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'पानी' को लेकर बंबई हाईकोर्ट की कड़ी टिप्‍पणी, याचिका पर हुई सुनवाई

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Missing Woman Reunion Again With Her Family In Adilabad

సాక్షి,నెన్నెల(ఆదిలాబాద్‌): అక్కాతమ్ముడు..అన్నాచెల్లెల అనుబంధానికి ప్రతీక రాఖీ. అనుబంధమే పదేళ్ల తర్వాత అక్కాతమ్ముడిని మళ్లీ కలిపింది. కుటుంబానికి దగ్గర చేసింది. చనిపోయిందేమో.. అనుకున్న మహిళ శనివారం తిరిగి రావడంతో కుటుంబ సభ్యుల్లో ఆనందం వెల్లివిరిసింది. మంచిర్యాల జిల్లా నెన్నెల మండల కేంద్రంలోని బోయవాడకు చెందిన టేకులపల్లి వెంకటి, మధునక్క దంపతులకు కుమారులు శ్రీనివాస్, పవన్,

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Music in Lockdown: यूकलेले, गिटार, पियानो... कोरोना लॉकडाउन में संगीत को मिले नए सुर - music gets new notes in coronavirus lockdown


music gets new notes in coronavirus lockdown
यूकलेले, गिटार, पियानो... कोरोना लॉकडाउन में संगीत को मिले नए सुर
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पिछले साल जिन म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट्स ने कोरोना महामारी की वजह से घरों में बंद लोगों की ज़िंदगी में संगीत घोला उसमें यूकलेले के अलावा गिटार और कीबोर्ड (पियानो) भी थे। कुछ लोगों ने जहां एक नया शौक पूरा करने के लिए यूकलेले और कीबोर्ड खरीदे, वहीं कुछ ऐसे लोग भी थे जिन्होंने अपने पुराने शौक को जिंदा किया।
 
पिछले साल, लॉकडाउन के दौरान जब बहुत-से लोग घरों में कैद रहने को मजबूर थे तो उनमें से कुछ ने अपनी ज़िंदगी को संगीत के सुरों से सजा लिया। इसके लिए उन्होंने गिटार या उसका छोटा स्वरूप यूकलेले खरीदा। म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट्स इंडस्ट्री के सूत्र बताते हैं कि यूकलेले की बिक्री ने गिटार और कीबोर्ड को काफी पीछे छोड़ दिया। इसके साथ ही यह सबसे पसंदीदा म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट बन गया है।
शैलेश मेनन की रिपोर्ट:
यूकलेले बना लोगों की पसंद
9 महीने पहले भुवनेश्वर में रहनेवालीं ऑर्थोडॉन्टिस्ट नीतू गौतम ने कोरोना के कहर के बीच खुद को शांत रखने के लिए यूकलेले (4 तारों वाला छोटा गिटार) खरीदा। कुछ हफ्ते तक उसे बजाना सीखा फिर वह आसानी से अमेरिकी गायक जॉनी कैश का गाना, 'यू आर माई सनशाइन' बजाने लगीं। वह कहती हैं, 'मैंने यूकलेले इसलिए चुना क्योंकि मैं एक आसान म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट सीखना चाहती थी और इसने मेरी दुनिया बदल दी है।'