vimarsana.com


RSS Swayamsevak Sangh Chitrakoot Meeting Update; Mohan Bhagwat | Religious Conversion, Uttar Pradesh Election
संघ की सुपर सीक्रेट मीटिंग की इनसाइड स्टोरी:मंथन से धर्म परिवर्तन रोकने के लिए 'चादर और फादर मुक्त भारत' का नारा निकला; UP चुनाव से पहले संघ की शाखाएं सुपर एक्टिव होंगी
चित्रकूट/लखनऊ9 घंटे पहलेलेखक: संध्या द्विवेदी
कॉपी लिंक
मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के बॉर्डर पर बसे चित्रकूट में पिछले 5 दिनों तक संघ की टीम ने डेरा डाला। यहां संघ का मंथन चल रहा था। मंथन का नतीजा जानने के लिए, जब भास्कर यहां पहुंचा तो मंथन भवन से 3 किलोमीटर दूर से ही पुलिस बैरिकेडिंग और अफसरों के सवालों का रेला शुरू हो गया। सवालों के बीच एक ही बात बार-बार दोहराई जा रही थी- यहां कुछ नहीं मिलेगा, लौट जाइए।
लेकिन, दिल्ली से करीब 700 किलोमीटर दूर आकर खाली हाथ जाना मुमकिन नहीं था। मन में राम कथा का वो प्रसंग याद किया, जब वानर सेना ने लंका तक पुल बनाने के लिए पत्थरों पर राम नाम लिखकर समुद्र में डाल दिए। कुछ इसी तर्ज पर हमने एक सूत्र से दूसरे सूत्र को जोड़ना शुरू किया और सामने आने लगे इस अति गोपनीय मंथन में उठे मुद्दे।
हमें पता चला कि उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव और रामजन्म भूमि विवाद का मुद्दा मंथन में छाया रहा। केंद्र और राज्य सरकारों के लिए कई कानून और नीतियों के सुझावों को लेकर भी मंथन हुआ। धर्मपरिवर्तन को लेकर एक नारा भी सामने आया- चादर और फादर मुक्त भारत। पर अभी ये नारा आधिकारिक तौर पर किसी ने जारी नहीं किया है।
हमारे इस सफर के साथ पढ़िए इस सुपर सीक्रेट मंथन की इनसाइड स्टोरी...
8 जुलाई की रात करीब 8.15 बजे हमारी गाड़ी बांदा के बबेरू ब्लॉक से गुजरने के बाद चित्रकूट के कामदगिरी पर्वत के बिल्कुल नजदीक स्थित एक आश्रम में बस कुछ 20-25 मिनट में पहुंचने ही वाली थी, लेकिन आधे घंटे से भी कम समय में पूरा होने वाला यह सफर करीब 2 घंटे की जद्दोजहद में तब्दील हो गया।
मुहूर्त अमावस्या का था और उस पर संघियों की भीड़ चित्रकूट में जुटी थी और ऊपर से पुलिस बेहद सतर्क थी। पुलिस के एक दल ने हमारी गाड़ी चित्रकूट में प्रवेश करने से पहले रोक दी। पूछताछ शुरू हुई तो उन्होंने साफ कह दिया, ऊपर से ऑर्डर है कि बाहरी प्रेस को चित्रकूट न आने दिया जाए। हमने पूछा आखिर क्यों? तो कप्तान साहब का जवाब था कि इस समय चित्रकूट की सुरक्षा व्यवस्था हाई अलर्ट पर है। हम कोई जोखिम नहीं उठा सकते।
जब हमने पूछा कि क्या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की बैठक की वजह से यह सुरक्षा घेरा बनाया गया है? तो बोले कि मैडम आप समझदार हैं, संघ की 'अतिगोपनीय' बैठक चल रही है। निर्देश हैं कि बाहरी मीडिया पर नजर रखी जाए। इस जवाब पर चौंकने की बारी हमारी थी। जब उनसे यह कहा कि बस एक आश्रम में रुकने के मकसद से जा रहे हैं। हम बैठक स्थल में नहीं जा रहे। इस पर कप्तान साहब बोले, 'वह आश्रम दीन दयाल उपाध्याय रिसर्च फाउंडेशन के बिल्कुल करीब है।'
