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army showcase k9 vajra howitzer gun, its fatal for pakistan and china, here the details | 'K-9 Vajra' के दम से दहला चीन और पाकिस्तान का दिल, ऐसी तोप जिससे बचना दुश्‍मन के लिए नामुमकिन!

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निजी हित साधने का न बने हथियार

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Boeing B-52 Stratofortress: US Airstrike stops Taliban in Afghanistan, All you need to Know: अमेरिकी हवाई हमले क्या अफगानिस्तान में तालिबान को रोक पाएंगे, जानिए हर सवाल का जवाब

बाकी एशिया न्यूज़: अमेरिकी रक्षा मंत्रालय पेंटागन ने साफ किया है कि अफगानिस्तान में तालिबान के खिलाफ हमलों के लिए एमक्यू-9 रीपर ड्रोन और F/A-18 सुपर हॉर्नेट लड़ाकू विमानों का भी इस्तेमाल किया जा रहा है। अधिकांश हमले एसी-130 गनशिप और एमक्यू-9 रीपर ड्रोन से किए जा रहे हैं।

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US will attack Taliban with B-52 bombers, President Joe Biden orders| Taliban पर B-52 बमवर्षकों से हमला करेगा अमेरिका, राष्ट्रपति Joe Biden ने दिया आदेश

अफगानिस्तान (Afghanistan) में तालिबान (Taliban) के कत्लेआम को रोक न पाने में हो रही आलोचनाओं के बीच अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन (Joe Biden) ने बड़ा फैसला लिया है.

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b-52 ac-130 taliban: US sends B-52 and AC-130 gunship to stop Taliban in Afghanistan: अमेरिका ने तालिबान को रोकने के लिए बी-52 बमवर्षक और एसी-130 गनशिप को अफगानिस्तान में हमले के लिए भेजा

b-52 ac-130 taliban: US sends B-52 and AC-130 gunship to stop Taliban in Afghanistan: अमेरिका ने तालिबान को रोकने के लिए बी-52 बमवर्षक और एसी-130 गनशिप को अफगानिस्तान में हमले के लिए भेजा
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India Pakistan Kargil War; Today History (Aaj Ka Itihas) 26 July | What Happened Today In History | करगिल में भारतीय सैनिकों के पराक्रम ने पाकिस्तान को भागने पर मजबूर किया, आज ही हुई थी करगिल पर हमारी विजय