नीतू अकेली नहीं हैं। पिछले साल लॉकडाउन के दौरान बहुत-से लोगों ने म्यूजिक को अपनी ज़िंदगी का हिस्सा बनाया। उन्होंने सुर और लय से अपना अकेलापन दूर किया। इसके लिए यूकलेले खरीदा। यह सबसे ज्यादा पसंद किए जाने वाले इंस्ट्रूमेंट बन गया। वेस्टर्न म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट ब्रैंड काडेंस के सीईओ सिद्धार्थ झुनझुनवाला कहते हैं, 'हमने अपने प्लैटफॉर्म पर हर दिन 600 से ज्यादा यूकलेले और 400 से ज्यादा गिटार बेचे हैं।' वहीं नीतू बताती हैं कि उनके जैसे नौसिखिये के लिए 4 तार वाला छोटा-सा गिटार यूकलेले बजाना सीखना बेहद आसान था। वैसे कुछ लोग यूकलेले बजाने की बेसिक बातें सीखने में सिर्फ 10 मिनट का वक्त लगाते हैं, तार सेट करने में 10-12 घंटे और इसमें महारत हासिल करने के लिए 6 महीने तक सिर्फ 30 मिनट रोजाना खर्च करते हैं। ऐसा माना जाता है कि 19वीं सदी में पुर्तगाली प्रवासियों ने यूकलेले को अमेरिका के हवाई द्वीप समूह तक पहुंचाया और अब यह उनके दिलों में बस गया है।
यूकलेले के अलावा गिटार और कीबोर्ड (पियानो) भी
पिछले साल जिन म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट्स ने कोरोना महामारी की वजह से घरों में बंद लोगों की ज़िंदगी में संगीत घोला उसमें यूकलेले के अलावा गिटार और कीबोर्ड (पियानो) भी थे। कुछ लोगों ने जहां एक नया शौक पूरा करने के लिए यूकलेले और कीबोर्ड खरीदे, वहीं कुछ ऐसे लोग भी थे जिन्होंने अपने पुराने शौक को जिंदा किया। उन्होंने बरसों पहले म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट्स बजाना सीखा था लेकिन वक्त की कमी होने की वजह से बजा नहीं पाते थे। उन्होंने पुरानी धुनें याद करके बजाईं। जब बहुत सारे लोग वर्क फ्रॉम होम करने लगे तो उन्होंने म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट्स की सेल बढ़ा दी। झुंझुनवाला बताते हैं, 'बिक्री के मामले में यह बेस्ट साल है। इस साल के अंत तक हम पिछले वित्त वर्ष के 30 करोड़ रुपये की तुलना में 75 करोड़ रुपये तक का कारोबार कर लेंगे।' म्यूजिक सीखने के लिए लोग फिलहाल गिटार, यूकलेले और दूसरे वेस्टर्न इंस्ट्रूमेंट्स की ज्यादा मांग कर रहे हैं। इस वजह से भारतीय संगीत के वाद्ययंत्र बनानेवाले और उनके डीलरों पर असर पड़ा है। स्कूल-कॉलेज, संगीत समारोह, मनोरंजक कार्यक्रम, म्यूजिकल प्रोग्राम और रिकॉर्डिंग स्टूडियो ठप पड़े हैं। इससे भारतीय शास्त्रीय संगीत के वाद्य यंत्रों की बिक्री आधी रह गई है। दुकानदार बताते हैं कि सितार को छोड़कर, जो कम संख्या में बनता है और ज्यादातर एक्सपोर्ट किया जाता है, भारतीय संगीत वाद्य यंत्रों की सभी कैटिगरी पर बुरा असर पड़ा है।
1000 करोड़ रुपये से ज्यादा की इंडस्ट्री