क्या देश की संसद से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है संघ। संसद भवन से 12-13 किलोमीटर दूरी पर हमें इस तरह दिल्ली में कभी नहीं रोका गया? खैर, मेरे साथ मौजूद एक स्थानीय व्यक्ति ने उस आश्रम के स्वामी जी को फोन लगाया जहां हमें जाना था। स्वामी जी ने कप्तान से बात की। कप्तान साहब ने कहा, 'ठीक है आप जा सकते हैं।' 'संघ' की बैठक की वजह से रुकी हमारी यात्रा एक 'संत' की वजह से आगे बढ़ी।
जैसे-जैसे हमारी चित्रकूट की यात्रा आगे बढेगी, संत और संघ के जुड़ाव की परतें भी खुलेंगी। फिलहाल हमारे लिए उस आश्रम तक पहुंचना बेहद जरूरी था। रात के 9.30 बज चुके थे। भूख चरम पर थी। लगा अब बाधा खत्म और सीधा आश्रम पहुंचेंगे। तभी एक और पुलिस घेरे ने हमें रोक लिया। पूछताछ हुई, फिर वही सवाल-जवाब का सिलसिला शुरू हो गया। जब बताया कि कप्तान साहब से बात हो गई है तो जाने की हरी झंडी मिली।
करीब 30 मिनट बाद हम चारों ओर पर्वतों के चित्र से घिरे शहर चित्रकूट के सबसे पवित्र 'कामदगिरी पर्वत' से बिल्कुल सटे हुए एक आश्रम में पहुंच चुके थे। रात पौने ग्यारह बजे जब आश्रम पहुंचे तो चारों ओर भीड़ ही भीड़ नजर आई। 'अमावस्या' के मौके पर राम की तपोस्थली कामदगिरी पर्वत की परिक्रमा करने के लिए भीड़ उमड़ रही थी। कोरोना प्रोटोकॉल गायब था। मोदी जी का मंत्र- मास्क और दो फीट की दूरी गायब हो गया था। बांदा में प्रवेश करते हुए कोरोना प्रोटोकॉल टूटने ही लगा था। आ'स्था के इस सागर को देखकर हमारा सब्र और आत्मविश्वास डगमगाने लगा था। हम समझ चुके थे, कोरोना प्रोटोकॉल नहीं, बल्कि अब ईश्वर ही हमें बचाएगा।
'हर्ट लॉकर' नाम की हॉलीवुड फिल्म का वह सीन मेरे सामने नाचने लगा, जिसमें बम डिफ्यूज करने के लिए पहुंचा एक बम स्क्वॉड उस वक्त अपनी हाई प्रोटेक्टेट ड्रेस को उतार कर फेंक देता है, जब उसके हाथ जमीन के नीचे दबे एक तार पर पड़ते हैं। वहां एक-दो नहीं, बल्कि सैकड़ों टाइम बम की चटाई बिछी थी। पीछे खड़ी उसकी टीम कहती है, यह क्या कर रहे हो, सुरक्षा से खिलवाड़ मत करो, वह कहता है, अगर यहां एक बम भी फटा तो हम-तुम क्या, पूरा शहर राख बन जाएगा। यह ड्रेस नहीं, अब बचाना होगा तो ईश्वर ही हमें बचाएगा।
हमारी यह यात्रा महामारी के वक्त थी, इसलिए इसका जिक्र किए बिना आगे बढ़ना अन्याय होता, क्योंकि कोरोना काल को इतिहास में खौफनाक तस्वीरों के साथ याद किया जाएगा।
तस्वीर कामतानाथ मंदिर परिसर की है। यहां भीड़ देखकर ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि आस्था का ये सैलाब कोरोना का सुपर स्प्रेडर बन सकता है।
