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The Virus Is Not Going Anywhere Now, It Will Become A Seasonal Disease, Only Then We Will Get Rid Of Masks कोरोना से जूझती जिंदगी नॉर्मल कब होगी:AIIMS के डायरेक्टर ने कहा- कोरोना वायरस अभी कहीं नहीं जाने वाला, यह मौसमी बीमारी बन जाएगा तभी मास्क से छुटकारा मिलेगा चंडीगढ़14 घंटे पहले कॉपी लिंक कोरोनावायरस अभी हमारे बीच ही रहेगा। हालांकि, यह बाद में एक मौसमी बीमारी हो जाएगा। इससे भारत में आने वाली तीसरी लहर बच्चों के लिए खतरनाक साबित होगी, इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। यह बात सिर्फ इसलिए कही जा रही थी, क्योंकि उस समय तक ज्यादातर बालिग लोगों को वैक्सीन लग चुकी होगी। यह कहना है दिल्ली AIIMS के डायरेक्टर डॉ. रणदीप गुलेरिया का। डॉ. गुलेरिया ने कहा कि AIIMS की स्टडी के अनुसार 50 से 60 फीसदी बच्चों को कोविड हो चुका है, जिसका पता भी नहीं चला। AIIMS और PGI चंडीगढ़ की स्टडी देखें तो तीसरी लहर में भी बच्चों को माइल्ड इंफेक्शन होगा, लेकिन मौत की दर बढ़ने की आशंका काफी कम है। डॉ. गुलेरिया शुक्रवार को पंजाब यूनिवर्सिटी (पीयू) के डिपार्टमेंट ऑफ माइक्रोबायोलॉजी की ओर से कराए गए कार्यक्रम में लेक्चर दे रहे थे। इसका विषय था- कोविड-19 महामारी से हमने क्या सीखा और हम क्या कर सकते हैं। इस कार्यक्रम में डॉ. गुलेरिया ने कई सवालों के जवाब भी दिए। सवाल: चंडीगढ़ में लगभग 70% आबादी को वैक्सीन लग चुकी है और लोग मास्क भी पहन रहे हैं। इसके बावजूद अगर इंफेक्शन का खतरा है तो वैक्सीनेशन का फायदा क्या? जवाब: अभी तक आई कोई भी वैक्सीन हमें इंफेक्शन से नहीं बचाती, लेकिन ये बीमारियों को गंभीर होने से बचाती है, इसलिए ही वैक्सीन जरूरी है। वैक्सीनेशन के बाद भी इंफेक्शन का खतरा रहता है और वैक्सीनेट हुआ व्यक्ति दूसरों को संक्रमित कर सकता है, इसलिए मास्क पहनना भी जरूरी है। बेशक हमारे देश में सघन आबादी और कई अभाव के कारण उचित दूरी पूरी तरह संभव नहीं होती, लेकिन मास्क लगाकर और हाथ साफ रखने से इंफेक्शन पर कंट्रोल पा सकते हैं। सवाल: जिंदगी सामान्य कब होगी? जवाब: कोरोना वायरस अब कहीं नहीं जाने वाला है, ये हमारी जिंदगी का हिस्सा है। जब हर्ड इम्युनिटी आ जाएगी तो केस इतने नहीं बढ़ेंगे। ये मौसमी बीमारी बन जाएगी, तभी हमें मास्क से छुटकारा मिलेगा। ये कब तब होगा, इस पर अभी टिप्पणी नहीं की जा सकती। सवाल: कोविड को लेकर सेकेंडरी बैक्टीरियल इंफेक्शन के प्रति लोग चिंतित हैं, क्या कहेंगे? जवाब: सिर्फ बैक्टीरियल ही नहीं सेकेंडरी फंगस इंफेक्शन भी चिंता की बात हैं। म्यूकरमाइकोसिस के बढ़ते हुए केस इसी की ओर से इशारा है। दोनों तरह के इंफेक्शन चिंता की बात हैं और इसके लिए भी व्यक्तिगत और प्रशासनिक दोनों स्तर पर मैनेजमेंट की जरूरत है। लोगों ने बिना डॉक्टर की राय से, माइल्ड इंफेक्शन और होम आइसोलेशन के दौरान बिना डॉक्टर की पर्ची के स्टेरॉयड लिए हैं, जो नहीं होना चाहिए। डॉक्टरों, प्रशासन और लोगों को सावधानी बरतनी होगी। सवाल: डेल्टा प्लस वैरिएंट को क्या ‘वैरिएंट ऑफ कन्सर्न’ कहा जा सकता है? जवाब: अल्फा वैरिएंट पहले आए कोरोना से दोगुना इंफेक्शियस था और डेल्टा प्लस इससे 50% ज्यादा। लेकिन डेल्टा प्लस पर टिप्पणी करने के लिए फिलहाल ज्यादा डेटा उपलब्ध