India Pakistan Kargil War; Today History (Aaj Ka Itihas) 26 July | What Happened Today In History
आज का इतिहास:करगिल में भारतीय सैनिकों के पराक्रम ने पाकिस्तान को भागने पर मजबूर किया, आज ही हुई थी करगिल पर हमारी विजय
5 घंटे पहले
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आज 26 जुलाई है। इसी दिन 1999 में भारतीय सेना ने करगिल के युद्ध में पाकिस्तान को धूल चटा दी थी। भारत की इस जीत और सैनिकों की वीरता को याद करने के लिए हर साल इस दिन करगिल विजय दिवस मनाया जाता है।
इस लड़ाई की शुरुआत तब हुई, जब पाकिस्तानी सैनिकों ने करगिल की ऊंची पहाड़ियों पर चुपचाप कब्जा कर अपने ठिकाने बना लिए थे। 8 मई 1999 को करगिल की आजम चौकी पर पाकिस्तान के करीब 12 जवानों ने कब्जा कर लिया था। इन पाकिस्तानी सैनिकों को एक भारतीय चरवाहे ने देख लिया था। इस चरवाहे ने भारतीय सेना के जवानों को पाकिस्तानी सैनिकों के घुसपैठ की सूचना दी। इस तरह भारत को पहली बार घुसपैठ की जानकारी मिली।
अभी तक भारत समझ रहा था कि थोड़े बहुत आतंकियों ने ही कश्मीर की घाटी पर कब्जा किया है, इसलिए भारत ने चंद सैनिकों को ही इन्हें खदेड़ने के लिए भेजा। जब भारतीय सेना पर अलग-अलग चोटियों से जवाबी हमले हुए तब पता चला कि ये एक बड़ी साजिश का हिस्सा है।
तत्काल भारतीय रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस ने अपना रूस दौरा रद्द कर दिया। भारतीय सेना ने ऑपरेशन विजय की तैयारी शुरू की।
पाक सैनिक ऊंची पहाड़ियों पर बैठे थे, इस वजह से भारतीय सैनिकों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। भारतीय जवानों ने दुश्मन की नजर से बचने के लिए रात में मुश्किल चढ़ाई की। शुरुआत में भारतीय सेना को इसी वजह से खासा नुकसान उठाना पड़ा।
करगिल की एक चोटी पर कब्जा करने के बाद जश्न मनाते भारतीय सैनिक।
इस युद्ध में वायुसेना और नौसेना की भी बड़ी भूमिका रही। वायुसेना ने मिग-29 और मिराज - 2000 विमानों के जरिए पाक सैनिकों पर बम बरसाए। इस दौरान पाकिस्तान ने हमारे दो लड़ाकू विमान मार गिराए थे जबकि एक क्रैश हो गया था।
नौसेना ने ऑपरेशन तलवार चलाया। इसके तहत कराची समेत कई पाक बंदरगाहों के रास्ते रोक दिए गए ताकि वह करगिल युद्ध के लिए जरूरी तेल व ईंधन की सप्लाई न कर सके। साथ ही भारत ने अरब सागर में अपने जहाजी बेड़े को लाकर पाकिस्तान के समुद्री व्यापार रास्ते को भी बंद कर दिया था।
इस युद्ध में एक निर्णायक मोड़ तब आया जब भारत ने बोफोर्स तोपों को भी युद्ध मैदान में उतारने का फैसला लिया। आसमान से वायुसेना का हमला और जमीन से बोफोर्स तोप के भारी-भरकम गोलों ने पाकिस्तानी सैनिकों को भागने पर मजबूर कर दिया।
करीब 2 महीने तक दोनों देशों के बीच भीषण युद्ध चलता रहा। इस युद्ध में 527 भारतीय जवान शहीद हुए और पाकिस्तान के भी करीब 3000 सैनिक मारे गए। हालांकि, पाकिस्तान केवल 357 सैनिकों के मरने का ही दावा करता है।
आखिरकार 26 जुलाई 1999 को भारत ने करगिल के आखिरी चोटी पर भी कब्जा कर लिया। पाकिस्तान को इस युद्ध में मुंह की खानी पड़ी और भारत आज विजय दिवस मना रहा है।
1953: क्यूबा की क्रांति की शुरुआत
फिलहाल क्यूबा की जनता सड़कों पर उतरकर अपनी ही सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रही है। हजारों लोग सड़कों पर आजादी देने और तानाशाही खत्म करने की मांग कर रहे हैं। क्यूबा में आज से ठीक 68 साल पहले भी इस तरह का एक हिंसक विरोध प्रदर्शन हुआ था, जिसने क्यूबा की क्रांति को जन्म दिया।
1951 में फुल्गेन्सियो बतिस्ता क्यूबा के राष्ट्रपति बने। कहा जाता है कि वे अमेरिका के इशारों पर नाचते थे। उन्होंने क्यूबा के लोगों के हितों को नजरअंदाज किया और अमेरिका के हितों को प्राथमिकता दी। इस वजह से भ्रष्टाचार और असमानता से जूझ रही जनता में उनके खिलाफ विद्रोह पनप रहा था। इस विद्रोह की अगुवाई एक युवा क्रांतिकारी फिदेल कास्त्रो कर रहे थे।