खैर, संक्रमण का डर उस पर संघ की गोपनीय बैठक। इस गोपनीयता से अब मन संशय में था, क्या हम खाली हाथ लौट जाएंगे? मन डूबने सा लगा। दूसरे दिन मैंने संघ के दिल्ली स्थित एक वरिष्ठ कार्यकर्ता को फोन लगाया। सर, मैं चित्रकूट में हूं। जवाब मिला, 'आपको किसने बुलाया। मेरे ख्याल से आपको लौट जाना चाहिए। वहां कुछ नहीं मिलेगा। कोई आपसे नहीं मिलेगा। संघ की यह बैठक बेहद गोपनीय है।' मैंने कहा, देखते हैं। स्थानीय पत्रकारों को फोन घुमाया, जवाब मिला, 'मैडम कुछ नहीं मिलेगा। मीडिया को बैठक स्थल के करीब भी फटकने के आदेश नहीं हैं। वहां जाना फिजूल है।' संकट यह था कि हम तकरीबन 700 किलोमीटर दूर आ चुके थे। लौटना मुमकिन और मुनासिब दोनों नहीं था।
मन को दृढ़ किया और राम का ध्यान कर कहा, 'दीन दयाल बिरिदु संभारी, हरहु नाथ मम संकट भारी'। रात करीब 10 बजे हम दीन दयाल उपाध्याय शोध संस्थान पहुंच चुके थे। पुलिस चाकचौबंद थी। बैठक भवन से करीब 3 किलोमीटर दूर तक पुलिस की बैरिकेडिंग थी। स्थानीय लोगों को भी अपने घर आने-जाने में पूछताछ का सामना करना पड़ रहा था। सुरक्षा इतनी कि परिंदा भी पर ना मार पाए। पुलिस की गाड़ियां लगातार गुजर रही थीं। मैंने मोबाइल से फोटो खींचनी चाही तो पुलिस की टीम ने एतराज जताया, कहा- 'ऊपर से आदेश है कि यहां फोटो न ली जाए।'
चित्रकूट में हर चौराहे, गली के हर मोड़ पर ऐसी ही बैरिकेडिंग थी। हर किसी से पूछताछ की जा रही थी, फिर भले ही वो यहां का स्थानीय निवासी ही क्यों न हो।
सोचा मीडिया का हवाला दिया जाए, पर उससे तो ये सफर आगे बढ़ना संभव नहीं था। साथ में रिसर्च का एक विद्यार्थी था, उसने सुझाया बैठक जहां हो रही है, उस संस्थान का एक आरोग्यधाम भी है। दवा लेने के बहाने से अंदर जा सकते हैं। अपनी इसी पहचान के साथ अंदर प्रवेश किया। उस साथी ने मुफ्त दवा का पर्चा बनाया तो मैंने कुछ तस्वीरें खींचनी शुरू कर दीं। एक पुलिसवाला बोला कि फोटो न खींचने देना का आदेश 'ऊपर' से है। उसने मेरा मोबाइल छीन लिया। मैंने कहा कि हमारे साथ जो हैं, उन्हें आरोग्य धाम से दवा लेनी है और मैं एक पर्यटक हूं। मुझे नहीं पता था कि यहां कोई गोपनीय बैठक चल रही है। खैर, दूसरे पुलिस वाले ने मुझे जाने दिया।
क्या वाकई संघ केवल संगठन के बारे में चर्चा कर रहा है, फिर इतनी गोपनीयता क्यों? संगठन ने इस बैठक के दौरान 8 जुलाई और 12 जुलाई को दो प्रेस रिलीज ही जारी कीं। इनका लब्बोलुआब यह था कि संघ कोरोना काल में बंद पड़ी शाखाओं को दोबारा चालू करने और थर्ड वेव में अपनी भूमिका को विस्तार देने के साथ ही संगठन की कुछ गतिविधियों को लेकर चर्चा कर रहा है। क्या संघ बस इतना ही कर रहा था? अगर ऐसा ही है तो मीडिया से इतना दुराव क्यों? सुरक्षा का घेरा इतना सख्त क्यों?