नहीं है। न ही पता है कि यह कितना खतरनाक होगा इसलिए फिलहाल इसको ‘वैरिएंट ऑफ कन्सर्न ’ कहना ठीक नहीं है। सवाल: बच्चों में लगातार मानसिक समस्याएं बढ़ रही हैं, आपका क्या कहना है? जवाब: स्कूल बंद हैं और बच्चों को बाहर जाने की मंजूरी नहीं है, इसलिए उनमें ये दिक्कतें बढ़ रही हैं। मानसिक समस्याएं सभी में बढ़ी हैं। पिछले कुछ समय में महामारी ने सभी के दिल और दिमाग पर बुरा प्रभाव डाला है, इसलिए मेंटल हेल्थ की दिशा में भी काम करना होगा। सवाल: दूसरी लहर में ऑक्सीजन की कमी से क्या सीखा? जवाब: ऑक्सीजन के नए प्लांट लगाए गए हैं और ऐसा इंतजाम है कि अगली बार इसकी कमी ना आए। इसके अलावा ये जरूरी है कि हर एरिया में स्वास्थ्य सुविधाओं का बराबर बंटवारा हो। लोगों को पता रहना चाहिए कि बेड कहां पर उपलब्ध हैं। सवाल: क्या लोग लापरवाह हो रहे हैं? जवाब: वैक्सीनेशन को लेकर लोगों में भ्रम, वैक्सीनेशन की कम उपलब्धता, छुट्टियां मनाने निकली लोगों की भीड़, जिसमें से किसी-किसी ने ही मास्क पहना होता है। यह खतरनाक है। ऐसे लोग ही तीसरी लहर को जल्द लाएंगे, साथ ही नए वैरिएंट का कारण भी बन सकते हैं। सवाल: तीसरी लहर को रोकने के लिए क्या कोशिश की जानी चाहिए? जवाब: एक कोशिश इंडिविजुअल लेवल पर है कि आप ऐसे बड़े फंक्शन न करें, भीड़ न करें, जिससे इंफेक्शन बढ़ने का खतरा हो। वैक्सीन जरूर लगवाएं। कोविड प्रोटोकॉल का पालन करें। दूसरी कोशिश है प्रशासनिक स्तर पर। कड़ी निगरानी बेहद जरूरी है। जिस एरिया में लगे कि 5% से ज्यादा कोरोना पॉजिटिव केस आ रहे हैं, वहां सख्ती होनी चाहिए। मिनी और सिर्फ एरिया वाइज लॉकडाउन और मैनेजमेंट जरूरी है। अगर भीड़ नहीं होगी तो उसमें आपस में इंफेक्शन फैलने का खतरा नहीं रहेगा। खबरें और भी हैं...
फिलीपींस में आत्महत्या दर 57.3 प्रतिशत तक पहुंची samaylive.com - get the latest breaking news, showbiz & celebrity photos, sport news & rumours, viral videos and top stories from samaylive.com Daily Mail and Mail on Sunday newspapers.
सरोकार : कोविड : गर्भवती महिलाओं का मानसिक स्वास्थ्य दांव पर samaylive.com - get the latest breaking news, showbiz & celebrity photos, sport news & rumours, viral videos and top stories from samaylive.com Daily Mail and Mail on Sunday newspapers.
गम से ऐसे निकलें बाहर Authored by Subscribe Corona After Effects: कोरोना की वजह से न जाने कितने लोगों ने अपनों को खो दिया। इनकी कमी दिल में खलती रहेगी। यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि वे लोग हमारे कितने करीब थे। दूर के रिश्तेदार का गम शायद कम हो सकता है पर अगर वह कोई करीबी हो तो दिल बहुत दुखता है।
किसी के जाने के गम को कोई दूर नहीं कर सकता, लेकिन ज़िंदगी चलने का ही नाम है। इस कोरोना की वजह से कितने ही घरों का सुकून खत्म हो गया। बहुत-से लोगों को तो लाख जतन के बावजूद बचाया न जा सका। कुछ अपनों को आखिरी विदाई भी नहीं दे पाए। कोरोना ने किसी को कोई नई बीमारी दे दी तो किसी की पुरानी बीमारी को बहुत बढ़ा दिया। किसी का बिजनेस बर्बाद कर दिया तो किसी की नौकरी छीन ली। जिन लोगों के साथ ऐसा हुआ, उनका मन परेशान है। कुछ लोग डिप्रेशन में भी पहुंच गए हैं। ऐसे में सदमे से उबरने के लिए क्या उपाय हो सकते हैं, क्या