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चीन-तालिबान में नजदीकी के बीच भारत की अफगान रणनीति क्या हो | दुनिया | DW


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चीन-तालिबान में नजदीकी के बीच भारत की अफगान रणनीति क्या हो
अफगानिस्तान के भविष्य को लेकर कई देश रणनीतियां बना रहे हैं. इनमें इसके साथ बड़ी सीमा साझा करने वाले पाकिस्तान, ईरान, तुर्कमेनिस्तान, उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान के अलावा भारत, चीन, रूस और अमेरिका जैसे देश भी हैं.
अफगानिस्तान से अमेरिका और पश्चिमी देशों की सेनाओं की वापसी का काम लगभग पूरा हो चुका है. इसके साथ ही तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जे की लड़ाई तेज कर दी है.
हालिया जानकारी के मुताबिक अफगानिस्तान के 400 जिलों में से लगभग आधे पर उसने कब्जा कर लिया है. लेकिन वह 34 प्रांतीय राजधानियों में से एक को भी हासिल नहीं कर सका है. हालांकि इनमें से आधी राजधानियों पर वह दबाव बनाए हुए है और काबुल समेत कई इलाकों में अफगान सुरक्षा बलों के साथ लड़ रहा है.
तालिबान दावा कर रहा है कि वह अफगानिस्तान के 85% हिस्से पर कब्जा कर चुका है और वहां की सत्ता पर इसका काबिज होना तय है. लेकिन अमेरिका और भारत सहित कई देश इस दावे पर विश्वास नहीं कर रहे. ये देश मानते हैं कि अफगान सुरक्षा बल अफगानिस्तान की रक्षा में समर्थ हैं.
हालांकि इस दौरान ये देश तालिबान और अफगान सरकार के बीच बातचीत के जरिए भविष्य का रास्ता निकालने पर भी जोर दे रहे हैं. अफगानिस्तान के भविष्य को लेकर कई देश रणनीतियां बना रहे हैं. इनमें इसके साथ बड़ी सीमा साझा करने वाले पाकिस्तान, ईरान, तुर्कमेनिस्तान, उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान के अलावा भारत, चीन, रूस और अमेरिका जैसे देश भी हैं.
भारत के पास दो रास्ते
भारत के लिए अफगानिस्तान का भविष्य बहुत मायने रखता है. इसकी कई वजह हैं लेकिन तीन सबसे प्रमुख हैं. पहली, भारत की कश्मीर में आतंकवाद को बढ़ने से रोकने की कोशिश, जिसे बढ़ावा देने में तालिबान की भूमिका रही है. दूसरी, पाकिस्तान की तालिबान से ऐतिहासिक नजदीकियां, जिनके चलते भारत के हितों को नुकसान होने की गुंजाइश है. और तीसरी, अफगानिस्तान में पिछले दशकों में भारत की ओर से किए विकास कार्यों को बचाना. भारत ने अफगानिस्तान में कई विकास कार्यों सहित वहां की नई संसद के निर्माण में भी मदद की है.
फिलहाल भारत न सिर्फ ईरान और रूस के साथ मिलकर अफगान समस्या का हल खोजने की कोशिश कर रहा है बल्कि मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक वह तालिबान से भी सीधे बातचीत कर रहा है. हालांकि भारतीय सरकार ने सीधी बातचीत से इंकार किया है. लेकिन जानकारों का मानना है कि भारत को असली सफलता तभी मिल सकती है जब वह चीन के साथ मिलकर इस मामले का हल निकालने की कोशिश करे.
दूसरी तरफ, कई जानकार यह मानते हैं कि उसे दूसरा रास्ता अपनाते हुए चीन से बात न करके ईरान के प्रति अमेरिका का रुख नर्म होने का इंतजार करना चाहिए और ईरान की मदद से अफगानिस्तान नीति तैयार करनी चाहिए.
चीन को साथ लेना जरूरी
चीन के साथ अफगानिस्तान पर भारत की कोई भी चर्चा उत्तरी लद्दाख और कई बॉर्डर के इलाकों में कथित चीनी घुसपैठ और चीन की पाकिस्तान से नजदीकियों को ध्यान में रखे बिना नहीं हो सकती है. फिर भी जानकार अफगान समस्या का हल करने के लिए चीन और भारत के साथ आने की वकालत कर रहे हैं.