रिटेलर प्लैटफॉर्म बजाओ डॉट कॉम (bajaao.com) ने इस दौरान बढ़िया काम किया है। इसके फाउंडर आशुतोष पांडे कहते हैं, 'जिनके ई-कॉमर्स चैनल हैं उनका काम ठीक-ठाक चला है। लेकिन अधिकतर भारतीय वाद्य यंत्र बनानेवाले ऑनलाइन नहीं दिखते। इस वजह से उन्होंने यह मौका खो दिया। इंडियन इंस्ट्रूमेंट्स के पीछे रह जाने की एक वजह यह भी है कि उन्हें बजाना सिखाने के लिए ऑनलाइन क्लासेज नहीं बढ़ीं। इंडियन क्लासिकल म्यूजिक सिखाने वाले गुरु अधिकतर बुजुर्ग हैं और जब लॉकडाउन में बाहर आने-जाने पर पाबंदी लगी तो वे ऑनलाइन भी नहीं आ सके। उनमें से बहुत लोगों को यह पता नहीं था कि किसी मुश्किल वाद्ययंत्र को ऑनलाइन कैसे बजाना सिखाया जा सकता है। देश में संगीत वाद्य यंत्रों को बनानेवाली और रिटेल इंडस्ट्री, इस वक्त करीब 1000 करोड़ रुपये से ज्यादा की है। यह इंडस्ट्री सीखनेवालों, शौकिया लोगों और प्रफेशनल संगीतकारों पर निर्भर रहती है।
फुर्तादूस म्यूजिक (furtados music) स्टोर भारतीय संगीत के वाद्य यंत्रों का सबसे बड़ा रिटेलर है। इसके डायरेक्टर जोसेफ गोम्स बताते हैं कि हमारे देश में वोकल म्यूजिक की ट्रेनिंग बहुत अच्छी तरह दी जाती है। लेकिन जब म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट्स सिखाने की बात हो तो लोग पीछे रह जाते हैं। हालांकि अब ट्रेंड बदल रहा है। लोग अलग-अलग तरह के वाद्य यंत्र सीखना पसंद करने लगे हैं। वह कहते हैं कि यह साल चैलेंजिंग है लेकिन हमने गिटार की कैटिगरी में खूब बिक्री की। कीबोर्ड की मांग भी अच्छी रही। ऑनलाइन म्यूजिक सिखाने के ट्रेंड ने हमारी हेल्प की। लेकिन ज्यादातर ऑनलाइन क्लासेज भारतीय संगीत और वेस्टर्न म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट्स बजाना सीखने की इच्छा रखनेवाले स्टूडेंट्स के लिए थी। तनुजा गोम्स और धारिणी उपाध्याय ने फुर्तादूस स्कूल ऑफ म्यूजिक (एफएसएम) शुरू किया। इस ऑनलाइन स्कूल में म्यूजिक सीखने के लिए हर उम्र के 10,000 से ज्यादा नए स्टूडेंट्स आगे आए। एफएसएम के 7 कोचिंग सेंटर हैं जो 150 से ज्यादा प्राइवेट स्कूलों के साथ पार्टनरशिप में करीब डेढ़ लाख स्टूडेंट्स को सिखा रहे हैं।
वह बताती हैं, 'जब लॉकडाउन हुआ तो स्कूलों ने संगीत सिखाना बंद कर दिया। लेकिन करीब 50 स्कूलों ने ऑनलाइन क्लास जारी रखीं। यह हमारी किस्मत थी कि हमारा ऑनलाइन टीचिंग कंटेंट तैयार था। हालांकि पहले जब हमने ऑनलाइन क्लास शुरू की थी तो काफी विरोध झेलना पड़ा था। तनुजा कहती हैं कि कोरोना ने डिजिटल लर्निंग का प्रोसेस तेज किया। अब ऑनलाइन म्यूजिक कोर्स का बहुत विरोध नहीं दिखता। यह स्टूडेंट्स के लिए काफी सुविधाजनक है। वे अपना आने जाने का वक्त भी बचा सकते हैं। हम हाइब्रिड मॉडल उभरता हुआ देख रहे हैं जिससे स्टूडेंट्स ऑनलाइन और ऑन कैंपस दोनों तरह से म्यूजिक सीखेंगे।
ईस्ट और वेस्ट का संगीत