26 जुलाई 1953 को फिदेल कास्त्रों ने अपने करीब 100 साथियों के साथ सैंटियागो डी क्यूबा में एक सैनिक बैरक पर हमला किया। हालांकि ये हमला पूरी तरह नाकाम रहा और सभी लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन इस हमले ने क्यूबा की क्रांति को जन्म दे दिया था।
बतिस्ता शासन के तख्तापलट के बाद क्यूबा लौटते फिदेल कास्त्रो।
जेल से छूटने के बाद फिदेल दोबारा बतिस्ता शासन के खिलाफ विद्रोह में जुट गए। हालांकि इस बार ये अभियान मैक्सिको से चलाया जा रहा था। उन्होंने वहां एक छापामार संगठन बनाया। उनकी क्रांति का नारा था – “Patria o Muerte” यानी “मातृभूमि या मृत्‍यु” और इस पूरे आंदोलन को 26 जुलाई मूवमेंट नाम दिया गया।
1 जनवरी 1959 को इसी संगठन ने बतिस्ता शासन का तख्तापलट कर दिया और देश की सत्ता फिदेल कास्त्रो के हाथ में आ गई।
1945: ब्रिटेन के चुनावों में विंस्टन चर्चिल की हार
बात 1940 की है। दूसरा विश्वयुद्ध चल रहा था। जर्मनी सभी देशों पर हमले किए जा रहा था। जर्मनी के पोलैंड पर हमले के बाद ब्रिटेन में अफरातफरी का माहौल था। नेविल चैम्बरलेन को इस्तीफा देना पड़ा और उनकी जगह विंस्टन चर्चिल प्रधानमंत्री बने।
चर्चिल ने कमजोर वक्त में ब्रिटेन को फिर से नई ऊर्जा देने का काम किया था। प्रधानमंत्री बनने के बाद जब उन्होंने पहली बार अपनी कैबिनेट को संबोधित किया तो इस दिन को टाइम मैगजीन ने दुनिया बदलने वाले दिनों की लिस्ट में शामिल किया।
तेहरान में 'बिग थ्री' कॉन्फ्रेंस के दौरान जोसेफ स्टालिन, फ्रैंकलिन डी रूजवेल्ट और विंस्टन चर्चिल।
1945 में ब्रिटेन में आम चुनाव होने थे। चर्चिल की लोकप्रियता अपने चरम पर थी। सभी को पूरा यकीन था कि चर्चिल दोबारा ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बनेंगे। 5 जुलाई 1945 को चुनाव हुए और आज ही के दिन नतीजे आए। नतीजों ने चर्चिल के साथ पूरी दुनिया को चौंका दिया। चर्चिल की कंजर्वेटिव पार्टी चुनाव हार गई। कंजर्वेटिव पार्टी को 197 सीटें ही मिलीं जबकि लेबर पार्टी को बहुमत से कई ज्यादा 393 सीटें मिलीं। क्लीमेंट एटली ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बने।
26 जुलाई के दिन हुई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय महत्व की कुछ जरूरी घटनाएं...
2016: डेमोक्रेटिक पार्टी ने हिलेरी क्लिंटन को अमेरिका के राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया। अमेरिका के इतिहास में ये पहली बार हुआ था जब किसी महिला को किसी बड़ी पार्टी ने राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया था।
2009: विजय दिवस की वर्षगांठ पर भारत ने अपनी पहली न्यूक्लियर सबमरीन ‘अरिहंत’ को लॉन्च किया।
1982: कुली फिल्म की शूटिंग के दौरान अमिताभ बच्चन को चोट आई।
1965: मालदीव ब्रिटिश शासन से आजाद हुआ।
1963: नासा ने दुनिया की पहली जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट सिंकोम-2 को लॉन्च किया।
1956: तुर्की के राष्ट्रपति अब्देल नासेर ने स्वेज नहर का राष्ट्रीयकरण कर दिया। ये फैसला इजराइल और अरब देशों के बीच युद्ध की वजह बना।
1908: अमेरिकी खुफिया एजेंसी FBI की स्थापना हुई।
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kargil war ki kahani in hindi: general vp malik interview on kargil war in hindi : vajpayee government should've allowed indian forces to capture some pakistani territory across loc, says genral vp malik : करगिल युद्ध में कुछ पाकिस्तानी इलाकों पर कब्जे की अनुमति मिलनी चाहिए थी: जनरल मलिक


