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पुत्रदा एकादशी की पावन कथा, सावन में देगी विशेष पुण्य फल

18 अगस्त को श्रावण पुत्रदा एकादशी है। भारतीय हिन्दू संस्कृति में हर महीने की 11वीं तिथि यानी एकादशी (ग्यारस) को व्रत-उपवास किया जाता है। जो भक्त एकादशी का व्रत पूरे विधि-विधान से करता है, उसकी समस्त मनोकामनाएं श्रीहरि विष्णु शीघ्र पूरी करते हैं।

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रक्षा बंधन क्यों मनाया जाता है? 10 पौराणिक मान्यताएं

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Putrada Ekadashi 2021: पुत्रदा एकादशी कब है? जानें तिथि, महत्व, शुभ मुहूर्त और पारण समय

श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पुत्रदा एकादशी इस बार, बुधवार, 18 अगस्त 2021 मनाई जाएगी। यह व्रत संतान की समस्याओं के निवारण हेतु किया जाता है। यदि आप स्वस्थ हैं और उपवास करने में सक्षम हैं तो निर्जला व्रत रखें अन्यथा फलाहारी व्रत

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आज है कामिका एकादशी : शुभ मुहूर्त, विशेष संयोग, पूजा विधि और पढ़ें हर जरूरी सामग्री

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सावन मास की कामिका एकादशी कब है? जानिए महत्व, शुभ मुहूर्त, कथा और व्रत पारण का समय

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Sawan Somvar | शिवजी कैलाश छोड़कर धरती पर यहां रहते हैं 4 माह, करते हैं यहीं से सृष्‍टि का संचालन


आषाढ़ी एकादशी के दिन से चार माह के लिए देव सो जाते हैं। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस बार चातुर्मास का प्रारंभ 20 जुलाई 2021 से हुआ और श्रावण मास का प्रारंभ 25 जुलाई 2021 रविवार से हुआ। श्रीहरि विष्णु चार माह के लिए योगनिंद्रा में सो जाते हैं तब उस दौरान भगवान शिव की सृष्टि का संचालन करते हैं।
1. चार माह के लिए भगवान विष्णु में सो जाते हैं और इस दौरान भगवान शिव के हाथों में सृष्टि का संचालन रहता है। इस अवधि में भगवान शिव पृथ्वीलोक पर निवास करते हैं और चार मास तक संसार की गतिविधियों का संचालन करते हैं। शिव का माह श्रावण माह ही चातुर्मास का प्रथम माह है।
देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु सो जाते हैं और चतुर्दशी के दिन भगवान शिव सो जाएंगे। जब भगवान शिव सो जाते हैं तो उस उस दिन को शिव श्यानोत्सव के नाम से जाना जाता है। तब वह अपने दूसरे रूप रुद्रावतार से सृष्टि का संचालन करते हैं। भगवान रुद्र की स्तुति ऋग्वेद में बलवान में अधिक बलवान कहकर कहकर की गई है।
2. मान्यता है कि सृष्टि का कार्यभार देखने के लिए भगावन शिव माता पार्वती, गणेशजी, कार्तिकेय और नंदी आदि गणों के साथ अपनी ससुराल कनखल आकर रहते हैं।
3. जन प्रचलित मान्यता के अनुसार वे हरिद्वार के पास कनखल में राजा दक्ष के मंदिर में आकर रहते हैं।
4. कनखल हरिद्वार का सबसे प्राचीन स्थान है। इसका उल्लेख पुराणों में मिलता है। यह स्थान हरिद्वार से लगभग 3.5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। वर्तमान में कनखल हरिद्वार की उपनगरी के रूप में जाना जाता है।
5. कनखल का इतिहास महाभारत और भगवान शिव से जुड़ा हुआ है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कनखल ही वो जगह है जहां राजा दक्ष ने प्रसिद्ध यज्ञ किया था और सती ने अपने पिता द्वारा भगवान शिव का अपमान करने पर उस यज्ञ में खुद को दाह कर लिया था।
6. माता सती के अग्निदाह के बाद शिव के गण वीरभद्र ने राजा दक्ष की वध कर दिया था बाद में शिवजी ने उनके धड़ को वश्व के सिर से जोड़ दिया था। इसी घटना की याद में यहां पर दक्षेश्वर मदिर बना हुआ है।
7. आज कनखल हरिद्वार के सबसे ज्यादा घनी आबादी वाला क्षेत्र है। आज भी कनखल में बहुत सारे प्राचीन मंदिर बने हुए है। खरीदारी के हिसाब से हरिद्वार में कनखल का बाजार एक उपयुक्त स्थान माना जा सकता है।
8. कनखनल हरिद्वार की प्राचीन धरोहर है। यह राजा दक्ष की के राज्य की राजधानी थी। यहीं पर विश्व प्रसिद्ध गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय भी है।
9. हरिद्वार को पंचपुरी भी कहा जाता है। पंचपुरी में मायादेवी मंदिर के आसपास के 5 छोटे नगर सम्मिलित हैं। कनखल उनमें से ही एक है।
10. कनखलन में रुईया धर्मशाला, सती कुंड, हरिहर आश्रम, श्रीयंत्र मंदिर, दक्ष महादेव मंदिर, गंगा घाट और उनका मंदिर, शीतला माता मंदिर, दश महाविद्या मंदिर, ब्रम्हेश्वर महादेव मंदिर, हवेली सदृश अखाड़े और कनखल की संस्कृत पाठशालाएं।
सम्बंधित जानकारी

