Six Years Of Digital India, Where Have We Reached So Far? -

Six Years Of Digital India, Where Have We Reached So Far? - डिजिटल भारत के छह साल, अब तक कहां पहुंचे हम?


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विगत एक जुलाई को 'डिजिटल भारत’ अभियान के छह वर्ष पूरे होने के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि डिजिटल इंडिया भारत का संकल्प है। डिजिटल इंडिया की मदद से देश में अब प्रक्रियाएं बहुत आसान और तेज हुई हैं।  यह दशक वैश्विक डिजिटल अर्थव्यवस्था में देश की हिस्सेदारी को बहुत ज्यादा बढ़ाने वाला है। निस्संदेह भारत में डिजिटल अर्थव्यवस्था तेजी से आगे बढ़ती दिखाई दे रही है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि जनधन बैंक खातों, लोगों को आधार के सहारे मिली डिजिटल पहचान तथा डायरेक्ट बेनिफेट ट्रांसफर (डीबीटी) डिजिटल अर्थव्यवस्था के लिए लाभप्रद आधार हैं। देश में सरकारी सेवाओं के लिए डिजिटलीकरण को अधिकतम प्रोत्साहन, 41 करोड़ से अधिक जनधन खाते, बढ़ता हुआ ई-कॉमर्स, बढ़ता हुआ ई-एजुकेशन, बढ़ता हुआ ई-मनोरंजन, बढ़ता हुआ वर्क फ्रॉम होम, इंटरनेट के उपयोगकर्ताओं की लगातार बढ़ती संख्या, मोबाइल और डाटा पैकेज, दोनों का सस्ता होना भारत में डिजिटल अर्थव्यवस्था के बढ़ने के प्रमुख कारण हैं। 
गौरतलब है कि मोबाइल ब्रॉडबैंड इंडिया ट्रैफिक (एमबीट) इंडेक्स 2021 के मुताबिक, डाटा की खपत बढ़ने की रफ्तार पूरी दुनिया में सबसे अधिक भारत में है। ट्राई के मुताबिक, जनवरी 2021 में भारत में ब्रॉडबैंड का उपयोग करने वालों की संख्या बढ़कर 75.76 करोड़ तक पहुंच चुकी है। डिजिटल पेमेंट तेजी से बढ़ रहा है। भारत बिल भुगतान प्रणाली, राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक टोल संग्रह, आधार-सक्षम भुगतान प्रणाली और तत्काल भुगतान सेवा सहित अन्य तरीकों से किए जाने वाले भुगतान में भी तेज वृद्धि हुई है। विश्व प्रसिद्ध रेडसीर कंसल्टिंग की नई रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 2019-20 में जो डिजिटल भुगतान बाजार करीब 2,162 हजार अरब रुपये का रहा है, वह वर्ष 2025 तक तीन गुना से भी अधिक बढ़कर 7,092 हजार अरब रुपये पर पहुंचने का अनुमान है। देश की डिजिटल अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने में ई-कॉमर्स की अहम भूमिका है। कोरोना संक्रमण की चुनौतियों के कारण ज्यादातर ग्राहक ऑनलाइन खरीद के विकल्प को प्राथमिकता देते हैं। 
सरकार द्वारा डिजिटल अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए नीतिगत स्तर पर कई सराहनीय कदम उठाए गए हैं। लेकिन अब भी देश में इस दिशा में बहुआयामी प्रयासों की जरूरत बनी हुई है। रेडसीर की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2020 में भारत में डिजिटल बाजार से जुड़े ऑनलाइन खरीदारों की संख्या महज करीब 18.5 करोड़ अनुमानित की गई है। यानी इंटरनेट का उपयोग करने वाले बहुत-से लोग भी अभी डिजिटल अर्थव्यवस्था से दूर हैं। 
इसकी मुख्य वजह है कि देश में डिजिटल अर्थव्यवस्था का बुनियादी ढांचा कमजोर है। डिजिटल अर्थव्यवस्था की बुनियादी जरूरत-कंप्यूटर और इंटरनेट-अधिकांश लोगों की पहुंच से दूर हैं। वित्तीय लेन-देन के लिए बड़ी संख्या में लोग डिजिटल भुगतान तकनीकों से अपरिचित हैं। अधिकांश लोगों के पास डिजिटल बाजार के तहत भुगतान के लिए इंटरनेट की सुविधा वाला मोबाइल फोन या क्रेडिट-डेबिट कार्ड नहीं है। छोटे गांवों में बिजली की पर्याप्त पहुंच नहीं है। साथ ही, मोबाइल ब्रॉडबैंड की स्पीड के मामले में भी देश अभी बहुत पीछे है। ऑनलाइन धोखाधड़ी की बढ़ती हुई घटनाओं के कारण बड़ी संख्या में लोगों का ऑनलाइन लेन-देन में भरोसा नहीं है। डिजिटल धोखाधड़ी से निपटने का कोई कठोर कानून भी नहीं है।
चूंकि देश की आबादी का एक बड़ा भाग अब भी डिजिटल अर्थव्यवस्था की समझ से पीछे है, इसलिए इसके लिए अभियान चलाए जाने की जरूरत है। लोगों को स्मार्टफोन खरीदने के लिए आसान ऋण की सुविधा देनी होगी। पीसीओ की तर्ज पर पब्लिक इंटरनेट एक्सेस पॉइंट की व्यवस्था करनी होगी। मोबाइल ब्रॉडबैंड स्पीड के मामले में भी सुधार करना होगा। हम उम्मीद करें कि सरकार डिजिटल भारत अभियान के सातवें वर्ष में प्रवेश करते हुए डिजिटल अर्थव्यवस्था की लाभप्रद चमकीली संभावनाओं को हासिल करने के लिए इसकी राह की मुश्किलों को रणनीतिक रूप से दूर करने के लिए आगे बढ़ेगी। 
