हमेशा सबको जोड़ कर रखने की पूरी कोशिश करती हैं।"
 
"इसके अलावा राहुल लोकतांत्रिक तरीक़े में विश्वास रखते हैं, जबकि पार्टी लोकतांत्रिक तरीक़े से चल नहीं रही। पुराने नेता जोड़-तोड़ में माहिर हैं। जैसा मध्य प्रदेश में चुनाव के बाद देखा गया कि कमलनाथ और दिग्विजय सिंह एक हो गए। राजस्थान में अशोक गहलोत मुख्यमंत्री बनने में कामयाब हो गए। ऐसे में ना तो सोनिया गांधी उस स्थिति में हैं कि वो पुराने कांग्रेसियों से अपनी बात मनवा सके और ना ही राहुल ऐसी स्थिति में हैं।"
 
इसमें एक तथ्य ये भी है कि अब कुछ राज्यों में ही कांग्रेस की सरकार बची है। कांग्रेस नेतृत्व पार्टी चलाने के लिए, संसाधनों को लेकर इन राज्यों पर एक तरह से आश्रित है।
 
राहुल और सोनिया की जुगलबंदी को ठीक करने की एक कोशिश प्रियंका कर सकती थीं, लेकिन उनका काम करने का स्टाइल भी पार्टी को बहुत कुछ दिला नहीं पाया।
 
बड़ी उम्मीद के साथ पिछले विधानसभा चुनाव में उन्हें उत्तर प्रदेश की ज़िम्मेदारी दी गई थी। लेकिन नतीजा सब जानते हैं। पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू के बीच सुलह सफ़ाई की कोशिशों में वो भी लगी थी। लेकिन आज तक नतीजा नहीं निकल पाया है।
 
अधीर रंजन चौधरी का क्या होगा?
संसद के भीतर भी कांग्रेस पार्टी के पास नेताओं का अकाल है। लोकसभा में नेता विपक्ष की ज़िम्मेदारी से अधीर रंजन चौधरी को हटाए जाने की चर्चा पिछले कई दिनों से चल रही है। हालाँकि कांग्रेस पार्टी ने ये एलान तो नहीं किया है। लेकिन पार्टी के अंदर पश्चिम बंगाल चुनाव के नतीजों के बाद उन पर काफ़ी सवाल भी उठे हैं।
 
विनोद शर्मा कहते हैं कि फ़िलहाल अधीर रंजन चौधरी पर कुछ कहा नहीं गया है, लेकिन ऐसी चर्चा इसलिए है क्योंकि ममता बनर्जी के साथ अधीर रंजन चौधरी के रिश्ते बहुत अच्छे नहीं हैं।
 
साल 2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र, आने वाले दिनों में, विपक्ष का कोई भी फ़्रंट बनता है, तो उसमें कोई ऐसा व्यक्तित्व नहीं होना चाहिए जो ममता को उसमें शामिल होने में अड़चन बने।
 
वैसे अधीर रंजन चौधरी का उतना बड़ा क़द भी नहीं है। फिर भी अगर विपक्ष को संसद में एकजुट भी करना है, तो संसद में नेता विपक्ष की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। उस लिहाज से अधीर रंजन टीएमसी के साथ फ़िट नहीं बैठते। उनकी जगह कोई और आएगा तो को-ऑर्डिनेशन विपक्ष की बेहतर हो सकती है।
 
संगठनात्मक बदलाव आख़िर कब तक?
कांग्रेस पार्टी को उनके अहमद पटेल की कमी इस लिए भी खल रही है कि इतनी चर्चा के बाद फुल टाइम अध्यक्ष तक नहीं बन पाया है और वो पद महीनों से ख़ाली है।
 
वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई कहते हैं पहले जब भी कांग्रेस का बुरा दौर आया, उसमें विभाजन की स्थिति आई, बहुत सारे बड़े-बड़े नेता पार्टी से अलग हुए। उससे नए लोगों की जगह बनी और उन्हें पार्टी में अपनी पैठ बनाने की जगह मिली।
 
