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Art Agenda: Appreciating Southeast Asia's History Through Art

Art Agenda stands as a bridge that connects cultures, art enthusiasts and artworks from post-war Southeast Asia.

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मनीप्लांट : प्यारी सी देखभाल, हरियाली सदाबहार

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Janmashtami 2021 : यह है श्रीकृष्ण की सरल पूजा विधि, खास रूप में कल्पना करें कान्हा की

गोपी मनोहर, श्याम, गोविंद, मुरारी, मुरलीधर, कान्हा, श्रीकृष्णा, गोपाल, घनश्याम, बाल मुकुन्द... जाने कितने सुहाने नामों से पुकारे जाने वाले यह खूबसूरत देव दिलों के बेहद करीब लगते हैं। इनकी पूजा का ढंग भी उनकी तरह ही निराला है। आइए जानें कैसे करें जन्माष्टमी पर श्रीकृष्ण की पूजा....

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संकष्टी चतुर्थी की पूजा कैसे करें, जानिए सरल विधि, मुहूर्त और चंद्रोदय का समय

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श्रीकृष्ण जन्माष्टमी कब है, कैसे करें सरल पूजन, प्रामाणिक विधि

हर वर्ष भाद्रपद की कृष्ण अष्टमी को श्रीकृष्‍ण जन्माष्टमी पर्व मनाया जाता हैं। इस बार 30 अगस्त 2021, सोमवार को यह त्योहार मनाया जाएगा। हम सभी भगवान श्रीकृष्ण को मनमोहन, केशव, श्याम, गोपाल, कान्हा, श्रीकृष्णा, घनश्याम, बाल मुकुंद,

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कई घरेलू चीजें होती हैं कीड़ों का घर | वीडियो और तस्वीरें | DW

कई कीड़े ऐसे होते हैं जो हमें नंगी आंखों से आसानी से दिख जाते हैं, लेकिन कई ऐसे होते हैं जिन्हें हम देख नहीं पाते. ये हमारे घरों में छुपे होते हैं और बीमारी का घर बन सकते हैं. इनसे बचना जरूरी है.

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सावन संकष्टी चतुर्थी का क्या है महत्व, जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, मंत्र, कथा