तस्वीरों मेंः कबायली महिला की जिंदगी कैसे हुई बर्बाद
पाकिस्तान: एक कबायली महिला का आतंकवाद से संघर्ष
एक कठिन जीवन
पाकिस्तान की कबायली महिलाओं के लिए जिंदगी कठिन है. 55 साल की विधवा बसुआलिहा के लिए आतंकवादी हमलों में 2009 में अपने बेटे और 2010 में अपने पति को खो देने के बाद जिंदगी और दर्द भरी हो गई. वो अफगानिस्तान की सीमा से लगे कबायली जिले मोहमंद में गलनाइ नाम के शहर में रहती हैं. 2001 में अमेरिका के अफगानिस्तान पर आक्रमण के बाद इस इलाके पर तालिबान के विद्रोह का बड़ा बुरा असर पड़ा था.
पाकिस्तान: एक कबायली महिला का आतंकवाद से संघर्ष
हर तरफ से हमले
बसुआलिहा के बड़े बेटे इमरान खान की 23 साल की उम्र में एक स्थानीय "शांति समिति" ने हत्या कर दी थी. बसुआलिहा ने डीडब्ल्यू को बताया कि वो समिति एक तालिबान-विरोधी समूह थी और उसके लोगों ने उनके बेटे को आतंकवादियों की मदद करने के शक में मार दिया था. पिछले कुछ सालों में यहां थोड़ी शांति आई है, लेकिन तालिबान के लौटने की संभावना से यहां फिर से डर का माहौल कायम हो गया है.
पाकिस्तान: एक कबायली महिला का आतंकवाद से संघर्ष
एक हिंसक दौर
अगले ही साल छह दिसंबर 2010 को बसुआलिहा के पति अब्दुल गुफरान की एक सरकारी इमारत पर आत्मघाती बम विस्फोट में जान चली गई. उन्होंने बताया कि उनके पति अपने बेटे की मौत का मुआवजा लेने वहां गए थे. हमले में बीसियों लोग मारे गए थे. बसुआलिहा कहती हैं कि कबायली इलाकों में पति या किसी और व्यस्क मर्द के बिना एक महिला की जिंदगी खतरों और जोखिमों से भरी हुई होती है.
पाकिस्तान: एक कबायली महिला का आतंकवाद से संघर्ष
उम्मीद का दामन
बसुआलिहा को अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ता है. उनके गांव में गैस, बिजली की स्थिर आपूर्ति और इंटरनेट जैसी सुविधाएं नहीं हैं लेकिन पति और बेटे की मौत के बावजूद उन्होंने उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा. उन्हें सरकार से मदद के रूप में 10,000 रुपये हर महीने मिलते थे, लेकिन को सिर्फ इस पर निर्भर नहीं रहना चाहती थीं. सरकारी मदद 2014 में बंद भी हो गई.
पाकिस्तान: एक कबायली महिला का आतंकवाद से संघर्ष
सिलाई का काम
बसुआलिहा चाहती हैं कि उनके बाकी बच्चों को उचित शिक्षा मिले. उन्होंने बताया, "यह आसान नहीं था. एक बार तो मुझे ऐसा लगने लगा था कि मेरी जिंदगी बेकार है और मैं इस समाज में नहीं रह सकती हूं." आज कपड़ों की सिलाई उनकी कमाई का एक अहम जरिया है. वो महिलाओं के लिए सूट सिलती हैं और हर सूट के लिए 150-200 रुपए लेती हैं.
पाकिस्तान: एक कबायली महिला का आतंकवाद से संघर्ष
मर्द का साथ अनिवार्य
बसुआलिहा कहती हैं, "मेरे पति की मौत के बाद मैं रोटियां बनाती थी और मेरी छोटी बेटियां उन्हें मुख्य सड़क पर बेचा करती थीं. फिर मेरी बेटियां थोड़ी बड़ी हो गईं और हमारे इलाके में लड़कियों का 'इधर उधर घूमना' बुरा माना जाता है." वो कहती हैं कि इसके बाद उन्होंने रजाइयां और कंबल सिलना और उन्हें बेचना शुरू किया. जब भी वो बाजार जाती हैं उनके साथ एक मर्द जरूर होना चाहिए, चाहे वो किसी भी उम्र का हो.