अब वेस्टर्न म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट्स का भविष्य उज्ज्वल दिख रहा है तो भारतीय वाद्य यंत्रों के डीलरों ने अपनी बिक्री बढ़ाने के लिए नए डिस्ट्रिब्यूशन चैनल खोजने शुरू कर दिए हैं। हालांकि भारतीय संगीत वाद्ययंत्र अधिकतर हाथ से बने होते हैं और भारी व नाजुक होते हैं। इस वजह से उनकी शिपिंग मुश्किल हो जाती है। साधारण क्वॉलिटी वाले सितार को ही लें, जिसकी कीमत 25 हजार से 30 हजार रुपये तक हो सकती है। अब कोलकाता में बने सितार को मुंबई ले जाने के लिए 6 हजार से 8 हजार रुपये तक खर्च करने पड़ सकते हैं। अगर सितार को अमेरिका भेजना है तो शिपिंग चार्ज 35 हजार रुपये तक हो सकता है। मुंबई के हरिभाऊ विश्वनाथ म्यूजिकल इंडस्ट्रीज के पार्टनर आशीष दीवाने कहते हैं कि इसलिए भारतीय टूरिजम म्यूजिकल इंडस्ट्री के लिए अहम है। सबसे अच्छी बात तब होती है जब विदेशी टूरिस्ट या एनआरआई हमारी दुकान पर आते हैं, कोई भारतीय संगीत वाद्य यंत्र खरीदते हैं और उसे अपने साथ ले जाते हैं। लेकिन पिछले एक साल से हमारे पास कोई टूरिस्ट नहीं आया। नवंबर और मार्च के बीच टूरिस्ट जितनी खरीदारी करते हैं, वह हमारी कुल बिक्री का 40 फीसदी के करीब होती है। इस साल ऐसा नहीं हुआ।
हाथ से बने संगीत वाद्य यंत्रों को तैयार करने में लगता है समय
दरअसल हाथ से बने भारतीय संगीत वाद्य यंत्रों को तैयार करने में काफी वक्त लगता है, करीब 60 दिन तक। वीणा, घटम, संतूर, सरोद, सारंगी, तानपुरा और मृदंगम जैसे तार वाले इंस्ट्रूमेंट्स बनारस, चंडीगढ़, कोलकाता और दिल्ली के आसपास बनाए जाते हैं। मेरठ में बने पीतल के बैंड और रामपुर व कोलकाता में बने वायलिन खूब पसंद किए जाते हैं जबकि महाराष्ट्र अपने तबले और हारमोनियम के लिए मशहूर है। तमिलनाडु वीणा, मृदंगम, घटम, नादस्वरम आदि के लिए। लेकिन लॉकडाउन ने यहां संगीत पर विराम लगा दिया।
तंजावुर के वेंकटेश्वर म्यूजिकल के आर. वेंकटेशन कहते हैं कि वीणा और मृदंगम को ऑनलाइन सिखाना आसान नहीं है। इसलिए क्लासेज नहीं हो रहीं। हमारे बिजनेस पर बुरा असर पड़ा है क्योंकि अब कोई संगीत समारोह या संगीत कार्यक्रम भी नहीं हो रहा है। हमारे कस्टमर अधिकतर प्रफेशनल संगीतकार हैं।' वेंकटेशन को कटहल के पेड़ की लकड़ी से वीणा बनाने में करीब एक महीने का वक्त लगता है। उनके कस्टमर ज्यादातर केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु से आते हैं। अच्छी तरह से बनी पुरानी वीणा को बेचने पर भी बढ़िया कीमत मिल जाती है। वेंकटेशन बताते हैं कि साल 1980 में खरीदी गई 2 हजार रुपये की बढ़िया वीणा अब 1 लाख रुपये से ज्यादा की मिल सकती है। हालांकि पिछला साल अच्छा नहीं रहा। उन्होंने सिर्फ 2 वीणा बेची हैं। वह कहते हैं कि हम पुराने इंस्ट्रूमेंट्स की मरम्मत करके गुजारा कर रहे हैं।
