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UP's Ravi started making handicrafts 3 years ago from the waste stem of banana, now a business of 9 lakh rupees annually | पिता मजदूरी करते थे, बेटे ने केले के बेकार स्टेम से शुरू किया बिजनेस; सालाना 9 लाख रुपए टर्नओवर, 450 महिलाओं को रोजगार भी मिला


UP's Ravi Started Making Handicrafts 3 Years Ago From The Waste Stem Of Banana, Now A Business Of 9 Lakh Rupees Annually
आज की पॉजिटिव खबर:पिता मजदूरी करते थे, बेटे ने केले के बेकार स्टेम से शुरू किया बिजनेस; सालाना 9 लाख रुपए टर्नओवर, 450 महिलाओं को रोजगार भी मिला
नई दिल्ली3 घंटे पहलेलेखक: इंद्रभूषण मिश्र
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उत्तर प्रदेश के कुशीनगर के रहने वाले रवि प्रसाद का बचपन तंगहाली में गुजरा। सड़क हादसे में पिता की मौत हो गई। रवि की पढ़ाई बीच में छूट गई और उनके कंधे पर परिवार की जिम्मेदारी आ गई। उन्होंने मजदूरी की, प्राइवेट कंपनी में काम किया। फिर उन्हें एक आइडिया मिला जिससे उनकी लाइफ बदल गई। आज वे बनाना वेस्ट से हैंडीक्राफ्ट प्रोडक्ट्स तैयार कर रहे हैं। ऑनलाइन और ऑफलाइन प्लेटफॉर्म के जरिए देशभर में मार्केटिंग कर रहे हैं। 450 से ज्यादा महिलाओं को उन्होंने रोजगार से जोड़ा है। अभी हर साल वे 8 से 9 लाख रुपए का बिजनेस कर रहे हैं।
36 साल के रवि बताते हैं कि पिता जी मजदूरी करते थे। मैं उनके काम में मदद के साथ पढ़ाई भी करता था। मास्टर्स में दाखिला लिया था, लेकिन एक हादसे में पिता की मौत हो गई। उसके बाद मैंने पढ़ाई छोड़ दी और धंधे की तलाश में लग गया। कई साल तक इधर-उधर काम करता रहा और घर परिवार का खर्च चलाता रहा।
रवि प्रसाद ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के साथ ही जगह-जगह स्टॉल लगाकर अपने प्रोडक्ट की मार्केटिंग करते हैं।
रवि बताते हैं कि साल 2016 में अपने दोस्तों के साथ काम के लिए दिल्ली गया। उसी दौरान एक दिन प्रगति मैदान में जाने का मौका मिला। वहां साउथ के कुछ कारीगर आए थे। उन लोगों ने बनाना वेस्ट से बने हैंडीक्राफ्ट आइटम्स का स्टॉल लगाया था। उनसे बातचीत के बाद मुझे लगा कि ये काम किया जा सकता है। हमारे यहां तो केले की खूब खेती होती है और लोग बनाना वेस्ट यूं ही फेंक देते हैं।
कोयंबटूर में ट्रेनिंग ली, फिर गांव आकर बिजनेस की शुरुआत
रवि को बनाना फाइबर वेस्ट का आइडिया अच्छा लगा। उन्होंने मेले में ही एक कारीगर से दोस्ती की और काम सिखाने का आग्रह किया। इसके बाद वे दिल्ली से ही कोयंबटूर चले गए। वहां करीब एक महीने वे उस कारीगर के गांव में ठहरे। वहां के किसानों से मिले, उनके काम को समझा। बनाना फाइबर वेस्ट से हैंडीक्राफ्ट आइटम्स बनाने की ट्रेनिंग ली। जब वे काम सीख गए तो वापस अपने गांव लौट आए।
रवि प्रसाद के बनाए हैंडीक्राफ्ट की डिमांड देशभर में है। लोग ऑफलाइन और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से प्रोडक्ट खरीद सकते हैं।
रवि बताते हैं कि मुझे काम की जानकारी तो मिल गई थी, लेकिन प्रोसेसिंग मशीन खरीदने के लिए पैसे नहीं थे। मैंने कोशिश जारी रखी। लोन के लिए भी कुछ जगह कोशिश की। इसी बीच मुझे एक परिचित के जरिए जिला उद्योग केंद्र के बारे में पता चला। वहां जाकर मैंने जनरल मैनेजर से मुलाकात की। उन्हें अपने काम और ट्रेनिंग के बारे में जानकारी दी। वे मेरे आइडिया से काफी प्रभावित हुए और लोन के लिए प्रपोजल बनाने में मदद की।
5 लाख रुपए बैंक से लोन लिया
साल 2018 में रवि को बैंक से 5 लाख रुपए का लोन मिल गया। इससे उन्होंने प्रोसेसिंग मशीन खरीदी, कुछ महिलाओं को काम पर रखा और अपने काम की शुरुआत की। वे धीरे-धीरे एक के बाद एक नए-नए प्रोडक्ट तैयार करने लगे और लोकल मार्केट में उसे सप्लाई करने लगे। इसके बाद यूपी सरकार से भी सपोर्ट मिला। राज्य सरकार की वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट स्कीम के लिए मेरा चयन हुआ। उसके जरिए कई महिलाएं मुझसे जुड़ीं। मार्केटिंग के लिए मुझे प्लेटफॉर्म मिला।
केले के स्टेम को अलग-अलग शीट्स में काटने के बाद उसके फाइबर तैयार किए जाते हैं। फिर फाइबर से प्रोडक्ट बनते हैं।
इसके बाद रवि दिल्ली, लखनऊ सहित कई शहरों में लगने वाले मेलों में जाने लगे। स्टॉल लगाकर अपने प्रोडक्ट की मार्केटिंग करने लगे। कुछ मीडिया कवरेज में उनको जगह मिली तो लोग ऑनलाइन भी उनसे उत्पाद खरीदने लगे। वे अभी सोशल मीडिया के साथ ही अमेजन और फ्लिपकार्ट के जरिए अपने प्रोडक्ट की मार्केटिंग कर रहे हैं। देशभर से उन्हें ऑर्डर आ रहे हैं।
कैसे तैयार करते हैं प्रोडक्ट?