पाकिस्तान: एक कबायली महिला का आतंकवाद से संघर्ष
और हिंसा होने वाली है?
पाकिस्तान के उत्तरी और उत्तर-पश्चिमी कबायली इलाकों में ऐसे हजारों परिवार हैं जो हिंसा के शिकार हुए हैं. बसुआलिहा के देवर अब्दुर रजाक कहते हैं उन्हें आज भी याद है जब मियां अब्दुल गुफरान तालिबान के हमले में मारे गए. वो उम्मीद कर रहे हैं कि कबायली इलाके एक बार फिर हिंसा और उथल पुथल में ना डूब जाएं. (सबा रहमान)
सेंटर फॉर पॉलिसी स्ट्डीज के निदेशक सी उदय भास्कर कहते हैं, "भारत को चीन के साथ जरूर बात करनी चाहिए. इसके लिए चीन के सामने प्रस्ताव रखने की जरूरत नहीं है. शांघाई कॉपरेशन ऑर्गनाइजेशन (SCO) जैसे मंच पर ऐसे मुद्दों को उठाया जा सकता है."
हालांकि सीधी अफगान नीति तैयार करने के मुद्दे पर वह कहते हैं, "भारत को थोड़ा इंतजार करना चाहिए और अफगानिस्तान और तालिबान के बीच सत्ता साझा किए जाने का रास्ता निकलने और वहां थोड़ी स्थिरता होने के बाद ही अफगान नीति पर कोई सीधा एक्शन लेना चाहिए. अभी अफगान सरकार की सीधी मदद का नुकसानदेह भी हो सकती है क्योंकि भारत तालिबान से भी बात कर रहा है."
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अफगानिस्तान की विधवाओं का दर्द
वहीं लंदन के किंग्स कॉलेज में इंटरनेशन रिलेशंस के प्रोफेसर हर्ष वी पंत कहते हैं, "भारत को सबसे बात करनी चाहिए, इसलिए चीन से भी बात करे. लेकिन क्या चीन भी बात करेगा? दोनों देश अफगानिस्तान को पहले ही अपनी बातचीत में प्राथमिकता में रख चुके हैं लेकिन यह आगे नहीं बढ़ी. चीन की पाकिस्तान से करीबी इसकी वजह है. इसलिए भारत परिस्थितियों पर नजर रखे और समय देखकर अपनी नीति के बारे में फैसला करे."
बातों का कोई जमीनी असर नहीं
जानकार मानते हैं यह इतना आसान नहीं होगा. 'साम्राज्यों का कब्रिस्तान' कहे जाने वाले अफगानिस्तान पर अब चीन की नजरें हैं. चीन की ओर से कहा गया है कि 'बॉर्डर ऐंड रोड एनीशिएटिव' के तहत अफगानिस्तान में भी निवेश किया जाएगा.
चीन लंबे समय से तालिबानी नेताओं के साथ चर्चा कर रहा है. उसे अपने उद्देश्य में पाकिस्तान से भी मदद मिल रही है. तालिबानी नेता बीजिंग दौरे पर भी गए हैं. इसका असर तालिबानी प्रतिक्रिया में देखने को मिला है. उसने चीन के खिलाफ अफगान जमीन का इस्तेमाल न करने का वादा किया है. उसकी ओर से चीनी निवेश को कोई नुकसान न पहुंचाने का वादा भी किया गया है.
देखेंः चले गए अमेरिकी, बच गया कचरा
चले गए अमेरिकी, छोड़ गए कचरा
जहां तक नजर जाए
2021 में 11 सितंबर की बरसी से पहले अमेरिकी सेना बगराम बेस को खाली कर देना चाहती है. जल्दी-जल्दी काम निपटाए जा रहे हैं. और पीछे छूट रहा है टनों कचरा, जिसमें तारें, धातु और जाने क्या क्या है.
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कुछ काम की चीजें
अभी तो जहां कचरा है, वहां लोगों की भीड़ कुछ अच्छी चीजों की तलाश में पहुंच रही है. कुछ लोगों को कई काम की चीजें मिल भी जाती हैं. जैसे कि सैनिकों के जूते. लोगों को उम्मीद है कि ये चीजें वे कहीं बेच पाएंगे.
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इलेक्ट्रॉनिक खजाना
कु

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