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ईद उल अदहा : जानिए कैसे और क्यों मनाई जाती है बकरीद

ईद उल अदहा : जानिए कैसे और क्यों मनाई जाती है बकरीद
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ईद उल अदहा : जानिए कैसे और क्यों मनाई जाती है बकरीद


Eid ul Adha
 
11 जुलाई 2021, रविवार को देश के विभिन्न स्थानों पर चांद देखा गया, इस हिसाब से चांद की दसवीं तारीख को ईद-उल-अजहा (बकरीद) का त्योहार मनाया जाता है। इस वर्ष बुधवार, 21 जुलाई को ईद उल-अज़हा का पर्व मनाए जाने की उम्मीद है।
क्यों मनाई जाती है बकरीद- ईद उल अजहा पर कुर्बानी दी जाती है। यह एक जरिया है जिससे बंदा अल्लाह की रजा हासिल करता है। बेशक अल्लाह को कुर्बानी का गोश्त नहीं पहुंचता है, बल्कि वह तो केवल कुर्बानी के पीछे बंदों की नीयत को देखता है। अल्लाह को पसंद है कि बंदा उसकी राह में अपना हलाल तरीके से कमाया हुआ धन खर्च करे।
कुर्बानी का इतिहास देखें तो इब्रा‍हीम अलैय सलाम एक पैगंबर गुजरे हैं, जिन्हें ख्वाब में अल्लाह का हुक्म हुआ कि वे अपने प्यारे बेटे इस्माईल (जो बाद में पैगंबर हुए) को अल्लाह की राह में कुर्बान कर दें। यह इब्राहीम अलैय सलाम के लिए एक इम्तिहान था, जिसमें एक तरफ थी अपने बेटे से मुहब्बत और एक तरफ था अल्लाह का हुक्म। इब्राहीम अलैय सलाम ने सिर्फ और सिर्फ अल्लाह के हुक्म को पूरा किया और अल्लाह को राजी करने की नीयत से अपने लख्ते जिगर इस्माईल अलैय सलाम की कुर्बानी देने को तैयार हो गए।
अल्लाह रहीमो करीम है और वह तो दिल के हाल जानता है। जैसे ही इब्राहीम अलैय सलाम छुरी लेकर अपने बेटे को कुर्बान करने लगे, वैसे ही फरिश्तों के सरदार जिब्रील अमीन ने बिजली की तेजी से इस्माईल अलैय सलाम को छुरी के नीचे से हटाकर उनकी जगह एक मेमने को रख दिया। इस तरह इब्राहीम अलैय सलाम के हाथों मेमने के जिब्हा होने के साथ पहली कुर्बानी हुई। इसके बाद जिब्रील अमीन ने इब्राहीम अलैय सलाम को खुशखबरी सुनाई कि अल्लाह ने आपकी कुर्बानी कुबूल कर ली है और अल्लाह आपकी कुर्बानी से राजी है।
कुर्बानी का मकसद- बेशक अल्लाह दिलों के हाल जानता है और वह खूब समझता है कि बंदा जो कुर्बानी दे रहा है, उसके पीछे उसकी क्या नीयत है। जब बंदा अल्लाह का हुक्म मानकर महज अल्लाह की रजा के लिए कुर्बानी करेगा तो यकीनन वह अल्लाह की रजा हासिल करेगा, लेकिन अगर कुर्बानी करने में दिखावा या तकब्बुर आ गया तो उसका सवाब जाता रहेगा। कुर्बानी इज्जत के लिए नहीं की जाए, बल्कि इसे अल्लाह की इबादत समझकर किया जाए। अल्लाह हमें और आपको कहने से ज्यादा अमल की तौफीक दे।
शरीयत के मुताबिक कुर्बानी हर उस औरत और मर्द के लिए वाजिब है, जिसके पास 13 हजार रुपए या उसके बराबर सोना और चांदी या तीनों (रुपया, सोना और चांदी) मिलाकर भी 13 हजार रुपए के बराबर है। ईद उल अजहा पर कुर्बानी देना वाजिब है। वाजिब का मुकाम फर्ज से ठीक नीचे है। अगर साहिबे हैसियत होते हुए भी किसी शख्स ने कुर्बानी नहीं दी तो वह गुनाहगार होगा। जरूरी नहीं कि कुर्बानी किसी महँगे जानदार की की जाए। हर जगह जामतखानों में कुर्बानी के हिस्से होते हैं, आप उसमें भी हिस्सेदार बन सकते हैं।
अगर किसी शख्स ने साहिबे हैसियत होते हुए कई सालों से कुर्बानी नहीं दी है तो वह साल के बीच में सदका करके इसे अदा कर सकता है। सदका एक बार में न करके थोड़ा-थोड़ा भी दिया जा सकता है। सदके के जरिये से ही मरहूमों की रूह को सवाब पहुंचाया जा सकता है।
कुर्बानी के गोश्त के तीन हिस्से करने की शरीयत में सलाह है। एक हिस्सा गरीबों में तकसीम किया जाए, दूसरा हिस्सा अपने दोस्त अहबाब के लिए इस्तेमाल किया जाए और तीसरा हिस्सा अपने घर में इस्तेमाल किया जाए। तीन हिस्से करना जरूरी नहीं है, अगर खानदान बड़ा है तो उसमें दो हिस्से या ज्यादा भी इस्तेमाल किए जा सकते हैं। गरीबों में गोश्त तकसीम करना मुफीद है। कुर्बानी का सिलसिला ईद के दिन को मिलाकर तीन दिनों तक चलता है।
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कब है बकरीद? जानिए इस दिन क्यों दी जाती है कुर्बानी


