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अब 15 मिनट की दूरी पर होगी पुलिस, एक कॉल पर पहुंचेगी


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पंचकूला में सोमवार को 'हरियाणा-112' के तहत इमरजेंसी व्हीकल्स को झंडी दिखाकर रवाना करते मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर, गृह मंत्री अनिल विज और विधानसभा अध्यक्ष ज्ञानचंद गुप्ता।
चंडीगढ़/पंचकूला, 12 जुलाई (ट्रिन्यू)
हरियाणा पुलिस अब आपसे महज 15 मिनट की दूरी पर होगी। सड़क हादसे, चोरी, लूट, छेड़छाड़ सहित किसी भी आपात स्थिति में एक कॉल के 15 मिनट के भीतर पुलिस आप तक पहुंचेगी। सोमवार को सीएम मनोहर लाल खट्टर की ओर से आपातकालीन त्वरित सहायता प्रणाली ‘हरियाणा-112’ का उद्घाटन करने के बाद यह संभव होने का दावा सरकार ने किया है।
‘डायल-112’ एक टोल फ्री नंबर है, जिसके बाद अब पुलिस सेवा के लिए 100 नंबर पर फोन करने की जरूरत नहीं होगी। फायर ब्रिगेड, एम्बुलेंस, वुमन हेल्पलाइन सहित सभी प्रकार के नंबरों की बजाय अब एक ही नंबर पर तमाम सुविधाएं लोगों को उपलब्ध होंगी। सीएम ने इस सेवा को लांच किया। 15 मिनट में घटनास्थल पर पुलिस की पहुंच संभव बनाने को सभी पुलिस स्टेशनों को 2-2 इनोवा गाड़ी दी गई हैं।
डायल-112 के साथ सरकार ने 630 नयी इनोवा गाड़ियों को लिंक किया है। ये गाड़ियां जीपीएस सिस्टम से लैस हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि पंचकूला से मोबाइल डाटा टर्मिनलों से लैस 630 इमरजेंसी रिस्पांस वाहनों को झंडी दिखाकर रवाना करने के बाद 300 और ऐसे वाहन जोड़े जाएंगे, जिससे हर विधानसभा क्षेत्र में 10 वाहन तैनात करने का लक्ष्य हासिल किया जा सके। गृह मंत्री अनिल विज ने कहा कि यह सुविधा शुरू करने वाला हरियाणा पहला राज्य है। यह सेवा मंगलवार सुबह 8 बजे से शुरू हो जाएगी। इसके साथ ही, सीएम खट्टर और गृह मंत्री अनिल विज की उपस्थिति में हरियाणा पुलिस की ’अनटोल्ड स्टोरीज’ नामक कॉफी टेबल बुक का विमोचन किया गया।
विदेशी भाषा भी शामिल
कंट्रोल रूम में 4 भाषाओं हिंदी, अंग्रेजी, पंजाबी एवं हरियाणवी को शामिल किया है। विज का कहना है कि कई बार विदेशी लोगों को भी इमरजेंसी में पुलिस की जरूरत पड़ती है। ऐसे में कंट्रोल रूम में विदेशी भाषा की भी व्यवस्था होगी, जिससे किसी भी कॉल को अटेंड करने से छोड़ा न जा सके। विज ने कहा कि कॉल सेंटर पर फोन के अलावा एसएमएस के जरिये भी सूचना दी जा सकेगी।
लोगों की सुरक्षा होगी सुनिश्चित
पुलिस महानिदेशक मनोज यादव ने कहा कि आईटी और संचार पहल को मिलाकर हरियाणा पुलिस चरणबद्ध तरीके से जनता को विभिन्न प्रकार की सहायता और सुविधाएं देने को प्रतिबद्ध है। इस परियोजना को दुनिया भर में उन्नत तकनीकों और सर्वोत्तम प्रथाओं का लाभ उठाते हुए नागरिकों की सुरक्षा के लिए जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। इस प्रणाली का संचालन लगभग 5000 प्रशिक्षित कर्मियों, स्पाॅट पर आवश्यक कार्रवाई करने के लिए प्राथमिक चिकित्सा-बॉक्स, स्ट्रेचर, अपराध निवारण किट आदि सहित 23 इन-फ्लीट आइटम से लैस 630 नये वाहनों और परियोजना सलाहकारों द्वारा किया जाएगा।
स्टेट इमरजेंसी रिस्पांस सेंटर पंचकूला में
डायल-112 प्रोजेक्ट के लिए पंचकूला में स्टेट इमरजेंसी रिस्पांस सेंटर (एसईआरसी) के रूप में एक अत्याधुनिक भवन का निर्माण किया गया है। इस सेंटर को जिला स्तर पर पुलिस नियंत्रण कक्ष और फील्ड में तैनात इमरजेंसी रिस्पांस व्हीकल्स (ईआरवी) से डिजिटल रूप से जोड़ा गया है। मुख्य रूप से सभी आपातकालीन सेवाओं को पूरा करने के लिए इस भवन को उन्नत बुनियादी ढांचे के साथ मजबूत किया गया है।
11 अधिकारी सम्मानित
समारोह के दौरान डायल 112 परियोजना को सफल बनाने के लिए समर्पित रूप से काम करने के लिए 8 पुलिस अधिकारियों और सीडैक के 3 अधिकारियों को पदक देकर सम्मानित किया गया। इनमें अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक, दूरसंचार-आईटी और हरियाणा-112 प्रोजेक्ट के नोडल अधिकारी एएस. चावला, पुलिस अधीक्षक (एसपी)उदय सिंह मीणा, एसपी राजेश फोगाट, डीएसपी नूपुर बिश्नोई, डीएसपी हिशाम सिंह, सबइंस्पेक्टर श्याम सिंह, हेड कांस्टेबल नवनीत कुमार और मुकेश कुमार शामिल हैं। सीडैक के अधिकारियों में दीपू राज, राजेश और ज्योति शामिल हैं।
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15 घंटे पहले
दूरदृष्टा, जनचेतना के अग्रदूत, वैचारिक स्वतंत्रता के पुरोधा एवं समाजसेवी सरदार दयालसिंह मजीठिया ने 2 फरवरी, 1881 को लाहौर (अब पाकिस्तान) से ‘द ट्रिब्यून’ का प्रकाशन शुरू किया। विभाजन के बाद लाहौर से शिमला व अंबाला होते हुए यह समाचार पत्र अब चंडीगढ़ से प्रकाशित हो रहा है।
‘द ट्रिब्यून’ के सहयोगी प्रकाशनों के रूप में 15 अगस्त, 1978 को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर दैनिक ट्रिब्यून व पंजाबी ट्रिब्यून की शुरुआत हुई। द ट्रिब्यून प्रकाशन समूह का संचालन एक ट्रस्ट द्वारा किया जाता है।
हमें दूरदर्शी ट्रस्टियों डॉ. तुलसीदास (प्रेसीडेंट), न्यायमूर्ति डी. के. महाजन, लेफ्टिनेंट जनरल पी. एस. ज्ञानी, एच. आर. भाटिया, डॉ. एम. एस. रंधावा तथा तत्कालीन प्रधान संपादक प्रेम भाटिया का भावपूर्ण स्मरण करना जरूरी लगता है, जिनके प्रयासों से दैनिक ट्रिब्यून अस्तित्व में आया।
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