इन्हें जल्दी इस स्थिति से बाहर निकाला जा सकता है? इस बारे में एक्सपर्ट्स से जानकारी लेकर बता रहे हैं लोकेश के. भारती 5 बातें जो सदमे से बाहर निकाल सकती हैं मोटिवेशन के ओवरडोज से बचें। यह चीजों को बनाने के बजाय कई बार बिगाड़ भी देता है। यह दवा के ओवरडोज की तरह है। जैसे अचानक कोई हादसा होता है, उसी तरह कोरोना भी एक दुर्घटना की तरह है। कोई भी इसके लिए पहले से तैयार नहीं था। हर शख्स अपने करीबी को बचाने की पूरी कोशिश करता है। कोई सफल होता है, कोई नहीं होता। इसलिए कोशिशों पर सवाल नहीं उठाया जा सकता। भावनाओं को रोकने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। अगर कोई रोना चाहता है या गुस्सा करना चाहता है तो उस पर रोक नहीं होनी चाहिए। हां, अगर यह बहुत ज्यादा हो जाए या शख्स बेहोश होने की स्थिति में पहुंचने लगे, तब उसे गम से बाहर लाने की कोशिश करनी चाहिए। अगर कोई नहीं रोता है तो उसे जबरदस्ती रुलाना भी नहीं चाहिए। भावनाओं को जतलाने का तरीका अलग-अलग हो सकता है। स्थिति को जिसने स्वीकार कर लिया, वह आगे बढ़ जाएगा। जो नहीं कर पाता है, उसके लिए परेशानी ज्यादा होती है। इस धरती पर जो भी शख्स आया है, उसकी मौत तय है। हां, कोई पहले या अचानक चला जाता है और कोई बाद में। गम किसी अपने के जाने का... कोरोना की वजह से न जाने कितने लोगों ने अपनों को खो दिया। इनकी कमी दिल में खलती रहेगी। यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि वे लोग हमारे कितने करीब थे। दूर के रिश्तेदार का गम शायद कम हो सकता है पर अगर वह कोई करीबी हो तो दिल बहुत दुखता है। जान बचा न पाने का गिल्ट जब कोई गुजर जाता है तो बहुत दुख होता है। लेकिन जब हम चाहकर भी उसकी कोई मदद नहीं कर पाते तो हमारा अपराध बोध हमें परेशान करता रहता है। विवेक के पैरंट्स यूपी के एक गांव में रहते हैं और वह खुद अमेरिका में। कोरोना की वजह से फ्लाइट्स बंद थीं। इस बीच मां को कोरोना हो गया। उसने गांव में ही कुछ इलाज का बंदोबस्त किया पर वह पूरा नहीं था। मां गुजर गईं। विवेक मां को मुखाग्नि तक नहीं दे सके। अब विवेक इस गिल्ट से परेशान हैं। जब दिल दुखता है तो हम खुद को कोसते हैं। खुद में कमी निकालते हैं। जैसे विवेक ने मां के इलाज की कोशिश की। लेकिन मां को आखिरी बार नहीं देख पाए। इससे पहले कई बार विवेक की मां ने उनको घर आने के लिए कहा था। तब विवेक ने दिवाली के आसपास आने की बात कही थी। यह भी कहा था कि मां तुम्हारा भी पासपोर्ट तैयार हो जाएगा तो हम साथ चलेंगे। इसी बीच कोरोना की दूसरी लहर ने ज़िंदगी में उथल-पुथल मचा दी। ऐसे में वाकई किसी को पता नहीं होता कि आगे क्या होने वाला है। विवेक के साथ भी यही हुआ। अब सोचकर देखें कि अगर सबको पता हो आगे हादसा होने वाला है तो सभी उससे बच जाएंगे, कोई नहीं मरेगा। विवेक ने उस वक्त जो सोचा वह भी ठीक था। वह मां के साथ रहने के लिए ही उन्हें अपने साथ लेकर जाना चाहते थे। दुख और पछतावा उस वक्त जरूर होना चाहिए जब कोई अपना बार-बार फोन करे या बात करने की कोशिश करे और अंहकार या पुरानी नाराजगी की वजह से उनका फोन न उठाएं या गलत तरीके से बात करें। जब तूफान आता है तो हमारे हाथों में कुछ नहीं होता। नुकसान भी तूफान की रफ्तार पर ही निर्भर करता है। कोरोना का तूफान भी ऐसा ही है। किसी के न रहने का दुख कुसुम के पति