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Tender Six Times.. Bus Shelters Were Not Made, People Were Forced To Wait For The Bus Standing In The Sun And Rain - छह बार टेंडर.. नहीं बने बस शेल्टर, धूप-बारिश में खड़े होकर लोग बस का इंतजार करने को मजबूर


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चंडीगढ़। यूटी प्रशासन करीब साढ़े तीन से शहरवासियों से लिए बस क्यू शेल्टर नहीं बनवा पा रहा है। इसके लिए दर्जनों बैठकें हुईं, 6 बार टेंडर किए गए, लेकिन प्रशासन ने नियम व शर्तें ऐसी बनाईं हैं कि कोई भी कंपनी इच्छुक नहीं होती है। प्रशासन भी अपने नियमों को बदलना नहीं चाहता है, जिसका खामियाजा बस का इंतजार करने वाले धूप में खड़े होकर और बारिश में भीग कर भुगत रहे हैं।
वर्ष 2017 में शहर में अत्याधुनिक बस क्यू शेल्टर बनवाने की कवायद हुई थी, लेकिन अब तक स्थिति जस की तस बनी हुई है। प्रशासन बसों को स्मार्ट बनाने के लिए करोड़ों रुपये खर्च कर रहा है, लेकिन जब बस शेल्टर ही नहीं होंगे तो बसों को स्मार्ट बनाने से क्या फायदा होगा। प्रशासन के अधिकारी इन बस शेल्टरों को बिल्ट ऑपरेट ट्रांसफर (बीओटी) के आधार पर बनवाना चाहते हैं। बीओटी का मतलब यह है कि कंपनी बस क्यू शेल्टर को बनाएगी, उसकी देखभाल करेगी और उस पर विज्ञापन भी लगाएगी। विभाग के अधिकारी इसी आधार पर फिर से टेंडर करने की तैयारी कर रहे हैं, क्योंकि इसमें प्रशासन का एक भी रुपया खर्च नही होगा। अधिकारियों का तर्क है कि जब कंपनी को ही 10 साल तक बस शेल्टर को चलाना होगा तो वह अच्छे सामग्री से बस शेल्टर को बनाएगी और संभाल कर रखेगी। इसलिए वह इसी आधार पर बस शेल्टर को बनवाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन समस्या यह है कि बहुत कम कंपनियां ऐसी हैं जो दोनों काम करती हों। इसी वजह से इंजीनियरिंग विभाग की ओर से कई टेंडर निकालने की पहल की गई, लेकिन हर बार उसे निराशा ही हाथ लगी है। इसका खामियाजा शहरवासियों को भुगतना पड़ रहा है। बस क्यू शेल्टर नहीं होने से यात्रियों को सिर ढकने तक की जगह नहीं मिल रही। बस या ऑटो का इंतजार करने के लिए खुले में ही खड़े होना पड़ता है। बस क्यू शेल्टर शहरवासियों को धूप और बारिश से बचाता है। बरसात और गर्मियों की सीजन में सबसे अधिक दिक्कत आती है। बारिश में बस का इंतजार करने के लिए बारिश में भीगना पड़ता है।
आईटीएस के लिए खुद 80 बस शेल्टर ठीक किए
प्रशासन ने पहले पूरे शहर में लोहे के बस शेल्टर बनाने का फैसला लिया था, लेकिन पूर्वी सेक्टरों को हेरिटेज का दर्जा प्राप्त होने की वजह से मामला अटक गया। कहा गया कि लोहे के बस क्यू शेल्टर ली कार्बूजिए के विचारों के खिलाफ हैं, इसलिए प्रशासन ने यह फैसला लिया है कि पूर्वी सेक्टरों में कंक्रीट के बस शेल्टर बनाए जाएंगे, जबकि दक्षिणी सेक्टरों में लोहे के बस शेल्टर बनेंगे।
