Plight Of Dussehri Mango: Business Of Two Thousand Crores Re

Plight Of Dussehri Mango: Business Of Two Thousand Crores Reduced To 600 Crores - दशहरी की दुर्दशा : 600 करोड़ में सिमटा दो हजार करोड़ का कारोबार, बागबानों ने सुनाई बर्बादी की कहानी


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कोरोना की मार, नकली दवाओं का इस्तेमाल और बेमौसम बारिश ने जहां मलिहाबादी दशहरी का स्वाद बिगाड़ा है वहीं, इसका कारोबार अर्श से फर्श पर आ गया है। दो साल पहले तक सीजन में दो हजार करोड़ का होने वाला कारोबार इस बार 600 करोड़ पर सिमट गया। 
मैंगो ग्रोवर एसोसिएशन के अध्यक्ष इंसराम अली कहते हैं कि निर्यात से सब्सिडी भी 26 प्रतिशत से घटाकर 10 फीसदी करने से बागबानों को ज्यादा जेब ढीली करनी पड़ी है। बताया कि माल, मलिहाबाद, काकोरी और इटौंजा को मिलाकर 27 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में आम होता है।
मलिहाबाद-माल की 90 फीसदी आबादी का मुख्य व्यवसाय यही है। विडंबना तो ये है कि एक तरफ बागवानी-उद्यान की निगरानी करने वाले विभाग का मुख्यालय यहां है तो दूसरी तरफ संरक्षणकर्ता और शोधकर्ता संस्थान भी। इसके बावजूद दशहरी की मांग घट रही है। 
कारोबारी हाफिज अली कहते हैं कि रोजाना 7-8 गाड़ी मुंबई के लिए लोड होती थी, लेकिन आम की घटती गुणवत्ता से लोडिंग बंद है। बचा आम मजबूरी में आसपास की मंडियों में औने-पौने दाम में खपा रहे हैं।
बागबानों ने बयां की दशहरी की बर्बादी की कहानी 
बागबान राम गोपाल कहते हैं कि मौसम की बदमिजाजी से 30 फीसदी बौर समय से पहले आए और इसमें से 25 फीसदी खराब हो गए।
कारोबारी विमल कुमार बताते हैं कि आम निकलने के दौरान थ्रिस कीट ने हमला बोल दिया। इससे फल बदरंग होने लगा।
बागबान मीनू वर्मा कहते हैं कि तैयार फसल पर कैटर पिलर ने हमला कर दिया। डंठल से आम कट गिरने लगे और जुड़े आमों के बीच में बैठकर कैटर पिलर ने इसे सड़ा दिया।
बागबान राम शंकर रावत का कहना है कि बेमौसम बारिश ने आम पर पहले काले धब्बे बनाए। फिर एंथ्रेक्नोज और डिप्लोडिया नामक बीमारी ने जकड़ लिया। इससे आम बीच से काला पड़ा और सड़ गया।
 