सर्वेश बिजनेसमैन थे। पिछले साल सर्वेश को बिजनेस में बहुत नुकसान हुआ। उन्हें शराब और सिगरेट की लत पहले से थी जो बिजनेस में घाटा होने के बाद ज्यादा बढ़ गई। वह दिन में 12 से 14 सिगरेट पीने लगे। शराब भी ज्यादा लेने लगे। कुसुम ने नशा छोड़ने के लिए बार-बार गुहार लगाई। पति को यह भी समझाया कि फ्लैट और गाड़ी बेचकर गांव चलते हैं। लेकिन सर्वेश ने उनकी बात नहीं मानी। नशा बढ़ता रहा और वजन भी काफी बढ़ गया। इम्यूनिटी कम होने लगी। जब कोरोना की दूसरी लहर आई तो कुसुम का पूरा परिवार चपेट में आ गया। यहां तक कि 8 और 11 साल की बेटियों को भी कोरोना हुआ। एक हफ्ते के अंदर सभी का बुखार उतर गया लेकिन सर्वेश का बुखार जस का तस रहा। सिगरेट की लत की वजह से फेफड़े पहले ही कमजोर हो चुके थे तो ऑक्सिजन लेवल 8वें दिन 80 से नीचे चला गया। कुसुम ने काफी मशक्कत के बाद एक कोविड केयर सेंटर में एडमिट कराया। इलाज के बावजूद कोरोना इंफेक्शन बढ़ता गया और 17वें दिन सर्वेश की मौत हो गई। अब कुसुम खुद को कोसती हैं कि शायद उनके ज्यादा ध्यान देने से सर्वेश की सिगरेट की लत छूट जाती तो वह बच जाते। वह किसी बड़े अस्पताल में भर्ती करा पाती तो शायद वह बच जाते। कुसुम को यह भी लगता है कि उनकी वजह से ही पति की मौत हो गई। सच तो यह है कि कुसुम ने सर्वेश को बचाने की बहुत कोशिश की। घर और गाड़ी बेचने तक की सलाह दी। यह इंसानी फितरत है कि जब कोई गुजर जाता है तो उसकी कमियों के बारे में बात नहीं करते, अफसोस करते हैं। अफसोस के 5 स्तर होते हैं 1. सचाई को स्वीकार न करना...जब किसी बहुत करीबी की मौत होती है तो हम उसे स्वीकार नहीं कर पाते। हम यह नहीं समझ पाते कि जिससे हमने पिछले हफ्ते या 1 दिन पहले या फिर उसी दिन बात की थी, वह ऐसे कैसे दुनिया से जा सकते हैं। हम उस दुख से निकलना ही नहीं चाहते। हमने जो वक्त उनके साथ गुजारा था, उसे छोड़कर आगे बढ़ने की सोच से भी भागते हैं। हमारा मन यह मानने को तैयार ही नहीं होता यानी हम वर्तमान में आना ही नहीं चाहते। हम अपनी असल स्थिति से भागने की कोशिश करते हैं। क्या करें: यह जरूरी नहीं कि किसी की मौत के फौरन बाद ही इस बात को स्वीकार कर लिया जाए कि वह चला गया। खुद को कुछ वक्त दें। अगर वक्त ज्यादा लग रहा है तो घर के सदस्य और दोस्त ज्यादा दबाव न बनाएं कि जो दुख में है वह फौरन हकीकत समझे। जख्म बड़ा है तो भरने में वक्त भी लग सकता है। 2.गुस्सा खूब आना... जब कोई अपना जाता है तो गुस्सा भी खूब आता है। खुद पर, गैरों पर, दुनिया पर, सब पर। कभी-कभी गुजरे हुए शख्स पर भी गुस्सा आता है कि उन्होंने बात नहीं मानी, लेकिन ऐसा कम ही होता है। ऐसे में हमारी कोशिश यह होती है कि गुस्से को दबा लें। लोग क्या कहेंगे, यही सोचकर अपना दुख जता नहीं पाते। क्या करें: गुस्सा आए तो उसे निकलने दें। यह न सोचें कि कोई क्या कहेगा। गुस्से की भावना को बाहर निकालने में ही फायदा है। जो भी इच्छा करे, वही करें। खूब चिल्लाने या जोर से रोने का मन हो तो चिल्लाएं और रोएं। गुस्सा निकलने पर मन शांत होता है। भावना के वेग कम करने का एक बेहतरीन तरीका है गुस्से को निकलने देना। गुस्सा को जमा करके नहीं रखना चाहिए। 