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Kargil War : करगिल युद्ध में कुछ पाकिस्तानी इलाकों पर कब्जे की अनुमति मिलनी चाहिए थी: जनरल मलिक
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Kargil War Memories : 1999 की गर्मियों में जब पता चला कि पाकिस्तानी घुसपैठिये भारतीय इलाके में आकर अड्डा जमा चुके हैं तो प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और उनकी कैबिनेट हक्का-बक्का रह गई। तत्कालीन आर्मी चीफ जनरल वीपी मलिक को आज भी अफसोस है कि वाजपेयी सरकार ने उन्हें पाकिस्तानी इलाके पर कब्जा करने की इजाजत नहीं दी।
 
हाइलाइट्स
लाहौर डेक्लेरेशन के दो महीने बाद ही पाकिस्तान ने करगिल की चोटियों पर चढ़ाई कर दी
पाकिस्तान की चोरी-छिपे की गई इस हरकत ने भारत का भरोसा हमेशा के लिए खत्म कर दिया
तत्कालीन आर्मी चीफ जनरल वीपी मलिक ने करगिल युद्ध से जुड़ी कई यादें ताजा की हैं
नई दिल्ली
हम पेचीदा मसलों पर फैसले लेते हैं तो बहुत सोच-विचार के बाद भी कई बार गलतियां हो जाती हैं। इनमें से कुछ गलतियां ऐसी होती हैं जो हमें भविष्य में बहुत सताती हैं। इतिहास की वो गलतियां याद आते ही बहुत क्षोभ पैदा करती हैं। करगिल युद्ध के वक्त भारतीय सेना के प्रमुख रहे जनरल वीपी मल्लिक को भी यह बात आज भी सालती है कि उन्हें पाकिस्तानी इलाके पर कब्जे की अनुमति नहीं मिली। उन्होंने हमारे सहयोगी अखबार द टाइम्स ऑफ इंडिया (ToI) से बातचीत में अपनी कसक बयां की और बताया कि कैसे 22 साल पहले वर्ष 1999 की गर्मियों में पाकिस्तान के साथ छिड़े सैन्य संघर्ष ने युद्ध के नियमों और पाकिस्तान के साथ हमारे रिश्तों को बदलकर रख दिया।
ऑपरेशन विजय की चौतरफा सफलता
जनरल मलिक ने टीओआई की संवाददाता
हिमांशी धवन के साथ बातचीत में करगिल युद्ध ने भारतीय सेना को यह सीख दी कि अचानक गले पड़ गई आफत को दमदार सैन्य और कूटनीतिक विजय में कैसे तब्दील किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि चुपके से चोटियों पर आ बैठे पाकिस्तानी सेना को मार भगाने के लिए भारत ने ऑपरेशन विजय छेड़ा जो बहुत राजनीतिक, सैन्य और कूटनीतिक पहलों का शानदार मिश्रण था। इसके सामने पाकिस्तान न केवल अपने मकसद में नाकाम रहा बल्कि उसे राजनीतिक और सैन्य मोर्चे पर बहुत ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा।
अंतरराष्ट्रीय जगत में चमकी भारत की छवि
भारतीय सेना को बहुत कमजोर खुफिया जानकारी और अपर्याप्त निगरानी के कारण संगठित होने और पाकिस्तानी सेना पर काउंटर ऐक्शन लेने में थोड़ी देर हुई, लेकिन रणभूमि में सैन्य सफलता और एक सफल राजनीतिक-सैन्य रणनीति के कारण भारत अपने राजनीतिक लक्ष्य को पाने में कामयाब रहा। करगिल युद्ध ने अंतरराष्ट्रीय जगत में भारत की एक ऐसे जिम्मेदार और लोकतांत्रिक राष्ट्र की छवि मजबूत की जो अपने क्षेत्रीय अखंडता की सुरक्षा करने को प्रतिबद्ध और पूरी तरह सक्षम है।
