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ताजनगरी के युवाओं ने नई सोच से कामयाबी का परचम फहराया है। चाहें खेल की दुनिया हो या कारोबार की या फिर साहित्य की, हर जगह झंडे गाढ़े हैं। ये युवा स्वामी विवेकानंद को अपना आदर्श मानते हैं और उनके ध्येय वाक्य ‘उठो जागो और लक्ष्य की प्राप्ति तक रुको मत’ पर चलते हैं। इनके सामने मुश्किलें आई, ठोकरें लगीं लेकिन इन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा, एक -एक कदम आगे बढ़ाते रहे और सफलता की नई इबारत लिख दी। युवा दिवस पर ऐसे ही होनहार युवाओं से उनके संघर्ष और सफलता पर बात की गई।
संकल्प: पिता का साया उठा, पर कदम न रुके
मंटोला निवासी अस्मा हुसैन ने ठान रखा था कि अपनी अलग पहचान बनानी है। पिता ने इसमें मदद की लेकिन पिता बीमार पड़ गए, वेंटिलेटर पर पहुंच गए। लेकिन साहस नहीं छोड़ा, एमए किया और फिर बीएड। नौ साल पहले सिर से पिता का साया उठ गया। अस्मा कहती हैं कि कोई चीज सरल है या कठिन, यह सोच पर निर्भर करता है। पहले नौकरी की, फिर सिंधी बाजार में बुटीक खोला, इसके बाद पार्लर भी। आज आठ लोगों को रोजगार दे रखा है। एलएलबी कर रही हैं।
समर्पण : पिता के कारोबार को दी नई रफ्तार
खंदारी निवासी रजत जैन ने पिता के 30 साल पुराने चांदी के कारोबार को नई रफ्तार दी। वह नई तकनीक लेकर आए। उन्होंने खुद कारोबार संभाला। पुराने जमाने के डिजाइनों से इतर नए डिजाइन बनाए। इसके बाद नई मशीनें लगाईं। नए सामान के लिए नया बाजार ढूंढा। कारोबार ने रफ्तार पकड़ ली। आज 250 लोगों को रोजगार मुहैया करा रहे हैं।
संघर्ष : गांव-गांव जाकर बेची मशीन
कमला नगर निवासी गौरांग मखीजा के परिवार का 50 वर्ष पुराना कोल्ड प्रेस आयल मशीन का काम है। परिवार के लोग चाहते थे कि वह कारोबार नहीं, नौकरी करे। उसने गुरुग्राम में एक कंपनी में नौकरी कर ली। लेकिन मन में जुनून था कुछ अपना करने का। गौरांग बताते हैं कि इसी सोच के लिए नौकरी छोड़ दी। एक साल पहले नए सिरे से काम शुरू किया। गांव-गांव खुद जाकर मशीन बेची। खुद की वेबसाइट बनाई। सोशल मीडिया से प्रचार किया। आज 15 लोगों को रोजगार दे रहे हैं।
संदेश : कोई काम छोटा नहीं होता
शमसाबाद रोड निवासी अनंत जैन का पुश्तैनी काम सराफा का था लेकिन उसने काम किया चाय का। वह लंदन से पढ़कर आया। अनंत कहता है कि कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता, आपका नजरिया सब कुछ तय करता है। चाय के काम को नए ढंग से किया। संजय प्लेस में स्टोर खोला जहां पूरा परिवार चाय पी सके। चाय पर खुद अध्ययन किया, तब 10 किस्म की चाय तैयार कराई। आगरा में यह नया प्रयोग था। चल निकला।
ताजनगरी के युवाओं ने नई सोच से कामयाबी का परचम फहराया है। चाहें खेल की दुनिया हो या कारोबार की या फिर साहित्य की, हर जगह झंडे गाढ़े हैं। ये युवा स्वामी विवेकानंद को अपना आदर्श मानते हैं और उनके ध्येय वाक्य ‘उठो जागो और लक्ष्य की प्राप्ति तक रुको मत’ पर चलते हैं। इनके सामने मुश्किलें आई, ठोकरें लगीं लेकिन इन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा, एक -एक कदम आगे बढ़ाते रहे और सफलता की नई इबारत लिख दी। युवा दिवस पर ऐसे ही होनहार युवाओं से उनके संघर्ष और सफलता पर बात की गई।
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संकल्प: पिता का साया उठा, पर कदम न रुके
मंटोला निवासी अस्मा हुसैन ने ठान रखा था कि अपनी अलग पहचान बनानी है। पिता ने इसमें मदद की लेकिन पिता बीमार पड़ गए, वेंटिलेटर पर पहुंच गए। लेकिन साहस नहीं छोड़ा, एमए किया और फिर बीएड। नौ साल पहले सिर से पिता का साया उठ गया। अस्मा कहती हैं कि कोई चीज सरल है या कठिन, यह सोच पर निर्भर करता है। पहले नौकरी की, फिर सिंधी बाजार में बुटीक खोला, इसके बाद पार्लर भी। आज आठ लोगों को रोजगार दे रखा है। एलएलबी कर रही हैं।
समर्पण : पिता के कारोबार को दी नई रफ्तार
खंदारी निवासी रजत जैन ने पिता के 30 साल पुराने चांदी के कारोबार को नई रफ्तार दी। वह नई तकनीक लेकर आए। उन्होंने खुद कारोबार संभाला। पुराने जमाने के डिजाइनों से इतर नए डिजाइन बनाए। इसके बाद नई मशीनें लगाईं। नए सामान के लिए नया बाजार ढूंढा। कारोबार ने रफ्तार पकड़ ली। आज 250 लोगों को रोजगार मुहैया करा रहे हैं।
संघर्ष : गांव-गांव जाकर बेची मशीन
कमला नगर निवासी गौरांग मखीजा के परिवार का 50 वर्ष पुराना कोल्ड प्रेस आयल मशीन का काम है। परिवार के लोग चाहते थे कि वह कारोबार नहीं, नौकरी करे। उसने गुरुग्राम में एक कंपनी में नौकरी कर ली। लेकिन मन में जुनून था कुछ अपना करने का। गौरांग बताते हैं कि इसी सोच के लिए नौकरी छोड़ दी। एक साल पहले नए सिरे से काम शुरू किया। गांव-गांव खुद जाकर मशीन बेची। खुद की वेबसाइट बनाई। सोशल मीडिया से प्रचार किया। आज 15 लोगों को रोजगार दे रहे हैं।
संदेश : कोई काम छोटा नहीं होता
शमसाबाद रोड निवासी अनंत जैन का पुश्तैनी काम सराफा का था लेकिन उसने काम किया चाय का। वह लंदन से पढ़कर आया। अनंत कहता है कि कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता, आपका नजरिया सब कुछ तय करता है। चाय के काम को नए ढंग से किया। संजय प्लेस में स्टोर खोला जहां पूरा परिवार चाय पी सके। चाय पर खुद अध्ययन किया, तब 10 किस्म की चाय तैयार कराई। आगरा में यह नया प्रयोग था। चल निकला।
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