3. हम बार्गेनिंग करते हैं... जब कोई शख्स बीमार होता है या ऐसी स्थिति में पहुंच जाए जहां मरीज का ठीक होना लगभग नामुमकिन होता है, तब हम ऊपरवाले की शरण में जाते हैं। उनसे कहते हैं कि इसे ठीक कर दो, मैं उससे कभी झगड़ा या गुस्सा नहीं करूंगा या मैं अपनी बुरी आदत छोड़ दूंगा। हम यह भी सोचने लगते हैं कि काश! मैं बीते समय में जाकर कुछ चीजों को ठीक कर पाता, लेकिन मुमकिन नहीं हो सकता। हम किसी चमत्कार की उम्मीद भी पाल लेते हैं। जब यह बार्गेनिंग काम नहीं करती तो हम डिप्रेशन की तरफ बढ़ने लगते हैं। क्या करें: अगर कोई शख्स बहुत ज्यादा बीमार था और उसे बचा पाना लगभग असंभव था तो ऊपर वाले से बार्गेनिंग करके यह सोच लेना कि अब वह ठीक हो जाएगा, सही नहीं है। यह ख्वाब है जिसके टूटने पर बहुत दुख होता है। ऐसे में हकीकत को स्वीकार करना चाहिए कि ऐसी गंभीर बीमारी के बाद किसी का बच पाना संभव नहीं था। हमने कोशिश तो बहुत की थी। 4. डिप्रेशन में चले जाना...जब हमारी बार्गेनिंग से काम नहीं बनता, अपने प्रिय शख्स के लिए हमने जो मन में सोचा था, वह पूरा नहीं होता तो हम डिप्रेशन की ओर बढ़ने लगते हैं। सच को स्वीकार करते हैं और सिर्फ चुनौतियों के बारे में सोचते हैं, आगे की परेशानियों को देखते हैं। एक तरह से यह निराशा की स्थिति होती है। हमें लगता है कि इन समस्याओं का अब कोई हल नहीं है। कई बार लोग खुदकुशी के बारे में सोचने लगते हैं। क्या करें: किसी के घर में ऐसी स्थिति हो तो परिवार के सदस्यों या फिर किसी नजदीकी दोस्त को जरूर मदद करनी चाहिए। मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट्स की सहायता लेनी चाहिए। चूंकि डिप्रेशन की तरफ कोई शख्स तब जाता है जब उसे हकीकत का अहसास हो जाता है, लेकिन परेशानियों का हल नहीं दिखता। ऐसे में वह खुद को रोजाना के काम में व्यस्त रखे। क्रिएटिव काम जैसे पेंटिंग्स आदि करना या संगीत की मदद लें। ऐसे लोगों से जरूर दूरी बनानी चाहिए जो सिर्फ नेगेटिव बातें करते हों। उनके संपर्क में रहें जिनसे बात करके अच्छा महसूस हो। अगर कोई प्रॉपर्टी या फाइनैंस का मसला हो तो उसे हल करने की कोशिश तेज करें। रिश्तेदार और दोस्त सिर्फ बातों से सांत्वना न दें। सच में कुछ मदद करें। यह आर्थिक रूप से हो सकती है या कोई डॉक्यूमेंट निकलवाने या तैयार करवाने में, जैसे इंश्योरेंस क्लेम आदि के लिए। 5. हकीकत स्वीकार कर लेना... जब हम इस बात को मान लेते हैं कि जाने वाला शख्स अब वापस नहीं आएगा तो चीजें बेहतर होनी शुरू हो जाती हैं। मान लेते हैं कि जो हो गया सो हो गया। हम खुद को काम में बिजी रखने लगते हैं। नया रुटीन बनाते हैं या फिर पुराने रुटीन में कुछ बदलाव कर फिर से वापस काम पर लगते हैं। हालांकि, इस दौरान भी अफसोस की स्थिति बीच-बीच में आ ही जाती है। चीजें बेहतर होने लगती हैं। हकीकत स्वीकार करने और डिप्रेशन, दोनों में सच को स्वीकार कर लिया जाता है, लेकिन फर्क यह है कि डिप्रेशन में हम निराशावादी होते हैं जबकि हकीकत को उसी रूप में स्वीकार करने से हम सकारात्मक रूप से आगे बढ़ते हैं। फ्री हेल्पलाइन मेंटल हेल्थ 011-2211-4021 IHBAS (इंस्टिट्यूट ऑफ ह्यूमन बिहेवियर एंड एलाइड साइंसेज), 80-461-10007 NIMHANS (नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंसेस) (ऊपर के बताए दोनों फोन नंबर 24 घंटे और सातों दिन काम करते हैं। ) आंसुओं को बहने दें, नेगेटिविटी निकलने दें हम किसी अपने को खोते हैं, जॉब चली जाती है तो नेगेटिव इमोशंस का हमारी