Sankashti Chaturthi 2021
 
धार्मिक शास्त्रों के अनुसार संकष्टी गणेश चतुर्थी हर माह आती हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार श्रावण मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है। संकष्टी चतुर्थी का व्रत सूर्योदय से शुरू होता है और चंद्रमा उदय होने पर व्रत समाप्त किया जाता है। संकष्टी चतुर्थी पर श्री गणेश का पूजन किया जाता है।
इस वर्ष सावन मास की संकष्टी चतुर्थी का व्रत 27 जुलाई, मंगलवार के दिन रखा जाएगा। संकष्टी चतुर्थी का व्रत मंगलवार को पड़ने पर इसे अंगारकी चतुर्थी भी कहा जाता है। मान्यता के अनुसार अंगारकी चतुर्थी पर गणेश पूजन करने से मंगल दोष को भी समाप्त किया जा सकता है। साथ ही इस दिन श्रावण मास का पहला मंगलवार होने के कारण इस दिन मंगला गौरी के व्रत का भी विधान है। इन्हीं संयोग के कारण इस वर्ष सावन की संकष्टी चतुर्थी विषेश फल प्रदान करने वाली मानी जा रही है।
चतुर्थी तिथि के स्वामी गणेश जी ही हैं। ज्ञात हो कि संकष्टी चतुर्थी के दिन व्रतधारी श्री गणेश पूजन के बाद चंद्रमा को जल अर्पित करके उनका दर्शन करते हैं और चंद्रमा के दर्शन के बाद ही गणेश चतुर्थी व्रत को पूर्ण माना जाता है। संकष्टी चतुर्थी व्रत रखने से व्यक्ति के सभी संकट मिट जाते हैं और जीवन में धन, सुख और समृद्धि आती है। इसके बाद व्रतधारी पारण करके व्रत को पूर्ण करते है। इस दिन किए गए व्रत-उपवास और पूजा-पाठ से यश, वैभव, सुख-समृद्धि, धन, कीर्ति, ज्ञान और बुद्धि में अतुलनीय वृद्धि होती है। श्रीगणेश शीघ्र प्रसन्न होने वाले देवता हैं...। आइए जानते हैं संकष्टी गणेश चतुर्थी का शुभ मुहूर्त और पूजा विधि...
इस दिन क्या करें, पढ़ें चतुर्थी पूजन विधि-
श्री गणेश चतुर्थी पर सुबह जल्दी उठें और स्नान के बाद सूर्य को जल चढ़ाएं।
इसके बाद घर के मंदिर में गणेश प्रतिमा को गंगा जल और शहद से स्वच्छ करें।
सिंदूर, दूर्वा, फूल, चावल, फल, जनेऊ, प्रसाद आदि चीजें एकत्रित करें।
धूप-दीप जलाएं।
'ॐ गं गणपते नमः मंत्र का जाप करते हुए पूजा करें। मंत्र जाप 108 बार करें।
गणेश जी के सामने व्रत करने का संकल्प लें और पूरे दिन अन्न ग्रहण न करें। व्रत में फलाहार, पानी, दूध, फलों का रस आदि चीजों का सेवन किया जा सकता है।
गणपति की स्‍थापना के बाद इस तरह पूजन करें-
- सबसे पहले घी का दीपक जलाएं। इसके बाद पूजा का संकल्‍प लें।
- फिर गणेश जी का ध्‍यान करने के बाद उनका आह्वन करें।
- इसके बाद गणेश को स्‍नान कराएं। सबसे पहले जल से, फिर पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और चीनी का मिश्रण) और पुन: शुद्ध जल से स्‍नान कराएं।
- गणेश के मंत्र व चालीसा और स्तोत्र आदि का वाचन करें।
- अब गणेश जी को वस्‍त्र चढ़ाएं। अगर वस्‍त्र नहीं हैं तो आप उन्‍हें एक नाड़ा भी अर्पित कर सकते हैं।
- इसके बाद गणपति की प्रतिमा पर सिंदूर, चंदन, फूल और फूलों की माला अर्पित करें।
- अब बप्‍पा को मनमोहक सुगंध वाली धूप दिखाएं।
- अब एक दूसरा दीपक जलाकर गणपति की प्रतिमा को दिखाकर हाथ धो लें। हाथ पोंछने के लिए नए कपड़े का इस्‍तेमाल करें।
- अब नैवेद्य चढ़ाएं। नैवेद्य में मोदक, मिठाई, गुड़ और फल शामिल हैं।
- इसके बाद गणपति को नारियल और दक्षिण प्रदान करें।
- आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की शुभ चतुर्थी की कथा करें।
- अब अपने परिवार के साथ गणपति की आरती करें। गणेश जी की आरती कपूर के साथ घी में डूबी हुई एक या तीन या इससे अधिक बत्तियां बनाकर की जाती है।
- इसके बाद हाथों में फूल लेकर गणपति के चरणों में पुष्‍पांजलि अर्पित करें।
- अब गणपति की परिक्रमा करें। ध्‍यान रहे कि गणपति की परिक्रमा एक बार ही की जाती है।
- इसके बाद गणपति से किसी भी तरह की भूल-चूक के लिए माफी मांगें।
- पूजा के अंत में साष्टांग प्रणाम करें।