हमारी कमजोरियों से भी उठा पर्दा
जनरल मलिक कहते हैं कि करगिल युद्ध से स्पष्ट हो गया है कि परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र होने के नाते भारत के साथ पूर्ण युद्ध तो नहीं, लेकिन सीमा विवाद के कारण सीमित पारंपरिक युद्ध जरूर छिड़ सकते हैं। इस युद्ध ने हाइयर डिफेंस कंट्रोल ऑर्गेनाइजेश (HDCO), खुफिया और निगरानी व्यस्था के साथ-साथ हथियारों और औजारों के मोर्चे पर हमारी कमजोरियों को भी उजागर किया।
जब वाजपेयी ने शरीफ से कहा- आपने पीठ में छूरा घोंपा
करगिल युद्ध ने पाकिस्तान के प्रति भारत के नजरिए में क्या बदलाव लाया? इस सवाल के जवाब में जनरल मलिक ने कहा कि भारत-पाकिस्तान सिक्यॉरिटी रिलेशन में यह बड़ा टर्निंग पॉइंट साबित हुआ। भारत में पाकिस्तान के प्रति विश्वास का स्तर बिल्कुल निचले स्तर पर चला गया। भारत यह समझ गया कि पाकिस्तान कभी भी, किसी भी समझौते को आसानी से धता बता सकता है जैसा कि उसने सिर्फ दो महीने पहले साइन किए गए लाहौर घोषणापत्र के साथ किया था। पाकिस्तान की इस हरकत ने प्रधानमंत्री वाजपेयी (और उनकी कैबिनेट) को तगड़ झटका दिया जो आसानी से यह मान नहीं रहे थे कि भारतीय सीमा में घुसपैठ करने वाले आतंकी नहीं बल्कि पाकिस्तानी सेना के जवान थे। वाजपेयी ने नवाज शरीफ से कहा था, 'आपने पीठ में छूरा घोंपा है।'
'हमें पाकिस्तानी इलाके पर कब्जा करना था'
युद्ध की स्थितियों को लेकर जनर मलिक कहते हैं कि हमारे सामने बिल्कुल चौंकाने वाली परिस्थिति थी। खुफिया और निगरानी के मोर्चे पर भी हमें कुछ हासिल नहीं हो रहा था। ऐसे में सरकार भी पूरी तरह उलझन में थी कि आखिर घुसपैठिये आतंकवादी हैं या पाकिस्तानी सेना। अग्रिम मोर्चे पर तैनात हमारे सैनिक भी यह पता करने में नाकाम रहे कि पाकिस्तानी घुसपैठिये कहां-कहां जमे हैं। इसलिए, ऐक्शन में आने से पहले उपयुक्त सूचना पाकर हालात का सही जायजा लेना जरूरी था। कुछ समय बाद जब भारतीय सशस्त्र बलों को जब भरोसा हो गया था कि करगिल में सफलता मिलेगी, तब उन्हें युद्धविराम से पहले नियंत्रण रेखा (LoC) के पार कुछ पाकिस्तानी इलाकों को कब्जे में लेने की अनुमति दी जानी चाहिए थी।
करगिल युद्ध का एक दृश्य।
सरकार की सेना के प्रति ऐसी उदासीनता!