खैर, इस जद्दोजहद के बाद हमें पहली खबर मिली। ये खबर थी, 'चंपत राय की पेशी और उस पेशी के दौरान दी गई सफाई से संघ की असंतुष्टि।' दो दिन फोन घुमाने और संदेश भेजने के बाद संघ की बैठक के एक मीडिया प्रचारक ने मिलने का वक्त दे दिया। जब 11 जुलाई को शाम छह बजे हम शोध संस्थान के बाहर पहुंचे तो फिर अंदर जाने के लिए संघर्ष करना पड़ा।
मुलाकात का वक्त तय था, लेकिन सबसे पहले सुरक्षा घेरे की पुलिस ने हमें रोक दिया। हमारी गाड़ी को दूर खड़ा करने का आदेश दिया। कहने लगे कि आप किसी भी कीमत पर अंदर नहीं जा सकतीं। हमारी नौकरी चली जाएगी। मीडिया के लिए सख्त मनाही है। यहां किसी मीडिया पर्सन को मुलाकात के लिए बुलाया ही नहीं जा सकता। इस बीच हम संघ के उन पदाधिकारी को दो बार फोन कर चुके थे, लेकिन बैठक में शामिल होने की वजह से वे फोन नहीं उठा पा रहे थे। अब हम क्या करें? पुलिस वाले हमारी गाड़ी पर डंडा ठोक-ठोककर उसे वहां से आगे बढ़ने के लिए फटकार लगा रहे थे।
एक पुलिस अधिकारी ने जब हमें पुलिस से लड़ते-झगड़ते देखा तो उसने गाड़ी रोककर मामला समझा। उसने जब वहां से एक किलोमीटर दूर मेन गेट पर पूछताछ की तो वहां हमारा नाम दर्ज मिला। संघ का एक कार्यकर्ता मुझे उस स्थल तक ले जा रहा था। हालांकि उसने भी कहा कि मैडम यहां कुछ मिलने वाला नहीं। यहां बहुत सेंसिटिव बैठक चल रही है।
मेन गेट से मंथन भवन के करीब एक किलोमीटर लंबे रास्ते में जगह-जगह पूछताछ होती रही और यहां मीडिया की एंट्री तो पूरी तरह से बैन रखी गई थी।
जब सवाल पूछा कि आप जानते हैं मुद्दे क्या हैं, तो उसने कहा, 'हम तो बहुत छोटे कार्यकर्ता हैं। दरबारी समझिए।' तो क्या यूपी चुनाव, धर्म परिवर्तन या कुछ और क्या लगता है? इस सवाल पर उसने बस इतना कहा कि अनुमान है कि सरकार की कई नीतियों पर यह बैठक असर डालेगी। इस बीच हमने उन संतों से भी मुलाकात की, जिनसे संघ के बड़े-बड़े पदाधिकारी मिल रहे थे।
वापसी के एक दिन पहले 11 जुलाई को हमारे हाथ खाली नहीं थे, लेकिन जो उस दिन मिला, वह गोपनीय बैठक का शायद सबसे सीक्रेट एजेंडा था। संघ के एक सूत्र ने हमें अपना फोन दिखाया। उसने कहा कि बस एक लाइन में संघ की बैठक का लब्बोलुआब आप समझ जाइए। फोन के मैसेज में लिखा था कि अब हमें 'चादर मुक्त भारत और फादर मुक्त भारत' बनाना है। रात होते-होते हम सतना के कांग्रेसी विधायक और चित्रकूट के पीडब्ल्यूडी मंत्री एवं भाजपा के विधायक चंद्रिका प्रसाद उपाध्याय से मिलने पहुंचे। इसी दौरान संघ के एक और सूत्र से भी मुलाकात हुई।
उन्होंने भी चादर और फादर मुक्त स्लोगन के साथ बैठक की झलकियां दिखानी शुरू कीं। कांग्रेस के विधायक नीलांशु चतुर्वेदी ने हमें एक चिट्ठी दिखाई और कहा, 'जिस जगह पर यह बैठक चल रही है, वह हमारी विधानसभा सीट में आती है। हमने भागवत जी से मिलने का वक्त मांगा है। जवाब अब तक नहीं मिला। मिलने की उम्मीद भी नहीं है।'
