वैक्सीन पर दीवार Authored by एनबीटी डेस्क | नवभारत टाइम्स | Updated: 02 Jul 2021, 07:57:00 AM Subscribe जिन टीकों को भारत सरकार ने पूरी जांच-पड़ताल के बाद मान्यता दी हो, उन्हें अगर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अन्य सरकारें मान्यता देने लायक न मानें तो तकनीकी तौर पर उसकी जो भी वजहें गिनाई जाएं, उसका यह मतलब तो निकलता ही है कि भारतीय संस्थाओं की प्रामाणिकता संदिग्ध है।
अभी न तो कोरोना की दूसरी लहर पूरी तरह काबू में आई है और न संक्रमण से जुड़ी चिंताएं समाप्त हुई हैं, बावजूद इसके यूरोपीय देशों में ग्रीन पास को लेकर विवाद शुरू हो गया है। ईयू देशों ने कोरोना संक्रमण में सुधार के मद्देनजर आवाजाही की व्यवस्था को सामान्य बनाने के मकसद से यह कवायद शुरू की है। पहली नजर में यह तर्कसंगत भी लगती है। आखिर सामान्य आर्थिक गतिविधियों और यात्राओं पर कब तक पाबंदी लगाए रखी जा सकती है? कोरोना वायरस अगर लंबे समय तक बना रहने वाला है तो दुनिया को उसकी मौजूदगी में सुरक्षित ढंग से जीने का कोई न कोई रास्ता निकालना ही होगा। रास्ता निकालने की ऐसी ही एक कोशिश ईयू ने ग्रीन पास जारी करके की है। हालांकि अभी मामला ईयू देशों के बीच यात्राओं का ही है। इन यात्राओं के लिए भी ग्रीन पास अनिवार्य नहीं है, लेकिन यह यात्रा को आसान और सुविधाजनक जरूर बनाएगा। जिन लोगों के पास ग्रीन पास नहीं होगा उन्हें जगह-जगह आरटीपीसीआर टेस्ट की नेगेटिव रिपोर्ट दिखाने और एक निश्चित समय क्वारंटीन में बिताने जैसी असुविधाएं झेलनी पड़ सकती हैं। निकट भविष्य में यूरोप यात्रा की योजना बना रहे भारतीयों के लिए दिक्कत की बात यह रही कि भारत में लगाए जाने वाले तीनों टीकों- कोविशील्ड, कोवैक्सीन और स्पूतनिक वी को ईयू की सूची में शामिल नहीं किया गया। इससे जहां भारतीय यात्रियों की परेशानी बढ़ने वाली थी, वहीं भारतीय टीकों की प्रामाणिकता पर भी सवाल उठ रहा था। जिन टीकों को भारत सरकार ने पूरी जांच-पड़ताल के बाद मान्यता दी हो, उन्हें अगर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अन्य सरकारें मान्यता देने लायक न मानें तो तकनीकी तौर पर उसकी जो भी वजहें गिनाई जाएं, उसका यह मतलब तो निकलता ही है कि भारतीय संस्थाओं की प्रामाणिकता संदिग्ध है। स्वाभाविक ही, भारत सरकार ने तकनीकी सवालों में उलझने के बजाय इसे सीधे कूटनीतिक स्तर पर उठाया और ईयू और यूरोपीय देशों को साफ तौर पर जतला दिया कि भारत ऐसा दोहरा व्यवहार स्वीकार नहीं करने वाला। जो देश कोविन पोर्टल से सत्यापित प्रमाणपत्र को मान्यता नहीं देंगे, वह उनके प्रमाणपत्र को अमान्य करेगा। भारत के इस कड़े रुख का असर भी देखने को मिला जब आठ ईयू देशों ने कोविशील्ड को मान्यता देने की बात कही। इनमें एस्टोनिया ने तो भारत में मान्य सभी टीकों को मान्यता दी है। इनके अलावा स्विट्जरलैंड ने भी कोविशील्ड को मान्यता दी है। वह ईयू में शामिल नहीं है। हालांकि टीकों की प्रामाणिकता को लेकर आश्वस्त होने की जहां तक बात है तो हर देश और संबंधित एजेंसियों को उसका अधिकार है। वैसे भी फिलहाल ज्यादातर अंतरराष्ट्रीय उड़ानें बंद हैं। इसलिए इस मामले का कोई तात्कालिक महत्व नहीं है पर यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि आगे भी टीका निर्माता कंपनियों की आपसी प्रतिद्वंद्विता या किसी भी अन्य वजह से भारतीय टीकों और भारतीय यात्रियों के साथ किसी प्रकार का भेदभाव न किया जाए। Navbharat Times News App: देश-दुनिया की खबरें, आपके शहर का हाल, एजुकेशन और बिज़नेस अपडेट्स, फिल्म और खेल की दुनिया की हलचल, वायरल न्यूज़ और धर्म-कर्म... पाएँ हिंदी की ताज़ा खबरें डाउनलोड करें NBT ऐप लेटेस्ट न्यूज़ से अपडेट रहने के लिए NBT फेसबुक पेज लाइक करें कॉमेंट लिखें इन टॉपिक्स पर और पढ़ें