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स्टैन स्वामी की मौत पर संयुक्त राष्ट्र और यूरोपीय संघ भी दुखी | भारत | DW


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स्टैन स्वामी की मौत पर संयुक्त राष्ट्र और यूरोपीय संघ भी दुखी
संयुक्त राष्ट्र ने भारत की एक जेल में बंद सामाजिक कार्यकर्ता 84 वर्षीय स्टैन स्वामी की मृत्यु पर दुख जताया है और कहा है कि इस घटना से वह व्याकुल है.
भीमा-कोरेगांव मामले में गिरफ्तार किए गए पादरी स्टैन स्वामी का सोमवार को हिरासत में निधन हो गया. 84 वर्ष के स्वामी भारत की जेल में बंद सबसे उम्रदराज व्यक्ति थे और अपनी जमानत याचिका पर सुनवाई का इंतजार कर रहे थे. एनआईए पर उन्हें अनुचित रूप से गिरफ्तार करने और जेल प्रशासन पर उनके स्वास्थ्य को नजरअंदाज करने के आरोप लगते आए हैं.
संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार आयुक्त की प्रवक्ता लिज थ्रोसेल ने एक बयान जारी कहा, "एक मानवाधिकार कार्यकर्ता और पादरी स्टैन स्वामी की मुंबई में कल हुई मौत पर हम दुखी और व्याकुल हैं.”
थ्रोसेल ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार आयुक्त मिशेल बैचलेट और संयुक्त राष्ट्र के अन्य निष्पक्ष विशेषज्ञ फादर स्टैन और इससे संबंधित मामलों में गिरफ्तार 15 अन्य मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की रिहाई का आग्रह भारत सरकार से बार-बार करते रहे हैं.
उन्होंने कहा, "हाई कमिश्नर ने गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के खिलाफ इस्तेमाल को लेकर भी चिंता जाहिर कर चुकी हैं.” फादर स्टैन को भारत की जांच एजेंसी एनआईए ने अक्टूबर 2020 में गिरफ्तार किया था और उन पर यूएपीए लगाया गया था.
तस्वीरों मेंः खराब होते मानवाधिकार
खराब होते मानवाधिकारों पर कार्रवाई की मांग
अधिकारों का हनन
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार प्रमुख मिशेल बैचलेट ने कहा, "हमारे जीवनकाल में मानवाधिकारों के सबसे व्यापक और गंभीर झटकों से उबरने के लिए हमें एक जीवन बदलने वाली दृष्टि और ठोस कार्रवाई की जरूरत है." मानवाधिकार परिषद के 47वें सत्र को संबोधित करते हुए उन्होंने टिग्रे में साढ़े तीन लाख लोगों के सामने भुखमरी के संकट पर चिंता जताई.
खराब होते मानवाधिकारों पर कार्रवाई की मांग
'एनकाउंटर और यौन हिंसा'
मिशेल बैचलेट ने अपने संबोधन में, "न्यायेतर फांसी की सजा, मनमाने तरीके से गिरफ्तारी और हिरासत, बच्चों के साथ-साथ वयस्कों के खिलाफ यौन हिंसा" की ओर इशारा किया और कहा कि उनके पास "विश्वसनीय रिपोर्ट" है कि इरिट्रिया के सैनिक अभी भी इस क्षेत्र में काम कर रहे हैं.
खराब होते मानवाधिकारों पर कार्रवाई की मांग
इथियोपिया में जातीय और सांप्रदायिक हिंसा
इथियोपिया जहां हाल में ही चुनाव हुए हैं, वहां "घातक जातीय और अंतर-सांप्रदायिक हिंसा और विस्थापन की खतरनाक घटनाएं" देखने को मिल रही हैं. संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकारों की उच्चायुक्त का कहना है कि "सैन्य बलों की मौजूदा तैनाती एक स्थायी समाधान नहीं है."
खराब होते मानवाधिकारों पर कार्रवाई की मांग
मोजाम्बिक में जिहादी हिंसा
उत्तरी मोजाम्बिक में जिहादी हिंसा में तेजी से उछाल आया है. यहां हिंसा के कारण खाद्य असुरक्षा बढ़ी है. और करीब आठ लाख लोग, जिनमें 3,64,000 बच्चे शामिल हैं, उन्हें अपने घरों से भागना पड़ा है.