चित्रकूट के भाजपा विधायक चंद्रिका प्रसाद से मुलाकात में धर्म परिवर्तन के 4 किस्से सुनने को मिले। और उन्होंने दुख के साथ यह भी बताया कि भारतीय संस्कृति को बचाना है तो धर्म परिवर्तन के खिलाफ जंग शुरू ही करनी होगी। चंद्रिका प्रसाद का प्रोफाइल अगर आप खंगालेंगे के तो पता चलेगा कि वे संघ के पुराने और बहुत मजबूत कार्यकर्ता रहे हैं।
चित्रकूट के भाजपा विधायक चंद्रिका प्रसाद उपाध्याय ने भी भारतीय संस्कृति की रक्षा की बात कही। चंद्रिका संघ के पुराने और बहुत मजबूत कार्यकर्ता रहे हैं।
संघ की अति गोपनीयता पर भारत के पहले राष्ट्रपति भी उठा चुके हैं सवाल
भारत के पहले राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने 12 दिसंबर 1948 को सरदार पटेल को एक खत लिखा था। उन्होंने लिखा था, 'इस संगठन का कोई संविधान नहीं है। इसके लक्ष्य और उद्देश्य सही तरीके से परिभाषित नहीं किए गए हैं। केवल कुछ खास लोगों को विश्वास में लिया जाता है। संगठन की कार्रवाइयों का कोई रिकॉर्ड नहीं रखा जाता है। इसके लिए कोई रजिस्टर नहीं है। संगठन के रूप में RSS में पर्याप्त गोपनीयता बरती जाती है। तकनीकी रूप से यह साबित करना मुश्किल है कि गोडसे RSS का सदस्य है, लेकिन सरकार को यह बताना चाहिए कि अगर गोडसे और संघ के बीच संबंध के तार नहीं मिले तो फिर संगठन पर बैन क्यों लगा?'
राजेंद्र प्रसाद का यह सवाल आज भी उतना ही ताजा है, जितना उस समय था। आखिर संघ की बैठकें इतनी गोपनीय क्यों? सवाल यह भी है कि आखिर संघ की बैठकों को इतना कड़ा सुरक्षा घेरा क्यों दिया जाता है? बैठकों में संगठन क्या वाकई सिर्फ अपनी गतिविधियों पर चर्चा करता है?
खबरें और भी हैं...

Related Keywords

Hollywood ,California ,United States ,Madhya Pradesh ,India ,Maine ,Satna ,Uttar Pradesh ,Delhi ,Bandaa Bberu ,Rashtriya Swayamsevak Sangh ,R Institute ,Uniona It ,Us Satnaa Congress ,Us Union ,A Center ,Uniona Old ,Union Corona ,Chandrika Uniona Old ,Uniona Delhi ,Reuters ,Pm Usr Institute ,Uniona Super ,Wa Ii ,A Chitrakoot ,Research Foundation ,Free India ,Super Secret ,Inside Story ,Ram Janma Land ,City Chitrakoot ,Tposthli Mountain ,Her High ,Form Created ,Maine Gate ,Chandrika Union ,ஹாலிவுட் ,கலிஃபோர்னியா ,ஒன்றுபட்டது மாநிலங்களில் ,மத்யா பிரதேஷ் ,இந்தியா ,மைனே ,சட்னா ,உத்தர் பிரதேஷ் ,டெல்ஹி ,ரஷ்ற்ரிய சுவயம்செவக் சங் ,ர் நிறுவனம் ,எங்களுக்கு தொழிற்சங்கம் ,ராய்ட்டர்ஸ் ,ஆராய்ச்சி அடித்தளம் ,இலவசம் இந்தியா ,அருமை ரகசியம் ,உள்ளே கதை ,

© 2024 Vimarsana

vimarsana.com © 2020. All Rights Reserved.