देश के सबसे अच्छे तबला बनानेवालों में से एक हरिदास घाटकर, वेंकटेशन वाली बातें दोहराते हैं। वह कहते हैं, 'हमारे कस्टमर ज्यादा कलाकार हैं। इस साल संगीत कार्यक्रम ही नहीं हो रहे तो बिक्री भी कम हो गई। घाटकर की वर्कशॉप मुंबई में है। घाटकर और उनके दो बेटों को एक जोड़ी तबला बनाने में 15-20 दिन लगते हैं। मजबूत लकड़ी, चमड़े की पट्टियां और तांबे के कवर से यह तबला बनता है। तबले पर लगने वाली पट्टियां भैंस की चमड़ी से बनी होती हैं जबकि उसका मुख्य हिस्सा बकरी की खाल से बनाया जाता है। वह कहते हैं कि हम एक्सपोर्ट भी करते हैं लेकिन इस साल मार्केट अच्छी नहीं रही। हमारी बिक्री तभी बढ़ेगी जब प्रफेशनल संगीतकारों को काम मिलना शुरू होगा। तब एक्सपोर्ट भी बढ़ेगा और टूरिजम भी शुरू हो जाएगा।
दिल्ली की रिखी राम म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट मैन्यूफैक्चरिंग कंपनी के मालिक अजय रिखी राम कहते हैं कि अगर कोई सिर्फ भारतीय वाद्य यंत्र बेचता है तो गुजारा नहीं कर सकता। बिजनेस के लिए इंडियन और वेस्टर्न दोनों तरह के इंस्ट्रूमेंट्स बेचने की जरूरत पड़ती है। ज्यादा ग्राहक पाने के लिए भी फिजिकल और डिजिटल दोनों तरह से मौजूद रहना पड़ता है। फिलहाल दुकानों पर लोग नहीं आ रहे हैं लेकिन कोरोना के दौरान अपने म्यूजिक के शौक को पूरा करने वालों ने हमारी मदद की। हमने अनलॉक के हर फेज में पुराने इंस्ट्रूमेंट्स ठीक किए। तब लोग नई चीजें खरीदना चाहते थे, उन्होंने वे इंस्ट्रूमेंट्स खरीदे। हम अभी तक कोरोना के पहले वाले वक्त के 60-65 पर्सेंट के स्तर पर हैं। धीरे-धीरे चीजें ठीक हो रही हैं।
सितार भी एक ऐसा भारतीय वाद्ययंत्र है जिसने कोरोना का बुरा असर झेला है। इसकी बिक्री भी कम हो रही है। एक सितार को तैयार करने में करीब 2 महीने लग जाते हैं। इसे बनानेवाले सालभर में सिर्फ 8 से 10 सितार बनाते हैं। इनमें से अधिकतर सितार विदेशी लोग खरीदते हैं। कोलकाता के क्लासिकल म्यूजिक इंस्ट्रूमेंट बनानेवाले हेमेन एंड कंपनी के मालिक रतन सेन कहते हैं, 'इसकी मांग इसलिए है क्योंकि शौकीन लोग नहीं, एक्सपर्ट संगीतकार सितार खरीदते हैं। इस साल हमने अपने विदेशी कस्टमर्स को किसी तरह शिप के जरिये कुछ सितार भिजवाए हैं।
गिटार के मुकाबले एक सितार में 21 तार तक हो सकते हैं, इसे बनाने और बजाने के लिए बहुत प्रैक्टिस की जरूरत होती है। इसके उलट शायद सहज होने की वजह से ही कोरोना के खराब वक्त में भी यूकलेले देश के युवाओं के बीच अपनी जगह बनाने में कामयाब रहा।
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నవశకానికి నాంది


నవశకానికి నాంది
ప్రతిమా భౌమిక్‌... డాక్టర్‌ భారతి పవార్‌... ఒకరిది ఈశాన్య రాష్ట్రం... మరొకరిది మహారాష్ట్ర ప్రాంతం. ఇద్దరి నేపథ్యాలు వేరైనా... సామాజిక సేవతో ప్రజలతో మమేకమైన మహిళామణులు వీరు. ప్రధాని నరేంద్ర మోదీ తాజాగా ప్రకటించిన కేంద్ర మంత్రి మండలిలో చోటు దక్కించుకున్నారు. తొలిసారి మంత్రులుగా బాధ్యతలు చేపడుతున్న వీరిద్దరూ... నవశకానికి నాంది పలుకుతున్నారు. 