विगत एक जुलाई को 'डिजिटल भारत’ अभियान के छह वर्ष पूरे होने के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि डिजिटल इंडिया भारत का संकल्प है। डिजिटल इंडिया की मदद से देश में अब प्रक्रियाएं बहुत आसान और तेज हुई हैं।  यह दशक वैश्विक डिजिटल अर्थव्यवस्था में देश की हिस्सेदारी को बहुत ज्यादा बढ़ाने वाला है। निस्संदेह भारत में डिजिटल अर्थव्यवस्था तेजी से आगे बढ़ती दिखाई दे रही है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि जनधन बैंक खातों, लोगों को आधार के सहारे मिली डिजिटल पहचान तथा डायरेक्ट बेनिफेट ट्रांसफर (डीबीटी) डिजिटल अर्थव्यवस्था के लिए लाभप्रद आधार हैं। देश में सरकारी सेवाओं के लिए डिजिटलीकरण को अधिकतम प्रोत्साहन, 41 करोड़ से अधिक जनधन खाते, बढ़ता हुआ ई-कॉमर्स, बढ़ता हुआ ई-एजुकेशन, बढ़ता हुआ ई-मनोरंजन, बढ़ता हुआ वर्क फ्रॉम होम, इंटरनेट के उपयोगकर्ताओं की लगातार बढ़ती संख्या, मोबाइल और डाटा पैकेज, दोनों का सस्ता होना भारत में डिजिटल अर्थव्यवस्था के बढ़ने के प्रमुख कारण हैं। 
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गौरतलब है कि मोबाइल ब्रॉडबैंड इंडिया ट्रैफिक (एमबीट) इंडेक्स 2021 के मुताबिक, डाटा की खपत बढ़ने की रफ्तार पूरी दुनिया में सबसे अधिक भारत में है। ट्राई के मुताबिक, जनवरी 2021 में भारत में ब्रॉडबैंड का उपयोग करने वालों की संख्या बढ़कर 75.76 करोड़ तक पहुंच चुकी है। डिजिटल पेमेंट तेजी से बढ़ रहा है। भारत बिल भुगतान प्रणाली, राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक टोल संग्रह, आधार-सक्षम भुगतान प्रणाली और तत्काल भुगतान सेवा सहित अन्य तरीकों से किए जाने वाले भुगतान में भी तेज वृद्धि हुई है। विश्व प्रसिद्ध रेडसीर कंसल्टिंग की नई रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 2019-20 में जो डिजिटल भुगतान बाजार करीब 2,162 हजार अरब रुपये का रहा है, वह वर्ष 2025 तक तीन गुना से भी अधिक बढ़कर 7,092 हजार अरब रुपये पर पहुंचने का अनुमान है। देश की डिजिटल अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने में ई-कॉमर्स की अहम भूमिका है। कोरोना संक्रमण की चुनौतियों के कारण ज्यादातर ग्राहक ऑनलाइन खरीद के विकल्प को प्राथमिकता देते हैं। 
सरकार द्वारा डिजिटल अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए नीतिगत स्तर पर कई सराहनीय कदम उठाए गए हैं। लेकिन अब भी देश में इस दिशा में बहुआयामी प्रयासों की जरूरत बनी हुई है। रेडसीर की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2020 में भारत में डिजिटल बाजार से जुड़े ऑनलाइन खरीदारों की संख्या महज करीब 18.5 करोड़ अनुमानित की गई है। यानी इंटरनेट का उपयोग करने वाले बहुत-से लोग भी अभी डिजिटल अर्थव्यवस्था से दूर हैं। 
इसकी मुख्य वजह है कि देश में डिजिटल अर्थव्यवस्था का बुनियादी ढांचा कमजोर है। डिजिटल अर्थव्यवस्था की बुनियादी जरूरत-कंप्यूटर और इंटरनेट-अधिकांश लोगों की पहुंच से दूर हैं। वित्तीय लेन-देन के लिए बड़ी संख्या में लोग डिजिटल भुगतान तकनीकों से अपरिचित हैं। अधिकांश लोगों के पास डिजिटल बाजार के तहत भुगतान के लिए इंटरनेट की सुविधा वाला मोबाइल फोन या क्रेडिट-डेबिट कार्ड नहीं है। छोटे गांवों में बिजली की पर्याप्त पहुंच नहीं है। साथ ही, मोबाइल ब्रॉडबैंड की स्पीड के मामले में भी देश अभी बहुत पीछे है। ऑनलाइन धोखाधड़ी की बढ़ती हुई घटनाओं के कारण बड़ी संख्या में लोगों का ऑनलाइन लेन-देन में भरोसा नहीं है। डिजिटल धोखाधड़ी से निपटने का कोई कठोर कानून भी नहीं है।
चूंकि देश की आबादी का एक बड़ा भाग अब भी डिजिटल अर्थव्यवस्था की समझ से पीछे है, इसलिए इसके लिए अभियान चलाए जाने की जरूरत है। लोगों को स्मार्टफोन खरीदने के लिए आसान ऋण की सुविधा देनी होगी। पीसीओ की तर्ज पर पब्लिक इंटरनेट एक्सेस पॉइंट की व्यवस्था करनी होगी। मोबाइल ब्रॉडबैंड स्पीड के मामले में भी सुधार करना होगा। हम उम्मीद करें कि सरकार डिजिटल भारत अभियान के सातवें वर्ष में प्रवेश करते हुए डिजिटल अर्थव्यवस्था की लाभप्रद चमकीली संभावनाओं को हासिल करने के लिए इसकी राह की मुश्किलों को रणनीतिक रूप से दूर करने के लिए आगे बढ़ेगी। 
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