पूजा के बाद घर के आसपास जरूरतमंद लोगों को धन और अनाज का दान करें। गाय को रोटी या हरी घास दें। किसी गौशाला में धन का दान भी कर सकते हैं।
रात को चंद्रमा की पूजा और दर्शन करने के बाद व्रत खोलना चाहिए। (इस चतुर्थी पर चंद्रोदय रात्रि 9.48 पर होगा।)
भविष्य पुराण के अनुसार संकष्टी चतुर्थी की पूजा और व्रत करने से हर तरह के कष्ट दूर हो जाते हैं। गणेश पुराण के अनुसार इस व्रत के प्रभाव से सौभाग्य, समृद्धि और संतान सुख मिलता है। शाम को चंद्रमा निकलने से पहले गणपति जी की एक बार और पूजा करें और संकष्टी व्रत कथा का फिर से पाठ करें। अब व्रत का पारण करें।
श्रावण/ सावन की अंगारकी संकष्टी चतुर्थी के मुहूर्त
श्रावण/ सावन की अंगारकी संकष्टी चतुर्थी 27 जुलाई को शाम 03.54 मिनट से शुरू हो रही है तथा 28 जुलाई को दोपहर 02.16 मिनट तक जारी रहेगा।
श्रावण मास चतुर्थी कथा- ऋषिगण पूछते हैं कि हे स्कंद कुमार! दरिद्रता, शोक, कुष्ठ आदि से विकलांग, शत्रुओं से संतप्त, राज्य से निष्कासित राज, सदैव दुखी रहने वाले, धनहीन, समस्त उपद्रवों से पीड़ित, विद्याहीन, संतानहीन, घर से निष्कासित लोगों, रोगियों एवं अपने कल्याण की कामना करने वाले लोगों को क्या उपाय करना चाहिए जिससे उनका कल्याण हो और उनके उपरोक्त कष्टों का निवारण हो। यदि आप कोई उपाय जानते हो तो उसे बतलाइए।
स्वामी कार्तिकेय जी ने कहा- हे ऋषियों! आपने जो प्रश्न किया हैं, उसके निवारणार्थ मैं आप लोगों को एक शुभदायक फल बतलाता हूं, उसे सुनिए। इस व्रत के करने से पृथ्वी के समस्त प्राणी सभी संकटों से मुक्त हो जाते हैं। यह व्रतराज महापुण्यकारी एवं मानवों को सभी कार्यों में सफलता प्रदान करने वाला है। विशेषतया यदि इस व्रत को महिलाएं करें तो उन्हें संतान एवं सौभाग्य की वृद्धि होती है।
इस व्रत को धर्मराज युधिष्ठिर ने किया था। पूर्वकाल में राजच्युत होकर अपने भाइयों के साथ जब धर्मराज वन में चले गए थे, तो उस वनवास काल में भगवान श्रीकृष्ण ने उनसे कहा था। युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से अपने कष्टों के शमनार्थ जो प्रश्न किया था, उस कथा को आप श्रवण कीजिए।
युधिष्ठिर पूछते हैं कि, हे पुरुषोत्तम! ऐसा कौनसा उपाय हैं जिससे हम वर्तमान संकटों से मुक्त हो सके। हे गदाधर! आप सर्वज्ञ हैं। हम लोगों को आगे अब किसी प्रकार का कष्ट न भुगतना पड़े, ऐसा उपाय बतलाइए।
स्कंदकुमार जी कहते है कि जब धैर्यवान युधिष्ठिर विनम्र भाव से हाथ जोड़कर, बारंबार अपने कष्टों के निवारण का उपाय पूछने लगे तो भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा कि हे राजन! संपूर्ण कामनाओं को पूर्ण करने वाला एक बहुत बड़ा गुप्त व्रत हैं। हे युधिष्ठिर! इस व्रत के संबंध में मैंने आज तक किसी को नहीं बतलाया हैं।
हे राजन! प्राचीनकाल में सतयुग की बात हैं कि पर्वतराज हिमाचल की सुंदर कन्या पार्वती ने शंकर जी को पति रूप में प्राप्त करने के लिए गहन वन में जाकर कठोर तपस्या की। परंतु भगवान शिव प्रसन्न होकर प्रकट नहीं हुए तब शैलतनया पार्वती जी ने अनादि काल से विधमान गणेश जी का स्मरण किया। गणेश जी को उसी क्षण प्रकट देखकर पार्वती जी ने पूछा कि मैंने कठोर, दुर्लभ एवं लोमहर्षक तपस्या की, किंतु अपने प्रिय भगवान् शिव को प्राप्त न कर सकी। वह कष्ट विनाशक दिव्य व्रत जिसे नारद जी ने कहा है और जो आपका ही व्रत हैं, उस प्राचीन व्रत के तत्व को आप मुझसे कहिए। पार्वती जी की बात सुनकर तत्कालीन सिद्धि दाता गणेश जी उस कष्टनाशक, शुभदायक व्रत का प्रेम से वर्णन करने लगे।