మొదటి జీతం వరద బాధితులకు 
త్రిపుర వెస్ట్‌ నియోజకవర్గం నుంచి పార్లమెంట్‌ సభ్యురాలిగా గెలుపొందిన 50 సంవత్సరాల ప్రతిమా భౌమిక్‌ 1991 నుంచి భారతీయ జనతా పార్టీలో సభ్యురాలు. ‘దీదీ’గా సుపరిచితురాలైన ప్రతిమ త్రిపుర ముఖ్యమంత్రి శ్రీబిలాప్‌ కుమార్‌ వర్గంలో కీలకం. 2016లో రాష్ట్ర పార్టీ ప్రధాన కార్యదర్శిగా నియమితులయ్యారు. సోనమురాలోని బరనారాయణ్‌ ప్రాంతం నుంచి వచ్చిన ఆమె... అగర్తలలోని ఉమెన్స్‌ కాలేజీలో బయోసైన్స్‌లో డిగ్రీ చేశారు. రాజకీయాల్లో అంచలంచెలుగా ఎదిగారు. గత పార్లమెంట్‌ ఎన్నికల్లో పార్టీ ఆమెకు టికెట్‌ ఇచ్చింది. తొలిసారి పోటీ చేసి మూడు లక్షలకు పైగా మెజార్టీతో కాంగ్రెస్‌ అభ్యర్థిపై గెలుపొందారు. ‘‘త్రిపురను అన్ని రంగాల్లో అభివృద్ధి చేయడమే తన ఏకైక లక్ష్యం’ అని నాడు ఆమె ప్రకటించారు. అన్నట్టుగానే రాష్ట్రంలో బడుగు, బలహీన వర్గాల అభ్యున్నతికి కృషి చేశారు. ఆ తరువాత ఆహార, వినియోగదారుల వ్యవహారాలు, ప్రజా పంపిణీ పార్లమెంట్‌ స్టాండింగ్‌ కమిటీ సభ్యురాలిగా వ్యవహరించారు. పార్లమెంట్‌ సభ్యురాలిగా తనకు వచ్చిన మొదటి నెల జీతం లక్ష రూపాయలను అసోం వరద బాధితుల సహాయ నిధికి అందించి పెద్ద మనసు చాటుకున్నారు.
ఆమెది ప్రజల పక్షం
డాక్టర్‌ భారతి ప్రవీణ్‌ పవార్‌... మహారాష్ట్రలోని డిండోరి లోక్‌సభ స్థానం నుంచి ఎన్నికైన ఆమె కింది స్థాయి నుంచి ఎదిగిన మహిళ. గతంలో ‘నాశిక్‌ జిల్లా పరిషత్‌’ సభ్యురాలిగా పని చేశారు. ఆ సమయంలో మహిళలు, పిల్లల్లో పోషకాహార లోపంపై దృష్టి పెట్టారు. బలవర్థకమైన ఆహారాన్ని అందించేందుకు కృషి చేశారు. అలాగే ప్రజలందరికీ స్వచ్ఛమైన తాగు నీటి కోసం పోరాడారు. నాశిక్‌ మెడికల్‌ కాలేజీలో ఎంబీబీఎస్‌ చదివిన ఆమె... ప్రజా సేవలో భాగమయ్యారు. మహారాష్ట్రలోని ఖండేష్‌ ఆమె సొంత ఊరు. 42 ఏళ్ల భారతి సేవా నిరతి, ప్రజల్లో ఉన్న మంచి పేరు ఆమెకు 2019 లోక్‌సభ ఎన్నికల్లో బీజేపీ టికెట్‌ దక్కేలా చేశాయి. అంతేకాదు... అదే సంవత్సరం ఉత్తమ మహిళా పార్లమెంటేరియన్‌ అవార్డు కూడా అందుకున్నారు. ప్రజాక్షేత్రంలో తొలి పరీక్షలోనే నెగ్గిన భారతి... ఇప్పుడు కేంద్ర మంత్రి అవ్వడం అభినందనీయం. 

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