जनरल मलिक ने इस इंटरव्यू में जो बात बताई, उससे पाकिस्तान और चीन जैसे पड़ोसियों के बावजूद सैन्य तैयारियों को लेकर भारत की उदासीनता की हालत बयां होती है। उन्होंने कहा कि करगिल युद्ध के कुछ वर्ष पहले सेना के पास फंड का अकाल पड़ा था। इस कारण भारतीय सेना अपने अधिकृत बजट के 70% पर ही संचालित हो रही थी। हमारे पास ऊंची-ऊंची चोटियों पर चढ़ने के लिए जरूरी पोशाक और जूते नहीं थे। हमारे पास निगरानी के औजार और रेडार तक नहीं थे। दूसरी तरफ क्या हो रहा है, यह देखने के लिए हमें हेलिकॉप्टरों को 20 हजार की ऊंचाई पर भेजना पड़ता था। आज हमारे पास सैटलाइट फोटोग्राफी और मानवरहित वाहन (UAVs) हैं। करगिल युद्ध के दौरान एक आर्टिलरी कमांडर ने बोफोर्स तोप को तीन टुकड़ों में बांटकर चोटी पर पहुंचाने का फैसला किया ताकि दुश्मन पर सीधा निशाना लगाया जा सके। इस तरह हमने अपनी कमियों की भरपाई की।
अब अगर 26/11 हो जाए तो?
जब जनरल मलिक से यह पूछा गया कि अगर आज 26/11 जैसा हमला हो जाए तो क्या आपको लगता है कि भारत की प्रतिक्रिया उड़ी और बालाकोट स्ट्राइक से अलग होगी, तो उन्होंने कहा, 26/11 हुआ तब मैं रिटायर हो गया, फिर भी मेरा विचार था कि भारत को जवाब देना चाहिए। अगर पाकिस्तान ऐसी परिस्थिति फिर से पैदा करता है तो हमें जरूर जवाब देना चाहिए और बिल्कुल कड़ाई से देना चाहिए। यह प्रतिरोधक का काम करेगा और पाकिस्तान को बीच-बीच में इसकी जरूरत भी पड़ती है। किसी तरह का जवाब दिया जाए, यह सेना और सरकार मिलकर तय करें।
पाक से कभी बातचीत नहीं करेंगे, यह संभव नहीं
पाकिस्तान की मंशा जब साफ नहीं हो तो क्या हमें उससे बातचीत करनी चाहिए? इस पर जनरल मलिक का कहना है कि वो हमारा पड़ोसी है और रहेगा। मुझे नहीं लगता है कि उससे बातचीत नहीं करने की आपकी स्थायी नीति नहीं होनी चाहिए। आपको अपनी नीतियों में लचीला होना पड़ेगा। हां, किसी तरह का तुष्टीकरण बिल्कुल भी नहीं होना चाहिए और हमारी बातचीत पूरी तरह जमीनी हकीकतों पर आधारित होनी चाहिए।
हथियार और औजार की कमी पर क्या बोलते थे रणबांकुरे
जनरल मलिक करगिल युद्ध के दौरान की घटनाओं को याद करते हुए कहते हैं, 'मेरा काम दिल्ली में बैठकर रणनीति बनाना था, लेकिन मैं हर छठे दिन अग्रिम मोर्चों पर जाता था। वहां जवानों और अधिकारियों से बातचीत करके हमेशा दुख होता था। वो अक्सर कहा करते थे कि चिंता मत कीजिए सर, हम कर लेंगे।' वो कहते हैं, 'किसी ने नहीं कहा कि यह बहुत कठिन काम है या हमारे सामने कोई बहुत बड़ी समस्या है। उल्टा मुझे दिल्ली में नेताओं और अपने साथियों के ही भौंहें तनी मिलती थीं। इसलिए, मैं खुद का साहस बढ़ाने के लिए करगिल के अग्रिम मोर्चों पर जाकर वहां लड़ रहे सैनिकों से बात करता था।'
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interesting stories of indian politics: rajniti ki ajab gajab kahaniyan : आज ली मुख्यमंत्री पद की शपथ, कल बना दिए गए राज्यपाल... जानें राजनीति के तीन अजब-गजब किस्से

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