आम उत्पादक उपेंद्र सिंह बताते हैं कि दवाइयां नकली होने के चलते कीड़ों पर बेअसर हैं। तीन साल से बाग में एक तरफ नीम के तेल का छिड़काव कर रहा हूं तो तो दूसरी तरफ कीटनाशकों का। नीम का तेल छिड़काव वाली 80 फीसदी फसल सुरक्षित है जबकि कीटनाशक से 80 फीसदी फसल खराब हो गई है।
यही नहीं, पके आम पर डांसी का कहर बरपा है। इससे काले धब्बों संग सफेद कीड़े लग रहे हैं। वहीं, बागबान संजीत सिंह कहते हैं कि जैविक खेती महंगी है। इसमें कुछ ऐसी दवाएं होती हैं जो शत प्रतिशत असर करती है। अब कई कंपनियां बाजार में हैं, लेकिन ये कीटनाशक के मुकाबले तीन से चार गुना तक महंगी होती है। सब्सिडी मिलने के बाद ही हर किसान इन्हें खरीद पाएगा। वहीं, किसान इसे लेकर जागरूक भी नहीं है। सरकारी स्तर पर जागरूकता प्रयास जरूरी है।
नौ से 11 बार किया स्प्रे, फिर भी नहीं मरे कीड़े 
उद्यान रत्न एससी शुक्ला वर्षों से आम की विभिन्न प्रजातियों के संरक्षण से जुड़े हैं। दशहरी की दुर्दशा पर दुख जताते हुए कहते हैं कि बागबानों-कारोबारियों से बातचीत में पीड़ा सामने आई। उनका कहना है कि नौ से 11 बार कीटनाशक का स्प्रे किया। इसके बावजूद कीड़े नहीं मरे। अब दवाओं का असर इन पर नहीं हो रहा, ये भी कोरोना की तरह म्यूटेंट हो गए हैं। निश्चित तौर पर नकली दवाओं का इस्तेमाल हो रहा है। प्रूफ इसलिए नहीं है क्योंकि ड्रग इंस्पेक्टर कभी नमूना लेने जाते ही नहीं है। जांच के लिए कोई लैब भी नहीं हैं। 
उद्यान व कृषि विभाग के अपने तर्क
दवाएं उपलब्ध कराने को कृषि विभाग से कहा
हां, ये सच है कि आम बदरंग हुआ है। इसके लिए निश्चित तौर पर खराब कीटनाशक जिम्मेदार है। कुछ बजट की कमी है, इसका असर जागरूकता कार्यक्रमों पर पड़ा है। हमारा काम बागबानों की समस्याओं को समझना, विशेषज्ञों से विचार विमर्श कर समाधान तलाशना और उसे किसानों तक पहुंचाना है। दो साल से जो समस्याएं हुई हैं, उसके लिए जरूरी दवाएं उपलब्ध कराने को कृषि विभाग को बताया गया है।
- नीलम मौर्या, जिला उद्यान अधिकारी
सिर्फ 50 लीटर दवा मिली 
इतनी दवा नहीं मिलती कि सभी किसानों तक पहुंचा सकें। इस बार सिर्फ 50 लीटर दवा प्राप्त हुई है जो धान-सब्जी, गेहूं की फसल उगाने वाले छोटे-छोटे किसानों को दे दी गई। इतनी दवा तो एक बड़े बागबान के लिए भी पर्याप्त नहीं है।
- राम अवतार गुप्ता, एडीओ कृषि, मलिहाबाद
जून में आठ बार हुई बारिश ने प्रभावित की गुणवत्ता
केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के निदेशक डॉ. शैलेंद्र राजन कहते हैं कि मई-जून में चलने वाली लू दशहरी की बेहतरीन क्वॉलिटी में अहम भूमिका निभाती थी। दो वर्षों से देखा जा रहा है कि जून में करीब आठ बार बारिश हुई। खेतों में पानी भर जाने से नमी पैदा हो गई। वर्षा अधिक होने से फल में मिठास लगभग 30-40 फीसदी तक घट जाती है। बारिश की संख्या पांच पार हो जाए तो दशहरी में कई तरह की दिक्कतें आती हैं। अधिक नमी से एंथ्रेक्नोज व डिप्लोडिया जैसी बीमारियां होती हैं। मई-जून की अत्यधिक गर्मी फल-मक्खी जैसे कई कीटों की संख्या को नियंत्रित करने में सहायक होती है, जो इस बार न हो सका।
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कोरोना की मार, नकली दवाओं का इस्तेमाल और बेमौसम बारिश ने जहां मलिहाबादी दशहरी का स्वाद बिगाड़ा है वहीं, इसका कारोबार अर्श से फर्श पर आ गया है। दो साल पहले तक सीजन में दो हजार करोड़ का होने वाला कारोबार इस बार 600 करोड़ पर सिमट गया। 
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मैंगो ग्रोवर एसोसिएशन के अध्यक्ष इंसराम अली कहते हैं कि निर्यात से सब्सिडी भी 26 प्रतिशत से घटाकर 10 फीसदी करने से बागबानों को ज्यादा जेब ढीली करनी पड़ी है। बताया कि माल, मलिहाबाद, काकोरी और इटौंजा को मिलाकर 27 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में आम होता है।
मलिहाबाद-माल की 90 फीसदी आबादी का मुख्य व्यवसाय यही है। विडंबना तो ये है कि एक तरफ बागवानी-उद्यान की निगरानी करने वाले विभाग का मुख्यालय यहां है तो दूसरी तरफ संरक्षणकर्ता और शोधकर्ता संस्थान भी। इसके बावजूद दशहरी की मांग घट रही है। 
कारोबारी हाफिज अली कहते हैं कि रोजाना 7-8 गाड़ी मुंबई के लिए लोड होती थी, लेकिन आम की घटती गुणवत्ता से लोडिंग बंद है। बचा आम मजबूरी में आसपास की मंडियों में औने-पौने दाम में खपा रहे हैं।
बागबानों ने बयां की दशहरी की बर्बादी की कहानी 
बागबान राम गोपाल कहते हैं कि मौसम की बदमिजाजी से 30 फीसदी बौर समय से पहले आए और इसमें से 25 फीसदी खराब हो गए।
कारोबारी विमल कुमार बताते हैं कि आम निकलने के दौरान थ्रिस कीट ने हमला बोल दिया। इससे फल बदरंग होने लगा।
बागबान मीनू वर्मा कहते हैं कि तैयार फसल पर कैटर पिलर ने हमला कर दिया। डंठल से आम कट गिरने लगे और जुड़े आमों के बीच में बैठकर कैटर पिलर ने इसे सड़ा दिया।
बागबान राम शंकर रावत का कहना है कि बेमौसम बारिश ने आम पर पहले काले धब्बे बनाए। फिर एंथ्रेक्नोज और डिप्लोडिया नामक बीमारी ने जकड़ लिया। इससे आम बीच से काला पड़ा और सड़ गया।
 
