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K Kamraj News: Kumaraswami Kamaraj The First Kingmaker Of Independent India, A Close Cofidant Of JawaharLal Nehru And Indira Gandhi - के कामराज: आजाद भारत का पहला 'किंगमेकर', जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी का भरोसेमंद साथी, निधन के वक्‍त जिसके पास थे सिर्फ 130 रुपये


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के कामराज: आजाद भारत के पहले 'किंगमेकर', निधन के वक्‍त जिनके पास थे सिर्फ 130 रुपये
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Kumaraswami Kamaraj Birth Anniversary: कुमारस्‍वामी कामराज चाहते तो जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद प्रधानमंत्री बन सकते थे। मगर उन्‍होंने पहले लाल बहादुर शास्‍त्री और बाद में इंदिरा गांधी को पीएम बनाया। उन्‍हें 'किंगमेकर' यूं ही नहीं कहा जाता।
 
के कामराज: आजाद भारत के पहले 'किंगमेकर', निधन के वक्‍त जिनके पास थे सिर्फ 130 रुपये
1964 में जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद कांग्रेस के सामने सवाल था कि अगला प्रधानमंत्री किसे बनाया जाए? तब वित्‍त मंत्री रहे मोरारजी देसाई के मन में पीएम बनने की आकांक्षा हिलोरें ले रही थीं। पार्टी के भीतर भी देसाई की पकड़ मजबूत थी मगर उनके दांव को फेल कर दिया के. कामराज ने। कामराज उस समय कांग्रेस के अध्‍यक्ष हुआ करते थे। अधिकतर कांग्रेसी चाहते थे कि कामराज ही प्रधानमंत्री बनें मगर उन्‍होंने कहा कि राष्‍ट्रनिर्माण के लिए पार्टी का फिट रहना जरूरी है।
कामराज ने कहा कि सबकी सहमति से नेता चुना जाए। देसाई के पास कांग्रेस कार्यसमिति में उतनी ताकत नहीं थी। कामराज का प्‍लान काम कर गया। संसदीय पार्टी और मुख्‍यमंत्रियों से बात करने के बाद कामराज ने नेहरू के बाद लाल बहादुर शास्‍त्री के जिम्‍मे देश का भार सौंपने का फैसला क‍िया। दो साल बाद, कामराज ने कुछ ऐसा किया कि उन्‍हें स्‍वतंत्र भारत का पहला 'किंगमेकर' कहा जाने लगा।आज कामराज की 119वीं जयंती है।
दोबारा मौका मिला, तब भी पीएम नहीं बने कामराज
लाल बहादुर शास्‍त्री के ताशकंद में रहस्‍यमय परिस्थितियों में निधन के बाद एक बार फिर कांग्रेसियों ने कामराज से पीएम बनने को कहा। मगर कामराज की नजरें भविष्‍य पर थीं। उन्‍हें लगता था कि इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री पद की सबसे योग्‍य उम्‍मीदवार हैं। उनकी नजर में इंदिरा नौजवान थी और जोश से भरी हुई थीं, उनमें वे सारी बातें थीं जो भारत को अंतरराष्‍ट्रीय मंच पर ठीक से प्रॉजेक्‍ट कर सकती थीं। मोरारजी देसाई को दूसरी बार हाथ से कुर्सी जाते देखना बिल्‍कुल रास नहीं आया। शक्ति प्रदर्शन की नौबत आ गई। मगर कांग्रेस संसदीय पार्टी ने इंदिरा को चुना। उन्‍हें इंदिरा से 186 वोट कम मिले।
क्‍या था कामराज प्‍लान? बड़े-बड़े नेताओं को छोड़ना पड़ा पद
1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद नेहरू की विदेशी नीति सवालों के घेरे में थी। ऊपर से वित्‍त मंत्रालय संभाल रहे देसाई ने जनता पर टैक्‍स का बोझ बढ़ा दिया। कांग्रेस की साख घटने लगी। 1963 में लोकसभा के तीन उपचुनाव हुए और तीनों में कांग्रेस हार गई। ऐसे में कामराज ने एक योजना जवाहरलाल नेहरू के सामने रखी। उनका सुझाव था कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को सरकार में अपने पद छोड़कर पार्टी के लिए काम करना चाहिए। इस योजना को 'कामराज योजना' कहते हैं। हालांकि कांग्रेस के कई नेता इस योजना ने नाखुश थे क्‍योंकि उन्‍हें लगा कि यह उन्‍हें साइडलाइन करने के लिए है।
खैर, प्‍लान को पार्टी ने मंजूरी दे दी और यह लागू भी हो गया। सबसे पहले, गांधी जयंती के दिन 1963 में कामराज ने मद्रास राज्‍य के मुख्‍यमंत्री का पद छोड़ा। उनके अलावा बीजू पटनायक और एसके पाटिल सहित 6 मुख्यमंत्रियों और मोरारजी देसाई, जगजीवन राम और लाल बहादुर शास्त्री सहित 6 मंत्रियों ने अपने पद छोड़े थे। सब पार्टी के काम में लग गए।
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सीएम होकर भी बड़ी सादगी से रहते थे कामराज
कुमारस्‍वामी कामराज ने 1954 में मद्रास स्‍टेट के मुख्‍यमंत्री का काम संभाला। वह आजाद भारत के शायद पहले ऐसे मुख्‍यमंत्री थे जिन्‍हें अंग्रेजी नहीं आती थी। मगर मद्रास (अब तमिलनाडु) में अगले नौ साल के उनके कार्यकाल को प्रशासन के बेहतरीन दौर के रूप में देखा जाता है। कामराज के नेतृत्‍व में मद्रास के औद्योगिक और कृषि क्षेत्र का बड़े पैमाने पर विकास हुआ।
मुख्‍यमंत्री होने के बावजूद कामराज बड़ी सादगी से रहते थे। सीएम होने के नाते उन्‍हें जेड लेवल की सुरक्षा मिली हुई थी जो उन्‍होंने लेने से मना कर दी। वह कहीं दौरे पर जाते तो सुरक्षा में केवल पुलिस का एक पैट्रोल वीकल चलता था। उनके गृहनगर में घर तक डायरेक्‍ट पानी का कनेक्‍शन दिया गया था जो उन्‍होंने फौरन हटा दिया। तब कामराज का निधन हुआ तो उनके पास केवल 130 रुपये, 2 जोड़ी चप्‍पल, 4 शर्ट और कुछ किताबें थीं।
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