जिंदगी पर हावी होना स्वाभाविक है। इससे कोई बच नहीं सकता। कोई शख्स परफेक्ट नहीं होता। सभी गलती करते हैं। जिंदगी के किसी न किसी मोड़ पर हर कोई इम्परफेक्ट साबित होता ही है। सच तो यह है कि पॉजिटिव इमोशंस की तरह नेगेटिव इमोशंस भी खास होते हैं। इन इमोशंस को बाहर निकलने से कभी रोकना नहीं चाहिए। अगर आंखों से आंसू निकल रहे हैं तो उन्हें जरूर निकलने दें। इस बात को भी बोलने से नहीं हिचकना चाहिए कि हां मैं डिप्रेस हूं। यह भी स्वीकार्यता का ही एक रूप है। स्वीकार्यता के बाद ही जख्म भरने की प्रक्रिया शुरू होती है। दिल के किसी करीबी को अपनी पूरी बात बिना किसी एडिटिंग के बताना भी मददगार होता है। जब इंसान दुखी होता है तो उस समय वह पॉजिटिव सोच ही नहीं सकता। यह ज़िंदगी का एक अहम फेज है। इस फेज को पार करने में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। नेगेटिविटी को लेकर मन में किसी भी तरह का दबाव नहीं पालना चाहिए। पुरुषों में ऐसा देखा जाता है कि वे खुद को मजबूत दिखाने के चक्कर में नेगेटिविटी को पूरी तरह निकाले बगैर ही पॉजिटिविटी की तरफ बढ़ने की कोशिश करते हैं। गम खराब सेहत का... जितनी चर्चा कोरोना की हुई है, उससे कहीं ज्यादा बात कोरोना के बाद होने वाली बीमारियों की हुई है। कई ऐसे शख्स हैं जिन्हें पहले कोई बड़ी बीमारी नहीं थी, लेकिन कोरोना ने उनके शरीर में भी कोई न कोई रोग दे दिया। कोरोना के बाद डायबीटीज होना सबसे आम बात है, लेकिन ऐसे 80 से 90 फीसदी केस में यह बीमारी कुछ वक्त के लिए होती है अगर इसका सही तरीके से इलाज हो। सिर्फ 10 से 20 फीसदी लोगों में यह ज्यादा दिन तक रह सकती है या फिर ज़िंदगीभर। हम क्या करते हैं: इलाज पर कम ध्यान देते हैं, इस बात को लेकर ज्यादा परेशान होते हैं कि आखिर हमें ही डायबीटीज क्यों हुई। नतीजा यह होता है कि जिस बीमारी का इलाज आसानी से हो सकता था, वह भी शरीर में घर बना लेती है। ऐसे ही किसी के फेफड़े कमजोर हो जाते हैं तो किसी की ताकत। हमें क्या करना चाहिए: सबसे पहले हमें अपनी स्थिति को स्वीकार करना चाहिए। यह ठीक उसी तरह है जैसे कोई शख्स हादसे में अपाहिज हो जाए। जब तक वह इस बात को स्वीकार नहीं करता, परेशानी और चुनौतियां बनी रहती हैं। जिस दिन उसने इसके साथ जीना सीख लिया, निदान उसी दिन हो जाता है। खुद को यह भी समझना चाहिए कि डायबीटीज पहले से करोड़ों लोगों को है। यह भी मुमकिन है कि अगर कोरोना की वजह से यह बीमारी नहीं होती तो शायद गलत लाइफस्टाइल की वजह से हो सकती थी। जो भी बीमारी हुई है, उसे इलाज से काबू में रखने या फिर ठीक करने की कोशिश करनी चाहिए। नोट: कोरोना के बाद शुगर कंट्रोल करने के तरीकों को विस्तार से जानने के लिए हमारे फेसबुक पेज SundayNBT पर जाएं और वहां sugar टाइप करें। इसी तरह लंग्स, हार्ट और लिवर से जुड़ी परेशानियों के इलाज को विस्तार से समझने के लिए इसी पेज जाएं और #lungs या #heart या #liver टाइप करें। बीमारी है तो भी मोटिवेशन की ओवरडोज नहीं मोटिवेशन अच्छी चीज है, लेकिन कई बार यह ज्यादा हो जाता है। खासकर तब जब मोटिवेशन परिस्थिति के अनुसार नहीं, कोरी कल्पना पर आधारित हो। जब कोई दुख में होता है तो लोग भी दुख जताने आते हैं और झूठी दिलासा देते हैं। मान लें कि कोई शख्स पहले वेट लिफ्टर था। उसे गंभीर रूप से कोरोना हो गया। यह बात उसे पता