खराब होते मानवाधिकारों पर कार्रवाई की मांग
हांग कांग की चिंता
संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार प्रमुख ने हांग कांग में पेश किए गए व्यापक राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के "डरावने प्रभाव" की ओर भी इशारा किया. यह कानून 1 जुलाई 2020 से प्रभावी है. इस कानून के तहत बीजिंग के आलोचकों पर कार्रवाई की जा रही है. इस कानून के तहत 107 लोगों को गिरफ्तार किया गया है और 57 को औपचारिक रूप से आरोपित किया गया है.
खराब होते मानवाधिकारों पर कार्रवाई की मांग
शिनजियांग में मानवाधिकार उल्लंघन
बैचलेट ने चीन के शिनजियांग प्रांत में "गंभीर मानवाधिकार उल्लंघन की रिपोर्ट" का उल्लेख किया. उन्होंने उम्मीद जताई कि चीन उन्हें इस प्रांत का दौरा करने की अनुमति देगा और गंभीर उत्पीड़न की रिपोर्टों की जांच करने में मदद करेगा.
खराब होते मानवाधिकारों पर कार्रवाई की मांग
रूस पर प्रतिक्रिया
बैचलेट ने क्रेमलिन द्वारा राजनीतिक विचारों का विरोध करने और सितंबर के चुनावों में भागीदारी तक पहुंच को कम करने के हालिया उपायों की भी आलोचना की. क्रेमलिन आलोचक अलेक्सी नावाल्नी के आंदोलन को खत्म करने की कोशिश पर भी यूएन ने चिंता जाहिर की.
रांची के नामकुम स्थित अपने घर से गिरफ्तार किए जाने के वक्त भी फादर स्टैन पार्किंसंस और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित थे. उन्हें मुंबई के तलोजा केंद्रीय जेल में रखा गया जहां उन्होंने आठ महीने हिरासत में बिताए. इस दौरान उन्होंने और उनके समर्थकों ने कई बार उनके साथ अमानवीय किए जाने व्यवहार के आरोप लगाए.
अमानवीय व्यवहार के आरोप
गिरफ्तारी के कुछ ही दिनों बाद स्वामी ने विशेष एनआईए अदालत से आग्रह किया था कि उन्हें पानी पीने के लिए एक सिपर और स्ट्रॉ दिलवा दिया जाए क्योंकि वह पार्किंसंस रोग से पीड़ित थे और गिलास उठाकर पानी नहीं पी पा रहे थे. इस आग्रह को मानने में अधिकारियों ने करीब दो महीने लगा दिए.
फादर स्टैन की ओर से दो बार जमानत की याचिका दर्ज की गई, जिन्हें खारिज कर दिया गया. पहली बार तो विशेष एनआईए अदालत ने उनकी जमानत की याचिका को खारिज करने के लिए भी तीन महीने का समय लिया. नवंबर 2020 में दी गई जमानत याचिका मार्च 2021 में खारिज की गई. इस दौरान उनका स्वास्थ्य लगातार गिरता रहा.
मई में उन्होंने एक बार फिर जमानत के लिए याचिका दी, और अदालत से कहा कि उनकी हालत इतनी खराब है कि उन्हें जेल से जल्द निकाला ना गया तो वह मर भी सकते हैं. उन्होंने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए हुई सुनवाई में अदालत को बताया कि जब उन्हें पहली बार जेल लाया गया था, तब कम से कम उनका शरीर मूल रूप से काम कर रहा था, लेकिन जेल में रहते हुए उनकी सुनने की शक्ति और कम हो गई है और वह मूलभूत काम करने में भी लाचार हैं.
तस्वीरों मेंः एशिया में विरोध का परचम लहरातीं महिलाएं
एशिया में विरोध का परचम लहराती महिलाएं
भेदभावपूर्ण कानून के खिलाफ
भारत के आम नागरिकों के समूहों ने देश में लागू हुए नए नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ कई हफ्तों से प्रदर्शन किया. प्रदर्शनकारी सत्ताधारी बीजेपी पर मुसलमानों के प्रति इस तथाकथित भेदभावपूर्ण कानून को वापस लेने का दबाव बना रहे थे.