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Bhadli Navami 2021 today there will be a break on marriage and auspicious works for four months | Bhadli Navami 2021 : भड़ली नवमी आज, चार मास के लिए लगेगा विवाह और मांगलिक कार्यों पर ब्रेक

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भड़ली नवमी 18 जुलाई को, जानिए विवाह का शुभ मुहूर्त | Bhadli Navami 2021


भड़ली नवमी 18 जुलाई को, जानिए विवाह का शुभ मुहूर्त | Bhadli Navami 2021
प्रतिवर्ष आषाढ़ शुक्ल नवमी को भड़ली या भडल्या नवमी पर्व मनाया जाता है। नवमी तिथि होने से इस दिन गुप्त नवरात्रि का समापन भी होता है। इस वर्ष भड़ली नवमी का पर्व 18 जुलाई 2021, रविवार को मनाया जाएगा। पौराणिक शास्त्रों के अनुसार भड़ली नवमी का दिन भी अक्षय तृतीया के समान ही महत्व रखता है, अतः इसे अबूझ मुहूर्त भी मानते हैं तथा यह दिन शादी-विवाह को लेकर खास मायने रखता है।
इस दिन बिना कोई मुहूर्त देखें विवाह की विधि संपन्न की जा सकती है। ज्ञात हो कि 20 जुलाई 2021, मंगलवार को देवशयनी, हरिशयनी एकादशी होने के कारण आगामी 4 माह तक शादी-विवाह संपन्न नहीं किए जा सकेंगे। अतः देवउठनी एकादशी के बाद ही शुभ मंगलमयी समय शुरू होने पर शुभ विवाह के लग्न कार्य, खरीदारी तथा अन्य शुभ कार्य किए जाएंगे।
भड़ली नवमी पर शुभ मुहूर्त योग-
हिंदू पंचांग के अनुसार, आषाढ़ शुक्ल नवमी तिथि का आरंभ
18 जुलाई को सुबह 02.41 मिनट से देर रात 12.28 मिनट तक
18 जुलाई, रविवार को को पूरे दिन से रात 01.57 मिनट तक मंगल योग।
भड़ली नवमी का दिन शादी के लिए अतिउत्तम माना गया है। भड़ली नवमी पर पूरे दिन शुभ मुहूर्त होता है, ऐसे समय में आप किसी भी समय में विवाह बंधन में बंध सकते हैं। यह ज्ञात हो कि जुलाई 2021 में शुभ मांगलिक विवाह के लिए यह अंतिम मुहूर्त है, क्योंकि इसके बाद से श्रीहरि विष्णु चार माह के लिए योग निद्रा में रहेंगे और शुभ विवाह, मुंडन, नवीन गृह प्रवेश जैसे आदि सभी मांगलिक कार्य बंद हो जाएंगे।
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