है कि उसे अपनी स्थिति में वापस पहुंचने में एक साल या उससे भी ज्यादा का वक्त लग सकता है या शायद पुरानी स्थिति में पहुंचे ही नहीं। ऐसे में अगर कोई झूठा मोटिवेशन दे और कहे कि तुम 15 दिन के अंदर ट्रेनिंग सेशन में पहुंच जाओगे। यह बीमार शख्स को बुरा ही लगेगा। इसलिए जब भी कोई ऐसी बात करे तो उसकी बातों को टाल दें। रिश्तेदार या दोस्त भी झूठे मोटिवेशन न दें। वे बीमार को बताएं कि पहले सेहत पर ध्यान दो। हर कोई कहता है योग और एक्सरसाइज करो अगर शरीर कमजोर है तो स्वाभाविक है कि योग और एक्सरसाइज करने में परेशानी होगी। इसलिए करो वही जो आसानी से किया जा सकता है। अगर योग करना अच्छा लगता है और करने की क्षमता है तो जरूर करें। नहीं तो टाल दें। जबरन न करें। इससे शरीर को बहुत नुकसान होता है। यहां तक कि जबरन मेडिटेशन भी न करें। कई बार लोग सलाह देते हैं कि दुख है, डिप्रेशन में हो तो ध्यान करो। इससे सब ठीक हो जाएगा, जबकि डिप्रेशन की स्थिति में ध्यान के साथ मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट की सलाह की भी जरूरत होती है। नोट: योगासन, प्राणायाम और ध्यान करने में हम क्या गलतियां करते हैं? किन लोगों को नहीं करना चाहिए? विस्तार से जानने के लिए हमारे फेसबुक पेज SundayNBT पर जाएं और #yoga टाइप करें। लेख सामने होगा। तीसरी लहर और बच्चों को लेकर दहशत अब कोरोना की तीसरी लहर आने की बात हो रही है। यह भी कहा जा रहा है कि इससे बच्चे सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे। पैंरट्स इस वजह से सदमे की हालत में हैं। इसलिए इन बातों को समझें...-कोरोना से बचने के उपाय अपनाकर अब भी करोड़ों लोग बचे हुए हैं। जैसे 6 फुट की दूरी और मास्क है जरूरी। बिना वजह बाहर नहीं निकलना और भीड़ में नहीं जाना। बच्चों को सेहत के प्रति जागरूक करने का सबसे अच्छा समय है। अच्छा खानपान और सही रुटीन बनाकर उसकी इम्यूनिटी को बेहतर किया जा सकता है। मौजूदा चुनौतियों के बारे में बच्चों को बताना और समझाना है कि इससे कैसे बचना है, डराना नहीं है। घर में ही योग और एक्सरसाइज आदि की आदत डालनी है। जंक फूड और बाहर के खाने से बचना है। परेशानी ज्यादा बढ़े तो किसी मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट से सलाह लेने से गुरेज नहीं करना चाहिए। बिजनेस में नुकसान का गम या जॉब जाने की तकलीफ कोरोना ने दुनियाभर में लोगों की कमाई पर बहुत बुरा असर डाला है। यह कहावत भी मशहूर होने लगी है कि 'इस बार जिस शख्स ने अपनी जान और कमाई को बचा लिया तो समझो उसने ज़िंदगी की बहुत बड़ी बाजी मार ली।' सीधे कहें तो चुनौतियां किसी के लिए कम नहीं हैं। लाखों लोगों को उनके बिजनेस में भारी नुकसान हुआ है। लाखों लोगों की सैलरी कम हुई, जॉब चली गई। ऐसे में से ज्यादातर लोग 'इकनॉमिकल शॉक' की स्थिति में हैं। उन्हें इससे निकलने का कोई रास्ता नहीं दिख रहा। बिजनेस में घाटा होने पर हम क्या करते हैं... हम इस बात पर यकीन कर लेते हैं कि अब कुछ नहीं हो सकता। अब मैं कभी इस स्थिति से ऊपर उठ नहीं सकता। इस बात का मंथन ज्यादा करते हैं कि अपनी फैमिली को इस बारे में पता नहीं चलने देना चाहिए, नहीं तो हमारे बच्चे हमें बेकार समझेंगे। अपने लाइफ पार्टनर की नजरों में भी गिर जाएंगे। इससे कर्ज के साथ तनाव भी बढ़ता है। इस तरह की सोच ज्यादातर पुरुषों में होती है। किसी नए आइडिया पर नहीं सोचते।