रवि ने कुशीनगर में फाइबर वेस्ट की प्रोसेसिंग यूनिट लगाई है। जिससे करीब 450 से अधिक महिलाएं जुड़ी हैं। जो बनाना फाइबर से तरह-तरह के प्रोडक्ट तैयार करती हैं। इससे उनकी भी बढ़िया कमाई हो जाती है। बनाना वेस्ट से प्रोडक्ट तैयार करने के लिए सबसे पहले खेत से केले की स्टेम को काटकर उसे ट्रैक्टर में लोड करके वे अपने यूनिट में लाते हैं। यहां मशीन की मदद से केले के स्टेम को दो भागों में काट लिया जाता है। इसके बाद महिलाएं उसे अलग-अलग शीट्स के रूप में काटती हैं।
गांव और आसपास की स्थानीय महिलाओं को उन्होंने रोजगार से जोड़ा है। ये उनके काम में अहम भूमिका निभाती हैं।
फिर इसकी कई लेवल पर प्रोसेसिंग की जाती है। जिससे शॉर्ट फाइबर और लॉन्ग फाइबर तैयार होता है। इसके बाद इसे धूप में सुखाया जाता है। फिर इससे प्रोडक्ट तैयार किए जाते हैं। रवि फिलहाल बनाना वेस्ट से हैंडीक्राफ्ट, रेशा, सैनिटरी नैपकिन, ग्रो बैग सहित दर्जनभर प्रोडक्ट तैयार कर रहे हैं। वे अपने प्रोडक्ट सीधे बड़ी-बड़ी टेक्स्टाइल कंपनियों को भेजते हैं।
बनाना फाइबर वेस्ट और करियर ग्रोथ
भारत में बड़े लेवल पर केले का उत्पादन होता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक हर साल 14 मिलियन टन केले का उत्पादन देश में होता है। तमिलनाडु, महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल, आंध्र प्रदेश, गुजरात, मध्यप्रदेश और बिहार में सबसे ज्यादा उत्पादन होता है। अगर फाइबर वेस्ट की बात करें तो हर साल 1.5 मिलियन टन ड्राई बनाना फाइबर भारत में होता है।
रवि प्रसाद फिलहाल एक दर्जन से ज्यादा हैंडीक्राफ्ट के प्रोडक्ट तैयार कर रहे हैं।
करियर के लिहाज से स्कोप की कमी नहीं है। सबसे अच्छी बात है कि बनाना वेस्ट जुटाने में ज्यादा पैसे नहीं लगते। किसानों के लिए ये बेकार की चीज होती है, वे फ्री में ही दे देते हैं। साथ ही इसको लेकर सरकार भी सपोर्ट कर रही है। इस सेक्टर में सबसे चैलेंजिंग काम है इसके लिए मार्केट तैयार करना, क्योंकि अभी इस तरह के प्रोडक्ट की कीमत अधिक होती है। इसलिए आमलोग के साथ ही कंपनियां भी कम दिलचस्पी दिखाती हैं। अगर बड़े लेवल पर इसकी प्रोसेसिंग का काम होगा तो इससे बने प्रोडक्ट की कीमत घटेगी।
कहां से ले सकते हैं ट्रेनिंग?
बनाना वेस्ट से फाइबर निकालने और उससे प्रोडक्ट तैयार करने की ट्रेनिंग देश में कई जगहों पर दी जा रही है। तिरुचिरापल्ली में 'नेशनल रिसर्च सेंटर फॉर बनाना' में इसकी ट्रेनिंग दी जाती है। इसमें कोर्स के हिसाब से फीस जमा करनी होती है। इसके अलावा नवसारी कृषि विश्वविद्यालय, गुजरात, सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग, कोयंबटूर से इसकी ट्रेनिंग ली जा सकती है। कई राज्यों में कृषि विज्ञान केंद्र में भी इसके बारे में जानकारी दी जाती है। कई किसान व्यक्तिगत रूप से भी लोगों को ट्रेंड करने का काम कर रहे हैं।
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