जरूरी है जागरूकता...
आम उत्पादक उपेंद्र सिंह बताते हैं कि दवाइयां नकली होने के चलते कीड़ों पर बेअसर हैं। तीन साल से बाग में एक तरफ नीम के तेल का छिड़काव कर रहा हूं तो तो दूसरी तरफ कीटनाशकों का। नीम का तेल छिड़काव वाली 80 फीसदी फसल सुरक्षित है जबकि कीटनाशक से 80 फीसदी फसल खराब हो गई है।
यही नहीं, पके आम पर डांसी का कहर बरपा है। इससे काले धब्बों संग सफेद कीड़े लग रहे हैं। वहीं, बागबान संजीत सिंह कहते हैं कि जैविक खेती महंगी है। इसमें कुछ ऐसी दवाएं होती हैं जो शत प्रतिशत असर करती है। अब कई कंपनियां बाजार में हैं, लेकिन ये कीटनाशक के मुकाबले तीन से चार गुना तक महंगी होती है। सब्सिडी मिलने के बाद ही हर किसान इन्हें खरीद पाएगा। वहीं, किसान इसे लेकर जागरूक भी नहीं है। सरकारी स्तर पर जागरूकता प्रयास जरूरी है।
नौ से 11 बार किया स्प्रे, फिर भी नहीं मरे कीड़े 
उद्यान रत्न एससी शुक्ला वर्षों से आम की विभिन्न प्रजातियों के संरक्षण से जुड़े हैं। दशहरी की दुर्दशा पर दुख जताते हुए कहते हैं कि बागबानों-कारोबारियों से बातचीत में पीड़ा सामने आई। उनका कहना है कि नौ से 11 बार कीटनाशक का स्प्रे किया। इसके बावजूद कीड़े नहीं मरे। अब दवाओं का असर इन पर नहीं हो रहा, ये भी कोरोना की तरह म्यूटेंट हो गए हैं। निश्चित तौर पर नकली दवाओं का इस्तेमाल हो रहा है। प्रूफ इसलिए नहीं है क्योंकि ड्रग इंस्पेक्टर कभी नमूना लेने जाते ही नहीं है। जांच के लिए कोई लैब भी नहीं हैं। 
उद्यान व कृषि विभाग के अपने तर्क
दवाएं उपलब्ध कराने को कृषि विभाग से कहा
हां, ये सच है कि आम बदरंग हुआ है। इसके लिए निश्चित तौर पर खराब कीटनाशक जिम्मेदार है। कुछ बजट की कमी है, इसका असर जागरूकता कार्यक्रमों पर पड़ा है। हमारा काम बागबानों की समस्याओं को समझना, विशेषज्ञों से विचार विमर्श कर समाधान तलाशना और उसे किसानों तक पहुंचाना है। दो साल से जो समस्याएं हुई हैं, उसके लिए जरूरी दवाएं उपलब्ध कराने को कृषि विभाग को बताया गया है।
- नीलम मौर्या, जिला उद्यान अधिकारी
सिर्फ 50 लीटर दवा मिली 
इतनी दवा नहीं मिलती कि सभी किसानों तक पहुंचा सकें। इस बार सिर्फ 50 लीटर दवा प्राप्त हुई है जो धान-सब्जी, गेहूं की फसल उगाने वाले छोटे-छोटे किसानों को दे दी गई। इतनी दवा तो एक बड़े बागबान के लिए भी पर्याप्त नहीं है।
- राम अवतार गुप्ता, एडीओ कृषि, मलिहाबाद
जून में आठ बार हुई बारिश ने प्रभावित की गुणवत्ता
केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के निदेशक डॉ. शैलेंद्र राजन कहते हैं कि म

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