आत्मविश्वास तो पहले से ही कम होता है। ऐसी बातें सोचकर और कम कर लेते हैं। हमें क्या करना चाहिए... इस बात को समझना चाहिए कि जब पहली बार बिजनेस शुरू किया था तो जीरो से ही किया था। एक बार फिर से वहीं से शुरू करना होगा। अपनी हिम्मत बनाकर रखनी चाहिए। मान लें कि भूकंप की वजह से किसी का घर गिर जाता है तो क्या वह अपना घर दोबारा नहीं बनाता। वह जरूर बनाता है और कई बार पहले से भी ज्यादा खूबसूरत घर बनाता है। जिस तरह पुराने टूटे घर की जगह पर नया घर बनाने में जमीन नहीं खरीदनी पड़ती, उसी तरह नया बिजनेस खड़ा करने में अनुभव रूपी जमीन तो हमारे पास होती है। कई सफल बिजनेसमैन हैं जिन्होंने नाकामी के बाद सफलता का स्वाद चखा।मशहूर शायर वसीम बरेलवी ने शायद ऐसे ही मौके के लिए यह कहा है, 'हादसों की ज़द पे हैं तो मुस्कुराना छोड़ दें/ज़लज़लों के ख़ौफ़ से क्या घर बनाना छोड़ दें'। इसलिए नाकामी से डरे नहीं। हो सकता है कि जिस फील्ड से जुड़ा बिजनेस कर रहे थे, उसमें नुकसान हुआ हो यानी वहां रिस्क फैक्टर ज्यादा था। ऐसे में नई फील्ड चुनते हुए सावधान रहें। यह भी सच है कि कोरोना काल में भी लोगों ने नई फील्ड में बिजनेस शुरू करके कामयाबी पा ली है। जब भी किसी नई फील्ड में बिजनेस करने का मन बनाएं, उस फील्ड के किसी जानकार शख्स से भी मिलें। सिर्फ सफल व्यक्ति से ही राय नहीं लें। ऐसे लोगों से भी मिलें जो उस फील्ड में नाकाम हुए हैं। अब तक के बिजनेस का अनुभव हमारी जमा पूंजी है। अनुभव का इस्तेमाल करते हुए बिजनेस को आगे ले जा सकते हैं। नौकरी छूटने पर हम क्या करते हैं... खुद को कोसते हैं और उन लोगों से तुलना करते हैं जिनकी जॉब बच गई। खुद से सवाल करते हैं कि मैं ही क्यों, दूसरा क्यों नहीं? नई कोशिशों पर काम करने के बजाय, उदास होकर घर पर बैठ जाते हैं। जब घर में उदासी का माहौल होता है और कमाई बंद हो जाती है तो परिवार के सदस्यों के बीच तनाव भी बढ़ जाता है। हम अपने लाइफ पार्टनर, बच्चों और पैरंट्स पर चिल्लाने लगते हैं। इससे स्थिति ज्यादा खराब होती है। हमें क्या करना चाहिए... सबसे पहले यह समझना चाहिए कि कोरोना ने सिर्फ एक शख्स की जॉब नहीं ली। इस दौर में लाखों लोगों की जॉब गई है। कंपनी से जब किसी को निकाला जाता है तो यह कंपनी की अंदरुनी पॉलिसी होती है। यह दौर भी चला ही जाएगा। रिक्रूटमेंट फिर से होगा। जॉब साइट्स पर अपना अपडेटेड रेज्यूमे पोस्ट करना चाहिए। जैसे: linkedin.com, timesjobs.com, naukri.com आदि। यह कभी नहीं सोचना चाहिए कि माहौल ठीक नहीं है तो जॉब नहीं मिलेगी। जॉब करते हुए हमें जो अनुभव मिला था उसे कोई छीन नहीं सकता। जॉब नहीं तो अपना काम है ही। एक्सपर्ट पैनल डॉ. निमेष जी. देसाई, डायरेक्टर, IHBAS याधव मेहरा, मोटिवेशनल स्पीकर डॉ. समीर पारिख, सीनियर सायकाइट्रिस्ट डॉ. आर. पी. पाराशर, आयुर्वेदाचार्य/साइकॉलजिस्ट प्रेरणा कोहली, जानी-मानी साइकॉलजिस्ट पूजा प्रियंवदा, मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट Navbharat Times News App: देश-दुनिया की खबरें, आपके शहर का हाल, एजुकेशन और बिज़नेस अपडेट्स, फिल्म और खेल की दुनिया की हलचल, वायरल न्यूज़ और धर्म-कर्म... पाएँ हिंदी की ताज़ा खबरें डाउनलोड करें NBT ऐप 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