एशिया में विरोध का परचम लहराती महिलाएं
फासीवाद के खिलाफ संघर्ष
भारत के कई विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाली छात्राओं ने देश के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप को ठेस पहुंचाने की कोशिशों का विरोध किया. विवादास्पद कानून के अलावा युवा स्टूडेंट ने फासीवादी सोच, स्त्री जाति से द्वेष, धार्मिक कट्टरवाद और पुलिस की बर्बरता के खिलाफ भी आवाज उठाई.
एशिया में विरोध का परचम लहराती महिलाएं
जब निकाल फेंका हिजाब
ईरान में महिला आंदोलनकारियों ने देश की ताकतवर शिया सत्ता को चुनौती देते हुए अपना हिजाब निकाल फेंका था. पिछले कुछ सालों से ईरानी महिलाएं तमाम अहम मुद्दों को लेकर पितृसत्तात्मक रवैये और महिलाओं की आजादी पर पाबंदी लगाने वाली चीजों का विरोध करती आई हैं.
एशिया में विरोध का परचम लहराती महिलाएं
दमनकारी सत्ता के खिलाफ
ईरानी महिलाओं ने 1979 की इस्लामी क्रांति के समय से ही सख्त पितृसत्तावादी दबाव झेले हैं. बराबरी के अधिकारों और बोलने की आजादी जैसी मांगों पर सत्ताधारियों ने हमेशा ही महिलाओं को डरा धमका कर पीछे रखा है.फिर भी महिलाएं हिम्मत के साथ तमाम राजनैतिक एवं नागरिक प्रदर्शनों में हिस्सा ले रही हैं.
एशिया में विरोध का परचम लहराती महिलाएं
पाकिस्तानी महिलाएं बोल उठीं बस बहुत हुआ
भारत के पड़ोसी पाकिस्तान में भी बराबर का हक मांगने वाली महिलाओं के प्रति बुरा रवैया रहता है. इन्हें कभी "पश्चिम की एजेंट" तो कभी "एनजीओ माफिया" जैसे विशेषणों के साथ जोड़ा जाता है. महिला अधिकारों की बात करने वाली फेमिनिस्ट महिलाओं को अकसर समाज से अवहेलना झेलनी पड़ती है. फिर भी रैली, प्रदर्शन कर समाज में बदलाव लाने की महिलाओं की कोशिशें जारी हैं.
एशिया में विरोध का परचम लहराती महिलाएं
लोकतंत्र को लेकर बड़े सामाजिक आंदोलन
पाकिस्तान में हुए अब तक के ज्यादातर महिला अधिकार आंदोलन कुछ ही मुद्दों पर केंद्रित रहे हैं, जैसे लैंगिक हिंसा, बाल विवाह और इज्जत के नाम पर हत्या. लेकिन अब महिलाएं लोकतंत्र-समर्थक प्रदर्शनों में भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लेने लगी हैं. पिछले साल पाकिस्तान की यूनिवर्सिटी छात्राओं ने राष्ट्रीय स्तर पर आंदोलन का नेतृत्व किया जिसकी मांग छात्र संघों की बहाली थी. दबाव का असर दिखा और संसद में इस पर बहस कराई गई.
एशिया में विरोध का परचम लहराती महिलाएं
इंसाफ के लिए लड़तीं अफगानी महिलाएं
अमेरिका और तालिबान का समझौता हो गया तो अफगानिस्तान में एक ओर युद्धकाल का औपचारिक रूप से खात्मा हो जाएगा. लेकिन साथ ही बीते 20 सालों में अफगानी महिलाओं को जो कुछ भी अधिकार और आजादी हासिल हुई है वो खतरे में पड़ सकती है. 2015 में कुरान की प्रति जलाने के आरोप में भीड़ द्वारा पीट पीट कर मार डाली गई फरखुंदा मलिकजादा के लिए इंसाफ की मांग लेकर भी महिला अधिकार कार्यकर्ता सड़क पर उतरीं. (शामिल शम्स/आरपी)
मई 2021 में जेल में ही स्वामी कोविड-19 से संक्रमित हो गए, जिसके बाद 28 मई को बॉम्बे हा

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