गणेश जी ने कहा- हे अचलसुते! अत्यंत पुण्यकारी एवं समस्त कष्टनाशक व्रत को कीजिए। इसके करने से आपकी सभी आकांक्षाएं पूर्ण होगी और जो व्यक्ति इस व्रत को करेंगे उन्हें भी सफलता मिलेगी। श्रावण के कृष्ण चतुर्थी की रात्रि में चंद्रोदय होने पर पूजन करना चाहिए। उस दिन मन में संकल्प करें कि जब तक चंद्रोदय नहीं होगा, मैं निराहार रहूंगी। पहले गणेश पूजन कर ही भोजन करूंगी। मन में ऐसा निश्चय करना चाहिए। इसके बाद सफेद तिल के जल से स्नान करें। मेरा पूजन करें। यदि सामर्थ्य हो तो प्रतिमास स्वर्ण की मूर्ति का पूजन करें। (अभाव में चांदी, अष्ट धातु अथवा मिट्टी की मूर्ति की ही पूजा करें।) अपनी शक्ति के अनुसार सोने, चांदी, तांबे अथवा मिट्टी के कलश में जल भरकर उस पर गणेश जी की प्रतिमा स्थापित करें।
मूर्ति कलश पर वस्त्राच्छादन करके अष्टदल कमल की आकृति बनाएं और उसी मूर्ति की स्थापना करें। तत्पश्चात षोडशोपचार विधि से भक्तिपूर्वक पूजन करें।
मूर्ति का ध्यान निम्न प्रकार से करें- हे लम्बोदर! चार भुजा वाले! तीन नेत्र वाले! लाल रंग वाले! हे नीलवर्ण वाले! शोभा के भंडार! प्रसन्न मुख वाले गणेश जी! मैं आपका ध्यान करता या करती हूं। हे गजानन! मैं आपका आवाहन करता या करती हूं। हे विघ्नराज! आपको प्रणाम करता हूं, यह आसन है।
हे लम्बोदर! यह आपके लिए पाद्य हैं। हे शंकरसुवन! यह आपके लिए अर्घ्य है। हे उमापुत्र! यह आपके स्नानार्थ जल हैं। हे व्रकतुंड! यह आपके लिए आचमनीय जल हैं। हे शूर्पकर्ण! यह आपके लिए वस्त्र हैं। हे सुशो‍भित! यह आपके लिए यज्ञोपवीत है। हे गणेश्वर! यह आपके लिए रोली चंदन है। हे विघ्नविनाशन! यह आपके लिए फूल हैं। हे विकट! यह आपके लिए धूपबत्ती है। हे वामन! यह आपके लिए दीपक है। हे सर्वदेव! यह आपके लिए लड्डू का नैवेद्य है। हे देव! यह आपके निमित फल हैं। हे विघ्नहर्ता! यह आपके निमित मेरा प्रणाम है। प्रणाम करने के बाद क्षमा प्रार्थना करें।
इस प्रकार षोडशोपचार रीति से पूजन करके नाना प्रकार के प्रसादों को बनाकर भगवान को भोग लगाएं। हे देवी! शुद्ध देशी घी में पंद्रह लड्डू बनाएं। सर्व प्रथम भगवान को लड्डू अर्पित करके उसमें से पांच ब्राह्मणों को दे दें। अपनों सामर्थ्य के अनुसार दक्षिण देकर चंद्रोदय होने पर भक्तिभाव से अर्घ्य देवें। तदनन्तर पांच लड्डू का स्वयं भोजन करें।
फिर हे देवी! तुम सब तिथियों में सर्वोत्तम हो, गणेश जी की परम प्रियतमा हो। हे चतुर्थी हमारे द्वारा प्रदत अर्ध्य को ग्रहण करों, तुम्हें प्रणाम हैं। निम्न प्रकार से चंद्रमा को अर्घ्य प्रदान करें- क्षीरसागर से उत्पन्न हे लक्ष्मी के भाई! हे निशाकर! रोहिणी सहित हे शशि! मेरे दिए हुए अर्घ्य को ग्रहण कीजिए। गणेश जी को इस प्रकार प्रणाम करें- हे लम्बोदर! आप संपूर्ण इच्छाओं को पूर्ण करने वाले हैं आपको प्रणाम हैं। हे समस्त विघ्नों के नाशक! आप मेरी अभिलाषाओं को पूर्ण करें। तत्पश्चात ब्राह्मण की प्रार्थना करें- हे दिव्जराज! आपको नमस्कार हैं, आप साक्षात देव स्वरूप हैं। गणेश जी प्रसन्नता के लिए हम आपको लड्डू समर्पित कर रहे हैं। आप हम दोनों का उद्धार करने के लिए दक्षिणा सहित इन पांच लड्डुओं को स्वीकार करें। हम आपको नमस्कार करते हैं। इसके बाद ब्राह्मण भोजन कराकर गणेश जी से प्रार्थना करें।
यदि इन सब कार्यों के करने को शक्ति न हो तो अपने भाई-बंधुओं के साथ दही एवं पूजन में निवेदित पदार्थ का भोजन करें। प्रार्थना करके प्रतिमा का विसर्जन करें और अपने गुरु को अन्न-वस्त्रादि एवं दक्षिणा के साथ मूर्ति दे देवें। इस प्रकार से विसर्जन करें- हे देवों में श्रेष्ठ! गणेश जी! आप अपने स्थान को प्रस्थान कीजिए एवं इस व्रत पूजा के फल को दीजिए।
हे सुमुखि! इस प्रकार जीवन भर गणेश चतुर्थी का व्रत करना चाहिए। यदि जन्म भर न कर सकें तो 21 वर्ष तक करें। यदि इतना करना भी संभव न हो तो एक वर्ष तक बारहों महीने के व्रत को करें। यदि इतना भी न कर सकें तो वर्ष के एक मास को अवश्य ही व्रत करें और श्रावण चतुर्थी को व्रत का उद्यापन करें।
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