मुस्लिम धर्म में ईद का पर्व बेहद विशेष माना जाता है। वर्ष में ईद दो बार आती है, एक बार मीठी ईद तथा इसके पश्चात् बकरीद। मीठी ईद को Eid-ul-Fitr बोला जाता है, जबकि बकरीद को बकरा ईद, Eid-Ul-Zuha या Eid al-Adha बोला जाता है। रमजान के पश्चात् मीठी ईद मनाई जाती है जिसमें सेवइयां खाने का चलन है, जबकि बकरीद पर बकरे की बलि दी जाती है।
वही इस बार बकरीद 2021 20 या 21 जुलाई 2021 मतलब मंगलवार/बुधवार को पड़ेगी। ये संभावित दिनांक है क्योंकि वास्तविक दिनांक की घोषणा Eid al-Adha का चांद दिखने के पश्चात् ही होगा। बकरीद को विश्वभर में मुस्लिम धर्म को मानने वाले लोग मनाते हैं। बकरीद में भी लोग मीठी ईद की प्रकार प्रातः नमाज अदा करते हैं, इसके पश्चात् आपस में गले मिलकर एक दूसरे को ईद की शुभकामनाएं देते हैं। 
जानिए क्यों इस अवसर पर बकरे की बलि का चलन कैसे आरम्भ हुआ:-
ये है मान्यता:-
बकरीद को कुर्बानी का दिन बोला जाता है। इसको लेकर एक कहानी प्रचलित है। बोला जाता है कि हज़रत इब्राहिम अलैय सलाम की कोई औलाद नहीं थी। बहुत मन्नतें मांगने के पश्चात् उन्हें एक पुत्र इस्माइल प्राप्त हुआ जो उन्हें बेहद प्रिय था। इस्माइल को ही आगे चलकर पैगंबर नाम से जाना जाने लगा। एक दिन इब्राहिम को अल्लाह ने ख्वाब में बोला कि उन्हें उनकी सबसे प्रिय चीज की कुर्बानी चाहिए। इब्राहिम समझ गए कि अल्लाह उनसे उनके पुत्र की कुर्बानी मांग रहे हैं। अल्लाह के हुक्म के आगे वे अपने जान से प्यारे बेटे की बलि देने को भी तैयार हो गए। वही कुर्बानी देते वक़्त इब्राहिम ने आंखों पर पट्टी बांध ली जिससे उनकी ममता न जागे। जैसे ही उन्होंने चाक़ू उठाया, वैसे ही फरिश्तों के सरदार जिब्रील अमीन ने बिजली की रफ़्तार से इस्माइल अलैय सलाम को छुरी के नीचे से हटाकर एक मेमने को रख दिया। जब इब्राहिम ने अपनी पट्टी हटाई तो देखा कि इस्माइल खेल रहा हैं तथा मेमने का सिर कटा हुआ है। तभी से इस त्यौहार पर जानवर की कुर्बानी का सिलसिला आरम्भ हो गया।

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