इस बार जब पार्टी बुरे दौर से गुज़र रही है, तो भी कांग्रेस छोड़ कर जाने वाले बहुत ज़्यादा लोग नहीं हैं। जो छोड़ कर गए भी, पार्टी में उनका क़द बहुत बड़ा भी नहीं था।
 
कांग्रेस छोड़ कर जाने में ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, प्रियंका चतुर्वेदी, अभिषेक मुखर्जी जैसे बड़े नाम रहे हैं। लेकिन इनके जाने से भी कांग्रेस पार्टी में उस तरह से नयापन नहीं आ पाया, जैसा कांग्रेस के पिछले विभाजन के वक़्त आया था। इस वजह से पार्टी में जिसकी पैठ जैसे बनी थी, वो अब भी उसी जगह जमे हुए हैं।
 
अब कांग्रेस को पूरी सर्जरी की ज़रूरत है, लेकिन सवाल ये है कि वो डॉक्टर कौन होगा जो ये सर्जरी करेगा?
" );
$(".aricleBodyMain").find( ".wrapper" ).wrap( "
" );
$(".aricleBodyMain").find( ".dsk_banner_code.dsk_unique_class" ).append( '' );
$(".aricleBodyMain").find( ".dsk_banner_code.dsk_unique_class" ).css("position","relative");
$(".aricleBodyMain").find( ".dsk_banner_code.dsk_unique_class" ).css("text-align","center");
$('#closeButton').click(function() {
$('.dsk_banner_code').hide();
if(isMobileDevice == true){
$('.aricleBodyMain .mobile_banner_block').hide();
}
$(this).hide();
// $('#closeButton').hide();
});
$(".articleBlock img").parentsUntil(".articleBlock ").removeAttr("style");
$(".articleBlock img").removeAttr("style").removeAttr("width").removeAttr("height");
$(".articleBlock img").each(function(){
reqImg = new Image();
reqImg.src = $(this).attr("src");

Related Keywords

Madhya Pradesh , India , Uttar Pradesh , Amethi , Chhattisgarh , Kerala , Bihar , Mamata Banerjee , Mohan Reddy , Lalu Smith , Ashok Gehlot , Jyotiraditya Madhavrao Scindia , Amit Shah , Priyanka Gandhi , Sonia Gandhi , Navjot Singh Sidhu , Sharad Pawar , Sachin Pilot , Kumar , Ahmed Patel , Saroj Singh , Priyanka Chaturvedi , Akhilesh Yadav , Rahul Gandhi , Rashid Kidwai , Singh , Rahul Gandhia Congress , Ashok Gehlota Center , Kumara Center , Congress Ii , Pacific Juvenilea Congress , Congress Ut State Chhattisgarh , Navjot Singh Sidhua Center , Pb Congress , Sachin Pilota Center , Pacific Juvenile , Capt Singh , West Bengal , Narendra Modi Amit Shah , Her Amethi , Furthermore Rahul , Aaj Tak , His Place , His Ahmed Patel , Full Time , மத்யா பிரதேஷ் , இந்தியா , உத்தர் பிரதேஷ் , அமேதி , சத்தீஸ்கர் , கேரள , பிஹார் , மாமத பானர்ஜி , மோகன் சிவப்பு , அசோக் கேலோத் , ஜயொதிரதித்ய மாதவ்ராவ் சிந்தியா , அமித் ஷா , பிரியாங்க காந்தி , சோனியா காந்தி , நவ்ஜோட் சிங் ஸிட்ஹு , ஷரத் பவார் , சச்சின் பைலட் , குமார் , சரோஜ் சிங் , பிரியாங்க சதுர்வேதி , ராகுல் காந்தி , ரஷித் கிடுவாய் , சிங் , கேப்டன் சிங் , மேற்கு பெங்கல் , நரேந்திர மோடி அமித் ஷா , ஆஜ் டக் , அவரது இடம் , முழு நேரம் ,

© 2025 Vimarsana