गौरतलब है कि सैंपल के तौर पर सेक्टर-17 के हिमालय मार्ग पर प्रशासन के इंजीनियरिंग विभाग की ओर से एक बस क्यू शेल्टर बनवाया भी गया है। कुल 497 में से 294 बस क्यू शेल्टर नए बनने हैं जबकि 203 बस क्यू शेल्टर रेनोवेट होने हैं। हालांकि इंटेलीजेंट ट्रांसपोर्ट सिस्टम (आईटीएस) को लागू करने के लिए बस शेल्टर की जरूरत पड़ी तो इंजीनियरिंग विभाग ने खुद से 80 बस शेल्टर रिपेयर कर दिए। इसके बाद इन बस शेल्टर में एलईडी डिस्प्ले आदि लगाए गए हैं।
अब कंपनी नहीं आई तो खुद बस शेल्टर बना सकता है इंजीनियरिंग विभाग
जानकारी के अनुसार आने वाले कुछ हफ्तों में बस शेल्टर को बनवाने के लिए एक बार फिर से टेंडर की प्रक्रिया को शुरू किया जाएगा। अधिकारियों का कहना है कि कोरोना की वजह से इसमें देरी हुई है, क्योंकि प्री-बिड बैठकों में कुछ कंपनियों ने आने से मना कर दिया था। अब बस शेंल्टरों की संख्या में संशोधन कर दोबारा टेंडर जारी किया जाएगा। सूत्रों के अनुसार अगर अब भी कोई कंपनी टेंडर में नही आती है तो प्रशासन का इंजीनियरिंग विभाग खुद भी इन बस शेल्टर को बनाने और रिपेयर कराने का काम कर सकता है।
हाईकोर्ट भी पहुंचा है मामला
जून 2019 में टेंडर की प्री-बिड मीटिंग में कंपनियों ने आपत्ति जताई कि बस क्यू शेल्टर को बनाने का काम और उस पर विज्ञापन लगाने का काम अलग-अलग होना चाहिए। इस पर जो कमेटी बनी वह टेंडर की तारीखों को आगे बढ़ाती रही। इस मामले में एक कंपनी पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट में भी याचिका दायर कर चुकी है। मामला अभी लंबित है।
वर्जन----
बस क्यू शेल्टर के लिए कई बार कोशिश की गई है। हम कोशिश कर रहे हैं कि शहर में बढ़िया बस शेल्टर बने। कोरोना की वजह से भी इसमें देरी हुई है। अब एक बार फिर से जल्द ही दोबारा टेंडर की प्रक्रिया को शुरु किया जाएगा। - सीबी ओझा, चीफ इंजीनियर
चंडीगढ़। यूटी प्रशासन करीब साढ़े तीन से शहरवासियों से लिए बस क्यू शेल्टर नहीं बनवा पा रहा है। इसके लिए दर्जनों बैठकें हुईं, 6 बार टेंडर किए गए, लेकिन प्रशासन ने नियम व शर्तें ऐसी बनाईं हैं कि कोई भी कंपनी इच्छुक नहीं होती है। प्रशासन भी अपने नियमों को बदलना नहीं चाहता है, जिसका खामियाजा बस का इंतजार करने वाले धूप में खड़े होकर और बारिश में भीग कर भुगत रहे हैं।
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वर्ष 2017 में शहर में अत्याधुनिक बस क्यू शेल्टर बनवाने की कवायद हुई थी, लेकिन अब तक स्थिति जस की तस बनी हुई है। प्रशासन बसों को स्मार्ट बनाने के लिए करोड़ों रुपये खर्च कर रहा है, लेकिन जब बस शेल्टर ही नहीं होंगे तो बसों को स्मार्ट बनाने से क्या फायदा होगा। प्रशासन के अधिकारी इन बस शेल्टरों को बिल्ट ऑपरेट ट्रांसफर (बीओटी) के आधार पर बनवाना चाहते हैं। बीओटी का मतलब यह है कि कंपनी बस क्यू शेल्टर को बनाएगी, उसकी देखभाल करेगी और उस पर विज्ञापन भी लगाएगी। विभाग के अधिकारी इसी आधार पर फिर से टेंडर करने की तैयारी कर रहे हैं, क्योंकि इसमें प्रशासन का एक भी रुपया खर्च नही होगा। अधिकारियों का तर्क है कि जब कंपनी को ही 10 साल तक बस शेल्टर को चलाना होगा तो वह अच्छे सामग्री से बस शेल्टर को बनाएगी और संभाल कर रखेगी। इसलिए वह इसी आधार पर बस शेल्टर को बनवाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन समस्या यह है कि बहुत कम कंपनियां ऐसी हैं जो दोनों काम करती हों। इसी वजह से इंजीनियरिंग विभाग की ओर से कई टेंडर निकालने की पहल की गई, लेकिन हर बार उसे निराशा ही हाथ लगी है। इसका खामियाजा शहरवासियों को भुगतना पड़ रहा है। बस क्यू शेल्टर नहीं होने से यात्रियों को सिर ढकने तक की जगह नहीं मिल रही। बस या ऑटो का इंतजार करने के लिए खुले में ही खड़े होना पड़ता है। बस क्यू शेल्टर शहरवासियों को धूप और बारिश से बचाता है। बरसात और गर्मियों की सीजन में सबसे अधिक दिक्कत आती है। बारिश में बस का इंतजार करने के लिए बारिश में भीगना पड़ता है।
आईटीएस के लिए खुद 80 बस शेल्टर ठीक किए
प्रशासन ने पहले पूरे शहर में लोहे के बस शेल्टर बनाने का फैसला लिया था, लेकिन पूर्वी सेक्टरों को हेरिटेज का दर्जा प्राप्त होने की वजह से मामला अटक गया। कहा गया कि लोहे के बस क्यू शेल्टर ली कार्बूजिए के विचारों के खिलाफ हैं, इसलिए प्रशासन ने यह फैसला लिया है कि पूर्वी सेक्टरों में कंक्रीट के बस शेल्टर बनाए जाएंगे, जबकि दक्षिणी सेक्टरों में लोहे के बस शेल्टर बनेंगे।
गौरतलब है कि सैंपल के तौर पर सेक्टर-17 के हिमालय मार्ग पर प्रशासन के इंजीनियरिंग विभाग की ओर से एक बस क्यू शेल्टर बनवाया भी गया है। कुल 497 में से 294 बस क्यू शेल्टर नए बनने हैं जबकि 203 बस क्यू शेल्टर रेनोवेट होने हैं। हालांकि इंटेलीजेंट ट्रांसपोर्ट सिस्टम (आईटीएस) को लागू करने के लिए बस शेल्टर की जरूरत पड़ी तो इंजीनियरिंग विभाग ने खुद से 80 बस शेल्टर रिपेयर कर दिए। इसके बाद इन बस शेल्टर में एलईडी डिस्प्ले आदि लगाए गए हैं।
अब कंपनी नहीं आई तो खुद बस शेल्टर बना सकता है इंजीनियरिंग विभाग
जानकारी के अनुसार आने वाले कुछ हफ्तों में बस शेल्टर को बनवाने के लिए एक बार फिर से टेंडर की प्रक्रिया को शुरू किया जाएगा। अधिकारियों का कहना है कि कोरोना की वजह से इसमें देरी हुई है, क्योंकि प्री-बिड बैठकों में कुछ कंपनियों ने आने से मना कर दिया था। अब बस शेंल्टरों की संख्या में संशोधन कर दोबारा टेंडर जारी किया जाएगा। सूत्रों के अनुसार अगर अब भी कोई कंपनी टेंडर में नही आती है तो प्रशासन का इंजीनियरिंग विभाग खुद भी इन बस शेल्टर को बनाने और रिपेयर कराने का काम कर सकता है।
हाईकोर्ट भी पहुंचा है मामला
जून 2019 में टेंडर की प्री-बिड मीटिंग में कंपनियों ने आपत्ति जताई कि बस क्यू शेल्टर को बनाने का काम और उस पर विज्ञापन लगाने का काम अलग-अलग होना चाहिए। इस पर जो कमेटी बनी वह टेंडर की तारीखों को आगे बढ़ाती रही। इस मामले में एक कंपनी पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट में भी याचिका दायर कर चुकी है। मामला अभी लंबित है।
वर्जन----
बस क्यू शेल्टर के लिए कई बार कोशिश की गई है। हम कोशिश कर रहे हैं कि शहर में बढ़िया बस शेल्टर बने। कोरोना की वजह से भी इसमें देरी हुई है। अब एक बार फिर से जल्द ही दोबारा टेंडर की प्रक्रिया को शुरु किया जाएगा। - सीबी ओझा, चीफ इंजीनियर
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